टी.बी. या तपेदिक की वजह से महिलाएं बे-घर हो जाती हैं: डॉ अंबुमणि रामादोस
अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च) के उपलक्ष्य में भारत के स्वास्थ्य एवं परिव
ार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने महिलाओं में छय रोग या तपेदिक या टी.बी. तुबेर्कुलोसिस के नियंतरण एवं उपयुक्त इलाज के लिए जोर डाला.
१०० साल पहले १९०८ में १५००० महिलाओं ने न्यू यार्क में कार्यस्थल पर पुरुषों की तुलना में समान कीमत या देहादी एवं वोट डालने के अधिकार के लिए एक जुलूस निकाला था. ये अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम था जब इतनी भारी संख्या में महिलाएं एकजुट हो कर अपने मूल अधिकारों के प्रति न केवल जागरूक हुई बल्कि संघर्षरत भी रही.
अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहा क्लिक्क करें:![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUr9DRMz3p44phbQfdR_dnK3hZiXtiF9vD0MZKyDe0CZdkfCVZoa7PRuOfd0xYdONrfzRZS2K-ANwOFn1kCe_GjCDdwMt5oYBCzcycaur_wiegOq_pPyYXhfP_D626tso0WsY9jRv6Ngt_/s400/bn_frontpage.gif)
विश्व टी.बी. दिवस २४ मार्च से संबंधित जानकारी के लिए यहा क्लिक्क करें:
भले ही हमें ये लगे की समाज में एड्स और टी.बी. या तपेदिक की वजह से शोषण-युक्त व्यवहार और रवैया खत्म हुए जमाना बीत गया है पर ये सच नही है. भारत के तुबेर्कुलोसिस रिसर्च सेंटर या तपेदिक शोध केन्द्र जो चेन्नई या मद्रास में स्थित है, की रिपोर्ट के अनुसार टी.बी. या तपेदिक की वजह से एक भारी संख्या में महिलाएं बे-घर हो जाती हैं.![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvIlby0xKecXBi9y1G_bvW1HDCGLAwJtDkbGqtzinII9_eyA56ezy_Mn0WytC7ftUDZDUMXFSkXd_Qt8KZdHh4ewu0nQf4S8UGI7_KWf_8o1fnAUWPkOAatd9S5Skbg4M432WkocphLw-O/s400/2008.gif)
डॉ रामादोस ने हाल ही में इस संवाददाता से कहा की “लगभग हर १००० महिलाओं में से १ को टी.बी. या तपेदिक की वजह से घर से बाहर निकल दिया जाता है. जो लोग एड्स के साथ जीवित हैं, उनमे टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा अवसरवादी संक्रामक रोग है, और मृत्यु का कारण भी”.
लगभग २ हफ्ते पहले भारत में एक महिला जिसकी मृत्यु टी.बी. या तपेदिक से हुई थी, उसके पार्थिव शरीर को दाह करने की बजे शोषण के कारन ५ दिन तक रिश्तेदारों या तेमार्दारों के हवाले नही किया गया था.
Millennium development goals जिनको हासिल करने के लिए भारत भी समर्पित है, उनमे महिलाओं का सशक्तिकरण, पुरुषों और महिलाओं मी समानता, और जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य और कल्याण व्यवस्था को बेहतर करना शामिल है. एड्स, टी.बी. या तपेदिक के कार्यक्रम इनके बैगैर बेहतर नही किए जा सकते, कहना है डॉ रामादोस का.
जो डॉ रामादोस ने अब कहा है, WHO या विश्व स्वास्थ्य संगठन ने १९९८ में ही चेतावनी दे दी थी की “नवयुवतियों में टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है”.
“टी.बी. या तपेदिक की वजह से महिलाएं और पुरूष अपने उम्र के चरम में रोग-ग्रस्त हो जाते हैं और अक्सर मृत्यु के शिकार भी, मगर दुनिया का ध्यान इस पर नही है” कहा डॉ पाल दोलिन ने जो १९९८ में WHO या विश्व स्वास्थ्य संगठन के टी.बी. या तपेदिक कार्यक्रम के प्रमुख थे. “एक महिला की मृत्यु का ‘ripple effect’ या लंबे समय तक रहने वाला प्रभाव, उनके परिवार को, समुदाय को और अर्थव्यवस्था को झेलना पड़ेगा”.
शारीरिक एवं सामाजिक रूप से महिलाओं में एड्स संक्रमण होने की सम्भावना पुरुषों की तुलना में कही अधिक होती है. “एड्स भारत में मात्र स्वास्थ्य का मुद्दा नही है, परन्तु एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा भी है” कहा डॉ रामादोस ने.
जो लोग एड्स के साथ जीवित हैं उनमे टी.बी. या तपेदिक सबसे बड़ा अवसरवादी संक्रमण है. ये आवश्यक है की टीबी कार्यक्रम महिलाओं तक पहुचे विशेषकर कि उन महिलाओं तक जो सामाजिक और आर्थिक रूप से समाज के हाशिये पर हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) द्वारा मान्यता प्राप्त टी.बी. या तपेदिक उपचार के लिए कार्यक्रम जिसे DOTS ya Directly Observed Treatment Short-course कहते हैं, वो इस प्रकार से लागू किया जाना चाहिए कि पुरुषों और महिलाओं मे जो असमान्यतायें हैं वो कम हो और जिन महिलाओं को टी.बी. या तपेदिक की जांच या इलाज की जरुरत है, वो उपयुक्त सेवाओं का लाभ उठा सकें और इन असमानताओं की वजह से सेवाओं से वंचित न रहें.
एक परिवार में अक्सर महिला का स्वास्थ्य अन्य सदस्यों के मुकाबले आखरी प्राथमिकता होती है. ये कोई आश्चर्य की बात नही है की अक्सर महिलाओं मी टी.बी. या तपेदिक की जांच विलम्ब से हो पाती है और इलाज भी. खान-पान की दृष्टि से भी महिलाओं को अक्सर न केवल कम पौष्टिक अहार मिलता है बल्कि कम मात्र में भी भोजन प्राप्त होता है.
जो लोग महिलाओं एवं पुरुषों मी असमानताओं को कम करने के लिए प्रयासरत हैं और जो लोग रोगों के नियंतरण में कार्यरत हैं, उनको मिलजुल कर कार्य करना चाहिए. टी.बी. या तपेदिक और एड्स के सब कार्यक्रमों को महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों के साथ मिल कर ही कार्य करना चाहिए.
आज अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च) के उपलक्ष्य में, आने वाले विश्व टी.बी. या तपेदि
क दिवस (२४ मार्च) को अधिक सार्थक बनने के लिए, विभिन्न कार्यक्रमों को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए जिससे हर महिला ये कह सके की ‘मैं भी टी.बी. या तपेदिक को रोक सकती हूँ’.
----------
भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री से संवाद को सुनने के लिए, यहाँ क्लिक्क करें: