लोकतंत्र ओर सपनों का झारखंड ...कैसे ?

प्रिय नागरिकों, जिंदाबाद लोकतंत्र और आज की परिस्थिति में शान्ति और विकास का निरंतरता कैसे कायम रहे !!!

शिक्षा
विद्यालय, राशन-दुकान, वन, रोजगार, भूमि, राजनीति गाँव का दीवाल, एक हजार से पांच सौ के बीच आबादी वाले गांवों में एक व्यक्ति एक पद, आधा महिला के सिंद्धांत पर समिति का चुनाव कराने सरकारी, पुलिस, राजनीतिक दल, कोई वर्ग ऐसा करा कर उनका नाम दीवाल पर लिखवा दे। आज एक छोड़कर मतलब कोई राजनीतिक दल कहे हम झारखंड में सरकार बना के : महीना में पंचायत चुनाव करा देंगे और : महीना में चुनाव करा सके जनता को यह कानूनी अधिकार रहना चाहिए उसे हटा दे ओर यही कहने वाले राजनीतिक को बैठा दे, और अगर झारखंड के ३२ हजार गांवों में १०-१० व्यक्ति का नाम राजनीतिक समिति में गाँव के दीवाल पर लिखा दो, अगर कोई राजनीतिक दल ऐसा कहे तब भी झारखंड के लाख २० हजार जनता ३०० किलोमीटर लाइन में खड़ा होकर यह कानूनी अधिकार जनता को संसद दे इस प्रकार आवाज उठा सकते हैं। बाकी सूचना कानून जवाबदेही और पारदर्शिता के लिये और मनरेगा सार्वजनिक प्रवृत्ति का योजना, जिसका जनता जाँच कार्यवाई जनता करेगा, जनता को कानूनी हथियार मिल गया है। घनी-धरती, गरीब-लोग, यही आजादी-गुलामी को जानना, समझना, ''सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मरजाना'' हमारा किसी से कबीर खड़ा बाजार में मांगें सबकी खैर, ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर" प्रिय नागरिकों का आत्मा उद्वेलित हो सोंचे।

राशन :- अगर १५ सदस्यीय राशन निगरानी समिति का नाम राशन दुकान पर लिखा है तब अभी मनातू - प्रखंड के ८८ डीलर कुछ का लाइसेंस रद्द है एक डीलर जिनके १५० राशनकार्ड है, मई, जून २०१० का राशन दे दिए कार्ड पर चढ़ा दिए और पीला कार्ड वाले का ६९.९८० किलोग्राम और लाल कार्ड वाले का ६५.९६० किलोग्राम में से ३० किलोग्राम दे दिए बाकी अनाज अगर १८ रूपये प्रति किलोग्राम मूल्य है ३० किलोग्राम का दाम ५४० रूपये हुआ, ३० की जगह 60 रू. डीलर के लेने के बाद भी एक कार्ड पर ४८० की लुट हुआ तब ७२ हजार रू. अनाज से भूख का लुट लिया जाता है और एक लाख आबादी से ६८ लाख २६ हजार रू. भोजन का अनाज लुटा जा रहा हो इंसान अपराधी, उग्रवादी बनेगा ही। लेकिन नाम लिखा है। तब जिस तरह एक सांसद 10 लाख एक विधायक 2 लाख औसत जनता का मालिक होते है उसी तरह १५०-३०० का ये मालिक होंगे, जनता जानेगा, तब वह आंवटित सूचि दुकान पर आवंटन के बाद तुरंत सटवाएगा, रसीद पर भुगतान देकर, सही तौल, उचितदाम में, कार्ड किसी के पास है या नही, अगर सारे लोगों का अनाज यहीं पैदा होने लगेगा, अनाज का मांग नही करेगा सारे बातों का जिम्मेदार होगें अगर महाराष्ट्र के वर्धा के बारबड़ी गांव में गांधी के छाती पर प्लांट लग गया तब अहमद नगर का हिबरे बाजार पंचायत जहां ५० ग्राम भोजन का छूट नही है सब उदाहरण है, प्रखंड में आपूर्ति पदाधिकारी जन सूचना अधिकारी है जिन्हें मार्च २००६ में ही कार्यालय के दीवाल पर यह लिख देना था, लेकिन आज तक जो नहीं लिखे अब लिखवा दे सूचना कानून द्वारा जब हमारा राशन लुटा जा रहा है जानेगें आजादी के ६२ वें साल में हमारा प्रशासन समाज भोजन के लुट को रोक नहीं पा रहे हैं रोक सकते हैं सोंचे ??? !!!

