कैंसर नही तपेदिक या टीबी तम्बाकू-जनित मृत्यु का सबसे बडा कारण है

कैंसर नही तपेदिक या टीबी तम्बाकू-जनित मृत्यु का सबसे बडा कारण है

भारत में जन-धरना ये है कि तम्बाकू जनित मृत्यु का सबसे बडा कारण कैंसर है, पर नये शोध से ये पता चला हैकि तम्बाकू जनित मृत्यु का सबसे बडा कारण है तपेदिक या टीबी या छय रोग.

तम्बाकू सेवन करने वालों में ३८% मृत्यु-दर टीबी के कारण है और ३२% मृत्यु-दर कैंसर की वजह से.

ये नया शोध, सेंटर फॉर ग्लोबल हैल्थ रिसर्च, टोरोंटो विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में प्रकाशित हुआ है (पढने के लिए यहा क्लिक्क करे).

आज भारत में तम्बाकू सेवन से १०४ लोग हर घंटे मृत्यु को प्राप्त होते हैं. अगर यू ही तम्बाकू सेवन बढ़ता रहा तो २०१० तक ११४ लोग तम्बाकू जनित मृत्यु को प्राप्त होंगे.

इस शोध से ये भी स्पष्ट हुआ कि भारत में जो लोग तम्बाकू जनित मृयु को प्राप्त होंगे, उनमे ७०% ३०-६९ साल की उम्र के होंगे - इस उम्र पर लोग जिम्मेदारियों से लैस और देश के उत्पादन व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे होते हैं.

भारत में तम्बाकू छोड़ने का दर दुनिया में सबसे कम पाया गया है. मात्र २% लोग तम्बाकू छोड़ पाने मे सफल हुए हैं और वो भी गंभीर रूप से बीमार होने के बाद.

विशेषज्ञों के अनुसार चूँकि भारत में ५०% तम्बाकू सेवन करने वाले लोग पढने में असमर्थ होते हैं, और अधिकांश लोग तम्बाकू के जानलेवा रूप से अनभिज्ञ होते हैं, ये और भी अधिक जरूरी हो जाता है कि फोटो वाली प्रभावकारी चेतावनी लागु की जाए।

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भारत सरकार ने शराब के विज्ञापन पर बंदी सख्ती से लागु करने का आह्वान किया

भारत सरकार ने शराब के विज्ञापन पर बंदी सख्ती से लागु करने का आह्वान किया

(ये खबर The Hindu अखबार में १८ मार्च २००८ को छपी है, नीचे अनुवाद करने का प्रयास किया गया है. मौलिक अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहा क्लिक्क करें )

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नयी दिल्ली: भारत सरकार ने निर्देश के जरिये देश भर में शराब और तम्बाकू उत्पादनों के हर प्रकार के विज्ञापन पर रोक लगाई है, भले ही वो छपने वाली मीडिया में हो, इलेक्ट्रोनिक (रेडियो, टी वी आदि) में हो या अन्य प्रकार के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष विज्ञापन हो).

सूचना और प्रसार मंत्री पी आर दस्मुंसी ने लोक सभा को लिखित रूप से सूचित किया कि:

"ये नोटिस २५ फरवरी २००८ को जारी किया गया था, जब केबल टेलीविज़न नेटवोर्क रूल १९९४ को संशोधित किया गया था, जिसमे ये स्पष्ट रूप से निर्देशित है कि शराब और तम्बाकू के हर प्रकार के उत्पादन के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विज्ञापन पर कानूनन रूप से रोक लगाई जाये"

उनके अनुसार, "यदि इस विज्ञापन बंदी का उलंघन हो तो केबल टेलीविज़न नेटवोर्क अधिनियम १९९५ के रूल के तहत कानूनन करवाई होनी चाहिऐ"

मंत्री दस्मुंसी के अनुसार, प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के पत्रकारों के लिए प्रेस काउंसिल एक्ट १९८७ के अर्तिक्ले १३ (२) (बी) के तहत, "कोई भी ऐसा विज्ञापन प्रकाशित नही होना चाहिऐ जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तम्बाकू या किसी भी नशीली वस्तु को बढावा मिलता हो"

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(ये खबर The Hindu अखबार में १८ मार्च २००८ को छपी है, नीचे अनुवाद करने का प्रयास किया गया है. मौलिक अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहा क्लिक्क करें )

फोटो: www.villageeap.com

अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू अधिवेशन दवाई-कंपनी के हाथो बिका

अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू अधिवेशन दवाई-कंपनी के हाथो बिका
जॉन पोलितो

(ये मौलिक लेख जॉन र पोलितो द्वार अंग्रेज़ी में लिखा गया है, और इसके एक अंश का हिन्दी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है. पूरा मौलिक अंग्रेज़ी लेख पढने के लिए यह क्लिक्क करें:

अनुवाद में त्रुटियों के लिए छमा करें)

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बोस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेस्सर मिचेल सिएगेल ने १४वें अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू या स्वास्थ्य अधिवेशन (14th World Conference on Tobacco or Health) ने कहाकी विश्व स्तर पर चल रहे तम्बाकू नियांतरण के प्रयास को अधिवेशन ने दवाई कंपनियों के हाथों बेच दिया है.

