‘कारपोरेट’ या उद्योग की राजनीति के खिलाफ जन-पक्षधर राजनीति जरूरी

जन संघर्ष मोचा के लाल बहादुर सिंह जी, जो 7 जनवरी को लखनऊ में हुयी लोक राजनीति मंच की बैठक में भाग ले रहे थे, ने कहा कि हर तरह के अपराध, भ्रष्टाचार और अपराध को इस मजबूरी के नाम पर उचित समझाया गया है कि जनता बहुमत नहीं बना रही है और इसीलिए तमाम तरह के समझौते करे जा रहे हैं. 

लाल बहादुर जी ने कहा कि २००७ में उत्तर प्रदेश की जनता ने गुंडा-राज से त्रस्त हो कर किसी जनवादी विकल्प के अभाव में मायावती जी के नेत्रित्व में बहुजन समाज पार्टी को स्पष्ट बहुमत दी थी. परन्तु उत्तर प्रदेश की हालत पहले से भी खराब हो गयी और भ्रष्टाचार के नए-नए कीर्तिमान गत-वर्षों में स्थापित हुए. आज भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दलित महिलाएं मिल जाएँगी जो अपने सर पर मैला ढोने को मजबूर हैं, यह भी इस प्रदेश की सच्चाई है जहां एक दलित महिला मुख्य मंत्री है. 

लाल बहादुर जी ने कहा कि मायावती जी ने कार्यभार सँभालते ही उत्तर प्रदेश में नयी कृषि नीति लागू की थी परन्तु इसका घोर विरोध हुआ. यह कृषि नीति मूलतः हमारे प्रदेश के गरीब किसानों की जमीनों को उद्योग-वर्ग को देने की बात रखती थी. नयी कृषि नीति की घोषणा होते ही मुकेश अम्बानी के ‘रिलाइंस फ्रेश’ नामक स्टोर जगह-जगह खुलने शुरू हुए ही थे कि व्यापार मंडल ने पुरजोर विरोध करना आरंभ किया. जब बनारस और अन्य जगह पटरी दुकानदारों और व्यापार मंडलों ने पत्थर चलाना और आग लगाना शुरू किया तब संभवतः मायावती जी को लगा कि यह नयी कृषि नीति भारी पड़ेगी और अगले ही दिन उस नयी कृषि नीति को वापस लेने का निर्णय घोषित किया.

लाल बहादुर जी ने कहा कि पिछले दिनों में हमने दिल्ली संसद में देखा कि जब-जब अल्प-संख्यक कांग्रेस सरकार पर खतरा आया तो मायावती और मुलायम दोनों ने ही कांग्रेस को बचाया. चाहे वो भारत-अमरीका परमाणु समझौता रहा हो या महंगाई। अभी हाल ही में सरकारी लोकपल विधेयक पर हुई बहस में मायवती और मुलायम दोनों के दलों ने ‘वाक-आउट’ कर के कांग्रेस सरकार को हरी झंडी दी - यदि वो बहस करते और लोकतान्त्रिक संसदीय प्रक्रिया आगे बढ़ाते तो कांग्रेस सरकार मनमानी नहीं कर सकती थी और या तो वो मजबूत लोकपाल लाने के लिये मजबूर होती या फिर उसको वापस लेना पड़ता. मगर मायावती और मुलायम दोनों के ही दलों ने इसको बचाया. परन्तु उत्तर प्रदेश की जनता के सामने ऐसा प्रतीत कराया जाता है कि दोनों दलों के बीच कोई बड़ा युद्ध चल रहा हो!

लाल बहादुर जी ने कहा कि आंकड़ें बताते हैं कि आजादी के समय उत्तर प्रदेश इतना पिछड़ा हुआ और ‘बीमारू’ राज्य नहीं था. उत्तर प्रदेश तो उस समय के तरक्की-शुदा राज्यों की कतार में था. वहाँ से गिरते-गिरते ४० साल के कांग्रेस-सरकार के राज्य काल में उत्तर प्रदेश ‘बीमारू’ राज्य की श्रेणी में पहुँच गया.

यह ‘कारपोरेट’ या उद्योग की राजनीति जो आजकल व्याप्त है, वो न केवल जन विरोधी है बल्कि लोकतंत्र विरोधी भी है. लाल बहादुर जी ने कहा कि ‘कारपोरेट’ या उद्योग की राजनीति की जरूरत है लोकतंत्र का खात्मा या लोकतंत्र की हत्या. इसलिए जन-विरोधी और लोकतंत्र विरोधी ‘कारपोरेट’ या उद्योग की राजनीति के खिलाफ जन-राजनीति या जन-पक्षधर राजनीति की जरूरत है.

लाल बहादुर जी ने कहा कि जो जन-पक्षधर पार्टियाँ हैं, उनको एक साथ आ कर के सामाजिक बदलाव, जो हम सभी का दूरगामी लक्ष्य है, के लिए इक्ठ्ठे प्रयासरत रहना चाहिए। उन सब के लिये चुनाव भी एक हथियार है, जितना भी हम को वोट मिलेगा, जितने भी हमारे साथी आगे बढ़ेंगे, उतनी ही जनता की ताकत आगे बढ़ेगी समाज में. इस तरह का एक प्रयोग पहले भी हुआ है जिसमें जन संघर्ष मोर्चा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल, सोशलिस्ट पार्टी, आदि शामिल रहे हैं। लाल बहादुर जी ने कहा कि संदीप पाण्डे जी का जनवादी आन्दोलन के लिये हमेशा से समर्थन रहा है।

आगामी फरवरी 2012 विधान सभा चुनाव में लोक राजनीति मंच 6 उम्मीदवारों को समर्थन दे रहा है जिनका विवरण पृष्ठ संख्या 2 पर दिया गया है। 

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.