मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
आज के समय में जब लगभग ज्यादातर लोग जागरूक हैं फिर भी वे कुछ विषयों को लेकर अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु ‘प्रजनन और स्वास्थ्य में सम्बन्ध’ का भी है। ज्यादातर युवा इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी लोग इस सन्दर्भ पर बात करना पसंद नहीं करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि यह जानना उनके लिए आवश्यक नहीं है। शर्म और हिचकिचाहट महसूस करते हैं। यही हिचकिचाहट कभी-कभी उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ जाती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों के बीच एक दोस्ताना व्यवहार रखकर हमारे युवाओं की शर्म और हिचकिचाहट को दूर किया जाय।
इस अज्ञान को कैसे सुधारा जाए ?
अंकिता त्रिपाठी बाराबंकी जिले के देवा कस्बे के सरकारी अस्पताल में हेड एडवाइज़र हैं। उनका कहना है कि युवाओं को झिझक नहीं करनी चाहिए क्योंकि संकोच करने और परेशानी छिपाने से समस्याएं बढेंगी ही, उनका निदान नहीं होगा। इसीलिये यहाँ पर काउंसलर रखे जा रहे हैं जो युवाओं की समस्याओं को सुनकर उसके अनुरूप उन्हें सलाह देंगे। ये सलाहकार उन्हें आवश्यकतानुसार उचित डॉक्टर से बात करवाकर उनकी समस्या का सही निराकरण करवा सकते हैं। समस्या तो तब आती है जब कोई युवा संकोच या शर्म के कारण अपनी परेशानी डॉक्टर को नहीं बताते हैं। यही कारण है कि काउंसलर रखे जा रहे हैं जिससे कि यह उनकी समस्याओं को डॉक्टर तक पहुंचाएं ताकि उनका उचित निवारण हो सके। काउंसलरों को भी अपने मरीजों के साथ मित्रतावत व्यवहार करना चाहिए।
बाराबंकी जिले से आशा बहू संध्या देवी ने बताया कि वह गर्भवती महिलाओं का पता चलते ही उन्हें टी.टी. लगवाती हैं। उन्होंने बताया कि वह गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोलियां देती हैं, वजन करती हैं, खून की जांच करती हैं और उन्हें पोषाहार भी मिलता है। गर्भवती महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि वे हरी साग-सब्जियाँ, दालें, सलाद, चना, चुकंदर आदि खाएं। संध्या ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे मरीजों को अधिक दिनों के लिए दवाएं दी जाएँ जो कम दिन के लिए ही दी जाती हैं।
गर्भवती महिला अर्चना देवी ने कहा कि, "जब मैं पहली बार गर्भवती हुई तो सबसे पहले अपने पति को बताया और फिर मेरे पति ने घर में सबको बताया"। उन्होंने बताया कि मैंने केवल आयरन की गोलियां खाई हैं और कोई भी दवाई नहीं खाई और यह दवा हमें ए.एन एम जी ने दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि वे सेनेटरी पैड का प्रयोग करती हैं, जो उनके पति उन्हें लाकर देते हैं लेकिन यदि हमें खुद भी कभी खरीदना हो तो भी हमें शर्म नहीं आएगी।
डा. शालिनी श्रीवास्तव बाराबंकी जिले के देवा कस्बे के सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं। उनका कहना है कि यहाँ पर जो भी गर्भवती महिलाएं आती हैं सरकार ने उनके लिए आयरन व कैल्सियम की जो टेबलेट्स उपलब्ध कराई हैं, वो सिर्फ ३ दिन के लिए ही मिलती हैं। दवाई तो रहती हैं पर उनकी डोज़ लगातार ३ दिन के लिए ही दी जाती हैं अतः उनको हर तीसरे या चौथे दिन अस्पताल में आना पड़ता है जिससे गर्भवती महिलाओं को परेशानी उठानी पड़ती है। पुरुषों के लिए उन्होंने बताया कि जो जर्नल दवाएं होती हैं वह अस्पताल में रहती हैं।
डा. शालिनी श्रीवास्तव जी ने कहा कि प्रजनन सम्बन्धी वस्तुओं को मांगने में युवा लोगों में जों शर्म है इस को दूर करने के लिए सरकार ने ‘नेशनल रूरल हेल्थ मिशन’ के अंतर्गत एक बहुत अच्छी योजना चलाई है जिसमें आशा बहू, ए.एन.एम. व आंगनवाडी कार्यकर्ताओं की भागीदारी है जो गाँव-गाँव, घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं को जाग्रत करती हैं; उन्हें अस्पताल तक लेकर आती हैं ।इसकी वजह से ९०% महिलाएं अस्पताल पहुँच रही हैं और उन्हें प्रजनन और निरोध सम्बन्धी जानकारियां डॉक्टर व ए एन एम्. के द्वारा दी जाती हैं. इसलिए गाँव की महिलाओं में जो शर्म व झिझक पहले थी वह अब कम हो रही है और जानकारियां बढ़ती जा रही है।
अंकिता त्रिपाठी तथा डा. शालिनी श्रीवास्तव जी ने युवाओं की शर्म व झिझक को दूर करने के लिए जो भी बिंदु बताए हैं वे हमारे युवाओं की सोच को बदलने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ मेरा कहना है कि जो भी युवा पुरुष व महिलाएं सरकारी अस्पतालों में दवाई लेने के लिए आते हैं उनको सही-सही निःसंकोच अस्पताल में तैनात किसी महिला या पुरुष सलाहकार से खुलकर, बेझिझक अपनी बात बतानी चाहिए। तभी वे अपने तथा अपने परिवार को स्वस्थ रखने में सक्षम होंगें।
मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१२ सितम्बर २०१५
Photo credit: CNS: citizen-news.org |
इस अज्ञान को कैसे सुधारा जाए ?
अंकिता त्रिपाठी बाराबंकी जिले के देवा कस्बे के सरकारी अस्पताल में हेड एडवाइज़र हैं। उनका कहना है कि युवाओं को झिझक नहीं करनी चाहिए क्योंकि संकोच करने और परेशानी छिपाने से समस्याएं बढेंगी ही, उनका निदान नहीं होगा। इसीलिये यहाँ पर काउंसलर रखे जा रहे हैं जो युवाओं की समस्याओं को सुनकर उसके अनुरूप उन्हें सलाह देंगे। ये सलाहकार उन्हें आवश्यकतानुसार उचित डॉक्टर से बात करवाकर उनकी समस्या का सही निराकरण करवा सकते हैं। समस्या तो तब आती है जब कोई युवा संकोच या शर्म के कारण अपनी परेशानी डॉक्टर को नहीं बताते हैं। यही कारण है कि काउंसलर रखे जा रहे हैं जिससे कि यह उनकी समस्याओं को डॉक्टर तक पहुंचाएं ताकि उनका उचित निवारण हो सके। काउंसलरों को भी अपने मरीजों के साथ मित्रतावत व्यवहार करना चाहिए।
बाराबंकी जिले से आशा बहू संध्या देवी ने बताया कि वह गर्भवती महिलाओं का पता चलते ही उन्हें टी.टी. लगवाती हैं। उन्होंने बताया कि वह गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोलियां देती हैं, वजन करती हैं, खून की जांच करती हैं और उन्हें पोषाहार भी मिलता है। गर्भवती महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि वे हरी साग-सब्जियाँ, दालें, सलाद, चना, चुकंदर आदि खाएं। संध्या ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे मरीजों को अधिक दिनों के लिए दवाएं दी जाएँ जो कम दिन के लिए ही दी जाती हैं।
गर्भवती महिला अर्चना देवी ने कहा कि, "जब मैं पहली बार गर्भवती हुई तो सबसे पहले अपने पति को बताया और फिर मेरे पति ने घर में सबको बताया"। उन्होंने बताया कि मैंने केवल आयरन की गोलियां खाई हैं और कोई भी दवाई नहीं खाई और यह दवा हमें ए.एन एम जी ने दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि वे सेनेटरी पैड का प्रयोग करती हैं, जो उनके पति उन्हें लाकर देते हैं लेकिन यदि हमें खुद भी कभी खरीदना हो तो भी हमें शर्म नहीं आएगी।
डा. शालिनी श्रीवास्तव बाराबंकी जिले के देवा कस्बे के सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं। उनका कहना है कि यहाँ पर जो भी गर्भवती महिलाएं आती हैं सरकार ने उनके लिए आयरन व कैल्सियम की जो टेबलेट्स उपलब्ध कराई हैं, वो सिर्फ ३ दिन के लिए ही मिलती हैं। दवाई तो रहती हैं पर उनकी डोज़ लगातार ३ दिन के लिए ही दी जाती हैं अतः उनको हर तीसरे या चौथे दिन अस्पताल में आना पड़ता है जिससे गर्भवती महिलाओं को परेशानी उठानी पड़ती है। पुरुषों के लिए उन्होंने बताया कि जो जर्नल दवाएं होती हैं वह अस्पताल में रहती हैं।
डा. शालिनी श्रीवास्तव जी ने कहा कि प्रजनन सम्बन्धी वस्तुओं को मांगने में युवा लोगों में जों शर्म है इस को दूर करने के लिए सरकार ने ‘नेशनल रूरल हेल्थ मिशन’ के अंतर्गत एक बहुत अच्छी योजना चलाई है जिसमें आशा बहू, ए.एन.एम. व आंगनवाडी कार्यकर्ताओं की भागीदारी है जो गाँव-गाँव, घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं को जाग्रत करती हैं; उन्हें अस्पताल तक लेकर आती हैं ।इसकी वजह से ९०% महिलाएं अस्पताल पहुँच रही हैं और उन्हें प्रजनन और निरोध सम्बन्धी जानकारियां डॉक्टर व ए एन एम्. के द्वारा दी जाती हैं. इसलिए गाँव की महिलाओं में जो शर्म व झिझक पहले थी वह अब कम हो रही है और जानकारियां बढ़ती जा रही है।
अंकिता त्रिपाठी तथा डा. शालिनी श्रीवास्तव जी ने युवाओं की शर्म व झिझक को दूर करने के लिए जो भी बिंदु बताए हैं वे हमारे युवाओं की सोच को बदलने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ मेरा कहना है कि जो भी युवा पुरुष व महिलाएं सरकारी अस्पतालों में दवाई लेने के लिए आते हैं उनको सही-सही निःसंकोच अस्पताल में तैनात किसी महिला या पुरुष सलाहकार से खुलकर, बेझिझक अपनी बात बतानी चाहिए। तभी वे अपने तथा अपने परिवार को स्वस्थ रखने में सक्षम होंगें।
मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१२ सितम्बर २०१५