मनरेगा-सूचना:- मनरेगा ०२-०२-०६ से देश के २०० जिलों में लागू होकर आज पूरे देश में जनता को
कानूनी अधिकार के रूप में मिला है। सूचना कानून १३-१०-०५ से पूरे देश जम्मू-कश्मीर को छोड़कर में लागू है। इन दोनों कानूनों के बाद मार्च २००६ में पंचायत कार्यलय में जन सूचना अधिकारी कौन हैं किस दिन कब से कब तक बैठते हैं। पंचायत की दीवाल में लिखना था इससे पंचायत कार्यालय नियमित खुला रहता, पलामू जिला में प्रखंड सप्ताह में एक दिन चलता है वहाँ जनसूचना अधिकारी कौन है, प्रखंड के अन्य विभागों में जनसूचना अधिकारी कौन हैं प्रखंड के कार्यलयों में सूचना कानून द्वारा अध्ययन की व्यवस्था बनाना है सब अब भी दीवाल पर लिख दें आज दो लाख आबादी के दो प्रखंड में ११ से १५ क्लास तक पढ़ने वाले १० हजार छात्र प्रखंड के कॉलेज में पढ़ते हैं४० पंचायत में १००-१०० छात्र नियमित रूप से साल भर रान कार्ड मनरेगा का जॉबकार्ड जाँचना नियमित कर दें। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, नैतिक सातों आयामों को छुकर सम्पूर्ण क्रांति ला सकते हैं किसी गांव में अगर १५० परिवार रोजगार कार्डधारी, जॉबकार्ड धारी हैं, ३० जॉबकार्ड पर एक-एक हाजिरी, पानी स्वास्थ्य कर्ता जो १५ सदस्यीय रोजगार समिति होगा चुनाव कर इनका नाम गांव के दीवा पर लिख दिया जायें आज २००५-०६ से २००९-१० तक का जॉबकार्ड का समय खत्म हो चुका है किस कार्डधारी को सालों में किस साल कितना मजदूरी मिला रिकार्ड गांव की दीवाल पर लिख दिया जाय। ३० वर्ग फिट दिवाल पर १५० का ५ साल का रिकार्ड लिख और १०१०-११ से २०१४-१५ तक का नया फोटो युक्त नवीनीहत जॉब कार्ड दे दिया जाय। पंचायत कार्यालय मनरेगा के ५ साल का आमद-खर्च सार्वजनिक कर दे, सार्वजनिक प्रवृत्ति का कानूनी योजना है, ५ साल छोड़ नया सोचे गुनाह माफ़ के आज एक पंचायत में ५ हजार आबादी है, मनरेगा में पंचायत के खाता में एक करोड़ एक साल में फंड है। पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, बी.पी.ओ., बी.डी.ओ., डी.सी., सांसद, विधायक, जिला परिषद, मुखिया, वार्ड इनके उम्मीदवार पुलिस उग्रवादी, मीडिया है, सार्वजनिक प्रवृति के कानूनी योजना में एक पंचायत में २७ बिचौलिया है अभी जनता जाँच प्रक्रिया पलामू में चल रहा है जनता के लुटेरे जांचकर्ता चुना गए यही सरकारी सेवक समाज का चालान बिना कार्य स्थल पर बोर्ड लगाए काम करा रहे हैं खुद मजदूरों का हाजिरी पर ठेपा हस्ताक्षर कर हाजिरी बना रहे है और एक पंचायत में एक डाक घर है मजदूरों का फर्जी ठेपा हस्ताक्षर कर भुगतान ले रहे हैं २७ बिचौलिया १००० जॉब कार्ड रखे हैं समाज का कोई भी पुलिस उग्रवादी, नेता बिचौलिया से कार्ड दूसरे का रखने के जुर्म में कार्ड धारी को एक हजार दंड दिला सकते है, वित्तीय संस्थान फर्जी भुगतान आज तक सिर्फ मनरेगा में कर रहा है । प्रशासन रुकावाएं, कहा हैं समाज अगर कार्यस्थल पर बोर्ड हो, मास्टर रोल, पानी, छाँव, दवा का व्यवस्था हो पंचायत में जन सूचना अधिकारी का नाम लिखा हो गाँव का ही कोई मास्टर रोल स्थल पर देखता तब गाँव का आदमी, अन्याय नहीं करता ७ दिन में सूचना देना है ७ दिन में पूरी योजना का कागजात निकलवाकर मौलिक सत्यापन करा सकता है। आज १७६ जिलों में माओवादी हैं ६ अप्रैल २०१० को ७६ सुरक्षाबलों को मार दिए लेकिन एक पंचायत में २७ बिचौलिया पालकर सार्वजनिक प्रवृति के कानूनी मामूली सुधार नहीं कर रहे हैं। इंसानों १७६६ में स्वीडन में सबसे पहले सूचना कानून लागू हुआ वहां हर सरकारी कार्यालय के बारे में ७५ प्रतिशत जनता हर वक्त हर स्थिति से
वाकिफ हैं इसी लिये आजादी का आलम यह है कि वहां के केन्द्रीय मंत्री पत्नी के साथ बिना सुरक्षा के फ़िल्म देखकर आवास पर आते हैं। और यहाँ विधायक २२ फ़ौज लेकर चलते हैं हमारे अधिकारी ५ साल में १ प्रतिशत जनता को सूचना नही दिया लेकिन भविष्य के लिये आजादी के लिये सूचना दें ४५६२ पंचायत कार्यालय में जन सूचना अधिकारी का नाम दीवाल में लिखवा दें।

