प्रधान की रहमत नहीं! ये नरेगा कानून है मेरे मजदूर साथियों!

प्रधान की रहमत नहीं!
ये नरेगा क़ानून है मेरे मजदूर साथियों!

चुन्नीलाल

नरेगा कानून को लागू हुए इतना समय हो गया है कि कई गरीब मजदूरों की मौत भूख से हो गई तो कई ने इसे पाने के लिए अपनी जिन्दगी ही गवां दी बाकी बचे भी तो, इसे प्रधान की रहमत ही समझते हैं । क्योंकि मजदूर/ग्रामीण लोग आज भी इस कानून से अनजान हैं और इसे अन्य योजनाओं की तरह ही समझते हैं जो सिर्फ ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव की झोली तक ही सिमट कर रह जाती है। इनकी झोली तक जिसका हाथ पहुंच गया वही पा सकता है ग्राम विकास की योजनाओं का लाभ!

इस जानकारी ने हमें उस समय आश्चर्य में डाल दिया जब हम जिला सीतापुर के एक गांव में अपने साथी शकील अहमद जो उसी गांव के निवासी है, के साथ गये। यह गांव इन्दिरा नहर और केवानी नदी के बीच में बसा है । एक तरफ इन्दिरा नहर और दूसरी तरफ केवानी नदी है जिसकी खुशी इस गांव को दुःख और भुखमरी में बदल देती है। इस गांव का नाम मुर्थना है जो स्वयं ग्राम सभा भी है । यह जिला सीतापुर के बिसवां तहसील और ब्लाक सकरन से संबंधित है । मजदूरों से मिलने और बातचीत करने पर पता चला कि यह मजदूर तो नरेगा कानून से अनजान हैं । इस ग्राम सभा में लगभग 2000 हजार से ज्यादा मजदूर हैं लेकिन सिर्फ 350 जॉबकार्ड बनाये गये हैं वो भी प्रधान के रहमों करम पर !

इस गांव के ग्राम प्रधान रामलखन (अनुसूचित जाति), ग्रामपंचायत मित्र संतोष कुमार (अनुसूचित जाति), ग्राम सचिव श्याम किशोर (सामान्य) हैं । इस गांव में मार्च 2009 को करीब 50-60 मजदूरों ने नरेगा के तहत काम किया था लेकिन उन्हें अब भी इसका भुगतान नहीं हुआ है। मजदूरों ने इसके लिए जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया था । लेकिन अभी भी इनके लिए किसी अधिकारी ने सुध नहीं ली है।


इसी गांव का एक पुरवा है जो नदी में बाढ़ आने पर पूरा डूब जाता है तो इस पुरवा के लोग मुर्थना गांव चले आते हैं । इन्हें कई-कई दिनों तक भूखे रहना पड़ता है । इनको न तो ग्राम प्रधान रामलखन और न ही सरकार की तरफ से किसी योजना का लाभ मिला है । किसी के पास बी0पी0एल0 कार्ड तक नहीं है । इनका भी जॉबकार्ड नहीं बना है । सब लोग इतने परेशान हैं कि जब मैं इस गांव में पहुंचा तो लोगों का जमावड़ा इकट्ठा हो गया और यह जमावड़ा एक बैठक में बदल गया !

गांव के मजदूरों के साथ एक बैठक करने का मौका मिला जिसमें नरेगा के मुद्दे पर चर्चा हुयी । लोगों के दिलों में तमाम सवाल थे जैसे-
ऽ जॉबकार्ड प्रधान नहीं बना रहे हैं तो हम क्या करें ?
ऽ जॉबकार्ड बन भी जाता है तो काम नहीं मिलता है क्योंकि प्रधान जिसको चाहते हैं उन्हीं लोगों को काम देते हैं।
ऽ काम करते हैं तो मजदूरी नहीं मिलती है इसके लिए किसके पास जाये या शिकायत करें ?
ऽ अगर प्रधान काम भी देते हैं तो ऐसे मौके पर जब हम अपने कृषि कामों को कर रहे होते हैं ?
ऽ जॉबकार्ड कहाँ और कैसे बनवायें ?
ऽ काम पाने के लिए हम क्या करे ?
ऽ जॉबकार्ड प्रधान अपने पास ही रखे है ?
ऽ ग्राम पंचायत मित्र बिना प्रधान के कोई काम नहीं करते हैं ? इसकी शिकायत किससे करें ?
ऽ हम तो अनपढ़ हैं तो हम अपने जॉबकार्ड बनवाने के लिए कैसे आवेदन लिखें ?
ऽ अगर हम गरीबी रेखा के नीचे नहीं है तो क्या हम काम नहीं कर सकते हैं ? हमारा जॉबकार्ड नहीं बनेगा ?

इन तमाम सवालों के जवाब में मैंने बताया कि पहली बात तो यह है कि यह कोई योजना नहीं है कि सरकार की तरह बनती बिगड़ती रहती है बल्कि यह एक कानून है जो सरकारें बदलने पर भी नहीं बदलेगा । इसमें किसी गरीब और अमीर का भेदभाव नहीं है भेदभाव है तो ! बस, इस बात का , कि कौन काम करेगा और कौन नहीं करेगा, जो काम करेगा उसे काम मिलेगा तथा जो नहीं करना चाहता है उसे काम नहीं मिलेगा । प्रधानों, ग्राम पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, सरकारी अफसर, सरकारें जरूर एक न एक दिन चली जानी हैं लेकिन यह कानून को कहीं नहीं जाना है सिवाय मजदूरों के पास ।

