गरीबों को भी हो सकता है मधुमेह

गरीबों को भी हो सकता है मधुमेह


एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मधुमेह की बीमारी आधुनिक जीवन पध्यति की देन है। परन्तु इसका यह अर्थकदापि नहीं है की निर्धन वर्ग इससे अछूता है। वास्तव में इस रोग के विश्व व्यापी रूप को देख कर ही अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन (आई. डी. ऍफ़.) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिल कर विश्व मधुमेह दिवस की स्थापना१९९१ में करी। यह दिवस सम्पूर्ण विश्व में १४ नवम्बर को, इंसुलिन के खोजकर्ता फ्रेद्रेरिक बैंटिंग के जन्म दिवस परमनाया जाता है। आई. डी. ऍफ़. का मुख्य उद्देश्य है मधुमेह रोग के बढ़ते हुए प्रकोप के प्रति जनमानस का ध्यानआकर्षित करते हुए इसकी रोकथाम का प्रयत्न करना।

चेन्नई स्थित ‘भारतीय मधुमेह अनुसंधान संस्थान’ (आई.डी.आर .ऍफ़.) के निदेशक, अम्बाडी रामचंद्रन काकहना है कि, ‘ मधुमेह का रोग समाज के सभी वर्गों को आतंकित कर रहा है-चाहे वो धनी हों या निर्धन;

उच्च जाति के हों या निम्न जाति के; ग्रामवासी हों अथवा नगरवासी’।

हाल ही में आई.डी.आर .ऍफ़. के द्वारा तमिलनाडु में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल महानगरों में रहने वाला धनिक वर्ग ही इससे पीड़ित नहीं है, वरन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका प्रकोप है। डाक्टर रामचंद्रन का यह भी कहना है कि इस रोग के कारण रोगी को जीवन पर्यंत बहुत अधिक आर्थिक भार वहन करना पड़ता है। दवाओं की कीमत, अस्पताल में रहने का खर्चा, रोगी के परिचार में हुआ व्यय---ये सब मिल कर रोगी को आर्थिक रूप से निर्बल बना देते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन के अनुसार, २००७ में लगभग ४.१ करोड़ भारतवासी मधुमेह से पीड़ित थे, जो विश्व भर के मधुमेहियों का १६.७ प्रतिशत है। यह संख्या २०२५ में ७ करोड़ तक बढ़ जाने की संभावना है। २०२५ तक भारत, चीन एवं अमेरिका में इस बीमारी का प्रकोप सबसे अधिक होगा। यहाँ तक की पाँच में से एक मधुमेही भारतीय होगा। इस सबका भारत पर बहुत अधिक आर्थिक बोझ पड़ सकता है ।

कदाचित इसीलिये भारत को विश्व की मधुमेह राजधानी कहा जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस रोग का प्रकोप बढ़ रहा है। परन्तु वहाँ के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इस रोग की जांच करने के लिए उपयुक्त साधन तक नहीं हैं।

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई स्थित मद्रास मधुमेह अनुसंधान संस्थान के निदेशक डाक्टर विश्वनाथन मोहन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 'नवजात शिशु देखभाल केन्द्र' में मधुमेह के उचित निदान के लिए रोग निदान केन्द्रों की स्थापना आवश्यक है ताकि बच्चों और वयस्कों में इसके बढ़ते हुए प्रकोप को रोका जा सके। विश्व बैंक के अनुसार इस बीमारी के चलते प्रत्येक रोगी पर लगभग १००० रुपयों का वार्षिक व्यय आएगा।

शहरी वयस्कों में टाइप -२ मधुमेह का प्रकोप ग्रामीण वयस्कों के मुकाबले अधिक होता है। कदाचित इसका कारण है महानगरों की आधुनिक जीवन शैली। यहाँ के वयस्कों ( विशेषकर उच्च आय वर्ग ) के खान- पान में वसा एवं परिष्कृत अनाज की मात्रा अधिक होती है तथा वे शारीरिक श्रम भी कम ही करते हैं। परिणाम स्वरुप, छोटी उम्र में ही उनमें मोटापा बढ़ने के साथ साथ टाइप -२ मधुमेह के लक्षण बढ़ने की संभावना भी प्रबल होती है। टाइप -२ मधुमेह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से व्याप्त है।

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आई.डी.ऍफ़. ने इस वर्ष के विश्व मधुमेह दिवस ( www.worlddiabetesday.org) का मुख्य विषय रखा है —‘बच्चों एवं वयस्कों में मधुमेह’। यह एक चिंताजनक समस्या है और इसका समाधान ढूंढ़ना आवश्यक है । मधुमेह से किसी भी बच्चे की मृत्यु नहीं होनी चाहिए।

डाक्टर शरद पेंडसे, जो एक मधुमेह विशेषज्ञ हैं, दिल्ली में एक सेवा संस्थान चलाते हैं जिसका नाम है 'मधुमेह अनुसन्धान, शिक्षा एवं प्रबंधन ट्रस्ट'। इस ट्रस्ट के द्वारा टाइप -१ मधुमेह से पीड़ित बच्चों को इंसुलिन, सिरिंजें एवं मधुमेह सम्बंधी अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं। डाक्टर पेंडसे के अनुसार बच्चों में मधुमेह के लक्षणों की जांच नियमित रूप से होनी चाहिए और इस बीमारी की प्राथमिक स्तर पर ही रोकथाम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो मधुमेहियों की संख्या में वृद्धि ही होगी।


अमित द्विवेदी

लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के विशेष संवाददाता हैं।

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मेरी ख़बर, बिहार/झारखण्ड