गैर-संक्रामक रोग महामारी पर विराम लगाने के लिए ज़मीनी नेत्रित्व ज़रूरी

[English] एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के अनेक देशों के स्थानीय निर्वाचित नेताओं ने घोषणापत्र पारित किया कि तम्बाकू नियंत्रण और गैर संक्रामक रोग महामारी पर अंकुश लगाने के लिए मज़बूत कदम उठाये जायेंगे. "एपी-कैट" के तीसरे समिट में 12 देशों के 30 शहरों से आये ज़मीनी नेताओं, जैसे कि, महापौर, राज्यपाल, उप-महापौर, उप-राज्यपाल, अन्य स्थानीय सरकारी अधिकारी, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, आदि, ने यह घोषणापत्र सिंगापुर में जारी किया.

कब होगा एड्स उन्मूलन? जब सभी एचआईवी पॉजिटिव लोग सामान्य ज़िन्दगी जी सकें और नया-संक्रमण दर शून्य हो

जैसे कि चेन की सबसे कमज़ोर कड़ी ही उसकी ताकत का मापक होती है, वैसे ही, जन स्वास्थ्य का मापक भी उसके सबसे कमज़ोर अंश होते हैं. स्वास्थ्य सुरक्षा का सपना तभी पूरा होगा जब सबसे पिछड़े और समाज के हाशिये पर रह रहे लोग स्वस्थ रहेंगे. यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) दिवस पर यह सत्य दोहराना ज़रूरी है क्योंकि हर इंसान के लिए यूएचसी की सुरक्षा देने का वादा पूरा करने के लिए अब सिर्फ 12 साल शेष हैं. भारत सरकार समेत 193 देशों की सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा किया है जिनमें यूएचसी शामिल है.

घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए क्यों ज़रूरी है वेतनभोगी अवकाश?

[English] 25 नवंबर को महिला हिंसा को समाप्त करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के उपलक्ष्य पर, सरकारी सेवायें प्रदान कर रहे श्रमिक यूनियनों ने एक अभियान को आरंभ किया जिसकी मुख्य मांग है: घरेलू हिंसा से प्रताड़ित महिला को वेतनभोगी अवकाश मिले जो उसको न्याय दिलवाने में सहायक होगा. स्वास्थ्य को वोट अभियान और आशा परिवार से जुड़ीं महिला अधिकार कार्यकर्ता शोभा शुक्ला ने कहा कि हिंसा और हर प्रकार के शोषण को समाप्त करने के लिए, श्रम कानून और नीतियों में जो बदलाव ज़रूरी हैं, उनमें यह मांग शामिल है.

सिर्फ 26 महीने शेष: क्या एड्स के 90-90-90 लक्ष्य पूरे हो पाएंगे?

[English] [विडियो] [फोटो] बेंगलुरु में भारत के एचआईवी/एड्स से सम्बंधित चिकित्सकों के राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग ले रहे देश और विदेश के वरिष्ठ विशेषज्ञों के अनुसार, एड्स नियंत्रण में प्रशंसनीय प्रगति तो हुई है परन्तु न तो यह 2020 तक 90-90-90 लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त है और न ही यह 2030 तक एड्स समाप्त करने के लिए.

आखिर क्यों सरकारें तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाने में हैं विफल?

[English] तम्बाकू के कारण 70 लाख से अधिक लोग हर साल मृत और अमरीकी डालर 1004 अरब का आर्थिक नुक्सान होने के बावजूद भी, सरकारें क्यों इस महामारी पर अंकुश नहीं लगा पा रही हैं? भारत सरकार समेत 193 सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा तो किया है पर विशेषज्ञों के अनुसार, बिना तम्बाकू महामारी पर विराम लगाए सतत विकास मुमकिन नहीं है.

एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) के कारण क्या दवाएं बेअसर और रोग लाइलाज हो रहे हैं?

शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
[English] हाल ही में टीबी (तपेदिक) पर हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की उच्च स्तरीय बैठक में यह सर्व-सम्मति से माना गया कि टीबी (तथा दवा प्रतिरोधक टीबी), जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस या एएमआर) का सबसे सामान्य और विकराल उदाहरण है, विश्व की सबसे अधिक जानलेवा संक्रामक बीमारी है.

जो उद्योग तम्बाकू महामारी के लिए जिम्मेदार हो, उसकी जन स्वास्थ्य में कैसे भागीदारी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 में महानिदेशक डॉ मार्गरेट चैन ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि बैठक में सरकारों से कहा था कि "लोमड़ी को मुर्गों की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी न दें".

