यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य: युवा आगे आये तो बात‎ बन जाये

बृहस्पति कुमार पाण्डेय , सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
फोटो क्रेडिट: सीएनएस 
कुछ समय पहले तक लोग यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं पर कुछ भी बोलने से ‎हिचकते थे। मामला चाहे स्त्री पुरूष के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्धों का रहा हो या प्रजनन ‎स्वास्थ्य से जुडा मुद्दा हो, इस पर हर वर्ग खुलकर बात करने से हिचकता रहा है। लेकिन ‎अब हालात पहले जैसे नही रहे। जहां लोग सुरक्षित सेक्स, गर्भ निरोधक साधन इत्यादि को ‎लेकर असमंजस में हुआ करते थे, वहीं युवाओं के मन में यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी  ‎जिज्ञासा और प्रश्नों ने इस विषय पर उन्हें संवेदनशील भी बनाया है। भारत में अभी तक सेक्स और प्रजनन स्वास्थ्य को एक विषय के रूप में स्कूलों में ‎पढाने का मुद्दा विवादो में रहा है।

खासकर उत्तर प्रदेश जैसा बड़ी जनसंख्या वाला पिछड़ा राज्य तो ‎इस विषय से कोसो दूर भागता रहा है। ‎फिर भी आज के युवाओं में यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडे मुद्दो से सम्बन्धित ‎जरूरी जानकारिया की पहुंच कुछ तो आसान हुई है। इसका श्रेय इन्टरनेट बेबसाइट, अखबारों, और पत्र ‎पत्रिकाओं को भी जाता है। देश में जैसे-जैसे यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी समस्यायें ‎गम्भीर होती गयी, वैसे-वैसे सरकारों ने फिल्म, विज्ञापनों इत्यादि संचार माध्यमों से ‎लोगों में इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने की तरफ कदम बढाना शुरू कर दिया है। ‎

अगर आँकड़ों पर गौर किया जाय तो भारत में 50% से अधिक लोग 25 ‎वर्ष से कम उम्र के हैं  जिनमें अधिकांश को अपने यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी ‎नही मिल पाती है। ऐसे में कम उम्र में शादी और फिर गर्भावस्था और उचित देखभाल न होने ‎से जच्चा बच्चा की मौत आम बात हो जाती है। अगर भारत के आंकडो को देखा जाये तो ‎‎15-19 वर्ष के आयु वर्ग वाली लगभग 25% लडकियां 19 वर्ष के पूरी ‎होने से पहले बच्चे को जन्म दे देती है, जबकि 18 वर्ष पूरे होने के पहले ही गर्भ धारण करना महिलाओं के लिए बहुत जोख़िम भरा होता है जिससे होने वाली मौतों की संख्या अन्य आयु वर्ग की महिलाओं से ‎ज्यादा है। ऐसे यह जरूरी हो जाता है कि यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे  पर युवाओं को ‎जागरूक कर उन्हें संवेदित किया जाए। ‎

स्कूल कालेजों व कार्य स्थलों सहित अन्य जगहों पर काम करने वाले युवा अब ‎गर्भ निरोधक पर पूरी जानकारी रखते है। इसके प्रयोग के तमाम फायदे भी जानते हैं। एक दशक ‎पहले कंडोम इस्तेमाल करने वाले पुरुषों की संख्या उँगलियों पर गिनी जाती थी लेकिन अब पुरूषों में गर्भ निरोधक के रूप कंडोम का इस्तेमाल बढ़ रहा  है। ‎आयुर्वेद उत्पादों के विक्रेता अशोक श्रीवास्तव बस्ती जिले में अपनी दुकान ‎पर कण्डोम की बिक्री भी करते है। वह बताते है कि कुछ वर्षो पहले तक हफ्ते में कभी-कभार ‎‎1-2 लोग ही कण्डोम ‎की खरीददारी के लिए आते थे और बड़े संकोच वश ही कण्डोम ‎माँग पाते थे. उन्हें कण्डोम ‎को पैकेट में छुपाकर देना पडता था। लेकिन अब लोगों ‎की सोच में बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका है। अब तो दिन भर में कण्डोम के कई ‎‎खरीददार आते है और उन्हें अब कण्डोम ‎ मांगने में किसी तरह कि हिचक नही होती है। अशोक जी ने बताया कि कण्डोम ‎को लेकर जो शर्म दूर हो पायी है उसमें युवाओं का बहुत ‎बडा योगदान है। ‎

