नाम गरीब का, काम अमीर का

नाम गरीब का, काम अमीर का
चुन्नीलाल

वाह रे! सरकार, वाह रे! सरकारी तंत्र | सब के सब खून चूसने में लगे हैं | चूसते रहो | क्योंकि गरीब ही वह भगवान है जिसका खून उसके घर में खटमल से लेकर इन्सान की शक्ल में छुपे बड़े खटमल तक चूसते हैं | अब आगे देखो किस तरह ये खटमल गरीबों का खून चूसते हैं |

कोई किसी का नाम ले या न ले लेकिन, सरकार और सरकारी तंत्र इन गरीबों का जरुर ध्यान रखते हैं और इन्हें गरीब बनाने में पूरी मदद करते हैं | कोई भी योजना देख लीजिये, सारी योजनाओं में इन गरीबों, आवासहीनों, बेरोजगारों, बेसहारों, विकलांगों, वृद्धों, विधवाओं का नाम जरुर बड़ी सिद्दत के साथ लिखा होगा और मंत्री जी भी बड़े आदर से इनका नाम लेते नहीं थकते हैं क्योंकि उनके मुंह में राम, बगल में छूरी रहती हैं | अब आप "अपना घर" योजना जो लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ की है | जिसमें दुर्बल आय वर्ग, जिसकी आय ३९,००० रु० वार्षिक है, के लिए ३० वर्ग मीटर का मकान जिसकी लागत २.५० लाख रूपये है और अल्प आय वर्ग जिसकी आय ७२,००० रु० वार्षिक है, के लिए ५० वर्ग मीटर का मकान जिसकी लागत ५.५० लाख रु० है |

अब आप सोंच सकते हैं कि यह मकान कोई गरीब खरीद सकता है जिसकी आय उसका परिवार चलाने भर के लिए पर्याप्त नहीं हैं | गरीब को एक रोटी तो ठीक से मिल नहीं पाती जिससे उसको जीवन मिलेगा तो, मकान क्या आत्महत्या करने के लिए लेगा ? क्योंकि वह इसका पैसा चुका नहीं सकता और आखिर में कर्ज से तंग आकार उसे आत्महत्या ही करनी पड़ेगी | इसके बाद ही सरकार उसका ब्याज माफ़ करेगी, उसके पहले नहीं ! जिस मकान की उसे जरूरत है वह तो अभी बने नहीं हैं या अर्धनिर्मित हैं | उन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है | यह सब सोंची समझी चाल है | जिन लोगों को खुले असमान के नीचे अपनी जिंदगी, अपने परिवार के साथ, जिसमें छोटे-छोटे बच्चे, बूढे हैं, काट रहे हैं | जहाँ पानी तक मिलना मुस्किल है जिसके बिना जीवन चलन मुस्किल है | उनके लिए कोई ध्यान नहीं है ध्यान है तो बस, गरीबों का नाम लेकर अमीरों का काम करना |

यह ऐसा जाल है जिसे समझ पाना बहुत ही मुस्किल काम है | गरीब को और गरीब बनाये रखना चाहते हैं ताकि अपना काला धंधा इन्ही लोगों के नाम पर चलाते रहें | उनको मालूम है कि यह मकान गरीब नहीं खरीद सकता है तो ला-मुहाला अमीर ही इसका प्रयोग करेगा क्योंकि वही इसका भुगतान और गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड लगाकर हक़दार बनेगा | इसके बाद घोषणा होगी कि सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय | यानी सबको मकान मिल गए हैं कोई दुखी नहीं है सब पक्के और मंजिल दार शहरी आवासों में ए.सी. में विश्राम कर रहे हैं, लेकिन दिल से आवाज यह आवाज हमेशा आती होगी कि केवल गरीब को छोड़ कर | क्योंकि गरीब का बना रहना बड़ा जरुरी है क्योंकि अपनी रोटी तो उसी की पीठ पर सेंकना है | इसीलिए सच कहा गया है कि नाम गरीब का, काम अमीर का !

लेखक - चुन्नीलाल ( आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं)
chunnilallko@gmail.com

नरेगा (NREGA) में खुदाई के मानक की प्रधान ने उड़ाई धज्जियां

नरेगा (NREGA) में खुदाई के मानक की प्रधान ने उड़ाई धज्जियां

नरेगा (NREGA) के तहत चल रहे कार्य में ग्राम पंचायत मंधना बगदौधी बांगर के ग्राम प्रधान राजू दिवाकर ने खुदाई के मानक की धज्जियां उड़ा कर रख दी है। ग्राम पंचायत मंधना बगदौधी बांगर के रामनगर मजरा में पिछले कुछ दिनों से नरेगा (NREGA) के तहत 35 मजदूरों द्वारा तलाब खुदाई का काम किया जा रहा है। कई दिनों से प्रधान मजदूरों से 80 से 90 फुट मिट्टी खोद कर करीब 120 फुट दूर फेंकने के लिए दबाव बना रहा था। कल 25 अगस्त को जब मजदूर काम पर पहुंचे तब प्रधान ने उनसे कहा कि अगर 80 से 90 फुट मिट्टी खोदोगे तभी काम होगा नहीं तो आज से काम बन्द। मजदूरो ने कहा कि जब ग्राम्य विकास विभाग ने 72 से 75 घन फुट मिट्टी निकाल कर 50 फुट दूर तक मिट्टी फेंकने का मानक तय किया हुआ है, तब आप मानक क्यों बदल रहे हैं। हम लोग इसी मानक पर काम करेगें। प्रधान राजू दिवाकर ने तालाब का काम बन्द करके मजदूरों को कह दिया कि आज से अब काम बन्द अब कोई काम नहीं होगा। अगर तुम लोग 80 से 90 फुट काम करोगे तभी अब काम मिलेगा नहीं तो किसी को कोई काम नहीं मिलेगा। जिससे चाहो जाकर हमारी शिकायत कर दो मगर मै काम नहीं दूंगा। उस तलाब में नरेगा (NREGA) के तहत काम कर रहे मजदूर राम कुमार कुरील और उनके साथियों ने यह भी बताया कि यहां पर कराये जा रहे कार्य में भ्रष्टाचार के साथ-साथ बहुत अनियमिततायें बरती जा रही है। नरेगा (NREGA) के तहत कराये जा रहे काम में अपने गांव में मेट के होते हुए भी उनको मेट का काम न देकर दूसरे ग्राम पंचायत के आदमी को मेट पर रखते हैं। 20 दिन काम के हो जाने के बावजूद अभी तक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। कार्य स्थल पर न दवा न पानी कोई सुविधा नहीं रहती है। कार्य स्थल पर कार्य के दौरान मस्टर रोल भी नहीं रखा जाता है। प्रधान राजू दिवाकर ने करीब 25 फर्जी जाब कार्ड बनाकर रखे हैं | जो कभी काम करने नहीं आते हैं उनके नाम पर नरेगा (NREGA) का काम दिखाकर उन्हे कुछ पैसे देकर सारा प्रधान अपने पास रख लेता है। मजदूर राम कुमार कुरील ने दो व्यक्तियों श्री कान्त चैहान और रज्ज्न सिंह के बारे में बताया कि प्रधान ने इनके नाम पर फर्जी जाब कार्ड बनाकर रखे है और इनके नाम पर भुगतान करते है जबकि ये लोग आज तक कभी नरेगा (NREGA) में काम नहीं किये है। सभी मजदूर मिलकर इस अन्याय के खिलाफ लड़ने का तय किया है और अपना हक लेने के लिए संघर्ष करने का तय किया है। आज एक तरफ जहां सरकारें आम जन मानस के दबाव के आगे नरेगा (NREGA) कानून में और सहूलियत लाने के साथ-साथ नरेगा (NREGA) में काम के 100 दिन से बढ़ा कर 365 दिन करने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ राजू दिवाकर जैसे भ्रष्ट प्रधान आम जनता के पसीने की कमाई को लूटकर अपना पेट भरने की जुगत लगा रहे हैं।

रिपोर्ट : महेश और शंकर सिंह
"आशा परिवार"कानपुर
(लेखक: आशा परिवार जन संगठन के वरिष्ठ कार्यकर्ता और सी.एन.एस के स्तम्भ लेखक हैं |)

तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनियों का अनुपालन सख्ती से नहीं

तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनियों का अनुपालन सख्ती से नहीं

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के १५ मार्च २००८ को जारी निर्देश के अनुसार ३१ मई २००९ के बाद पूरे देश में तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी लगाना कानूनन जरूरी हो गया है.

परन्तु एक जनता जांच के दौरान यह ज्ञात हुआ कि भारत में जगह जगह (जिनमें लखनऊ शामिल है) तम्बाकू उत्पादनों पर सख्ती से चित्रमय चेतावनी नहीं लगायी जा रही हैं और इस सरकारी निर्देश का उल्लंघन हो रहा है. इस जनता जांच में भारत के ९ प्रदेशों से ६० तम्बाकू उत्पादनों को परखा गया जिसमें १७ धूम्रपान वाले तम्बाकू उत्पादन थे और ४३ धुआं-रहित तम्बाकू उत्पादन.

कई ऐसे तम्बाकू उत्पादन पाये गए जिनपर कोई भी चित्रमय चेतावनी लगी नहीं थी या नियमानुसार नहीं लगी थी.

"जिस जन हितैषी इरादे के साथ यह चित्रमय चेतावनी निर्देश जारी किया गया है, उसको पूर्ण नहीं किया जा रहा है। चित्रमय चेतावनी को लागू करने में यूँ भी दो साल से अधिक तक की देरी की गई और अब जब यह जारी हुआ तो इसको लागू कमजोरी से किया जा रहा है. चित्रमय चेतावनी निर्देश को लागू करने (३० मई २००९) से ठीक २ महीने बाद, ३० जुलाई २००९ को उन अधिकारियों को सरकारी निर्देश द्वारा सूचित किया गया जो इसको लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं" कहना है विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का।

चित्रमय चेतावनी लागू करने में चंद मुख्य कमियां जो पायी गयीं हैं, वोह इस प्रकार हैं:

- चित्रमय चेतावनी का आकार: चित्रमय चेतावनी का आकार तम्बाकू पाकेट के आगे वाले सबसे बड़े भाग के ४०% से कम हैं. जिन ६० तम्बाकू उत्पादनों को परखा गया, उसमें से २५ गुटखा के ब्रांड, १० खैनी के ब्रांड एवं २ बीड़ी के ब्रांड ऐसे पाये गए जिनपर चित्रमय चेतावनी छोटी थी.

- तम्बाकू पाकेट पर भ्रामक शब्द लिखे गए थे: हालाँकि भारत में ऐसे शब्दों को लिखने पर प्रतिबन्ध है, परन्तु ५ सिगरेट ब्रांड एवं ४ चबाने वाली तम्बाकू के ब्रांड पर ऐसे भ्रामक शब्द लिखे पाये गए.

- तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देता हुआ संदेश: १० तम्बाकू ब्रांड पर ऐसा संदेश लिखा हुआ पाया गया जो तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देता है.

- कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं: कई ऐसे तम्बाकू उत्पादन पाये गए जिनपर कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं प्रकाशित थी. ८ चबाने वाली तम्बाकू ब्रांड एवं ९ धुएँ वाले तम्बाकू उत्पादनों पर कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं थी.

- सही चित्रमय चेतावनी नहीं: ३ ब्रांड ऐसे पाये गए जिनपर सही चित्रमय चेतावनी जो सरकारी निर्देश में दी गई है, वो नहीं प्रकाशित है.

- भाषा: कुछ तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी उस भाषा में नहीं है जिस भाषा में 'पाकिंग' पर ब्रांड का नाम छपा है.

"कुछ गुटखा कंपनियां चित्रमय चेतावनी जन हितैषी कानून को दरकिनार कर ४०% से काफी कम जगह चेतावनी को दे रही हैं, और ४०% जगह पर सफ़ेद रंग या 'बॉर्डर' बनाया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि जन हितैषी कानून को सख्ती से लागू करे" कहना है बाबी रमाकांत का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक द्वारा २००८ में पुरुस्कृत हुए थे और आशा परिवार से जुड़े हुए हैं।

यह एक षडयंत्र जैसा ही है कि चित्रमय चेतावनी निर्देश के जारी होने के इतने समय के बाद भी सभी तम्बाकू उत्पादनों पर चेतावनी नियमानुसार नहीं छप रही है और उद्योग इस जन हितैषी नीति को दरकिनार करने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है. यह सभवत: ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकारी निर्देश में 'विक्रय' शब्द को बदल कर 'निर्मित/ आयात' शब्द छपा है जिससे तम्बाकू उद्योग को यह संदेश चला गया है कि इस निर्देश के प्रति हम संजीदा नहीं है, कहना है हे़लिस - सेखसरिया इन्सटीट्युत फॉर पब्लिक हे़ल्थ के निदेशक डॉ पी.सी.गुप्ता का.

तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनियों का अनुपालन सख्ती से नहीं

तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनियों का अनुपालन सख्ती से नहीं

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के १५ मार्च २००८ को जारी निर्देश के अनुसार ३१ मई २००९ के बाद पूरे देश में तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी लगाना कानूनन जरूरी हो गया है.

परन्तु एक जनता जांच के दौरान यह ज्ञात हुआ कि भारत में जगह जगह तम्बाकू उत्पादनों पर सख्ती से चित्रमय चेतावनी नहीं लगायी जा रही हैं और इस सरकारी निर्देश का उल्लंघन हो रहा है. इस जनता जांच में भारत के ९ प्रदेशों से ६० तम्बाकू उत्पादनों को परखा गया जिसमें १७ धूम्रपान वाले तम्बाकू उत्पादन थे और ४३ धुआं-रहित तम्बाकू उत्पादन.

कई ऐसे तम्बाकू उत्पादन पाये गए जिनपर कोई भी चित्रमय चेतावनी लगी नहीं थी या नियमानुसार नहीं लगी थी.

"जिस इरादे के साथ यह चित्रमय चेतावनी निर्देश जारी किया गया है, उसको पूर्ण नहीं किया जा रहा है. चित्रमय चेतावनी को लागू करने में यूँ भी दो साल से अधिक तक की देरी की गई और अब जब यह जारी हुआ तो इसको लागू कमजोरी से किया जा रहा है. चित्रमय चेतावनी निर्देश को लागू करने (३० मई २००९) से ठीक २ महीने बाद, ३० जुलाई २००९ को उन अधिकारियों को सरकारी निर्देश द्वारा सूचित किया गया जो इसको लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं. तब तक अधिकतर तम्बाकू कंपनियां इस निर्देश का उल्लंघन कर चुकीं थीं" कहना है मोनिका अरोड़ा का, जो ह्रदय नामक संस्थान की निदेशिका हैं.

चित्रमय चेतावनी लागू करने में चंद मुख्य कमियां जो पायी गयीं हैं, वोह इस प्रकार हैं:

- चित्रमय चेतावनी का आकार: चित्रमय चेतावनी का आकार तम्बाकू पाकेट के आगे वाले सबसे बड़े भाग के ४०% से कम हैं. जिन ६० तम्बाकू उत्पादनों को परखा गया, उसमें से २५ गुटखा के ब्रांड, १० खैनी के ब्रांड एवं २ बीड़ी के ब्रांड ऐसे पाये गए जिनपर चित्रमय चेतावनी छोटी थी.

- तम्बाकू पाकेट पर भ्रामक शब्द लिखे गए थे: हालाँकि भारत में ऐसे शब्दों को लिखने पर प्रतिबन्ध है, परन्तु ५ सिगरेट ब्रांड एवं ४ चबाने वाली तम्बाकू के ब्रांड पर ऐसे भ्रामक शब्द लिखे पाये गए.

- तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देता हुआ संदेश: १० तम्बाकू ब्रांड पर ऐसा संदेश लिखा हुआ पाया गया जो तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देता है.

- कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं: कई ऐसे तम्बाकू उत्पादन पाये गए जिनपर कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं प्रकाशित थी. ८ चबाने वाली तम्बाकू ब्रांड एवं ९ धुएँ वाले तम्बाकू उत्पादनों पर कोई भी चित्रमय चेतावनी नहीं थी.

- सही चित्रमय चेतावनी नहीं: ३ ब्रांड ऐसे पाये गए जिनपर सही चित्रमय चेतावनी जो सरकारी निर्देश में दी गई है, वो नहीं प्रकाशित है.

