मधुमेह से पीड़ित बच्चों एवं वयस्कों की देखभाल
अंतर्राष्ट्रीय डायबिटिक फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के अनुसार ‘मधुमेह एक जानलेवा बीमारी है जिसके घातक प्रभावोंके कारण प्रति वर्ष लगभग ४० लाख व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अनेक बच्चों का जीवन भी इस रोग के कारणखतरे में पड़ जाता है --विशेषकर उन देशों में जहाँ मधुमेह से बचाव हेतु साधनों की कमी है।’
आई.डी.ऍफ़. के २०० सदस्य संगठन हैं जो १६० देशों में फैले हैं। आई.डी.ऍफ़. विश्व मधुमेह दिवस ( जो प्रति वर्ष १४नवम्बर को मनाया जाता है) को सफल बनाने हेतु कटिबद्ध है। इस वर्ष के अभियान का मुख्य मुद्दा है बच्चों/ वयस्कों में फैल रही मधुमेह की बीमारी के प्रति जागरूकता को बढ़ाना।
मधुमेह बच्चों में लंबे समय तक चलने वाली एक आम बीमारी है। प्रतिदिन २०० से अधिक बच्चों में टाइप १मधुमेह की पहचान की जाती है, जिसके चलते उन्हें रोज़ इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं तथा रक्त में शर्करा की मात्रा को भी नियंत्रित करना पड़ता है। बच्चों में यह रोग ३% वार्षिक की दर से बढ़ रहा है तथा बहुत छोटे बच्चों में यह दर ५% है। आई.डी.ऍफ़. के अनुसार विश्व भर में १५ वर्ष से कम आयु के ५००,००० बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं।
मधुमेह एक लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है। अत: जीवन पर्यंत इस रोग के इलाज एवं देखभाल की आवश्यकता पड़ती है । अब सवाल यह उठता है कि मधुमेहियों के लिए क्या अस्पताल आधारित इलाज बेहतर है या घर आधारित, अथवा दोनों का मिश्रण?
दिल्ली की डाक्टर सोनिया कक्कड़ का कहना है कि, ‘ मधुमेह की गंभीर जटिलताओं से निपटने के लिए अस्पताल ज़रूरी है। परन्तु ९९% रोगी स्वयं ही अपनी देखभाल कर के इस रोग को काबू में रख सकते हैं। अत: उन्हें इस रोग से निपटने की उचित जानकारी की आवश्यकता है ताकि बिना अस्पताल जाए वो अपना ध्यान स्वयं रख सकें।
डाक्टर कक्कड़ के अनुसार ‘वयस्कों में इतनी मानसिक एवं शारीरिक क्षमता होती है की वे मधुमेह संबन्धी सभी सावधानियां बरतते हुए अपने भोजन/रक्त में शर्करा की मात्रा के अनुसार इंसुलिन ले सकें। यह आवश्यक है कि मधुमेह संबन्धी क्रिया कलापों की उचित जानकारी दी जाए ताकि वो धीरे- धीरे स्वयं अपनी देखभाल करने में सक्षम हो कर स्वाबलंबी बन सकें। हाँ इस बात पर ज़ोर देना आवश्यक है कि वे कार चलाने से पहले अपनी रक्त-शर्करा की मात्रा जांच लें ताकि वाहन चलाते समय उनके रक्त में शर्करा की मात्रा कम न हो जाए।’
बच्चों/वयस्कों में मधुमेह की सार संभाल उचित रूप से तभी हो सकती है जब उनका पूरा परिवार इस प्रक्रिया से जुड़ा हो। परिवार के सदस्यों को मधुमेह के उचित दैनिक प्रबंधन में डाक्टरों, भोजन विशेषज्ञों एवं अन्य स्वास्थ्य रक्षकों से निरंतर संपर्क स्थापित रखना चाहिए। इस रोग से निपटने हेतु जानकारी, सहायता और मार्गदर्शन करने में रिश्तेदार, अध्यापक, स्कूली नर्सें, सलाहकार आदि की मदद ली जा सकती है।
