कचरा खाना छोड़िए और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाइये
मधुमेह एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती है, विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश के लिए। फिर भी, हम इस मूक हत्यारे की ओर से आँखें मूँदें हुए हैं। युवाओं ओर बच्चों की बढ़ती हुई संख्या मधुमेह का शिकार हो रही है। इस बीमारी में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्यायें उत्पन्न करने की क्षमता है, जिसके चलते अनेकों जीवन अपनी पटरी से उतर सकते हैं तथा हमारे स्वास्थ्य संबंधी व्यय में बहुत अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।
हमारे देश के बच्चे/किशोर इस समय मोटापे, इंसुलिन प्रतिरोधक संलक्षण और टाइप २ डायबिटीज़ से उत्पन्न होने वाली विस्फोटक स्थिति के कगार पर खड़े हैं। अत: यह अत्यन्त आवश्यक है कि मोटापे के प्राथमिक निवारण हेतु तत्काल ही ठोस कदम उठाये जाएँ, तथा बचपन से ही उनमे स्वस्थ पोषण /जीवन शैली हेतु अच्छी आदतें डाली जाएँ। भारतीय बच्चों एवं किशोरों (विशेषकर शहरों में रहने वाले) में टाइप २ डायबिटीज़ ओर ह्रदय रोग का खतरा बहुत बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण है उनके दैनिक आहार का पाश्चात्यीकरण तथा एक आराम तलब, शारीरिक श्रम रहित जीवन शैली।
इंटरनेशनल डायबिटीज़ फेडरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के प्रेसिडेंट, डाक्टर मार्टिन सिलिंक को इस बात का दु:ख है कि स्कूलों में खेलकूद को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है तथा खेल के मैदानों का स्थान कम्प्यूटरों ने ले लिया है। उनके अनुसार, बच्चों को ‘जंक फूड’ नहीं खाना चाहिए तथा नियमित व्यायाम करना चाहिए। घंटों कम्प्यूटर और टेलीविजन के सामने बैठने के बजाय, उन्हें साइकिल चलाने, खेलने और दौड़ने की आवश्यकता है। वरना हम डायबिटीज़ एवं अन्य असंक्रामक रोगों को फैलने से नहीं रोक पायेंगे। तथा इसका विपरीत असर हमारी आर्थिक उन्नति पर पड़ेगा । वे स्कूल के स्तर पर बच्चों के ‘स्वास्थ्य परीक्षण’ के पक्ष में हैं। सिंगापुर और जापान में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जापान भी बच्चों में टाइप २ डायबिटीज़ के बढ़ते हुए प्रकोप से आतंकित है।
आई.डी.ऍफ़. का मुख्य उद्देश्य है डायबिटीज़ संबंधी मानवीय कष्टों को कम करने हेतु, गर्भावास्ता से वयस्कता तक, इस रोग के निवारण एवं देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना; तथा सरकारों, नीति निर्धारकों, निधिकरण संस्थाओं को भी इस कार्य को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करना। क्योंकि, यदि समय रहते उचित जन स्वास्थ्य कार्यवाही नहीं करी गयी तो अगले १० वर्षों में, दक्षिण पूर्व एशिया में ह्रदय रोग, कैंसर ओर डायबिटीज़ से हुई विकलांगता ओर असामयिक मौतों में २१% की बढ़ोतरी होने की आशंका है।
