मुआवजा की नीति बदलो-जमीन के बदले जमीन दो

विन्ध की पर्वत श्रृंखलों के बीच कैमूर घाटी में औपनिवेशिक काल से ही शासकों ने जंगलों को और उनके बीच बसने वाले लोगों को लूटनें का सिलसिला शुरू किया जो तथाकथित आजादी के बाद भी निर्बाध रूप से जारी है। और देश के करोड़ों व्यक्तियों की आजीविका, घर एवं जिन्दगी खतरे में है, को संवैधानिक और प्रजातांत्रिक अधिकारों के तहत कैसे सुरक्षित किया जाए इस हेतु आये वनाधिकार कानून-2006 के क्रियान्नवयन पर जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय उ.प्र. के अक्टूबर 2010 को राबर्टसगंज आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन के पहले सत्र में गंभीर एवं खुली चर्चा हुई। जिसमें मुख्य तथ्य उभर कर आये कि इस कानून में वनों में निवास करने वाले लोगों के व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार समाहित है। और इन पर ही वन संसाधनों और जैव विविधता को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौपी गई है। इसलिये वन समुदायों और इसे लागू करने की जिम्मेदार अधिकारियों को इसके हर पहलू को ऐतिहासिक संदर्भों और विशेषताओं को समझते हुए उनके साथ पारस्परिक संवाद जिसमें जन संगठनों की प्रभावी भूमिका हो इस कानून के क्रियान्वयन की बुनियादी शर्त है।

पश्चिम उत्तर प्रदेश में भड़के किसानों के आंदोलन पर चर्चा शुरू हुई जिसका मुख्य बिन्दू उ.प्र. व देश में अन्धा-धुन्ध गैर कृषि कार्यों हेतु अधिग्रहित की जा रही कृषि भूमि रहा, देश में सदियों से जिनके पास जमीन है लोग खेती करते आ रहे हैं। लेकिन पिछले बीस वर्षों से देश/प्रदेश में खेती घाटे का सौदा हो गई और जमीने बेचने के बाद भी किसानों की आत्महत्याओं का सिल-सिला जारी है। जिसे सम्मेलन ने एक नीतिगत हत्या करा दिया और इसके लिये सरकारों की नीतियों को जिम्मेदार माना गया और तय हुआ कि जिस तरीके से सरकार ने अलीगढ़, मथुरा के किसानों को मुआवजे की रकम बढ़ा कर प्रलोभन देकर जमीन हथियाने का हथकड़ा अपनाया है। इस पर समन्वय की नीतिगत मांग मुआवजे के रूप में जमीन के बदले जमीन की बात को इन क्षेत्रों मेधा जी का कार्यक्रम लेकर किसानों का सम्मेलन जल्द ही कराया जायेगा।

सम्मेलन के आखिरी सत्र में बावरी मस्जिद विवाद पर आये हाईकोर्ट के फैसले पर चर्चा हुई और यह बात रेखांकित की गई कि यह फैसला संविधान के बुनियादी मूल्यों को दर किनार करते हुए आस्थाओं, विश्वासों को तरजीह देते हुए आया है। जो भारत जैसे बहुधर्मी विविधता वाले देश मे नये विवादों को जन्म देगा और देश के लिये संवैधानिक संकट खड़ा करेगा। जिससे एक तर्कशील न्यायप्रिय समाज बनाने में बाधा पहुँचेगी इस फैसले पर राष्ट्रीय बहस नागरिक समाज में खड़ी करने की रणनीति पर भी विचार हुआ।

सम्मेलन का आयोजन कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति ने राबर्टसगंज के कलेक्ट्रट बार एसोसिएशन सभागार में किया सम्मेलन में आशा परिवार, समाजवादी जन परिषद, गंगा कृषि भूमि बचाओं संघर्ष समिति ने हिस्सा लिया भाग लेने वाले प्रमुख साथियों में केशव चन्द्र, संदीप, अजय पटेल, शंकर सिंह, महेश, हौसला यादव, जे.पी. सिंह, विक्रमामौर्य, वलंवत यादव, रोमा बहन, शांता, भट्टाचार्या आदि रहे। समन्वय के नये समन्वयक के रूप में जय शंकर व शांता, भट्टाचार्या को चुना गया तथा नई समन्वय समिति का भी चयन किया गया।

अरविन्द मूर्ति