ये अधिवेशन बोम्बे/ मुम्बई में होने को है - मार्च २००९ में. इसकी वेबसाइट ये दिखाती है कि दुनिया की बड़ी दवाईकम्पनियाँ प्फिजेर (pfizer) और ग्लाक्सोस्मिथ्क्लिने या glaxosmithkline जो तम्बाकू छोड़ने के लिए अनेकोंदवाई बनती हैं, वो इसकी प्रयाजोक हैं.

"इस अधिवेशन में कैसे कोई स्वतंत्र रूप से तम्बाकू नशा छुड़वाने के लिए दवैयाँ किस हद तक प्रभावकारी हैं, इस पर खुले रूप से चर्चा कैसे हो सकती है जब दो बड़ी दवाई कम्पनियाँ इस अधिवेशन की प्रमुख प्रायोजक-करता हैं?" पूछते हैं डॉ सिएगेल. डॉ सिएगेल तम्बाकू नियांतरण में पिछले २० साल से कार्यरतरहे हैं.

"खुले रूप से तम्बाकू नशा उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय नीतियों पर कैसे बहस हो सकती है, जब दो बड़ी दवाई कम्पनियाँ जिनके उत्पादन तम्बाकू छुड़वाने का दावा करते हैं, इस अधिवेशन की प्रमुख प्रायोजक-करता हैं?" पूछते हैं डॉ सिएगेल.

अब ये लोगों को पता चल चुका है की तम्बाकू छुड़वाने की दवाइयों के क्लीनिकल ट्रायल शोध के दौरान जो सफलहोने का दावा करतें हैं, वो सही मायनों में सच नही है क्योकि इस ट्रायल में आधे लोगों को बिना शोध-रत दवाई जोदी गई थी, वो खुली बात थी की असरकारी नही है. इस

हर तम्बाकू छुड़वाने की दवाई असल जीवन में बुरी तरह से निष्फल रही है, ये खुला सत्य है.

"ये दवैयाँ इसलिए FDA से पारित हो गयीं क्योकि ट्रायल में ये पाया गया की ये 'प्लासबो' से अधिक असरकारी हैं" कहना है डॉ एडवर्ड लेविन का, सो दुके यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, रलिघ में कार्यरत हैं.

१९८४ से USA के FDA को पता था की दवाइयों का 'प्लासबो' से बेहतर होना, कोई ठोस आधार नही है की दवाईकारगर हो.

ट्रायल में, ये पता करने के लिए की शोधरत दावा कारगर है, आधे प्रतिभागियों को शोध-रत दावा दी जाती है औरबाकि आधे को शोध-रत दावा जैसे लगने वाला 'प्लासबो' जिसमे दावा का अंश नही होता. दोनों भागों की तुलना सेही पता चल सकता है कि शोध-रत दावा कारगर है या नही.

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अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू अधिवेशन दवाई-कंपनी के हाथो बिका
जॉन पोलितो

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बोस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेस्सर मिचेलसिएगेल ने १४वें अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू या स्वास्थ्य अधिवेशन (14th World Conference on Tobacco or Health) नेकहा की विश्व स्तर पर चल रहे तम्बाकूनियांतरण के प्रयास को अधिवेशन ने दवाई कंपनियों के हाथों बेच दिया है.

ये अधिवेशन बोम्बे/ मुम्बई में होने को है - मार्च २००९ में. इसकी वेबसाइट ये दिखाती है कि दुनिया की बड़ी दवाईकम्पनियाँ प्फिजेर (pfizer) और ग्लाक्सोस्मिथ्क्लिने या glaxosmithkline जो तम्बाकू छोड़ने के लिए अनेकोंदवाई बनती हैं, वो इसकी प्रयाजोक हैं.

"इस अधिवेशन में कैसे कोई स्वतंत्र रूप से तम्बाकू नशा छुड़वाने के लिए दवैयाँ किस हद तक प्रभावकारी हैं, इस पर खुले रूप से चर्चा कैसे हो सकती है जब दो बड़ी दवाई कम्पनियाँ इस अधिवेशन की प्रमुख प्रायोजक-करता हैं?" पूछते हैं डॉ सिएगेल. डॉ सिएगेल तम्बाकू नियांतरण में पिछले २० साल से कार्यरतरहे हैं.

"खुले रूप से तम्बाकू नशा उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय नीतियों पर कैसे बहस हो सकती है, जब दो बड़ी दवाई कम्पनियाँ जिनके उत्पादन तम्बाकू छुड़वाने का दावा करते हैं, इस अधिवेशन की प्रमुख प्रायोजक-करता हैं?" पूछते हैं डॉ सिएगेल.

