बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा माहवारी स्वच्छता का अहम् मुद्दा इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है । जिस विषय पर लोग बात करने से हिचकते थे उस पर हो रही सुगबुगाहट ने माहवारी से जुड़ी सदियों से चली आ रही चुप्पी को तोडने की आस जगा दी है । अगर माहवारी स्वच्छता के मुद्दे को देखा जाये तो यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने सेनेटरी पैड को बेहद सस्ते में तैयार करने की तकनीकी को ईजाद करने वाले श्री अरुणाचलम मुरुगनाथन का सहयोग लेते हुए वर्ष 2017 तक पूरे प्रदेश में १००% माहवारी स्वच्छता लाने का लक्ष्य रखा है।
फिर भी यू0 पी0 सरकार के इस दावे पर सवाल खडा होता है, क्यों की सरकार जिन जिलों में महिलाओं को आशा बहुओं के माध्यम से सस्ते में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने को लेकर पायलट प्रोजेक्ट चला रही है वहाँ पर भी लाख प्रयासों के बावजूद महिलाओं में सेनेटरी पैड के उपयोग व स्वस्छता का लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सका है।
इस परिप्रेक्ष में यह देखना है कि अरुणाचलम जी का यह प्रयास कितना कारगर साबित होता है, क्यों की प्रदेश की महिलाओं की इतनी बडी जनसंख्या के लिए सेनेटरी पैड का उत्पादन, लोगों तक उसकी पहुँच एवं स्वीकार्यता, माहवारी को लेकर तमाम भ्रांतियां और इसके प्रति सामजिक चुप्पी--ये सभी अड़चनें माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करने में आड़े आ सकती हैं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने यह दावा किया है कि वह अरुणाचलम मुरुगनाथन के सहयोग से 2017 तक १००% माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी। लेकिन जब इस मुद्दे पर अरुणाचलम जी से बात की गयी तो उन्होंने बताया की सरकार के साथ उनका कोई ऐसा समझौता नहीं हुआ है जिसमे 2017 तक माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को १००% प्राप्त करने का वादा किया गया है। इस मिशन में अपने योगदान के बारे उनका कहना था कि उनके द्वारा निर्मित सेनेटरी पैड बनाने की सस्ती मशीनें ब्लाक लेवल पर सेनेटरी पैड निर्माण की यूनिटों के रूप में लगायी जाएँगी जिसमे स्थानीय स्तर पर महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्ही के द्वार पैड का निर्माण किया जायेगा, जिन्हें बहुत ही सस्ते दामों में उपलब्ध कराया जा सकेगा. यह और बात है कि सरकार अपनी योजना के तहत उनका निःशुल्क वितरण करे।
अरुणाचलम जी के अनुसार सेनेटरी पैड निर्माण के एक यूनिट की कीमत 75000 रूपये होगी जिससे प्रतिदिन 200-250 सेनेटरी पैड तक बनाये जा सकेगें। इन यूनिटों में काम करने वाली महिलायें ही सेनेटरी पैड के वितरण में सहायता करेंगी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ब्लाक लेवल पर इन महिलाओं द्वारा तैयार किये गए सेनेटरी पैड सरकार द्वारा अस्पतालों में भी सप्लाई किये हैं। जिससे सेनेटरी पैड निर्माण से जुडी महिलाओं को आर्थिक लाभ भी होगा। अरुणाचलम जी का यह माडल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में महोबा जिले में बेहद सफल रहा है है जिससे उत्साहित होकर उत्तर प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश में इसे लागू करने जा रही है. यदि यह योजना सुचारू रूप से लागू हो जाती है तो इसके काम से काम दो फायदे होगें--किशोरियां/महिलाएं स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं रोगमुक्त रख सकेंगी तथा कई महिलाओं को रोज़गार का एक नया साधन भी उपलब्ध हो जाएगा।
फिर भी सवाल यह उठता है कि अगर यह माडल सफल रहा तो भी क्या महिलाएं सिर्फ सेनेटरी पैड का ही इस्तेमाल करेंगी? और इससे भी अहम् सवाल यह है कि माहवारी को लेकर सदियों से चले आ रहे भ्रम व मिथक को कैसे दूर किया जा सकेगा?।
माहवारी स्वच्छता के मुद्दे पर बस्ती जिले के किसान कम्युनिटी रेडियो में उद्धघोषिका 29 वर्षीया मीना राज का कहना है कि वे अपने रेडियो के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महिला माहवारी से जुडी तमाम परेशानियों पर चर्चा करती हैं, जिसमें यह बातें निकाल कर आयीं कि परिवार के पुरुष सदस्य आज भी महिलाओं के इस संवेदनशील मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं, जिसके चलते महिलाएं चाहकर भी अपने भाई, पिता या पति से बाजार से सेनेटरी पैड नहीं मँगा पाती है। वे स्वयं दूकान से पैड खरीदने में भी झिझक महसूस करती हैं. ऐसे में इन महिलाओं के पास पुराने कपड़े के इस्तेमाल का ही चारा बचता है।
मीना राज ने यह भी बताया कि अगर युवा वर्ग इस मुद्दे पर आगे आये तो कुछ बात बन सकती है क्योंकि आज का युवा बातों को गंभीरता से समझ रहा है और अपनी बात खुल कर सबके सामने रखने की क्षमता रखता है
संतकबीर नगर जिले में एक बालिका इन्टर कालेज में प्रिंसिपल 27 वर्षीया अनुपमा शुक्ला ने बताया कि अक्सर उनके स्कूल की लड़कियां माहवारी के दौरान स्कूल नहीं आती है। जब उन्होंने उनसे इस विषय पर बात करी तो लड़कियों ने बताया की घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें माहवारी के दौरान घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा देते हैं। लोगों में यह भ्रान्ति भी है कि माहवारी में प्रयोग किये जाने वाले कपड़े को इधर उधर नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि माहवारी के कपड़े पर लोग टोना टोटका कर देते है। इसके अलावा माहवारी के दौरान महिलाओं को पूजाधर-रसोईघर में जाने पर पाबन्दी होती है, वे घर के पुरुषों को नही छू सकती और अचार के छूने पर पाबन्दी होती है ।अनुपमा शुक्ला का मानना है कि अगर स्कूल में पढ़ने वाले युवाओं को इस मुद्दे पर संवेदित कर सही जानकारी जाये तो माहवारी स्वच्छ्ता को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है ।
बस्ती जिले की 25 वर्षीय गृहणी माधुरी एक बच्चे की माँ हैं। उन्हें प्रजनन अंगो में संक्रमण की समस्या है तथा दुर्गन्ध युक्त गन्दा पानी भी आता है। जब उन्होंने महिला डाक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने इसका कारण माहवारी के दौरान साफ सफाई न रखना बताया। माधुरी ने बताया की जब उनको पहली बार माहवारी आयी तो माँ ने उन्हें घर के गंदे कपड़े प्रयोग के लिए दिए। उसके बाद से वे घर के पुराने कपड़ों का ही इस्तेमाल कर रही थीं। डाक्टर को दिखाने के बाद वे डाक्टर की सलाह के अनुसार सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने लगी हैं, और अब वे माहवारी के दौरान प्रत्येक दिन नहाती हैं तथा खाना इत्यादि भी बनाती हैं ।