विश्व मधुमेह दिवस २००९-२०१३ का विषय है ‘ डायबिटीज़ की जानकारी एवं निराकरण’। विश्व मधुमेह दिवस के अभियान के मुख्य सूत्रधार हैं आई.डी.ऍफ़. एवं उसके सदस्य संघ। यह अभियान उन सभी लोगों का (जो मधुमेह की देखभाल के लिए जिम्मेदार हैं) आह्वान करता है कि वे इस रोग को समझ कर उस पर नियंत्रण रखें। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह संदेश है उचित शिक्षा के द्बारा क्षमतावान बनने का; सरकारों के लिए यह आह्वान है डायबिटीज़ के निवारण एवं प्रबंधन हेतु प्रभाव कारी नीतियों को प्रतिपादित करके अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने का ; स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए यह आह्वान है अपने समुचित ज्ञान से प्रमाण- आधारित संस्तुतियों को कार्यान्वित करने का । जन मानस के लिए यह संदेश है कि वे डायबिटीज़ के गंभीर प्रभाव को समझ कर यह जानकारी हासिल करने का प्रयत्न करें कि इस रोग और इसकी जटिलताओं से कैसे बचा जा सकता है, या उन्हें विलंबित किया जा सकता है।
विश्व मधुमेह दिवस २००९ का नारा है ‘डायबिटीज़ को समझें और नियंत्रण रखें’। डायबिटीज़ एक कठिन रोग है। विश्व भरके २५०० लाख मधुमेह पीड़ितों एवं उनके परिवारों के लिए यह एक जीवन पर्यंत समस्या है, जिसका निराकरण होना ही चाहिए। डायबिटीज़ के साथ रह रहे व्यक्तियों को अपनी ९५% देखभाल स्वयं ही करनी पड़ती है। इसलिए यह परम आवश्यक है कि उन्हें, कुशल स्वास्थ्य विज्ञों द्बारा, लगातार उच्च गुणवत्ता शील डायबिटीज़ शिक्षा प्राप्त होती रहे। आई.डी.ऍफ़. का अनुमान है कि विश्व भर में ३० करोड़ व्यक्तियों को टाइप २ डायबिटीज़ होने का खतरा है। अधिकांशत:, इस प्रकार की डायबिटीज़ को मोटापा कम कर के तथा नियमित व्यायाम कर के रोका जा सकता है।
भारत के भूतपूर्व स्वास्थ्य मंत्री, डाक्टर अंबुमणि रामादौस भी इस विषय को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि स्वास्थ्य संवर्धन संबंधी नीतियों का उद्देश्य होना चाहिए स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाना तथा सकारात्मक जीवन शैली को प्रोत्साहित करना। उनके अनुसार खाद्य पदार्थों के पैकटों पर उस पदार्थ में इस्तेमाल करी गयी प्रत्येक सामग्री का भार एवम् कैलोरिक वैल्यू (पोषक मूल्य) को लिखना अनिवार्य होना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि प्रत्येक स्कूल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल कैंटीन में कोई भी 'जंक फूड' न बिके, फिर चाहे वह समोसा हो अथवा पिज़्ज़ा , ताकि विद्यार्थियों में उचित खान पान के प्रति सजगता बढ़ सके। स्कूलों में 'योग शिक्षा' अनिवार्य होनी चाहिए, क्योंकि 'योगिक व्यायाम ' हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभप्रद हैं।
परिवार ओर समाज के स्तर पर उठाये गए स्वास्थ्य संबंधी निर्णय, एक वृहत् जन स्वास्थ्य आन्दोलन का रूप ले सकते हैं। और यही इस युग की पुकार है। एक स्वस्थ राष्ट्र को बनाने में अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूलों ओर समुदायों की भूमिका अहम् है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्बारा पुरस्कृत (एवं छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डायबेटिक-फुट-केयर क्लीनिक के अध्यक्ष) डाक्टर रमा कान्त का मानना है कि अब परिवार और समाज को ही यह तय करना होगा कि हम किस दिशा में बढ़ना चाहते हैं – मीठे ज़हर कि तरफ़ या फिर एक उत्तम जीवन शैली की ओर?