फोर्टिस हॉस्पिटल, नई दिल्ली के मधुमेह विभाग के निदेशक डाक्टर अनूप मिश्रा के अनुसार, ‘रोगी बच्चे एवं उसके परिवार, दोनों के लिए यह बीमारी तनाव का कारण बन सकती है। प्रत्येक अभिभावक को अपनी संतान में मानसिक तनाव,शारीरिक वज़न में अकारण गिरावट, अथवा खानपान की अनियमितता के प्रति बहुत सतर्क रहना चाहिये क्योंकि ये सभी मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं। वैसे तो सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को तम्बाकू, शराब व नशीले पदार्थों से दूर रखना चाहिए, परन्तु विशेषकर मधुमेही बच्चों में इन व्यसनों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान और मधुमेह, दोनों ही ह्रदय संबन्धी रोगों के खतरे को बढाते हैं। जो मधुमेही धूम्रपान भी करते हैं उनमें ह्रदय रोग की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। अत: मधुमेह से पीड़ित बच्चों/ वयस्कों के अभिभावकों /सम्बन्धियों को तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन नहीं करना चाहिए ताकि उनकी संतानों को ग़लत संकेत न मिलें।'
मधुमेही बच्चों/वयस्कों को उनकी आयु एवं समझ के अनुसार स्वयं ही अपनी देखभाल के लिए प्रेरित करना चाहिए। स्कूल जाने वाली आयु के अधिकतर बच्चे रक्त में शर्करा की मात्रा में कमी के लक्षण पहचान सकते हैं और १२ वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चे स्वयं ही उचित मात्रा में इंसुलिन के इंजेक्शन भी लगा सकते हैं। अपनी भोजन तालिका बनाने में भी वे सहयोग दे सकते हैं। वयस्कों में मधुमेह का इलाज एक जटिल प्रक्रिया है जो केवल अनुभवी चिकित्सकों द्वारा ही सम्भव है। मधुमेहियों को उचित खान- पान, व्यायाम एवं औषधि संबंधी जानकारी देना अति आवश्यक है और यह कार्य अनेक सत्रों में ही पूरा किया जा सकता है। इंसुलिन की मात्रा निर्धारित करके, उसके इंजेक्शन स्वयं लगा लेने की प्रक्रिया का प्रदर्शन अभिभावकों/ बच्चों को समझाकर, बारम्बार उनके सामने दोहराने की आवश्यकता है। उन्हें स्वास्थ्यप्रद भोजन, शारीरिक व्यायाम एवं इंसुलिन/औषधि प्रबंधन में जागरूक बनाना भी आवश्यक है।
आई.डी.ऍफ़. इस माह की २५ तारीख को लन्दन में एक सभा का आयोजन कर रहा है जिसका विषय है ‘विकासशील देशों में बच्चों के लिए मधुमेह की औषधियों की उपलब्धता ’। इसमें भाग लेने के लिए अनेक विकासशील देशों के स्वास्थ्य मंत्रालय, दवाई उद्योग के दिग्गज, मधुमेह संगठन, सेवा संस्थायें, और बाल चिकित्सकों को आमंत्रित किया गया है ताकि विकासशील देशों के हजारों मधुमेह पीड़ित बच्चों को उचित चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराई जा सके जिससे कि वे मधुमेह से पीड़ित होते हुए भी एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें और अकाल मृत्यु को न प्राप्त हों।
निम्न एवं निम्न-मध्यमवर्गीय आय के देशों के लगभग ७५,००० बच्चे मधुमेह से पीड़ित होने के साथ साथ इस रोग की उचित देखभाल से भी वंचित हैं। वे अत्यन्त शोचनीय स्थितियों में जी रहे हैं। उन्हें इंसुलिन की आवश्यकता है, नियंत्रण उपकरणों की आवश्यकता है एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है---ताकि वे मधुमेह की बीमारी को काबू में रख सकें और इस रोग की गंभीर जटिलताओं से मुक्त हो सकें।
आई.डी.ऍफ़. के प्रेसिडेंट डाक्टर मार्टिन सिलिंक के अनुसार, ‘हम उन सभी लोगों एवं संस्थाओं को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं जो न केवल मानवीय प्रतिक्रिया के आधार पर मासूम जिंदगियों को बचाने में सहायता कर सकते हैं, वरन उनके कष्टों के स्थायी निवारण की पृष्ठभूमि भी बना सकते हैं जिसके द्वारा सभी बच्चों का भला हो सकता है ।’
अमित द्विवेदी
लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के विशेष संवाददाता हैं ।
मेरी ख़बर में प्रकाशित