भ्रष्ट एवं अपराधी उम्मीदवारों को अस्वीकार करें

[English] भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में एक सवाल खड़ा हुआ है। चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा तय खर्च सीमा से बहुत ज्यादा पैसा खर्च किया जाएगा। वर्तमान में हो रहे विधान सभा चुनावों में सभी बड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशी औसतन एक करोड़ से अधिक खर्च करेंगे। हाल ही में एक टी.वी. चैनल द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में तो कुछ उम्मीदवारों ने बताया कि वे इससे कई गुणा अधिक खर्च करेंगे। जबकि खर्च सीमा है सोलह लाख रुपए। जाहिर है कि सोलह लाख के ऊपर जो भी खर्च होगा वह भ्रष्टाचार का पैसा है, वह काला धन है। यानी हमारी राजनीतिक व्यवस्था की नींव में ही भ्रष्टाचार है। अब हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि ऐसे जन प्रतिनिधि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सख्त कानून बनाएंगे?

मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पांडे जो लोक राजनीति मंच और सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े हैं, उन्होने बताया कि: वर्तमान संसद में तीन सौ के ऊपर सांसद करोड़पति हैं और डेढ़ सौ के ऊपर के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। क्या वाकई में जनता चाहती है कि ऐसे ही लोग उसके प्रतिनिधि बनें? साफ है कि चुनाव में पैसा व बाहुबल हावी है।

डॉ संदीप पांडे ने कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में यह सवाल खड़ा हुआ है कि हम भ्रष्ट एवं आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर अंकुश कैसे लगाएं। इसका एक तरीका तो फिलहाल जनता के पास है। यदि जनता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है अथवा ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी उसका मत पाने का हकदार नहीं है तो वह धारा 49 (ओ) के तहत फार्म 17 ए मांग कर उस पर अपना मत किसी को न देने की मंशा दर्ज करा सकती है। इस तरह जनता को अवांछनीय प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार तो है लेकिन बहुत सारे लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है। जिनको जानकारी है उन्हें इसका इस्तेमाल करने में दिक्कत आती है क्योंकि फार्म 17 ए आसानी से मतदान केन्द्र पर उपलब्ध नहीं कराया जाता। अधिकारी नहीं चाहते हैं कि जनता इस अधिकार का इस्तेमाल करे। यदि जनता ने बड़े पैमाने पर प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को खारिज करना शुरू कर दिया तो लोकतंत्र या जिसको वे लोकतंत्र मानते हैं खतरे में पड़ जाएगा।

डॉ संदीप पांडे ने कहा कि कायदे से तो जैसे चुनाव आयोग या निर्वाचन अधिकारी विज्ञापन निकाल कर या अन्य जागरूकता हेतु अभियान चला कर जनता को प्रेरित कर रहे हैं कि वह अपने मतदान के अधिकार का इस्तेमाल करे उसी तरह उन्हें जनता को इस बात के लिए भी जागरूक करना चाहिए कि वह भ्रष्ट एवं आपराधिक प्रत्याशियों को धारा 49 (ओ) के तहत दिए गए अधिकार का इस्तेमाल कर खारिज करे। क्यों नहीं अभी तक जनता को यह विकल्प मतपत्र या इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर दिया गया है? यदि इ. वी. एम. पर यह विकल्प जनता को एक बटन के रूप में दिया गया होता तो इस विकल्प का इस्तेमाल करना कितना आसान होता। निश्चित रूप से यदि सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार को सहज रूप से इस्तेमाल करने का विकल्प जनता को दिया जाए तो मतदान प्रतिशत में और बढ़ोतरी हागी। जिस तरह किसी को मत देना हमारा अधिकार उसी तरह सभी को खारिज करना भी हमारा उतना ही अधिकार है। इस मामले में चुनाव आयोग की भूमिका बहुत स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ रही।

सी.एन.एस.