उनके अनुसार, टाइप १ डायबिटीज़ में (जिसमें शरीर में उचित मात्र में इंसुलिन नही बन पाता) ग्लूकोज़ अनुश्रवण के लिए पारिवारिक सहयोग की निरंतर आवश्यकता होती है। टाइप २ डायबिटीज़ का सीधा सम्बन्ध, खान पान की गड़बडी से होने वाले, मोटापे से है। अपने अपने व्यवसायों में उलझे हुए, एवं काम की अधिकता से परेशान माता पिता, बच्चों को अनायास ही फास्ट फूड खाने की आदत बचपन से ही डाल देते हैं। तिस पर स्कूल कार्य का भार, इंटरनेट में दिलचस्पी, खेल कूद के स्थानों का अभाव – ये सभी मिल कर बच्चों को निष्क्रीय बनाते जा रहे हैं। बच्चों में खान पान की अच्छी आदतें डालने हेतु एवं मोटापे की समस्या को कम करने हेतु, प्रोफेसर रमाकान्त लखनऊ के कुछ स्कूलों में ‘मार्ग’ नामक एक शैक्षिक कार्यक्रम चला रहे हैं। यह कार्यक्रम देश के कुछ अन्य शहरों में भी चल रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया कार्यालय के क्षेत्रीय निदेशक डाक्टर सामली का कहना है कि, "हमें खाने के लिए जीवित नहीं रहना चाहिए, वरन जीवित रहने के लिए खाना चाहिए।" मधुमेह से बचने के लिए उनका साधारण, परन्तु सटीक मन्त्र है –‘ उचित आहार, नियमित व्यायाम’। उन्होंने स्वयं का उदाहरण देते हुए बताया कि एक अनुशासित जीवन प्रणाली को अपना कर ही उन्होंने अपनी डायबिटीज़ को नियंत्रित कर लिया है। उनका यह भी मानना है कि इस सन्दर्भ में मीडिया की भूमिका बहुत ही अहम् है। संतुलित आहार हमारे स्वस्थ जीवन के लिए कितना आवश्यक है, इस बात का जन मानस में समुचित प्रचार, संचार माध्यमों के द्बारा ही सम्भव है।
मधुमेह एवं अन्य असंक्रामक रोगों से बचने का संदेश एकदम स्पष्ट है --- इसके ‘निवारण कार्यक्रम’ का शुभारम्भ शिशु की गर्भावस्था से ही आरम्भ होकर जीवन पर्यंत चलते रहना चाहिए। गर्भवती महिला को अपने आहार प्रबंधन द्बारा एवं उचित व्यायाम के द्बारा गर्भकालिक डायबिटीज़ से बचना चाहिए। शिशु के पैदा होने के बाद, उसमें बचपन से ही सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार के प्रति स्वाद एवं अभिरुचि को विकसित करना प्रत्येक माता=पिता का परम कर्तव्य है। बचपन में जो आदतें पड़ जाती हैं उनका प्रभाव जीवन पर्यंत रहता है। अभिभावकों के लिए यह समझना आवश्यक है कि फैशन की दौड़ में, बच्चों को कोकाकोला ओर बर्गर/पिज़्ज़ा खिलाना कोई शान की बात नहीं, वरन उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक है।
टेलीविजन ओर इंटरनेट के इस्तेमाल पर भी कड़े नियंत्रण की आवश्यकता है। इससे जहाँ एक ओर बच्चों की शारीरिक सक्रियता बाधित होकर उन्हें स्थूलकाय ओर सुस्त बनाती है, वहीं दूसरी ओर वे ‘जंक फूड’ तथा अन्य भड़कीले विज्ञापनों के मायाजाल में भी फंसने लगते हैं।
हम सभी के लिए प्रतिदिन सात या आठ घंटे सोना भी ज़रूरी है। हाल ही में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि अपर्याप्त निद्रा के कारण शरीर की इंसुलिन प्रतिरोधकता बढ़ जाती है तथा ग्लूकोज़ सहनशीलता घट जाती है। अत: आधुनिक जीवनशैली के अस्वस्थ पहलू तथा अपर्याप्त नींद – दोनों मिल कर अनेक स्थूलकाय ओर अनुद्योगशील व्यक्तियों में डायबिटीज़ विकसित करने में सहायक हो सकते हैं।
जब हम मन एवं शरीर, दोनों से ही स्वस्थ होंगे, तभी हम एक प्रगतिशील राष्ट्र कहलाने के पात्र बनेगें.
शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस