विकास द्विवेदी, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार सेक्स एजुकेशन बेहतर समाज के निर्माण में अहम् भूमिका निभा सकती है। इस शिक्षा के माध्यम से एचआईवी/एड्स जैसी भयानक बीमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है। सर्वे के अनुसार देश में १२% लड़कियां १५-१९ वर्ष की उम्र में ही माँ बन जाती हैं।
हमारे युवा दोस्त रितेश कुमार त्रिपाठी का मानना है कि वास्तव में देखा जाय तो किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों को सेक्स शिक्षा देना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि इस समय लड़के-लड़कियों की आपस में दोस्ती होती है तथा वे एक दूसरे के संसर्ग में स्कूल, ट्यूशन आदि में ज्यादा समय बिताते हैं। ऐसे में अक्सर वे दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। इसलिए उन्हें सेक्स एजुकेशन देना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि सही जानकारी के अभाव में उनसे कई गलतियाँ हो सकती हैं।
रितेश जी का मानना है कि लड़कियों और लड़कों को सेक्स शिक्षा देने में उनके माता पिता का अहम् रोल हो सकता है। अक्सर लड़कियां इस उम्र में अपनी माँ से हर बात शेयर करती हैं, अतः माताएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं लेकिन अधिकतर माताएं इस विषय पर बच्चों से बात करना आवश्यक नहीं समझतीं हैं और इस विषय पर बात करने में संकोच भी करती हैं। प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि लड़कियां किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों का जिक्र अपनी सहेलियों से करती हैं लेकिन वह भी इसी दौर से गुजर रही होती हैं इसलिए उनके द्वारा बताई गयी बातें उनकी समस्याओं का निदान नहीं कर पाती हैं। यही समस्या लड़कों के साथ भी है।
अधिकतर परिवारों में बच्चों की परवरिश में पिता की भूमिका नगण्य ही होती है। इस समय बच्चों को सही गाइडलाइन की जरूरत होती है जो उन्हें उनके स्कूल एवं अभिवावक से ही मिल सकती है। शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय (डी एस एम एन आर यू) लखनऊ के समाजकार्य विभाग की प्रोफेसर डा. अर्चना सिंह का कहना है कि यौन शिक्षा देना बहुत जरूरी है। यौन शिक्षा एक बहुत व्यापक विषय है जिसमें आप अपने शारीरिक अंगों के बारे में, परिवार नियोजन के बारे में, प्रजनन के बारे में, एचआईवी/एड्स जैसे यौन-संक्रमित रोगों से बचाव के बारे में बताते हैं जो कि युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।
शकुंतला जी के अनुसार, "सेक्स शिक्षा सिर्फ सरकारी कालेजों में नहीं सीमित करनी चाहिए बल्कि हर कालेज में मिलनी चाहिए। सेक्स शिक्षा देने का एक वैज्ञानिक तरीका है कि आप ४ साल के बच्चे को क्या बतायेंगे, ६ साल के बच्चे को क्या बतायेंगे, और किशोरावस्था में क्या बतायेंगे। उम्र के अनुसार वैज्ञानिक और सही तरीके से सेक्स शिक्षा देना नितांत आवश्यक है। समाज इसको मान्यता क्यों नहीं देगा? समाज के लोगों में जागरूकता की कमी है। उनको लगता है कि गलत बातें बताई जा रही हैं। जबकि बच्चे कहीं न कहीं इंटरनेट पर अश्लील वेब साइट्स के ज़रिये हैं और अपने दोस्तों से अधकचरी बातें सीख रहे हैं और गलत तरीके से सीख रहे हैं जो गलत है। इसलिए पहले तो माता पिता को जागरूक होना होगा और उसके बाद यौन-शिक्षा या सेक्स एजुकेशन को वैज्ञानिक रूप से क्रमबद्ध करके पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को किस अवस्था में किस प्रकार की शिक्षा दी जाय।"
उन्होंने यह भी कहा कि नेशनल हेल्थ मिशन के तहत सरकारी अस्पतालों में ARSH (Adolescent Reproductive & sexual health) के केंद्र खोले जा रहे हैं उनका यही काम ही है कि युवाओं को यौन स्वास्थ्य के बारे में बताएं।
डी एस एम एन आर यू के समाज कार्य विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रूपेश कुमार सिंह के अनुसार किशोर एवं किशोरियों की जो उम्र होती है वह जीवन की बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था है। इस समय उनमें यौनाकर्षण होना स्वाभाविक है और उस यौनाकर्षण के बाद उनके दिमाग में यौन क्रियाओं से सम्बंधित बहुत सारी जिज्ञासाएं होती हैं और उन जिज्ञासाओं को कैसे शांत किया जाय उसके लिए यौन शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरी बात यह है कि बच्चे अपने परिवार में उन प्रश्नों के जवाब ढूढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब उनको अपने अभिवावकों से जबाब नहीं मिल पाता है तो उस को जानने के लिए वे कभी-कभी गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं। हमारे देश में बड़ी विडम्बना है कि यौनाकर्षण व यौन क्रियाओं से सम्बंधित बात करने के लिए कोई अच्छा साहित्य नहीं उपलब्ध है। बच्चे जिज्ञासा वश कभी-कभी सस्ते और अश्लील साहित्य की ओर आकर्षित हो जाते हैं जिसमें गलत प्रकार की सूचनाएं ही होती हैं।
मेरा अपना मानना है कि किशोर एवं किशोरियां जिनको जिज्ञासाएं हैं उनको जानने के लिए सबसे उचित माध्यम है इस विषय पर एक बड़े स्तर पर और खुले मंच पर विचार-विमर्श हो। मेरा मानना है कि सेक्स शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बना दिया जाय। जिससे किशोर किशोरियों को सही जानकारी मिल सके और उनकी जिज्ञासाओं की उचित संतुष्टि हो सके और वे गलत रास्ते पर न जा पाएं। अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए जो वे इधर-उधर विचलित रहते हैं उससे भी उनको मुक्ति मिलेगी।
सबसे बड़ी दिक्कत यह आती है कि यौन शिक्षा को किस स्तर की शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाया जाय। मेरा मानना है कि जब बच्चों में यौनाकर्षण या यौन क्रियाओं के प्रति आकर्षण बढ़ता है तो वह सबसे सही उम्र होती है। हम कहते तो बहुत हैं कि हम आधुनिक हो गए हैं और हमारी सोच आधुनिक हो गयी है लेकिन मेरा अपना मानना है कि भारतीय ग्रामीण समाजों में खुल कर यौन विषयों पर चर्चा होना अभी संभव नहीं हो पाया है। शहरी क्षेत्रों में थोड़ी बहुत चर्चा हो रही है लेकिन वहाँ पर भी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है। मेरा मानना है अब केवल एक ही विकल्प है कि सेक्स शिक्षा को शिक्षा पाठ्यक्रम में जोड़कर कक्षा ६ या कक्षा ७ से लागू किया जा सकता है।
इस तरह से देखा जाय तो यौन शिक्षा एक विस्तृत संकल्पना है जो मानव के यौन अंगों, प्रजनन, सम्भोग, यौनिक स्वास्थ्य, प्रजनन सम्बन्धी अधिकारों एवं यौन आचरण सम्बन्धी शिक्षा से सम्बंधित है। यौन शिक्षा किशोरों व किशोरियों को प्रजनन एवं स्वास्थ्य समस्याओं सम्बंधित उचित निर्णय लेने के योग्य बनाती है। यौन शिक्षा किशोरियों को अपने यौन एवं प्रजनन जीवन पर नियंत्रण रखने व उत्पीड़न और हिंसा से मुक्त रहने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में सहायक होगा। कामुकता, असुरक्षित यौन सम्बन्ध, यौन संचारित रोगों एवं अवांछित गर्भधारण से बचने के तरीकों से सम्बंधित सूचनाएं प्रदान करने में यौन शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
वर्तमान समय के अख़बारों का अध्ययन करें तो हम पाते हैं कि कम आयु के लड़कों द्वारा नाबालिग लड़कियों के साथ यौनिक अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं ऐसे किशोर पेशेवर अपराधी नहीं हैं बल्कि वे मानसिक रूप से विकृत होते हैं। यौन शिक्षा ऐसे विकारों को दूर करने में सहायक होगी।
विकास द्विवेदी, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१२ सितम्बर २०१५
यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार सेक्स एजुकेशन बेहतर समाज के निर्माण में अहम् भूमिका निभा सकती है। इस शिक्षा के माध्यम से एचआईवी/एड्स जैसी भयानक बीमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है। सर्वे के अनुसार देश में १२% लड़कियां १५-१९ वर्ष की उम्र में ही माँ बन जाती हैं।
हमारे युवा दोस्त रितेश कुमार त्रिपाठी का मानना है कि वास्तव में देखा जाय तो किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों को सेक्स शिक्षा देना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि इस समय लड़के-लड़कियों की आपस में दोस्ती होती है तथा वे एक दूसरे के संसर्ग में स्कूल, ट्यूशन आदि में ज्यादा समय बिताते हैं। ऐसे में अक्सर वे दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। इसलिए उन्हें सेक्स एजुकेशन देना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि सही जानकारी के अभाव में उनसे कई गलतियाँ हो सकती हैं।
रितेश जी का मानना है कि लड़कियों और लड़कों को सेक्स शिक्षा देने में उनके माता पिता का अहम् रोल हो सकता है। अक्सर लड़कियां इस उम्र में अपनी माँ से हर बात शेयर करती हैं, अतः माताएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं लेकिन अधिकतर माताएं इस विषय पर बच्चों से बात करना आवश्यक नहीं समझतीं हैं और इस विषय पर बात करने में संकोच भी करती हैं। प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि लड़कियां किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों का जिक्र अपनी सहेलियों से करती हैं लेकिन वह भी इसी दौर से गुजर रही होती हैं इसलिए उनके द्वारा बताई गयी बातें उनकी समस्याओं का निदान नहीं कर पाती हैं। यही समस्या लड़कों के साथ भी है।
अधिकतर परिवारों में बच्चों की परवरिश में पिता की भूमिका नगण्य ही होती है। इस समय बच्चों को सही गाइडलाइन की जरूरत होती है जो उन्हें उनके स्कूल एवं अभिवावक से ही मिल सकती है। शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय (डी एस एम एन आर यू) लखनऊ के समाजकार्य विभाग की प्रोफेसर डा. अर्चना सिंह का कहना है कि यौन शिक्षा देना बहुत जरूरी है। यौन शिक्षा एक बहुत व्यापक विषय है जिसमें आप अपने शारीरिक अंगों के बारे में, परिवार नियोजन के बारे में, प्रजनन के बारे में, एचआईवी/एड्स जैसे यौन-संक्रमित रोगों से बचाव के बारे में बताते हैं जो कि युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।
शकुंतला जी के अनुसार, "सेक्स शिक्षा सिर्फ सरकारी कालेजों में नहीं सीमित करनी चाहिए बल्कि हर कालेज में मिलनी चाहिए। सेक्स शिक्षा देने का एक वैज्ञानिक तरीका है कि आप ४ साल के बच्चे को क्या बतायेंगे, ६ साल के बच्चे को क्या बतायेंगे, और किशोरावस्था में क्या बतायेंगे। उम्र के अनुसार वैज्ञानिक और सही तरीके से सेक्स शिक्षा देना नितांत आवश्यक है। समाज इसको मान्यता क्यों नहीं देगा? समाज के लोगों में जागरूकता की कमी है। उनको लगता है कि गलत बातें बताई जा रही हैं। जबकि बच्चे कहीं न कहीं इंटरनेट पर अश्लील वेब साइट्स के ज़रिये हैं और अपने दोस्तों से अधकचरी बातें सीख रहे हैं और गलत तरीके से सीख रहे हैं जो गलत है। इसलिए पहले तो माता पिता को जागरूक होना होगा और उसके बाद यौन-शिक्षा या सेक्स एजुकेशन को वैज्ञानिक रूप से क्रमबद्ध करके पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को किस अवस्था में किस प्रकार की शिक्षा दी जाय।"
उन्होंने यह भी कहा कि नेशनल हेल्थ मिशन के तहत सरकारी अस्पतालों में ARSH (Adolescent Reproductive & sexual health) के केंद्र खोले जा रहे हैं उनका यही काम ही है कि युवाओं को यौन स्वास्थ्य के बारे में बताएं।
डी एस एम एन आर यू के समाज कार्य विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रूपेश कुमार सिंह के अनुसार किशोर एवं किशोरियों की जो उम्र होती है वह जीवन की बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था है। इस समय उनमें यौनाकर्षण होना स्वाभाविक है और उस यौनाकर्षण के बाद उनके दिमाग में यौन क्रियाओं से सम्बंधित बहुत सारी जिज्ञासाएं होती हैं और उन जिज्ञासाओं को कैसे शांत किया जाय उसके लिए यौन शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरी बात यह है कि बच्चे अपने परिवार में उन प्रश्नों के जवाब ढूढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब उनको अपने अभिवावकों से जबाब नहीं मिल पाता है तो उस को जानने के लिए वे कभी-कभी गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं। हमारे देश में बड़ी विडम्बना है कि यौनाकर्षण व यौन क्रियाओं से सम्बंधित बात करने के लिए कोई अच्छा साहित्य नहीं उपलब्ध है। बच्चे जिज्ञासा वश कभी-कभी सस्ते और अश्लील साहित्य की ओर आकर्षित हो जाते हैं जिसमें गलत प्रकार की सूचनाएं ही होती हैं।
मेरा अपना मानना है कि किशोर एवं किशोरियां जिनको जिज्ञासाएं हैं उनको जानने के लिए सबसे उचित माध्यम है इस विषय पर एक बड़े स्तर पर और खुले मंच पर विचार-विमर्श हो। मेरा मानना है कि सेक्स शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बना दिया जाय। जिससे किशोर किशोरियों को सही जानकारी मिल सके और उनकी जिज्ञासाओं की उचित संतुष्टि हो सके और वे गलत रास्ते पर न जा पाएं। अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए जो वे इधर-उधर विचलित रहते हैं उससे भी उनको मुक्ति मिलेगी।
सबसे बड़ी दिक्कत यह आती है कि यौन शिक्षा को किस स्तर की शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाया जाय। मेरा मानना है कि जब बच्चों में यौनाकर्षण या यौन क्रियाओं के प्रति आकर्षण बढ़ता है तो वह सबसे सही उम्र होती है। हम कहते तो बहुत हैं कि हम आधुनिक हो गए हैं और हमारी सोच आधुनिक हो गयी है लेकिन मेरा अपना मानना है कि भारतीय ग्रामीण समाजों में खुल कर यौन विषयों पर चर्चा होना अभी संभव नहीं हो पाया है। शहरी क्षेत्रों में थोड़ी बहुत चर्चा हो रही है लेकिन वहाँ पर भी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है। मेरा मानना है अब केवल एक ही विकल्प है कि सेक्स शिक्षा को शिक्षा पाठ्यक्रम में जोड़कर कक्षा ६ या कक्षा ७ से लागू किया जा सकता है।
इस तरह से देखा जाय तो यौन शिक्षा एक विस्तृत संकल्पना है जो मानव के यौन अंगों, प्रजनन, सम्भोग, यौनिक स्वास्थ्य, प्रजनन सम्बन्धी अधिकारों एवं यौन आचरण सम्बन्धी शिक्षा से सम्बंधित है। यौन शिक्षा किशोरों व किशोरियों को प्रजनन एवं स्वास्थ्य समस्याओं सम्बंधित उचित निर्णय लेने के योग्य बनाती है। यौन शिक्षा किशोरियों को अपने यौन एवं प्रजनन जीवन पर नियंत्रण रखने व उत्पीड़न और हिंसा से मुक्त रहने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में सहायक होगा। कामुकता, असुरक्षित यौन सम्बन्ध, यौन संचारित रोगों एवं अवांछित गर्भधारण से बचने के तरीकों से सम्बंधित सूचनाएं प्रदान करने में यौन शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
वर्तमान समय के अख़बारों का अध्ययन करें तो हम पाते हैं कि कम आयु के लड़कों द्वारा नाबालिग लड़कियों के साथ यौनिक अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं ऐसे किशोर पेशेवर अपराधी नहीं हैं बल्कि वे मानसिक रूप से विकृत होते हैं। यौन शिक्षा ऐसे विकारों को दूर करने में सहायक होगी।
विकास द्विवेदी, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१२ सितम्बर २०१५