अब ये लोगों को पता चल चुका है की तम्बाकू छुड़वाने की दवाइयों के क्लीनिकल ट्रायल शोध के दौरान जो सफलहोने का दावा करतें हैं, वो सही मायनों में सच नही है क्योकि इस ट्रायल में आधे लोगों को बिना शोध-रत दवाई जोदी गई थी, वो खुली बात थी की असरकारी नही है. इस

हर तम्बाकू छुड़वाने की दवाई असल जीवन में बुरी तरह से निष्फल रही है, ये खुला सत्य है.

"ये दवैयाँ इसलिए FDA से पारित हो गयीं क्योकि ट्रायल में ये पाया गया की ये 'प्लासबो' से अधिक असरकारी हैं" कहना है डॉ एडवर्ड लेविन का, सो दुके यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, रलिघ में कार्यरत हैं.

१९८४ से USA के FDA को पता था की दवाइयों का 'प्लासबो' से बेहतर होना, कोई ठोस आधार नही है की दवाईकारगर हो.

ट्रायल में, ये पता करने के लिए की शोधरत दावा कारगर है, आधे प्रतिभागियों को शोध-रत दावा दी जाती है औरबाकि आधे को शोध-रत दावा जैसे लगने वाला 'प्लासबो' जिसमे दावा का अंश नही होता. दोनों भागों की तुलना सेही पता चल सकता है कि शोध-रत दावा कारगर है या नही.

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सांसदों ने छात्रों के भारत-अमरीका परमाणु संधि के ख़िलाफ़ अनशन को समर्थन दिया

सांसदों ने छात्रों के भारत-अमरीका परमाणु संधि के ख़िलाफ़ अनशन को समर्थन दिया

परमाणु उर्जा के विरोध में छात्रों का संगठन के सदस्यों के अनिश्चितकालीन अनशन को दिल्ली में आज दिनहो गए हैं. १० मार्च २००८ से ये छात्र उपवास पर हैं.

छात्रों की मांग है कि भारत सरकार भारत-अमरीका परमाणु संधि को स्वीकार करे, क्योकि परमाणु शक्ति से होनेवाले नुकसान केवल इस सदी के लोगों को नुकसान पहुचायेंगे बल्कि आने वाली सदी के लोग भी इसकाकु-परिणाम झेलेंगे.

विभिन्न छेत्रों से लोगों ने छात्रों के इस संघर्ष को समर्थन दिया है. अनेकों लोग जंतर मंतर पर इस संघर्ष में भाग लेरहे हैं. कई संसद के सदस्यों (Members of Parliament) ने भी दिल्ली में इस संघर्ष में भाग लिया और अपनासहयोग व्यक्त किया. सांसदों ने आश्वासन दिया है कि वे भारत के प्रधान मंत्री एवं राष्ट्रपति से छात्रों के परमाणुशक्ति के ख़िलाफ़ इस संघर्ष से संबंधित बात करेंगे. जो सांसद इस संघर्ष में शामिल हुए, उनके नाम इस प्रकार हैं:
- पांयां रवींद्रन
- करुणाकरण
- चक चंद्रप्पन
- पप कोय (लाख्श्द्वीप)
- पीसी थॉमस

दिल्ली के कई कॉलेज के छात्रों ने भी इस संघर्ष में भरी संख्या में भाग लिया जैसे कि दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय, आदि.

जो छात्र दिल्ली में अनिश्चितकालीन उपवास पर हैं वो केरला के खोजिकोदे जिले के कॉलेज के हैं और उनके नामइस प्रकार हैं: सजी मठेव, राम्जिया रहमत, अब्दु रहमान, दिव्या और टॉमी जैकब.

अन्य छात्र जो केरला में इस आन्दोलन में शरीक हैं, वो इस प्रकार हैं: शोभराज तप, सबीना , कृपा वर्रिएर, निर्मल , सुबीश टी, जीजी , अस्व्ति तप और रंजित .

कई अन्य वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने परमाणु उर्जा के विरोध में भाग लिया और समर्थन व्यक्त किया, इनमेमग्सय्सय पुरुस्कार (२००२) से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय, नर्मदा बचाओ आन्दोलन का नेतृत्व कर रही मेधापाटकर, भूपेंद्र रावत, गब्रिएला, सलिया प्रमुख हैं.

संघर्ष २००७, जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समंवाए या National Alliance of People's Movements (NAPM), डेल्ही सोलिदारिटी ग्रुप, आशा परिवार, इंडियन सोशल एक्शन फॉरम (इन्साफ), ने भी संस्थानिक समर्थन व्यक्तकिया है.

शोभराज PK
(SANP)

STUDENTS AGAINST NUCLEAR POWER

परमाणु उर्जा के विरोध में छात्रों का संगठन

कोज्हिकोदे, केरला

कैंप: जंतर मंतर, नई दिल्ली

सम्पर्क: ०९९९०१६६९७५ / ९८६८०१९५०९

dforum@bol.net.in / delhiforum@gmail.com

अपील: परमाणु शक्ति के विरोध में अनिश्चितकालीन अनशन का ६ठा दिन

अपील: परमाणु शक्ति के विरोध में अनिश्चितकालीन अनशन का ६ठा दिन

नर्मदा बचाओ आन्दोलन और जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) द्वारा छात्रों के परमाणु शक्ति के विरोधमें अनिश्चितकालीन अनशन का समर्थन


ये एक अपील है जिसके द्वारा हम केरला के छात्रों द्वारा १० मार्च से अनिश्चितकालीन अनशन का समर्थन करते हैं.ये अनशन दिल्ली में जंतर मंतर पर भारत-अमरीका परमाणु संधि के विरोध में हो रहा है. छात्रों की मांग है कि भारत-अमरीका परमाणु संधि पूरी तरह से निरस्त कर दी जाए, और परमाणु उर्जा, जो की एक विनाश-पूर्ण और खतरनाक उर्जा का विकल्प है, उसको भी भारत अपनाना बंद करे.

भारत और अमरीका के बीच परमाणु संधि का मोटा ढांचा और प्रारंभिक विचार-विमर्श भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार के कार्यकाल में हुआ था और बाद में कांग्रेस के नेतृत्व में UPA सरकार के कार्यकाल में इस पर रफ़्तार से कार्य संपन हुआ और संधि को अंजाम दिया गया. हालांकि संभवत लेफ्ट पार्टियों के दबाव में और अन्य सामाजिक संगठनों के भीषण प्रतिरोध के कारणवश ये संधि फिलहाल निलंबित कर दी गई है.

भारत-अमरीका परमाणु संधि एक संवेदनशील बिन्दु पर है क्योकि अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसको अपने कार्यकाल खत्म होने के पहले ही लागु करना चाहते हैं.

International Atomic Energy Association (IAEA) या अन्तर-राष्ट्रीय परमाणु उर्जा संस्थान भारतीय सरकार (UPA) के साथ इस संधि पर निरंतर विचार-विमर्श करती रही है कि कैसे इसको लागु किया जाए, और हाल में UPA नेताओं के NDA नेताओं के साथ इस मुद्दे पर एक सहमति बनाने के प्रयास से साफ जाहिर है कि तमाम जन-संगठनों के इस संधि के विरोध में प्रदर्शन को नजरंदाज़ किया जा रहा है.

परमाणु उर्जा आरंभ से ही विनाशकारी रही है और आर्थिक रूप से भी अव्यवहारिक, चाहे वो जादुगोडा में उरानियम की खुदाई हो, या कोटा के परमाणु उर्जा के प्लांट हों.

बिना किसी भी जन सहमति के और सार्वजनिक बहस के भारत सरकार इस परमाणु संधि को लागु करने पर उतारू है ये भले भांति जानते हुए कि इससे भारत महाद्वीप की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है और विदेशी ताकतों की दखालान्दजी भी बढ़ सकती है. ये नि:संदेह सराह्नीये तथ्य है कि छात्रों और युवाओं द्वारा इस अमरीका-भारत परमाणु संधि के विरोध में प्रदर्शन आयोजित हो रहा है. ये खेद का विषय है कि सरकार इस मुद्दे के प्रति ध्यान नही दे रही है.

दिव्या, कृपा, टोमी जैकब, अब्दुल रहमान, सजी मठेव और राम्जिया रहमत अपने अनिश्चितकालीन अनशन के ५वे दिन पर हैं. आवश्यकता है कि हम लोग उनका समर्थन और सहयोग करें. आप लोगों से गुजारिश है कि भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, और UPA की अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिखें, सम्पर्क जानकारी नीचे दी गई है.

हमारी ये भी मांग है कि इन युवाओं पर जो अनिश्चितकालीन उपवास पर हैं, भारत सरकार कोई जोर-जबरदस्ती न करे. अधिक जानकारी के लिए, ईमेल: sanpindia@gmail.com या फ़ोन: ०९९९०१६६९७५ कीजिये.


मेधा पाटकर, आशीष मंडलोई, कमला यादव, योगिनी खानोलकर, कैलाश अवस्य


लिखें:

श्रीमती प्रतिभा पाटिल
राष्ट्रपति

राष्ट्रपति भवन
नई दिल्ली - ११० ००४
+९१-११-२३०१७२९०, +९१-११-२३०१७८२४
presssecy@alpha.nic.in (rashtrapati के प्रेस सेक्रेटरी)
राष्ट्रपति का ईमेल: presidentofindia@rb.nic.in

प्रधान मंत्री

फैक्स: ०११ २३०१९८१७, २३०१६९९६ (निवास)
कार्यालय: +९१-११-२३०१-६८५७, निवास: +९१-११-२३०१५६०३
ईमेल pmosb@pmo.nic.in ,

http://pmindia.nic.in/write.htm

श्रीमती सोनिया गाँधी
अध्यक्ष: इंडियन नेशनल कांग्रेस

फैक्स: ०११ २३०१८६५१
ईमेल: 10janpath@vsnl.net, soniagandhi@sansad.nic.in

जन-आन्दोलनों ने सांप्रदायिक शक्तियों के हमले का बहिष्कार किया

जन-आन्दोलनों ने सांप्रदायिक शक्तियों के हमले का बहिष्कार किया

जिन राजनितिक पार्टियों ने CPI-M के कार्यालयों पर हमला किया है उनके खिलाफ सख्त करवाई हो

९ मार्च २००८ को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) या CPI-M के कार्यालयों पर हुए हमले पर संघर्ष २००७ से जुडे हुए जन आन्दोलनों और लोगों ने घोर आपत्ति और खेद व्यक्त किया है.

