विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों का मानना है कि शिक्षा के नाम पर हम लोगों को हमेशा छला गया है क्योंकि जो भी अधिनियम हम गरीब लोगों का नाम लेकर बनाया तो जाता है पर उस अधिनियम के माध्यम से हम लोगों को कुछ नहीं मिलता है सिर्फ भेदभावपूर्ण व मंहगी शिक्षा, मंहगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, बेघर, प्रताड़ना (पुलिस की, सरकार अफसरों और नेताओं तथा अमीर समाज की)। हमारा प्रदर्शन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गए शिक्षा अधिनियम के खिलाफ है क्योंकि यह अधिनियम शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त पक्षपात को बनाये रखता है जो भविष्य में अमीर और गरीब के बीच भेदभाव को पनपाता है। सरकार ने अपनी शिक्षा व्यवस्था को संसाधन के अभाव में साल-दर-साल जानबूझ कर नजरंदाज किया है जिससे कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था अवमानक होकर रह गया है और निजी शिक्षा व्यवस्था को पनपने का मौका मिला है। वर्त्तमान में जो शिक्षा अधिकार अधिनियम है वह शिक्षा के निजीकरण को ही बढ़ावा देता है।
इन लोगों ने बताया कि हमारी मांगे हैं-
1. वर्त्तमान शिक्षा अधिकार अधिनियम, २००९, को निरस्त किया जाए!
2. एक नया अधिनियम लाया जाए जो समान शिक्षा व्यवस्था को लागु करे!
3. पड़ोस के स्कूल के सुझाव को अंजाम दें!
4. शिक्षा के लिए बजट को बढ़ा कर जी.डी.पी का ६ प्रतिशत कर देना चाहिए जिससे कि सबको शिक्षित करने के लिए पर्याप्त संसाधन हों!
इनकी मांगें ही इनका नारा बन गयी हैं जो सरकार के खिलाफ एक लाठी का काम करती हैं-
- जब गरीब ७५% हैं, तो निजी स्कूलों में उनके लिए आरक्षण सिर्फ २५% क्यो?
- सरकारी अधिकारीयों एवं राजनीतिक दलों के नेताओं के बच्चे आख़िर सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ते?
- समान शिक्षा व्यवस्था को लागु करो!
- पड़ोस के स्कूल सुझाव को लागू करो!
- जो शिक्षा व्यवस्था भेदभाव करता हो, उसको हटाओ!
- शिक्षा के निजीकरण को रोको!
- सबके लिए निष्पक्ष शिक्षा व्यवस्था को कायम करो!
उपरोक्त मांगों और नारों के साथ ही प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया गया है। जो इस प्रकार है-
ज्ञापन
दिनांकः 19 सितम्बर, 2009
सेवा में: आदरणीय मनमोहन सिंह जी
प्रधान मंत्री, भारत सरकार
नई दिल्ली
विषयः मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009, का विरोध।
माननीय मनमोहन सिंह जी,
हम हाल ही में आपकी सरकार द्वारा पारित मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम का विरोध करते हैं
क्योंकिः
1. यह कानून भारत में भेदभावपूर्ण शिक्षा व्यवस्था, जिसमें अमीरों व गरीबों के बच्चों के लिए दो अलग किस्म की व्यवस्थाएं अस्तित्व में हैं, को बरकरार रखेगा।
2. यह कानून शिक्षा के निजीकरण के एजेण्डे को बढ़ावा देगा।
हमारी मांग है किः
1. वर्तमान कानून को वापस लेकर एक नया कानून लाया जाए जो समान शिक्षा प्रणाली तथा पड़ोस के विद्यालय की अवधारणा को लागू किया जाए।
2. शिक्षा का बजट बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत किया जाए।
3. शिक्षा का निजीकरण रोका जाए। सभी के लिए एक जैसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सरकारी खर्च पर उपलब्ध होनी चाहिए।
उम्मीद है आप देश के गरीब बच्चों को निराश नहीं करेंगे।
इस धरने में एस0आर0दारापुरी(राज्य समन्वयक, जन आंदोंलनों का राष्ट्रीय समन्वय और लोक राजनीति मंच), चुन्नीलाल (जिला समन्वयक, आशा परिवार, लखनऊ), उर्वशी शर्मा, शहजहा, हिमांशु, महेन्द्र, आशीष श्रीवास्तव, किरण, मुन्नालाल, अखिलेश सक्सेना, कृष्णा, सत्तन, मुबारक अली, झगडू, सुरेश, समैदीन, श्यामलाल समेत लगभग 60 लोग शामिल हुए। यह धरना दिन के 11 बजे से शाम 2 बजे तक चला। उपरोक्त ज्ञापन को सिटी मजिस्ट्रेट को सौपने के साथ ही इस धरने का समापन हुआ।
रिपोर्टर:- आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं|
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