अत: मनरेगा में ०५-०६ से ०९-१० तक में किस कार्डधारी को कितना मजदूरी मिला रिकार्ड लिखवा दें, गाँव में जिस दिन जन सुनवाई है उस दिन सार्वजनिक कर दें १०-११ से १४-१५ का नया फोटो युक्त जॉब कार्ड दे दें या नए जॉब कार्ड के लिए पंचायत में मजदूर आवेदन करें, पंचायत में जन सूचना अधिकारी कौन हैं पंचायत सप्ताह में कितने दिन कब से कब तक और कौन रहेगें जानकारी में दीवाल में लिख दें, अब ३० मजदूर एक साथ काम मांग सकते है
कम्पयुटराइज फार्म है उस पर हाजिरी, पानी, स्वास्थ्य का चुनाव कर १५० जॉब कार्ड धारियों के गांव में १५ सदस्यीय रोजगार समिति का चुनाव कर नाम दीवाल में लिखवा दें अब फार्म पर १४ दिन लगातार काम का आवेदन दें, ४.४.४ का स्वीकृत रसीद लें कार्य का आदेश लें, कार्यस्थल पर बोर्ड हो, कार्य का आदेश लें, कार्यस्थल पर बोर्ड हो, मास्टर रोल, पानी, दवा, छांव हो काम करें। १४ दिन लगातार काम कर हाजिरी बनाएँ, १५ वाँ दिन मास्टर रोल जमा कर दें इसके बाद १५ वें दिन खुद डाकघर में जाकर भुगतान लें, कार्ड, पासबुक कानूनी दस्तावेज है किसी को न दें काम वही मांगे जो काम कर सकते हैं वरना कार्य आदेश मिला हो काम नहीं किए बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा अगर मास्टर रोल जमा स्वीकृत करा कर रहे है १५ दिन तक मजदूरी नहीं मिला, सरकारी सेवक के वेतन से दो हजार दंड के साथ मजदूरी मिलेगा तब आज कोई राजनीतिक दल पहल नहीं कर रहे है अफसोस !!! अगर भारत सरकार १०० की जगह २०० दिन मजदूरी कर दे, शिक्षा, उद्योग या दूसरी जगह भी मजदूरी बढ़ाकर काम लिया जा सकता है जहां हमारा लोकतंत्र जो सरकारी सेवकों या आज ३० छात्र पर एक शिक्षक की आवश्कयता है इस योजना से पूरा हो सकता है अगर पंचायत में एक करोड़ फंड है, तब अभियंता या समाज से आग्रह है कि साल में ८० लाख मजदूरी का क्या योजना हैं समझ के भाषा के अगर हजार जॉब कार्ड धारी या ३५ हाजिरी बनाने वाले समझ रहे है मनरेगा सफल हो सकता है।

ज्ञान, शक्ति, इंसान के अन्दर प्राकृतिक है झारखण्ड में अगर ४५६२ मुखिया ४५० जिला परिषद, ८२ विधायक, २०४ शहरी निकाय इन्हें अगर एक बैनर, झंडा, सिद्धान्त के नीचे राजनीतिक शिक्षा दिया जाय, सूचना, मनरेगा, स्वायतता, संधि को पढ़ाकर चुनाव लड़ाया जाय, झारखण्ड में 1 कडढा जमीन की कीमत १० हजार से एक लाख समझ रहे है भूल है आपके भूमि की कीमत अगर नीचे खनिज है। 1 करोड़ कडढा हो सकता है आप नहीं जान रहे है कोई जान रहा हैं इस प्रकार एक अलग सपनों का झारखण्ड बन सकता है !!! मन का मरहम अगर दोस्ती है तब लोकतंत्र का मरहम जनता को शब्दों द्वारा राजनीतिक बनाने है। लहरें क्या गिनते हो चलो उठो प्रवाह बदलने हैं। पतवार बदलकर देख चुके अब मल्लाह बदलने है !!

इन्द्रनाथ सिंह