संघर्ष २००७ के तहत जो जन-आन्दोलन एकजुट हुए हैं, उनमे प्रमुख हैं: national alliance of people’s movements (NAPM) या जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय और national forum of forest peoples and forest dwellers (NFFPFW) या जंगल में रहने वाले लोगों का राष्ट्रीय फोरम.

हमे ये जान कर आश्चर्य होता है की ये हमला भारत जैसे लोकतंत्र राष्ट्र की राजनितिक पार्टियों द्वारा पूर्व-नियोजित ढंग से किया गया था, वो भी इन राजनीति पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की निगरानी में.

ये भी चौकाने वाला तथ्य है की CPI-M के कार्यालयों पर हमला दिन-दहाड़े किया गया जब कार्यालय के भीतर राष्ट्रीय कमिटी की बैठक चल रही थी.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और RSS द्वारा हिंसा का प्रयोग कर के अन्य राजनितिक प्रतिद्वंदियों को डराने के इस प्रयास का हम लोग खंडन करते हैं.

किसी भी राजनितिक पार्टी द्वारा हिंसा के प्रयोग करने का हम सदैव खंडन करते आए हैं और चुनाव आयोग से गुजारिश है की जो राजनितिक पार्टियाँ हिंसा और खुले-आम हत्या में शरीक होती हैं, उनके खिलाफ करवाई की जाए.

हम इस बात को भी जोर दे रहे हैं की जो राजनितिक पार्टियाँ शासन काल में हैं, उनके द्वारा पैसे, राजनितिक दबाव या हिंसा का प्रयोग करके अन्य राजनितिक प्रतिद्वंदियों को दबाने का प्रयास अत्यन्त खेदजनक है.

हमारी मांग है की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके अन्य सहयोगी संगठन जैसे की राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ (RSS) तुरंत CPI-M के कार्यालयों पर हमले बंद करे.

हमारी मांग है की केंद्रीय सरकार और प्रदेश सरकारें (दिल्ली, उतराखंड, आंध्र प्रदेश आदि की) बीजेपी और RSS के हमला करने वालों पर सख्त कानूनी करवाई करे जिन्होंने भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को ललकारने का प्रयास किया है.

हमारी मांग है की केरला प्रदेश सरकार उन राजनितिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध और पार्टियों के विरुद्ध कारवाई करे जिन्होंने थालास्सेर्री (कन्नूरे जिले में) में हिंसा और राजनितिक हत्याओं में भाग लिया है.

हमारी उम्मीद है कि सब प्रदेश सरकारें और राजनितिक पार्टियाँ पुनः शान्ति व्यवस्था कायम करने के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगी.

हर राजनितिक शक्तियों से अनुरोध है कि संयम और विवेक से काम ले और लोकतांत्रिक ढांचे मे रह के विरोध, प्रदर्शन, असहमति और वैचारिक मुद्दों पर चर्चा को जगह दे.

मेधा पाटकर अशोक चोव्धुरी अरुण रोय थॉमस कोचेर्री संदीप पाण्डेय गौतम बंदोपाध्याय संध्या देवी गब्रिएला दिएत्रीच

अनिल चौधरी भूपेंद्र रावत सिम्प्रीत संघ अनुराधा तलवार

अरुण खोते आशीष मोंदोलोई विमल्भई जॉन्सन पीजे

कर नीलाकंदन बिजय पंडा मंजू गर्डिया उल्का महाजन

रोमा राजेंद्र रवि प्रफुल्ला समंत्र स्वपन गांगुली मुक्त श्रीवास्तव

प्रशांत भूषण जोए अथ्याली बिजुलाल मव विज्ञान मज श्रीदेवी पणिक्कर

भारत-अमरीका परमाणु संधि के विरोध में छात्रों द्वारा अनिश्चितकालीन अनशन शुरू

भारत-अमरीका परमाणु संधि के विरोध में छात्रों द्वारा अनिश्चितकालीन अनशन शुरू

परमाणु शक्ति के विरोध में छात्र [Students Against Nuclear Power (SANP)] के सदस्य छात्र दिल्ली में आज (१० मार्च २००८) को ४ बजे दोपहर से अनिश्चितकालीन अनशन आरंभ करेंगे. कई प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, प्रख्यात पत्रकार आदि भी इनके साथ शामिल होंगे.

SANP केरला के देवगिरी में स्थित सैंट जोसेफ कॉलेज से सामाजिक कार्यों में मास्टर्स कर राहे छात्रों का संगठन है.

इन छात्रों की मांग है की भारत इस परमाणु संधि को निष्फल करे और भंग करे.

प्रसिद्ध लेखक सूसन जॉर्ज (ट्रांस्नाशनल इन्स्तितुते, एम्सटर्डम), वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल बिद्वाई, रमोन मग्सय्सय पुरुस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय आदि भी शामिल होंगे.

इस उपवास से छात्रों का मानना है की लोगों में जागरूकता बढेगी और सामाजिक चेतन भी की भारत-अमरीका परमाणु संधि से गंभीर सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक और पर्यावरण पर प्रभाव पद सकते हैं.

इस उपवास के माध्यम से अन्य वकाल्पिक उर्जा के स्रोत के बारे में भी जानकारी बढेगी, जैसे की वायु उर्जा, बियो-गैस और फोटो-वोल्तैक केन्द्र इतियादी.

“भारत-अमरीका परमाणु संधि हमारे देश के विकास और स्वलंबन के साथ समझौता है” कहना है सांप सदस्यों का.

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:

टोमी जैकब (समन्वयक), दिल्ली: ९९९०१६६९७५

रंजित क, कालिकुत: ९९४६०२५०१५

दिव्या क, कालिकुत: ९४४६३२००३८

या

श्री प्रकाश, दिल्ली: ९८७१८८०६८६


परमाणु शक्ति के विरोध में छात्र

स्टूडेंट्स अगेंस्ट नुक्लेअर पॉवर (SANP)

ईमेल: sanpindia@gmail.com



महिलाओं में बढ़ता हुआ तम्बाकू सेवन: अन्तर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च)

महिलाओं में बढ़ता हुआ तम्बाकू सेवन: अन्तर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च)

१०० साल पहले १९० में १५,००० से अधिक महिलाओं ने न्यू यार्क में पुरुषों के समान वेतन पान के लिए और अपने वोट डालने के अधिकार के लिए एक मार्च निकली थी. महिलाओ द्वारा इतनी भरी संख्या में एकजुट होने को ८ मार्च को दुनिया भर में अन्तर-राष्ट्रीय महिलादिवस मनाया जाता है.

ये निराशाजनक बात है की संस्थाएं और संगठन इतने संकीर्ण हो गए हैं की महिला और पुरूष में असमानता जैसे मुद्दों पर एकजुट नही हो पाते. उदाहरण के तौर पर अन्तर-राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं में विशेषकर की विकासशील देशों की नाबालिग़ लड़कियों में बढ़ते हुए तम्बाकू सेवन पर चिंता जाहिर करनी अनिवार्य है.

WHO या विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट, ग्लोबल तोबक्को एपिदेमिक २००८ (Global Tobacco Epidemic 2008) के अनुसार महिलाओं में तम्बाकू सेवन निरंतर बढ़ता जा रहा है, खासकर की विकासशील देशों में.

फरवरी २००८ में शोध के अनुसार गर्भवती महिलाओं में तम्बाकू सेवन अपेक्षा से कही अधिक पाया गया है. गर्भावस्था में धूम्रपान, चबाने वाली तम्बाकू या परोक्ष रूप से धूम्रपान का अनुपात अपेक्षा से बहुत ज्यादा पाया गया है. ये महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती प्रस्तोत करता है.

भारत में १/३ गर्भवती महिलाएं तम्बाकू का सेवन करती है, ऐसा इस रिपोर्ट में पाया गया. पाकिस्तान में ५०% गर्भवती महिलाएं परोक्ष रूप से धूम्रपान की शिकार हैं.

जो महिलाएं गर्भावस्था में तम्बाकू का सेवन करती हैं, उनमे प्रसव पीड़ा जल्दी हो जाने की, कम वजन के बच्चे होने की और जनम के बाद जल्दी ही बच्चों की मृत्यु हो जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.

महिलाओं में पुरुषों से समानता के लिए संघर्ष में उनका स्वतंत्र होना और अपने निर्णय स्वयं लेना लाज़मी है. परन्तु तम्बाकू कंपनियों ने इसी का फैयदा उठाते हुए तम्बाकू सेवन को ‘स्वतंत्र’ ‘सफल’ महिलाओं की छवि से जोड़ दिया, जो ठीक बात नही है क्योकि यदि महिलाएं पुरुषों की तरह तम्बाकू सेवन करेंगी टू पुरुषों की तरह ही तम्बाकू जनित कु-प्रभावों को भी झेलेंगी.

तम्बाकू सेवन को उदासी से भी जोडा गया है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दुगनी उदासी होने की सम्भावना होती है.

उच्च-स्तारिये शोध से तमाकू कंपनी ने अपने बाज़ार की नीति नौजवान लड़को और लड़कियों के तमन्नाओं और उठने बैठने के तौर-तरीकों के अनुसार बना ली है. इसी लिए लगभग सभी तम्बाकू के प्रचार नौजवान लड़को लड़कियों को आकर्षित करने के लिए बनाये जाते हैं.

