२ अक्टूबर से भारत में धुआं रहित नीतियाँ लागू
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आज २ अक्टूबर २००८ से भारत में धुआं रहित नीतियाँ लागू हो रही हैं। सार्वजनिक स्थानों पर और निजी परिसरों में जहाँ लोगों का आना जाना है, वहां पर इन नीतियों के तहत धूम्रपान वर्जित है। सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ के तहत, ऐसे स्थानों पर धूम्रपान करते हुए पकड़े जाने पर रुपया २०० जुरमाना पड़ सकता है।
सिगरेट से निकलने वाला धुआं न केवल धूम्रपानी को, तम्बाकू-जनित कु-प्रभावों का खतरा बढ़ता है, बल्कि जो अन्य लोग उस धुँए में साँस लेते हैं, उनपर भी तम्बाकू के घातक कु-परिणाम पड़ सकते हैं। सिगरेट के जलते हुए छोर से निकलते हुए इस धुएँ को, सेकंड-हैण्ड स्मोक या एनवायरनमेंट टोबाको स्मोक कहते हैं।
धुआं रहित नीतियों से न केवल वोह लोग लाभान्वित होते हैं जो धूम्रपान नहीं करते हैं, बल्कि धूम्र्पानियों को भी इन लाभकारी नीतियों से फायदा पहुँचता है। जिन देशों में धुआं रहित नीतियाँ लागू हो गई हैं, वहां पर शोध से यह स्थापित हो चुका है कि धुआं रहित नीतियों के लागू होने से कम-से-कम ४ प्रतिशत धूम्रपानी तम्बाकू सेवन को त्याग देता है, और बाकि के धूम्र्पानियों में तम्बाकू सेवन का दर काफी कम हो जाता है। स्वभाविक है कि जब कार्यस्थल पर, अपने कार्यालय में, अपने घर पर और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना कानूनी रूप से वर्जित होगा, तब नि:संदेह ही धूम्र्पानियों के धूम्रपान करने में गिरावट आएगी।
इन नीतियों को लागू करने में लोगों की केंद्रीय भूमिका होनी चाहिए। आखिरकार यह सब जन-स्वास्थ्य नीतियाँ लोगों के ही हित के लिये हैं, और मूलत: उद्योगों, विशेषकर कि तम्बाकू उद्योग की मुनाफे की राजनीति, के विरोध में हैं। इसीलिए यह और भी आवश्यक है कि लोग स्वयं इन जन-हितैषी नीतियों को स्वीकारें और इनको लागू करने के लिये चौकस रहें।