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर अगर देखा जाए तो माहवारी स्वच्छता सरकार व समुदाय सबके लिए एक चुनौती है। इस दिशा में सरकार ने वर्ष 2017 तक सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त इंटर कालेजों की लडकियों को प्रति माह 10 सेनेटरी पैड निःशुल्क उपलब्ध कराने का जो फैसला लिया है वह वास्तव मे काबिले तारीफ़ है क्योंकि अगर किशोरियों को माहवारी स्वच्छता के प्रति संवेदित कर दिया गया तो आने वाले पीढ़ियों को वे खुद जागरूक कर देंगी। परन्तु यह योजना केवल सरकारी स्कूलों सीमित नहीं रहनी चाहिए और इसका निःशुल्क सेनेटरी नैपकिन वितरण का लाभ प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को भी मिलना आवश्यक है। अगर माहवारी स्वच्छता को सुनिश्चित करना है तो सभी लडकियों व महिलाओं को सेनेटरी पैड की उपलब्धता (निःशुल्क अथवा कम दामों पर) सुनिश्चित करना पडेगा, तथा साथ ही महिलाओं को माहवारी से जुड़ी अन्य जरुरी बातों को बताना भी सुनिश्चित करना होगा ।
वर्तमान समय में प्रदेश सरकार द्वारा 25 जिलों में चलाये जा रहे सेनेटरी पैड वितरण कार्यक्रम की समीक्षा करनी होगी। यह पता लगाना भी ज़रूरी है कि जिन जिलों में यह कार्यक्रम चल रहा है वहां की प्रगति बहुत आशाजनक क्यों नहीं है? इन जिलों में सरकार द्वारा मात्र ६ रुपये के मामूली रेट पर एक सेनेटरी पैक (जिसमें ८ सेनेटरी पैड होते हैं) को बेचने में भी आशा बहुएं असफल रही है। प्रत्येक पैक पर आशा बहू को 1 रूपये की प्रोत्साहन राशि भी मिलती है फिर भी महिलाओं तक इनकी पहुँच नहीं बन पाई।
इसलिए सरकार को माहवारी स्वच्छता को सुनिश्चत करने के पहले माहवारी सम्बंधित भ्रांतियों को खत्म करने के लिए प्रभावी तरीके से जागरूकता गतिविधियों को चलाना होगा। इसमें प्रदेश का युवा शक्ति प्रयोग प्रभावी साबित हो सकता है। इसके अलावा सेनेटरी पैड के निर्माण व निःशुल्क वितरण की पोलियो अभियान की तरह मानिटरिंग करनी होगी। तभी न केवल वास्तव में माहवारी स्वच्छता अभियान पूर्ण रूप से सफल होगा वरन उससे जुड़ी अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण भी हो सकेगा।
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
1 सितम्बर 2015
Photo credit: CNS: citizen-news.org |
फिर भी यू0 पी0 सरकार के इस दावे पर सवाल खडा होता है, क्यों की सरकार जिन जिलों में महिलाओं को आशा बहुओं के माध्यम से सस्ते में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने को लेकर पायलट प्रोजेक्ट चला रही है वहाँ पर भी लाख प्रयासों के बावजूद महिलाओं में सेनेटरी पैड के उपयोग व स्वस्छता का लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सका है।
इस परिप्रेक्ष में यह देखना है कि अरुणाचलम जी का यह प्रयास कितना कारगर साबित होता है, क्यों की प्रदेश की महिलाओं की इतनी बडी जनसंख्या के लिए सेनेटरी पैड का उत्पादन, लोगों तक उसकी पहुँच एवं स्वीकार्यता, माहवारी को लेकर तमाम भ्रांतियां और इसके प्रति सामजिक चुप्पी--ये सभी अड़चनें माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करने में आड़े आ सकती हैं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने यह दावा किया है कि वह अरुणाचलम मुरुगनाथन के सहयोग से 2017 तक १००% माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी। लेकिन जब इस मुद्दे पर अरुणाचलम जी से बात की गयी तो उन्होंने बताया की सरकार के साथ उनका कोई ऐसा समझौता नहीं हुआ है जिसमे 2017 तक माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को १००% प्राप्त करने का वादा किया गया है। इस मिशन में अपने योगदान के बारे उनका कहना था कि उनके द्वारा निर्मित सेनेटरी पैड बनाने की सस्ती मशीनें ब्लाक लेवल पर सेनेटरी पैड निर्माण की यूनिटों के रूप में लगायी जाएँगी जिसमे स्थानीय स्तर पर महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्ही के द्वार पैड का निर्माण किया जायेगा, जिन्हें बहुत ही सस्ते दामों में उपलब्ध कराया जा सकेगा. यह और बात है कि सरकार अपनी योजना के तहत उनका निःशुल्क वितरण करे।
अरुणाचलम जी के अनुसार सेनेटरी पैड निर्माण के एक यूनिट की कीमत 75000 रूपये होगी जिससे प्रतिदिन 200-250 सेनेटरी पैड तक बनाये जा सकेगें। इन यूनिटों में काम करने वाली महिलायें ही सेनेटरी पैड के वितरण में सहायता करेंगी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ब्लाक लेवल पर इन महिलाओं द्वारा तैयार किये गए सेनेटरी पैड सरकार द्वारा अस्पतालों में भी सप्लाई किये हैं। जिससे सेनेटरी पैड निर्माण से जुडी महिलाओं को आर्थिक लाभ भी होगा। अरुणाचलम जी का यह माडल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में महोबा जिले में बेहद सफल रहा है है जिससे उत्साहित होकर उत्तर प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश में इसे लागू करने जा रही है. यदि यह योजना सुचारू रूप से लागू हो जाती है तो इसके काम से काम दो फायदे होगें--किशोरियां/महिलाएं स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं रोगमुक्त रख सकेंगी तथा कई महिलाओं को रोज़गार का एक नया साधन भी उपलब्ध हो जाएगा।
फिर भी सवाल यह उठता है कि अगर यह माडल सफल रहा तो भी क्या महिलाएं सिर्फ सेनेटरी पैड का ही इस्तेमाल करेंगी? और इससे भी अहम् सवाल यह है कि माहवारी को लेकर सदियों से चले आ रहे भ्रम व मिथक को कैसे दूर किया जा सकेगा?।
माहवारी स्वच्छता के मुद्दे पर बस्ती जिले के किसान कम्युनिटी रेडियो में उद्धघोषिका 29 वर्षीया मीना राज का कहना है कि वे अपने रेडियो के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महिला माहवारी से जुडी तमाम परेशानियों पर चर्चा करती हैं, जिसमें यह बातें निकाल कर आयीं कि परिवार के पुरुष सदस्य आज भी महिलाओं के इस संवेदनशील मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं, जिसके चलते महिलाएं चाहकर भी अपने भाई, पिता या पति से बाजार से सेनेटरी पैड नहीं मँगा पाती है। वे स्वयं दूकान से पैड खरीदने में भी झिझक महसूस करती हैं. ऐसे में इन महिलाओं के पास पुराने कपड़े के इस्तेमाल का ही चारा बचता है।
मीना राज ने यह भी बताया कि अगर युवा वर्ग इस मुद्दे पर आगे आये तो कुछ बात बन सकती है क्योंकि आज का युवा बातों को गंभीरता से समझ रहा है और अपनी बात खुल कर सबके सामने रखने की क्षमता रखता है
संतकबीर नगर जिले में एक बालिका इन्टर कालेज में प्रिंसिपल 27 वर्षीया अनुपमा शुक्ला ने बताया कि अक्सर उनके स्कूल की लड़कियां माहवारी के दौरान स्कूल नहीं आती है। जब उन्होंने उनसे इस विषय पर बात करी तो लड़कियों ने बताया की घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें माहवारी के दौरान घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा देते हैं। लोगों में यह भ्रान्ति भी है कि माहवारी में प्रयोग किये जाने वाले कपड़े को इधर उधर नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि माहवारी के कपड़े पर लोग टोना टोटका कर देते है। इसके अलावा माहवारी के दौरान महिलाओं को पूजाधर-रसोईघर में जाने पर पाबन्दी होती है, वे घर के पुरुषों को नही छू सकती और अचार के छूने पर पाबन्दी होती है ।अनुपमा शुक्ला का मानना है कि अगर स्कूल में पढ़ने वाले युवाओं को इस मुद्दे पर संवेदित कर सही जानकारी जाये तो माहवारी स्वच्छ्ता को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है ।