हिमशिला की नोक? सिर्फ़ स्वास्थ्य ही नहीं, सतत विकास को भी कुंठित करता है तम्बाकू

[English] प्रति वर्ष 70 लाख से अधिक लोग तम्बाकू के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं. ज़रा ध्यान से सोचें: हर तम्बाकू जनित रोग से बचा जा सकता है और हर तम्बाकू जनित असामयिक मृत्यु को टाला जा सकता है। तम्बाकू उद्योग ने यह जानते हुए भी कि उनका उत्पाद जानलेवा है, न केवल अपने बाज़ार को बढ़ाया बल्कि विश्वभर में पर्वतनुमा तम्बाकू महामारी को भी अंजाम दिया।

क्या "सिम्प्लिसिटीबी" शोध से टीबी उपचार सरल बनेगा?

[English] विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) रिपोर्ट के अनुसार, टीबी दवा प्रतिरोधकता (ड्रग रेजिस्टेंस) अत्यंत चिंताजनक रूप से बढ़ोतरी पर है । यदि किसी दवा से रोगी को प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाए तो वह दवा रोगी के उपचार के लिए निष्फल रहेगी। टीबी के इलाज के लिए प्रभावकारी दवाएँ सीमित हैं। यदि सभी टीबी दवाओं से प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाए तो टीबी लाइलाज तक हो सकती है। हर साल टीबी के 6 लाख नए रोगी टीबी की सबसे प्रभावकारी दवा 'रिफ़ेमपिसिन' से प्रतिरोधक हो जाते हैं और इनमें से 4.9 लाख लोगों को एमडीआर-टीबी होती है (एमडीआर-टीबी यानि कि 'रिफ़ेमपिसिन' और 'आइसोनीयजिड' दोनों दवाओं से प्रतिरोधकता)।

बिना स्वस्थ पर्यावरण के जन-स्वास्थ्य मुमकिन नहीं


[English] पर्यावरण के निरंतर पतन से जन स्वास्थ्य को भी चिंताजनक क्षति पहुँच रही है। डॉ ईश्वर गिलाडा जो पर्यावरण और श्वास-सम्बंधी रोगों पर हो रहे 24वें राष्ट्रीय अधिवेशन (नेसकॉन 2018) के सह-अध्यक्ष हैं ने कहा कि यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्य पूरे करने हैं तो पर्यावरण और श्वास सम्बंधी रोगों में अंतर-सम्बंध को समझना ज़रूरी है.

एड्स कार्यक्रम में ढील से ख़तरे में पड़ेंगी अबतक की उपलब्धियाँ

(सीएनएस) नीदरलैड्स में सम्पन्न हुए 22वें अंतरराष्ट्रीय एड्स अधिवेशन (एड्स 2018) के एक सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि पिछले 15 सालों में एड्स कार्यक्रम ने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। भारत सरकार अन्य 194 देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा 2015 में सतत विकास लक्ष्य हासिल करने का वादा भी कर चुकी है जिसमें 2030 तक  एड्स समाप्ति शामिल है (एड्स से मृत्यु दर और नए एचआईवी संक्रमण दर, दोनों शून्य हों; और सब एचआईवी पॉज़िटिव लोगों को एंटीरेट्रोवाइरल (एआरवी) दवा मिले और उनका वाइरल लोड नगण्य रहे)।

राजनीति और टीबी: क्या है सम्बन्ध?

हाल ही में टीबी रोग से सम्बंधित एक जो सबसे सटीक टिप्पणी लगी वह ट्विटर पर ‘लैन्सेट’ (विश्व-विख्यात चिकित्सकीय शोध पत्रिका) के मुख्य सम्पादक, रिचर्ड होर्टन, की रही। डॉ रिचर्ड होर्टन ने कहा कि हम कितने स्वस्थ हैं यह अंतत: राजनीति से तय होता है। राजनीतिक निर्णयों का सीधा असर इस बात पर पड़ता है कि आम जनता कितनी स्वस्थ रहे। जनता द्वारा चुने हुए राजनीतिक प्रतिनिधियों को ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए कि लोकतंत्र में ऐसा क्यों है कि समाज में अमीरों को उच्चतम स्वास्थ्यसेवा मिलती है परंतु अधिकांश जनता बुनियादी सेवाओं के अभाव में ऐसी ज़िन्दगी जीने को मज़बूर है कि न केवल उनके अस्वस्थ होने की सम्भावना बढ़ती है बल्कि ज़रूरत पड़ने पर स्वास्थ्य सेवा भी जर्जर हालत वाली मिलती है (यदि मिली तो)।

