रमदई ने बताया कि सरकार के खाद्यन्न कार्यक्रमों - सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्यांह भोजन व आंगनवाड़ी - को देखें तो काफी कोशिशों के बावजूद इनकी गुणवत्ता एक हद से ज्यादा सुधार पाना मुश्किल होता है। ये सरकार के अन्य कार्यक्रमों की तरह बुरी तरह भ्रष्टाचार का शिकार हो गए हैं और इनके लिए कोई गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। ये मान लिया गया है कि सरकार का पैसा है तो दुरुपयोग तो होना ही है।
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के अतरौली-भरावन क्षेत्र के लालपुर गांव में स्थित आशा आश्रम पर इसीलिए एक लंगर आरंभ हुआ जिसका समन्वयन रमदई करती हैं। प्रतिदिन लगभग ८०-८५ लोग इस लंगर में भोजन करते हैं।
रमदई के तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं, पति वर्षों पहले जीवित नहीं रहे, और कोई आर्थिक जमा-पूँजी भी नहीं है. तब से रमदई मजदूरी आदि कर के किसी तरह से जीवन-यापन कर रही हैं और आशा आश्रम से भी जुड़ी रही हैं.
रमदई बताती हैं कि गावं के लोग कहते हैं कि रमदई के पास न तो घर है न संपत्ति, तब वो कैसे चुनाव लड़ने जा रही हैं?
रमदई ने जीवन में कई परेशानियाँ झेली. प्रक्रिया-तहत निवेदन किये रमदई को २ साल से अधिक अवधि हो गयी है पर उनको अबतक विधवा पेंशन नहीं मिली है. गावं में
कम-से-कम १५ ऐसे मामले हैं जहां लोगों को पेंशन नहीं मिल रही है. उसी तरह, इंदिरा आवास, नाले, खडंजे, आदि जैसे गावं के विकास से जुड़े मुद्दों पर भी रमदई कारवाई चाहती हैं. रमदई कहती हैं कि वो अगर जीत गयीं तो सब निर्णय वो खुली बैठक में ही लेंगी जिसमें गावं और क्षेत्र के सभी लोग भाग ले सकें. वें कहती हैं कि सब लोग जब समर्थन देंगे तब ही वो कार्य कर पाएंगी.
- सी.एन.एस.