तम्बाकू सेवन से जुड़े हुए विज्ञापन या परोक्ष विज्ञापन जैसे की फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित करना इतियादी, में तम्बाकू सेवन को भ्रामक गुणों से जोडा जाता है जैसे की पतले शरीर से, सफलता से, सम्रधता से, यौनिक आनंद से, और युवा और नवयुवतियाँ इनकी और आकर्षित हो जाते हैं.

तम्बाकू कंपनी का प्रकाशन, तोबक्को रिपोर्टर, के अनुसार (१९९८): “पेर कापिता तम्बाकू का सेवन बढ़ रहा है – क्योकि महिलाओं ने तम्बाकू के सेवन को स्वीकार लिया है और सामाजिक स्वीकृति भी मिल रही है, और तम्बाकू बाज़ार बढ़ रहा है”

ये पतली सिगारेत्ते जिनपर ‘स्लिम’ या ‘लाइट’ आदि लिखा हुआ होता है, वो खासकर की महिलाओं को ध्यान में रख कर बाज़ार मी उतारी जाती हैं.

महिलाओं और पुरुषों में अनेकों एक से तम्बाकू जनित कु-प्रभाव होते हैं जैसे की फेफडे का कैंसर, उपरी खाने की नाली का कैंसर, अनेकों और कैंसर, हृदय रोग, च्रोनिक ब्रोंचितिस, और एम्फ्य्सेमा.

पुरुषों में तम्बाकू से उनकी यौनिक शक्ति कम होती है और उनमें नपुंसकता होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

महिलाओं में तम्बाकू सेवन से ह्रदय रोग होने का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक बढ़ जाता है खासकर की जब वे गर्भ निरोधक गोलियां ले रही हों, बच्चे न होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है, सर्विक्स का कैंसर, आदि का खतरा भी बढ़ जाता है. गर्भस्थ शिशु को भी इसके कु-प्रभाव झेलने पड़ते हैं, जो अक्सर घटक हो सकते हैं.

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को परोक्ष धूम्रपान कही अधिक झेलना पड़ता है, जो अनेकों जानलेवा बीमारियों की सम्भावना बढ़ा देता है.

फेफडे के कैंसर से मृत्यु डर Europe में महिलाओं में तीन गुना अधिक पाया गया है पुरुषों की तुलना में जो धूम्रपान करते हैं.

भारत में थे Cigarette and Other Tobacco Products Act (2003) या सिगारेत्ते एवं अन्य तम्बाकू उत्पादन अधिनियम २००३ और अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू नियांतरण के लिए संधि (Framework Convention on Tobacco Control, FCTC) दोनों ने जन-स्वास्थ्य के लिए और महिलाओं में तम्बाकू सेवन के डर को कम करने के लिए अनेको प्रावधान प्रस्तावित किए हैं जैसे की: तम्बाकू विज्ञापन पर बंदी लग्न, नाबालिग़ युवाओं को या नवयुवतियों को तम्बाकू नही मिले और विक्रय स्थानों पर इस पर रोक लगे, तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली प्रभावकारी चेतावनी लगे और तम्बाकू उत्पादनों पर भ्रामक शब्दों जैसे की ‘लाइट’ ‘मिल्ड’ ‘स्लिम आदि के इस्तेमाल पर भी रोक लगे.

परन्तु इन प्रावधानों को लागु करना एक बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य है.

हाल ही में भारत में जो मंत्रियों का समूह बना था जो तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनी पर विचार कर रहा था, उसने निराशाजनक निर्णय लिया है की फोटो वाली चेतावनी का अकार ५०% से घटा कर ३०-४०% कर दिया जाए, और जिन फोटो के इस्तेमाल करने के लिए रजामंदी दी है वो फोटो प्रभावकारी नही हैं.

उम्मीद है की इस वर्ष अन्तर-राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में महिलाएं एवं पुरूष एक जुट हो कर जन-स्वास्थ्य के लिए नज़र-अंदाज़ किए हुए प्रावधानों को लागु करने में सफल होंगे.

टी.बी. या तपेदिक की वजह से महिलाएं बे-घर हो जाती हैं: डॉ अंबुमणि रामादोस

टी.बी. या तपेदिक की वजह से महिलाएं बे-घर हो जाती हैं: डॉ अंबुमणि रामादोस


अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च) के
उपलक्ष्य में भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने महिलाओं में छय रोग या तपेदिक या टी.बी. तुबेर्कुलोसिस के नियंतरण एवं उपयुक्त इलाज के लिए जोर डाला.

१०० साल पहले १९०८ में १५००० महिलाओं ने न्यू यार्क में कार्यस्थल पर पुरुषों की तुलना में समान कीमत या देहादी एवं वोट डालने के अधिकार के लिए एक जुलूस निकाला था. ये अपने आ में एक ऐतिहासिक कदम था जब इतनी भारी संख्या में महिलाएं एकजुट हो कर अपने मूल अधिकारों के प्रति न केवल जागरूक हुई बल्कि संघर्षरत भी रही.