रही बात कि जॉबकार्ड बनने कि तो यह प्रधान के घर का कागज नहीं है और न ही उसकी रबड़ स्टैम्प है जो उसकी मर्जी के बिना नहीं लगेगी ! यदि प्रधान आपका जॉबकार्ड नहीं बना रहे हैं तो आप एक सादे कागज पर जॉबकार्ड बनवाने का आवेदन लिखें और उस पर उन मजदूरों का नाम और हस्ताक्षर करायें जो जॉबकार्ड बनवाना चाहते है। फिर इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को दें । आवेदन पत्र देने की रसीद जरूर ले लें । यदि आप आवेदन लिखना नहीं जानते हैं तो यह जिम्मेदारी खण्ड विकास अधिकारी की है कि वह स्वयं या अपने सहयोगी से आपका जॉबकार्ड बनाने का फार्म भरे और फोटो खिचवाकर लगवाये । आपको अपने पास से फोटो का पैसा नहीं देना होगा । आपका जॉबकार्ड जब बन जायेगा तो आपको सूचित या आपके घर पहुंचा दिया जायेगा ।

जॉबकार्ड बनने के बाद आप एक आवेदन काम के लिए लिखें और उस पर भी उन मजदूरों का नाम, हस्ताक्षर समेत लिखें जो काम करना चाहते हैं और इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को प्राप्त करा दें साथ में प्राप्ति रसीद जरूर ले लें यह रसीद आप को काम न मिलने के बाद मजदूरी भत्ता दिलाने के लिए मदद करेगी। यदि आपको काम का आवेदन देने के 15 दिनों तक काम नहीं मिलता है तो आप मजदूरी भत्ता पाने के हकदार उस तारिख से हो जायेगें जिस तारीख में आपने काम के लिए आवेदन/अर्जी दी है । यह भत्ता मजदूरी का एक चैथाई यानी 25 रूपये 30 दिनों तक मिलेगा इसके बाद भी काम न देने पर यह भत्ता एक चैथाई से बढ़कर मजदूरी का आधा यानी 50 रूपये प्रतिदिन हो जायेगा और यह तब तक मिलेगा जब तक काम नहीं मिलता है । इस कानून में यह भी प्रावधान है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूर अपने खेतों को सुधारने के लिए भी आवेदन कर सकते हैं और उन्हें भी पूरी मजदूरी यानी 100 रूपये मिलेंगें । इसमें महिला, पुरूष, विकलांग, बृद्ध भी काम कर सकते हैं और उन्हें भी 100 रूपये ही मजदूरी मिलेगी । इसमें अन्य योजनाओं की अपेक्षा अनेक सुविधाएं भी हैं जो मजदूरी करने वाले मजदूर के लिए उपयोगार्थ हैं जैसे-छाया, पानी, आंगनबाड़ी, चिकित्सा, मुआवजा आदि ।

अब बात आई कि जॉबकार्ड तो प्रधान जी के पास है उन्हें हम कैसे लें । तो मैंने बताया कि जॉबकार्ड प्रधान, ग्राम पंचायत मित्र, सचिव या कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल नहीं रख सकता है सिवाय मजदूर के ! और अगर आपके जॉबकार्ड प्रधान के पास हैं तो आप धारा 25 के तहत प्रधान के खिलाफ एफ0आई0आर0 कर सकते हैं । रही बात काम के समय की तो आप जब अपने कृषि कामों से खाली हों तो आप काम का आवेदन देकर काम मांग सकते हैं और आपको काम मिलेगा । अब मजदूरी का पैसा आपके बैंक खाते में आयेगा अगर मजदूरी नहीं मिलती है तो आप सीधे ग्राम्य विकास आयुक्त से इसकी शिकायत कर सकते हैं ।

यह मीटिंग करीब दोपहर से शुरू होकर शाम 5 बजे तक चली तथा इसी के साथ गांव का भ्रमण भी किया गया । इस मीर्टिग में शकील अहमद, जाबिर अली, रमेश, सूर्यप्रताप, गप्पू, विजय, राजू, रामप्रसाद, जितेन्द्र, नीरज तिवारी, रामू, रामकुमार, रामस्वरूप, रामभरोसे, बलिराम, मैनुद्दीन, आदित्य, अनिल, साज़िद अली, निसार अहमद, संजय, केशन, विमलेश तिवारी, सहित गांव के तमाम लोग मौजूद थे ।

अब सवाल यह है कि यह जिम्मेदारी किसकी है जो इन मजदूरों को नरेगा कानून के विषय में बताये और इसे लागू करवाये ताकि यह भी प्रधान के पैर पड़ने की बजाय काम और कानून के पैर पड़े जिनसे इनका पेट भर सके इनकी जीविका चल सके और गुलामी का दाग इनके बदन से छूटे ! उपरोक्त सवाल करने के साथ ही मैं ही इसका जवाब, लोगों से अपील करने के साथ देना चाहता हूँ कि यह जिम्मेदारी हमारी लोगों यानी पढ़े लिखे और कानून जानकारों और मजदूरों के संगठित होने की है जो इतना जानते हुए कि यह देश किसी अमीर से नहीं बल्कि इन्हीं मजदूरों के संगठन से ही विजयी हुआ था, विजयी होता रहा है और विजयी होता रहेगा । जिस तरह हम मजदूर लोग मिलकर किसी सरकार को बना सकते हैं तो उसी तरह हम इसे गिरा भी सकते हैं । बस जरूरत है तो सिर्फ हौसला आफजाई करने वालों की, समाजसेवियों की, समाज के जागते हुए लोगों की, जो इनकी खोपड़ी और दिल से यह भरम निकालें कि यह कानून नेताओं, सरकारी कर्मचारियों का नहीं जो हमारे नौकर हैं बल्कि काम करने वाले मजदूरों का हक है न कि प्रधान की रहमत !

लेखक: आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वालेगरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं|
chunnilallko@gmail.com, मो० ०९८३९४२२५२१