एक मेडिकल स्टोर पर खुले में कण्डोम ‎ की खरीददारी करने आये बस्ती के ही ‎‎28 वर्षीय सचिन्द्र शुक्ल ने बातचीत  दौरान बताया कि 1 वर्ष पहले उनकी शादी ‎हुई है। उनकी पत्नी 26 वर्ष की है और उन्हेंअभी 3 वर्ष बच्चा नही चाहिए। इसलिए उन्होंने ‎पत्नी की इच्छा का सम्मान कर गर्भ निरोधक के रूप् में   कण्डोम ‎ का इस्तेमाल करने की सोची। ‎उनका यह भी कहना है कि उन्हें टेलीविज़न और अखबार से यह भी पता चला कि   कण्डोम ‎ के ‎इस्तेमाल से पति पत्नी को प्रजनन अंगो से एक दूसरे में बीमारी फैलने से रोकने में मदद भी ‎मिलती है। सचिन्द्र शुक्ल को टेलीविज़न में विज्ञापन देखकर यह पता चला कि   कण्डोम ‎ के ‎इस्तेमाल से एचआईवी /एड्स फैलने का खतरा नही होता है। ‎

कण्डोम के अलावा भी गर्भनिरोध के कई साधन है जिसे महिला या पुरूषो को ‎अपनी इच्छा से चुनने का पूरा अधिकार है. फिर भी कभी कभार असुरक्षित यौन सम्बन्धों के ‎चलते जीवन साथी में एक दूसरे में बीमारियों फैलने का डर बना रहता है। इसके कई कारण ‎होते है, जिसमें एक कारण है कालेज के महिला पुरूष सहपाठी के बीच बढ़ते हुए यौन सम्बन्ध। ‎‎ऐसे में अगर इन्हें यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से सम्बन्धित सही जानकारी न हो तो आगे ‎चलकर प्रजनन अंगो के संक्रमण यानी सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शंस (साधारण भाषा ‎में यौन समबन्ध से होने वाले संक्रमण) का खतरा बढ़ जाता है। ‎

बस्ती जिले के रहने वाले शशांक  बी एस सी अंतिम वर्ष के छात्र है. उनका कहना है कि वे कालेज में पढ़ने के बाद भी अपने टीचर से सेक्स व प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात नहीं कर पाते है अगर कभी इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश भी करते है तो अध्यापकों द्वारा बात टाल दी जाती है. "ऐसे में हम लोग स्मार्ट फोन या इन्टरनेट के जरिये जानकारी लेने की कोशिश करते हैं।"

यह  पूछने पर कि इन्टरनेट द्वारा प्राप्त की गयी जानकारी सही होती है या नहीं शशांक ने कहा--" यह मुझे नहीं पता कि इन्टरनेट पर डाली गयी जानकारी सही है या नहीं। लेकिन उससे कुछ हद तक हमारी समस्या का समाधान जरूर हो जाता है." इसके लिए वह अच्छी वेबसाइट का सहारा लेते है जिससे जानकारी प्रमाणिक हो।

आन्नद शुक्ल बी ए के छात्र हैं. उनका कहना है कि जब हमारे अभिवावक व अध्यापक सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर बात ही नहीं करना चाहते है तो हम लोग  सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे पर जानकारी लेने के लिए टेलीविज़न, अखबार, इन्टरनेट और  पत्र –पत्रिकाओं का ही सहारा लेते है इससे मिली जानकारी प्रमाणिक भी होती है क्योंकि इसमें सरकार, डाक्टर, विशेषज्ञ आदि के विचार सम्मिलित होते है।

उपरोक्त दोनों छात्रों के विचार से एक बात साफ़ हो जाती है कि  आज का युवा सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे पर संवेदनशील है लेकिन उन्हें इसपर सही जानकारी देने वाले लोग नहीं मिल पा रहे हैं जिसकी वजह से लड़कियों का कम उम्र में माँ बनना व सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य के समस्याओं से जूझना आम बात हो जाती है। ऐसे में युवाओं को सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर सही जानकारी देने में स्कूल कालेजों व अभिवावकों को आगे आना होगा, तभी देश की आने वाली पीढ़ी को सेक्स एवं प्रजनन स्वास्थ्य की दृष्टि से मजबूत बनाया जा सकता है। इंटरनेट से युवाओं को गर्भनिरोधक साधनों, सेक्स एवं प्रजनन संक्रमण से बचाव के उपाय की जानकारी कुछ हद तो मिल पा रही है लेकिन प्रायः यह अधकचरी अथवा भ्रामक होती है, जिसके चलते इससे नुकसान ज़्यादा और फ़ायदा कम होता है. अब इस विषय को स्कूल व कालेज में एक विषय के रूप में शामिल करना होगा तभी कम उम्र में शादी व बच्चे पैदा करने पर रोक लग पायेगी और यौनिक हिंसा एवं बलात्कार जैसी घटनाये भी कम होगी। इस मामले में युवा ही बदलाव ला पाने में सक्षम हो सकते हैं, यदि उन्हें उचित मार्गदर्शन मिल सके।

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
18 सितम्बर 2015