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भले ही हमें ये लगे की समाज में एड्स और टी.बी. या तपेदिक की वजह से शोषण-युक्त व्यवहार और रवैया खत्म हुए जमाना बीत गया है पर ये सच नही है. भारत के तुबेर्कुलोसिस रिसर्च सेंटर या तपेदिक शोध केन्द्र जो चेन्नई या मद्रास में स्थित है, की रिपोर्ट के अनुसार टी.बी. या तपेदिक की वजह से एक भारी संख्या में महिलाएं बे-घर हो जाती हैं.

डॉ रामादोस ने हाल ही में इस संवाददाता से कहा की “लगभग हर १००० महिलाओं में से १ को टी.बी. या तपेदिक की वजह से घर से बाहर निकल दिया जाता है. जो लोग एड्स के साथ जीवित हैं, उनमे टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा अवसरवादी संक्रामक रोग है, और मृत्यु का कारण भी”.

लगभग २ हफ्ते पहले भारत में एक महिला जिसकी मृत्यु टी.बी. या तपेदिक से हुई थी, उसके पार्थिव शरीर को दाह करने की बजे शोषण के कारन ५ दिन तक रिश्तेदारों या तेमार्दारों के हवाले नही किया गया था.

Millennium development goals जिनको हासिल करने के लिए भारत भी समर्पित है, उनमे महिलाओं का सशक्तिकरण, पुरुषों और महिलाओं मी समानता, और जच्चा-बच्चा स्वास्थ् और कल्याण व्यवस्था को बेहतर करना शामिल है. एड्स, टी.बी. या तपेदिक के कार्यक्रम इनके बैगैर बेहतर नही किए जा सकते, कहना है डॉ रामादोस का.

जो डॉ रामादोस ने अब कहा है, WHO या विश्व स्वास्थ्य संगठन ने १९९८ में ही चेतावनी दे दी थी की नवयुवतियों में टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है”.

“टी.बी. या तपेदिक की वजह से महिलाएं और पुरूष अपने उम्र के चरम में रोग-ग्रस्त हो जाते हैं और अक्सर मृत्यु के शिकार भी, मगर दुनिया का ध्यान इस पर नही है” कहा डॉ पाल दोलिन ने जो १९९८ में WHO या विश्व स्वास्थ्य संगठन के टी.बी. या तपेदिक कार्यक्रम के प्रमुख थे. “एक महिला की मृत्यु का ‘ripple effect’ या लंबे समय तक रहने वाला प्रभाव, उनके परिवार को, समुदाय को और अर्थव्यवस्था को झेलना पड़ेगा”.

शारीरिक एवं सामाजिक रूप से महिलाओं में एड्स संक्रमण होने की सम्भावना पुरुषों की तुलना में कही अधिक होती है. एड्स भारत में मात्र स्वास्थ्य का मुद्दा नही है, परन्तु एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा भी हैकहा डॉ रामादोस ने.

जो लोग एड्स के साथ जीवित हैं उनमे टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा अवसरवादी संक्रमण है. ये आवश्यक है की टीबी कार्यक्रम महिलाओं तक पहुचे विशेषकर कि उन महिलाओं तक जो सामाजिक और आर्थिक रूप से समाज के हाशिये पर हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) द्वारा मान्यता प्राप्त टी.बी. या तपेदिक उपचार के लिए कार्यक्रम जिसे DOTS ya Directly Observed Treatment Short-course कहते हैं, वो इस प्रकार से लागू किया जाना चाहिए कि पुरुषों और महिलाओं मे जो असमान्यतायें हैं वो कम हो और जिन महिलाओं को टी.बी. या तपेदिक की जांच या इलाज की जरुरत है, वो उपयुक्त सेवाओं का लाभ उठा सकें और इन असमानताओं की वजह से सेवाओं से वंचित न रहें.

एक परिवार में अक्सर महिला का स्वास्थ्य अन्य सदस्यों के मुकाबले आखरी प्राथमिकता होती है. ये कोई आश्चर्य की बात नही है की अक्सर महिलाओं मी टी.बी. या तपेदिक की जांच विलम्ब से हो पाती है औ इलाज भी. खान-पान की दृष्टि से भी महिलाओं को अक्सर न केवल कम पौष्टिक अहार मिलता है बल्कि कम मात्र में भी भोजन प्राप्त होता है.

जो लोग महिलाओं एवं पुरुषों मी असमानताओं को कम करने के लिए प्रयासरत हैं और जो लोग रोगों के नियंतरण में कार्यरत हैं, उनको मिलजुल कर कार्य करना चाहिए. टी.बी. या तपेदिक और एड्स के सब कार्यक्रमों को महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों के साथ मिल कर ही कार्य करना चाहिए.

आज अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च) के उपलक्ष्य में, आने वाले विश्व टी.बी. या तपेदि दिवस (२ मार्च) को अधिक सार्थक बनने के लिए, विभिन्न कार्यक्रमों को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए जिससे हर महिला ये कह सके की ‘मैं भी टी.बी. या तपेदिक को रोक सकती हूँ’.

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भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री से संवाद को सुनने के लिए, यहाँ क्लिक्क करें: