सिटीजन न्यूज सर्विस - सी एन एस
निमोनिया से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. इसके बावजूद भी निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. लखनऊ के नेल्सन अस्पताल के निदेशक और बाल-रोग विशेषज्ञ डॉ अजय मिश्र ने वेबिनार में बताया कि "निमोनिया से बचाव और इलाज दोनों संभव है पर इसके बावजूद निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. 2015 में 760000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया से हुई.
निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या देखें तो दुनिया में भारत सबसे ऊपर है जहां आधी से ज्यादा निमोनिया-मृत्यु होती है." डॉ अजय मिश्र ने कहा कि "अनेक कारण हैं जो बच्चों में निमोनिया होने का खतरा बढ़ा देते हैं, जैसे कि टीकाकरण न होना, जन्म के समय कम वजन, कुपोषण, जन्म के उपरांत 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान न कराना, विटामिन 'ए' और जिंक की कमी, घर के भीतर प्रदूषित हवा (तम्बाकू धुआं), कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली आदि. यदि हम सब एकजुट हों और प्रयास करें तो निमोनिया मृत्यु दर में तेज़ी से गिरावट आ सकती है."
लोरेटो कान्वेंट की पूर्व वरिष्ठ शिक्षिका और स्वास्थ्य को वोट अभियान व आशा परिवार से जुड़ी शोभा शुक्ला ने बताया कि भारत सरकार समेत दुनिया के सभी देशों की सरकारों ने २०३० तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वायदा किया है जिसमें बच्चों की असमय मृत्यु को पूरी तरह रोकना शामिल है. इसके अलावा अन्य सतत विकास लक्ष्य जैसे कुपोषण दूर करना, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, तम्बाकू नियंत्रण आदि को पूरा करने के लिए भी हमारी सरकार वचन बद्ध है. हम सब को जमीनी कार्यक्रमों का मूल्यांकन करना चाहिए कि हम इन लक्ष्यों को २०३० या उससे पहले पूरा कर सकें. इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डिजीज के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ स्टीव ग्रैहम ने बताया कि निमोनिया वायरस, बैक्टीरिया और फंगस किसी से भी हो सकती है. 45% निमोनिया बैक्टीरिया से, 40% वायरस से होती है.
डॉ अजय मिश्र ने कहा कि निमोनिया से बचाव के लिए हिमोफिलिस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी और पीसीवी दो वैक्सीन हैं जिन्हें सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम पूर्ण रूप से शामिल करना चाहिए. डॉ मिश्र ने यह भी बताया कि अक्सर ऑक्सीजन की सीमित उपलब्धता और समय से निमोनिया-ग्रसित बच्चे का इंटेंसिव केयर यूनिट न पहुचना भी एक बड़ी जन-स्वास्थ्य चुनौती है जिससे हमें निपटना होगा. हमारी उत्तर प्रदेश सरकार से अपील है कि प्रदेश की जन स्वास्थ्य सेवाओं को प्रत्येक स्तर पर सुदृण करके यह सुनिश्चित करें कि निमोनिया जैसी बीमारी (जिसका बचाव एवं उपचार सम्भव है) से किसी भी बच्चे की मृत्यु न हो.
सिटीजन न्यूज सर्विस - सी एन एस
4 जनवरी, 2017
निमोनिया से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. इसके बावजूद भी निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. लखनऊ के नेल्सन अस्पताल के निदेशक और बाल-रोग विशेषज्ञ डॉ अजय मिश्र ने वेबिनार में बताया कि "निमोनिया से बचाव और इलाज दोनों संभव है पर इसके बावजूद निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. 2015 में 760000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया से हुई.
निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या देखें तो दुनिया में भारत सबसे ऊपर है जहां आधी से ज्यादा निमोनिया-मृत्यु होती है." डॉ अजय मिश्र ने कहा कि "अनेक कारण हैं जो बच्चों में निमोनिया होने का खतरा बढ़ा देते हैं, जैसे कि टीकाकरण न होना, जन्म के समय कम वजन, कुपोषण, जन्म के उपरांत 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान न कराना, विटामिन 'ए' और जिंक की कमी, घर के भीतर प्रदूषित हवा (तम्बाकू धुआं), कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली आदि. यदि हम सब एकजुट हों और प्रयास करें तो निमोनिया मृत्यु दर में तेज़ी से गिरावट आ सकती है."
लोरेटो कान्वेंट की पूर्व वरिष्ठ शिक्षिका और स्वास्थ्य को वोट अभियान व आशा परिवार से जुड़ी शोभा शुक्ला ने बताया कि भारत सरकार समेत दुनिया के सभी देशों की सरकारों ने २०३० तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वायदा किया है जिसमें बच्चों की असमय मृत्यु को पूरी तरह रोकना शामिल है. इसके अलावा अन्य सतत विकास लक्ष्य जैसे कुपोषण दूर करना, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, तम्बाकू नियंत्रण आदि को पूरा करने के लिए भी हमारी सरकार वचन बद्ध है. हम सब को जमीनी कार्यक्रमों का मूल्यांकन करना चाहिए कि हम इन लक्ष्यों को २०३० या उससे पहले पूरा कर सकें. इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डिजीज के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ स्टीव ग्रैहम ने बताया कि निमोनिया वायरस, बैक्टीरिया और फंगस किसी से भी हो सकती है. 45% निमोनिया बैक्टीरिया से, 40% वायरस से होती है.
डॉ अजय मिश्र ने कहा कि निमोनिया से बचाव के लिए हिमोफिलिस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी और पीसीवी दो वैक्सीन हैं जिन्हें सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम पूर्ण रूप से शामिल करना चाहिए. डॉ मिश्र ने यह भी बताया कि अक्सर ऑक्सीजन की सीमित उपलब्धता और समय से निमोनिया-ग्रसित बच्चे का इंटेंसिव केयर यूनिट न पहुचना भी एक बड़ी जन-स्वास्थ्य चुनौती है जिससे हमें निपटना होगा. हमारी उत्तर प्रदेश सरकार से अपील है कि प्रदेश की जन स्वास्थ्य सेवाओं को प्रत्येक स्तर पर सुदृण करके यह सुनिश्चित करें कि निमोनिया जैसी बीमारी (जिसका बचाव एवं उपचार सम्भव है) से किसी भी बच्चे की मृत्यु न हो.
सिटीजन न्यूज सर्विस - सी एन एस
4 जनवरी, 2017