तम्बाकू एक ज़हर

डा0 सूर्य कान्त, सीएनएस स्तंभकार 
तम्बाकू आज के समय में फैल रही अधिकांश बीमारियों के पीछे एक बड़ा कारण है। इस की लत का प्रसार एक दुर्दम महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे हालात में तम्बाकू से निर्मित उत्पादों के सेवन से न केवल  व्यक्तिगत, शारीरिक, एवं बौद्धिक ह्रास हो रहा है, अपितु समाज पर भी इसके दूरगामी, व्यक्तिगत, सामाजिक, एवं आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देने लगे है। 16 वीं शताब्दी में अकबर के शासन मे पुर्तगाली पहली बार तम्बाकू ले कर भारत आये थे। जहाँगीर के शासनकाल मे इसके उपभोग को नियंत्रित करने के लिए इस पर भारी मात्रा पर कर लगाये गये। परंतु सदियां बीत गयी तम्बाकू व्यापार और उपभोग पर लेश मात्र भी अंकुश न लगा।

अस्थमा (दमा) नियंत्रण में सहायक है योग

सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
प्रोफेसर सूर्यकांत
लखनऊ विश्वविद्यालय के सहयोग से तथा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सूर्यकांत के मार्गदर्शन में किए गए एक शोध अध्ययन में पाया गया कि प्रमाणित चिकित्सीय उपचार के साथ प्रतिदिन तीस मिनट के योगाभ्यास के द्वारा अस्थमा रोगियों के एंटीऑक्सीडेंट के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है,  फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार आता है, तथा दवा की खुराक कम हो जाती है, जिसके चलते उनके दैनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है । प्रत्येक वर्ष एक मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। अस्थमा श्वास नली या फेफड़ों के वायुमार्ग की एक दीर्घकालिक बीमारी है। श्वास नली के द्वारा हवा फेफड़ों के अंदर और बाहर आती-जाती है।

विश्व भर में तीसरा सबसे बड़ा मलेरिया दर भारत में: पर 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का दावा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में तीसरा सबसे अधिक मलेरिया दर भारत में है. भारत में 1 करोड़ 80 लाख लोगों को हर वर्ष मलेरिया रोग से जूझना पड़ता है. पिछले अनेक सालों में, भारत ने मलेरिया नियंत्रण के लिए प्रगति तो की पर चुनौतियाँ भी जटिल होती गयीं. भारत सरकार ने 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का वादा किया है. एशिया पैसिफ़िक देशों के प्रमुखों ने जब 2030 तक समस्त एशिया पैसिफ़िक से मलेरिया उन्मूलन करने का आहवान किया तो भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी उनमें शामिल थे. हाल ही में लन्दन में संपन्न हुई “कामनवेल्थ हेड्स ऑफ़ गवर्नमेंट” मीटिंग में, भारत समेत अन्य देशों ने वादा किया कि, 2023 तक सभी 53 कामनवेल्थ देशों से, मलेरिया दर को आधा करेंगे. भारत सरकार ने मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय फ्रेमवर्क (2016-2030) को फरवरी 2016 में जारी किया था जो मलेरिया-मुक्त भारत के लिए सरकारी परियोजना है.

३२ माह में कैसे पूरे करेंगे एचआईवी/ एड्स नियंत्रण के 90:90:90 लक्ष्य?

उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई, जो एचआईवी चिकित्सकों का राष्ट्रीय समूह है) के दल से भेंट की जिसका नेतृत्व कर रहे थे एएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा और संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर (डॉ) तपन एन ढोल. डॉ गिलाडा ने बताया कि एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी संक्रमण नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य मंत्री को सुझाव दिये हैं और साथ ही एएसआई के चिकित्सकों/विशेषज्ञों की सेवाएँ नि:शुल्क प्रदान करने का आश्वासन भी दिया. 1986 में जब भारत में पहला एचआईवी से संक्रमित रोगी चिन्हित हुआ, तब जो डॉक्टर सबसे पहले इलाज और देखभाल के लिए आगे बढ़ कर आये उनमें से प्रमुख थे डॉ ईश्वर गिलाडा.

केवल न्यूनतम आय ही नहीं, अधिकतम आय सीमा भी तय हो

शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत, डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
[English] यह तो सामान्य बात है कि अनेक सरकारी चिकित्सकों के संगठन अपना वेतन बढ़वाने की माँग करते रहते हैं। यह भी अक्सर देखने में आता है कि कुछ चिकित्सक, ज्यादा पैसे कमाने के लोभ में, अवसर पाते ही सरकारी स्वास्थ्य सेवा छोड़ कर, विदेशी या देशी, निजी या कॉर्पोरेट अस्पताल में पलायन कर जाते हैं। पर कनाडा के चिकित्सकों द्वारा चलाये जा रहे एक अनूठे अभियान ने पुनः विश्वास दिलाया है कि सैकड़ों चिकित्सक आज भी स्वास्थ्य सेवा को ‘सेवा’ मानते हैं, न कि एक व्यवसायिक कारोबार।