अंतर्राष्ट्रीय उपचार समिति में प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त आमंत्रित
विश्व की प्रतिष्ठित तम्बाकू शोध संस्था ने लखनऊ के वरिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शल्य-चिकित्सक/ सर्जन एवं तम्बाकू नियंत्रण में लगे हुए चिकित्सक प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त को अपनी उपचार समिति में आमंत्रित किया है. प्रोफ० रमा कान्त पहले भारतीय हैं जो इस उपचार समिति में आमंत्रित किये गए हैं.
प्रोफ० रमा कान्त - लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं और पहले भारतीय सर्जन हैं जिनको विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से २००५ में सम्मानित किया था.
प्रो० रमा कान्त को उपचार समिति में निमंत्रण जिनेवा स्विट्जरलैंड चिकित्सा विश्वविद्यालय के डॉ जीन फ़्रन्कोइस एत्टर ने बधाई के साथ दिया. डॉ एत्टर अम्रीका स्थित "सोसाइटी फॉर रिसर्च ऑन निकोटीन एंड टोबाको" (एस.आर.एन.टी) की उपचार समिति के अध्यक्ष हैं.
"अब यह शोध-द्वारा स्थापित हो चुका है कि तम्बाकू सेवन एवं तम्बाकू के धुए को परोक्ष रूप से भी श्वास द्वारा लेने से जान-लेवा बीमारियाँ और मृत्यु तक हो सकती है. गर्भवती महिलाओं द्वारा परोक्ष धूम्रपान से गर्भस्थ शिशु तक पर कुप्रभाव पड़ता है. परोक्ष धूम्रपान से व्यस्कों में ह्रदय रोग एवं फेफडे का कैंसर का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है. तम्बाकू सेवन का कोई भी 'सुरक्षित स्तर' नहीं है - इससे पहले कि तम्बाकू सेवन जान लेवा बने, सभी तम्बाकू सेवानियों को यह घातक नशा त्याग देना चाहिए" कहना है प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का, जो छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय की तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक के अध्यक्ष हैं.
"तम्बाकू नशा उन्मूलन में मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली को ही लगाना चाहिए. एक लघु-कालीन परीक्षण के साथ जन-स्वास्थ्य में लगे लोग, जिनमें चिकित्सक, चिकित्सा छेत्र से जुड़े हुए अन्य कर्मी जैसे कि नर्स, छात्र, आदि, तम्बाकू नशा उन्मूलन में एक सक्रिय योगदान दे सकते हैं" कहना है प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का.
भारत में लगभग १० लख लोग हर साल तम्बाकू जनित मृत्यु का शिकार होते हैं. प्रतिदिन २५०० लोगों की मृत्यु भारत में तम्बाकू के कारण होती है. तम्बाकू नि:संदेह महामारी का रूप ले चुकी है और तम्बाकू नशा उन्मूलन प्रयासों को सशक्त करने के साथ-साथ जागरूकता कार्यक्रम भी बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे कि बच्चे और युवा तम्बाकू सेवन आरंभ ही न करें, कहना है प्रो० डॉ रमा कान्त का।