डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
इधर खादी व ग्रामोद्योग आयोग के कैलेण्डर पर चरखे के साथ महात्मा गांधी की जगह नरेन्द्र मोदी की तस्वीर छपने से कुछ विवाद खड़ा हुआ है। मोदी समर्थक पूछ रहे हैं कि जब नरेन्द्र मोदी की तस्वीर झाड़ू के साथ छप रही थी तब इतना बवाल क्यों नहीं मचा क्यों कि झाड़ू का प्रतीक भी मोदी ने गांधी से ही लिया है? गांधी का चश्मा स्वच्छ भारत अभियान के प्रतीक चिन्ह के रूप में जगह जगह छप रहा है।
अब झाड़ू हो या चरखा, उस पर गांधी की बपौती तो है नहीं। कोई भी चाहे तो अपनी तस्वीर इन चीजों के साथ खिंचवा ही सकता है। और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि नरेन्द्र मोदी महात्मा गांधी से इतने प्रेरित हो गए हैं कि उनकी चीजों को प्रतीक चिन्ह के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी दक्षिण अफ्रीका में उस रेलगाड़ी में भी सफर कर चुके हैं जिससे गांधी का उतारा गया था और वहां उनके आश्रम भी जा चुके हैं। यह बात अनोखी इसलिए है कि नरेन्द्र मोदी का ताल्लुक जिस संगठन से है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वह गांधी को अपना विरोधी मानता है और उसकी विचारधारा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है। यदि नरेन्द्र मोदी को गांधी का महत्व समझ में आ रहा है और वे अपने संगठन की सोच गांधी के प्रति बदल पाएंगे तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?
सच तो यह है कि दुनिया भर में भारत की पहचान यदि किसी एक व्यक्ति से सबसे ज्यादा जुड़ी हुई है तो वह महात्मा गांधी है। वैसे तो गौतम बुद्ध से ज्यादा संख्या में लोगों का जुड़ाव है लेकिन बौद्ध धर्म को मानने वाले गौतम बुद्ध को अब भारत तक सीमित कर नहीं देखते। दुनिया के कई आंदोलनों में, खासकर जहां कोई कमजोर तबका किसी ताकतवर शक्ति के खिलाफ संघर्ष कर रहा हो वहां, गांधी प्रेरणास्रोत बनते हैं। वैसे कई पर्यावरणवादी भी गांधी से प्रेरणा लेते हैं।
किंतु नरेन्द्र मोदी को यह समझना चाहिए कि गांधी की झाड़ू या चरखे के साथ तस्वीर देख लोग उन्हें गांधी की तरह नहीं देखने लगेंगे। यदि गांधी ने दुनिया भर के लोगों के दिलों में जगह बनाई है तो उसके पीछे जिन मूल्यों के वे प्रतीक हैं वे हैं। और खास बात यह है कि गांधी ने उन मूल्यों को अपनी जिंदगी में जिया है। गांधी के आश्रम में सफाई, खासकर शौचालय की सफाई को विशेष महत्व दिया जाता था और चरखे पर जो सूत काता जाता था उससे बनी खादी पहनी जाती थी। खादी के पीछे स्वराज की सोच थी, यानी स्थानीय वस्तुओं के इस्तेमाल से ऐसी तकनीकी से अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरी करने वाली चीजों को निर्मित करना जो भारत की गरीब जनता को रोजगार भी सुलभ करा सकें। नरेन्द्र मोदी जिन नीतियों को लागू कर रहे हैं, यानी नवउदारवाद, उससे तो, पूरी दुनिया का अनुभव बताता है कि, गरीब और अमीर के बीच की खाई चैड़ी होती है। गांधी ने स्थानीय संसाधनों पर भरोसे की बात की थी लेकिन नरेन्द्र मोदी का आकर्षण वैश्विक पूंजी की तरफ है।
फिर भी झाड़ू और चरखा तो भौतिक वस्तुएं हैं। दुनिया इनकी वजह से नहीं गांधी को जानती। गांधी को सत्य और अहिंसा जैसे मूल्यों और सत्याग्रह जैसे संघर्ष के तरीकों के लिए जाना जाता है। सत्य का रास्ता हमेशा लम्बा और कठिन होता है। त्वरित सफलता हासिल करने के लिए समझौते करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। इस रास्ते में चमक-दमक नहीं होती। जो जैसा है वैसा ही दिखना होता है। अतिश्योक्ति का सहारा नहीं लिया जा सकता। अपनी कमजोरी को छुपाया नहीं जाता।
अहिंसा तो मानव स्वभाव है। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए हिंसा का सहारा लेता है। शायद ही कोई शासक हो जिसने हिंसा का सहारा नहीं लिया हो। अहिंसा को मानने वाले भय या आतंक का माहौल नहीं बनाते। वे हथियारों और युद्ध की बात नहीं करते। किसी को दुश्मन नहीं माना जा सकता। दुश्मन को खत्म करने का एक ही रास्ता होता है - उसे दोस्त बना लो। गांधी के अंगे्रजों के साथ जो संबंध थे वे याद किए जाने चाहिए। उन्होंने किसी अंग्रेज से दुश्मनी नहीं मानी। उनकी लड़ाई साम्राज्य से थी। इसलिए अंग्रेज भी उनकी इज्जत करते थे।
महात्मा गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे। जबकि नरेन्द्र मोदी की सरकार में दोनों समुदायों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं। हिन्दुत्व की विचारधारा को मानने वालों ने मुसलमानों को आतंकित किया है तो सरकार ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। गांधी तो आजादी का जश्न मनाने के बजाए नोआखाली में साम्प्रदायिक हिंसा रोकने चले गए और नरेन्द्र मोदी के मुख्य मंत्री होते हुए 2002 में गुजरात में तीन दिनों तक हिंसा होती रही। क्या नरेन्द्र मोदी उसकी जिम्मेदारी स्वीकार करने को तैयार हैं?
नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि उन्होंने सार्वजनिक काम के लिए पारिवारिक जीवन का त्याग किया। लेकिन गांधी ने दिखाया कि परिवार को लेकर कैसे चलना है। उनके परिवार वालों ने उनके काम का विरोध किया किंतु गांधी ने अपना परिवार नहीं छोड़ा।
गांधी का हरेक कदम गरीब को ध्यान में रख कर उठाया जाता था। जबकि नरेन्द्र मोदी के शासन की नीतियां पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली हैं। उल्टे गरीब अपने को दिन प्रति दिन और असुरक्षित महसूस कर रहा है।
गांधी बनने के लिए जिन मूल्यों को जीना है यदि नरेन्द्र मोदी वह किए बिना सिर्फ बाहरी तौर पर गांधी की नकल करना चाहते हैं तो उसका कोई लाभ नहीं। गांधी में सत्ता के लिए कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी। उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया और आज भी कर रहे हैं। शासक की इज्जत तो लोग तभी तक करते हैं जब तक वह शासन करता है। उसके बाद लोग उसे भूल जाते हैं।
गांधी जो कुछ भी करते थे वह एक समग्र सोच के तहत था। ऐसा नहीं हो सकता कि आधुनिक प्रबंधन की सोच कि तहत प्रचार के लिए उनकी कुछ चीजें ले ली जाएं और कुछ छोड़ दी जाएं। एक तरफ मोदी चरखे से अपने को जोड़ना चाहें और दूसरी तरफ रक्षा क्षेत्र में उनके मित्र अंबानी कारखाना लगाएं ये दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं। मोदी के संगठन से जुड़े लोग देश में ओछी हरकतें करें या घटिया बयानबाजी करें और मोदी को लोग विश्व नेता मान लें यह नहीं हो सकता।
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस वरिष्ठ स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
23 जनवरी 2017
(डॉ संदीप पाण्डेय, मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वर्त्तमान में वे आईआईटी गांधीनगर में इंजीनियरिंग पढ़ा रहे हैं और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. वे आईआईटी-कानपुर और आईआईटी-बीएचयू समेत अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में आचार्य रहे हैं. डॉ पाण्डेय जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और आशा परिवार के भी नेत्रित्व कर रहे हैं. ईमेल: ashaashram@yahoo.com | ट्विटर )
गाँधी प्रिंटिंग प्रेस,दक्षिणअफ्रीका:गांधीजी यहाँ से अखबार निकलते थे |
अब झाड़ू हो या चरखा, उस पर गांधी की बपौती तो है नहीं। कोई भी चाहे तो अपनी तस्वीर इन चीजों के साथ खिंचवा ही सकता है। और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि नरेन्द्र मोदी महात्मा गांधी से इतने प्रेरित हो गए हैं कि उनकी चीजों को प्रतीक चिन्ह के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी दक्षिण अफ्रीका में उस रेलगाड़ी में भी सफर कर चुके हैं जिससे गांधी का उतारा गया था और वहां उनके आश्रम भी जा चुके हैं। यह बात अनोखी इसलिए है कि नरेन्द्र मोदी का ताल्लुक जिस संगठन से है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वह गांधी को अपना विरोधी मानता है और उसकी विचारधारा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है। यदि नरेन्द्र मोदी को गांधी का महत्व समझ में आ रहा है और वे अपने संगठन की सोच गांधी के प्रति बदल पाएंगे तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?
सच तो यह है कि दुनिया भर में भारत की पहचान यदि किसी एक व्यक्ति से सबसे ज्यादा जुड़ी हुई है तो वह महात्मा गांधी है। वैसे तो गौतम बुद्ध से ज्यादा संख्या में लोगों का जुड़ाव है लेकिन बौद्ध धर्म को मानने वाले गौतम बुद्ध को अब भारत तक सीमित कर नहीं देखते। दुनिया के कई आंदोलनों में, खासकर जहां कोई कमजोर तबका किसी ताकतवर शक्ति के खिलाफ संघर्ष कर रहा हो वहां, गांधी प्रेरणास्रोत बनते हैं। वैसे कई पर्यावरणवादी भी गांधी से प्रेरणा लेते हैं।
किंतु नरेन्द्र मोदी को यह समझना चाहिए कि गांधी की झाड़ू या चरखे के साथ तस्वीर देख लोग उन्हें गांधी की तरह नहीं देखने लगेंगे। यदि गांधी ने दुनिया भर के लोगों के दिलों में जगह बनाई है तो उसके पीछे जिन मूल्यों के वे प्रतीक हैं वे हैं। और खास बात यह है कि गांधी ने उन मूल्यों को अपनी जिंदगी में जिया है। गांधी के आश्रम में सफाई, खासकर शौचालय की सफाई को विशेष महत्व दिया जाता था और चरखे पर जो सूत काता जाता था उससे बनी खादी पहनी जाती थी। खादी के पीछे स्वराज की सोच थी, यानी स्थानीय वस्तुओं के इस्तेमाल से ऐसी तकनीकी से अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरी करने वाली चीजों को निर्मित करना जो भारत की गरीब जनता को रोजगार भी सुलभ करा सकें। नरेन्द्र मोदी जिन नीतियों को लागू कर रहे हैं, यानी नवउदारवाद, उससे तो, पूरी दुनिया का अनुभव बताता है कि, गरीब और अमीर के बीच की खाई चैड़ी होती है। गांधी ने स्थानीय संसाधनों पर भरोसे की बात की थी लेकिन नरेन्द्र मोदी का आकर्षण वैश्विक पूंजी की तरफ है।
फिर भी झाड़ू और चरखा तो भौतिक वस्तुएं हैं। दुनिया इनकी वजह से नहीं गांधी को जानती। गांधी को सत्य और अहिंसा जैसे मूल्यों और सत्याग्रह जैसे संघर्ष के तरीकों के लिए जाना जाता है। सत्य का रास्ता हमेशा लम्बा और कठिन होता है। त्वरित सफलता हासिल करने के लिए समझौते करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। इस रास्ते में चमक-दमक नहीं होती। जो जैसा है वैसा ही दिखना होता है। अतिश्योक्ति का सहारा नहीं लिया जा सकता। अपनी कमजोरी को छुपाया नहीं जाता।
अहिंसा तो मानव स्वभाव है। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए हिंसा का सहारा लेता है। शायद ही कोई शासक हो जिसने हिंसा का सहारा नहीं लिया हो। अहिंसा को मानने वाले भय या आतंक का माहौल नहीं बनाते। वे हथियारों और युद्ध की बात नहीं करते। किसी को दुश्मन नहीं माना जा सकता। दुश्मन को खत्म करने का एक ही रास्ता होता है - उसे दोस्त बना लो। गांधी के अंगे्रजों के साथ जो संबंध थे वे याद किए जाने चाहिए। उन्होंने किसी अंग्रेज से दुश्मनी नहीं मानी। उनकी लड़ाई साम्राज्य से थी। इसलिए अंग्रेज भी उनकी इज्जत करते थे।
महात्मा गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे। जबकि नरेन्द्र मोदी की सरकार में दोनों समुदायों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं। हिन्दुत्व की विचारधारा को मानने वालों ने मुसलमानों को आतंकित किया है तो सरकार ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। गांधी तो आजादी का जश्न मनाने के बजाए नोआखाली में साम्प्रदायिक हिंसा रोकने चले गए और नरेन्द्र मोदी के मुख्य मंत्री होते हुए 2002 में गुजरात में तीन दिनों तक हिंसा होती रही। क्या नरेन्द्र मोदी उसकी जिम्मेदारी स्वीकार करने को तैयार हैं?
नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि उन्होंने सार्वजनिक काम के लिए पारिवारिक जीवन का त्याग किया। लेकिन गांधी ने दिखाया कि परिवार को लेकर कैसे चलना है। उनके परिवार वालों ने उनके काम का विरोध किया किंतु गांधी ने अपना परिवार नहीं छोड़ा।
गांधी का हरेक कदम गरीब को ध्यान में रख कर उठाया जाता था। जबकि नरेन्द्र मोदी के शासन की नीतियां पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली हैं। उल्टे गरीब अपने को दिन प्रति दिन और असुरक्षित महसूस कर रहा है।
गांधी बनने के लिए जिन मूल्यों को जीना है यदि नरेन्द्र मोदी वह किए बिना सिर्फ बाहरी तौर पर गांधी की नकल करना चाहते हैं तो उसका कोई लाभ नहीं। गांधी में सत्ता के लिए कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी। उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया और आज भी कर रहे हैं। शासक की इज्जत तो लोग तभी तक करते हैं जब तक वह शासन करता है। उसके बाद लोग उसे भूल जाते हैं।
गांधी जो कुछ भी करते थे वह एक समग्र सोच के तहत था। ऐसा नहीं हो सकता कि आधुनिक प्रबंधन की सोच कि तहत प्रचार के लिए उनकी कुछ चीजें ले ली जाएं और कुछ छोड़ दी जाएं। एक तरफ मोदी चरखे से अपने को जोड़ना चाहें और दूसरी तरफ रक्षा क्षेत्र में उनके मित्र अंबानी कारखाना लगाएं ये दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं। मोदी के संगठन से जुड़े लोग देश में ओछी हरकतें करें या घटिया बयानबाजी करें और मोदी को लोग विश्व नेता मान लें यह नहीं हो सकता।
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस वरिष्ठ स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
23 जनवरी 2017
(डॉ संदीप पाण्डेय, मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वर्त्तमान में वे आईआईटी गांधीनगर में इंजीनियरिंग पढ़ा रहे हैं और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. वे आईआईटी-कानपुर और आईआईटी-बीएचयू समेत अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में आचार्य रहे हैं. डॉ पाण्डेय जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और आशा परिवार के भी नेत्रित्व कर रहे हैं. ईमेल: ashaashram@yahoo.com | ट्विटर )