बस्ती जिले की 25 वर्षीय गृहणी माधुरी एक बच्चे की माँ हैं। उन्हें प्रजनन अंगो में संक्रमण की समस्या है तथा दुर्गन्ध युक्त गन्दा पानी भी आता है। जब उन्होंने महिला डाक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने इसका कारण माहवारी के दौरान साफ सफाई न रखना बताया। माधुरी ने बताया की जब उनको पहली बार माहवारी आयी तो माँ ने उन्हें घर के गंदे कपड़े प्रयोग के लिए दिए। उसके बाद से वे घर के पुराने कपड़ों का ही इस्तेमाल कर रही थीं। डाक्टर को दिखाने के बाद वे डाक्टर की सलाह के अनुसार सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने लगी हैं, और अब वे माहवारी के दौरान प्रत्येक दिन नहाती हैं तथा खाना इत्यादि भी बनाती हैं ।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर अगर देखा जाए तो माहवारी स्वच्छता सरकार व समुदाय सबके लिए एक चुनौती है। इस दिशा में सरकार ने वर्ष 2017 तक सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त इंटर कालेजों की लडकियों को प्रति माह 10 सेनेटरी पैड निःशुल्क उपलब्ध कराने का जो फैसला लिया है वह वास्तव मे काबिले तारीफ़ है क्योंकि अगर किशोरियों को माहवारी स्वच्छता के प्रति संवेदित कर दिया गया तो आने वाले पीढ़ियों को वे खुद जागरूक कर देंगी। परन्तु यह योजना केवल सरकारी स्कूलों सीमित नहीं रहनी चाहिए और इसका निःशुल्क सेनेटरी नैपकिन वितरण का लाभ प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को भी मिलना आवश्यक है। अगर माहवारी स्वच्छता को सुनिश्चित करना है तो सभी लडकियों व महिलाओं को सेनेटरी पैड की उपलब्धता (निःशुल्क अथवा कम दामों पर) सुनिश्चित करना पडेगा, तथा साथ ही महिलाओं को माहवारी से जुड़ी अन्य जरुरी बातों को बताना भी सुनिश्चित करना होगा ।
वर्तमान समय में प्रदेश सरकार द्वारा 25 जिलों में चलाये जा रहे सेनेटरी पैड वितरण कार्यक्रम की समीक्षा करनी होगी। यह पता लगाना भी ज़रूरी है कि जिन जिलों में यह कार्यक्रम चल रहा है वहां की प्रगति बहुत आशाजनक क्यों नहीं है? इन जिलों में सरकार द्वारा मात्र ६ रुपये के मामूली रेट पर एक सेनेटरी पैक (जिसमें ८ सेनेटरी पैड होते हैं) को बेचने में भी आशा बहुएं असफल रही है। प्रत्येक पैक पर आशा बहू को 1 रूपये की प्रोत्साहन राशि भी मिलती है फिर भी महिलाओं तक इनकी पहुँच नहीं बन पाई।
इसलिए सरकार को माहवारी स्वच्छता को सुनिश्चत करने के पहले माहवारी सम्बंधित भ्रांतियों को खत्म करने के लिए प्रभावी तरीके से जागरूकता गतिविधियों को चलाना होगा। इसमें प्रदेश का युवा शक्ति प्रयोग प्रभावी साबित हो सकता है। इसके अलावा सेनेटरी पैड के निर्माण व निःशुल्क वितरण की पोलियो अभियान की तरह मानिटरिंग करनी होगी। तभी न केवल वास्तव में माहवारी स्वच्छता अभियान पूर्ण रूप से सफल होगा वरन उससे जुड़ी अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण भी हो सकेगा।
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
1 सितम्बर 2015