- भाषा: कुछ तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी उस भाषा में नहीं है जिस भाषा में 'पाकिंग' पर ब्रांड का नाम छपा है.

"कुछ गुटखा कंपनियां चित्रमय चेतावनी जन हितैषी कानून को दर-किनार कर ४०% से काफी कम जगह चेतावनी को दे रही हैं, और ४०% जगह पर सफ़ेद रंग या 'बॉर्डर' बनाया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि जन हितैषी कानून को सख्ती से लागू करे" कहना है बाबी रमाकांत का, जो इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग, आशा परिवार से जुड़े हुए हैं.

यह एक षडयंत्र जैसा ही है कि चित्रमय चेतावनी निर्देश के जारी होने के इतने समय के बाद भी सभी तम्बाकू उत्पादनों पर चेतावनी नियमानुसार नहीं छप रही है और उद्योग इस जन हितैषी नीति को दरकिनार करने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है. यह सभवत: ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकारी निर्देश में 'विक्रय' शब्द को बदल कर 'निर्मित/ आयात' शब्द छपा है जिससे तम्बाकू उद्योग को यह संदेश चला गया है कि इस निर्देश के प्रति हम संजीदा नहीं है, कहना है हे़लिस - सेखसरिया इन्सटीट्युत फॉर पब्लिक हे़ल्थ के निदेशक डॉ पी.सी.गुप्ता का.

निमंत्रण: उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघनों पर बैठक

निमंत्रण: उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघनों पर बैठक

इस बैठक को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र० एवं पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है
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आप सबसे निवेदन है कि २८ अगस्त २००९ को लखनऊ में उत्तर प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन पर एक बैठक में सम्मलित हों। इस बैठक को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र० एवं पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है।

इस बैठक में एक जनता जांच रपट भी जारी की जायेगी जो उत्तर प्रदेश में हुए कुछ मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर है।

बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स के सेवा निवृत्त डिपुटी कमांडेंट अरिदमनजीत सिंह नकली 'एनकाउंटर' पर चर्चा करेंगे और सेवा निवृत्त पुलिस महानिरीक्षक श्री एस.आर.दारापुरी, उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के घर पर आगजनी के मामले पर रपट जारी करेंगे।

बतला हाउस 'एनकाउंटर' पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रपट के जवाब में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस के राजीव यादव एक रपट जारी करेंगे।

मऊ में हाल में हुई हिंसा पर अरविन्द मूर्ति भी एक रपट जारी करेंगे।

स्थान: शुक्रवार, २८ अगस्त २००९
स्थान: गाँधी भवन पुस्तकालय, शहीद स्मारक के सामने, लखनऊ
समय: ११-२ बजे दोपहर

आप सब से निवेदन है कि इस बैठक में शामिल होने का कष्ट करें।

सधन्यवाद

एस.आर दारापुरी
उपाध्यक्ष, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र०
फ़ोन: ९४१५१ ६४८६५

डॉ संदीप पाण्डेय
अध्यक्ष, पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स
फ़ोन: २३४७३६५

मजदूरों के संघर्ष के आगे झुका दबंग प्रधान पति

मजदूरों के संघर्ष के आगे झुका दबंग प्रधान पति
बराण्डा ग्राम पंचायत में नरेगा के तहत किये गये काम के भुगतान के लिए छेड़ा गया संघर्ष अन्ततः रंग लाया और बराण्डा के दबंग प्रधानपति अशोक कटियार ने छः महीने से रूके पैसे का नकद भुगतान किया। बराण्डा ग्राम पंचायत ब्लाक बिल्हौर जिला कानपुर नगर के करीब बराण्डा ग्राम पंचायत के करीब 40 मजदूरों को जनवरी 2009 में करीब 22 दिन नरेगा के तहत अपने खेत के किनारे नाला खुदवाने का कार्य वहां के ग्राम प्रधान श्रीमति रेनू कटियार ने करवाया, लेकिन अभी तक उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ हैं। मजदूरों ने जब भी प्रधान पति अशोक कटियार से अपनी मजदूरी की बात की उन्होंने टाल दिया । चूकिं अशोक कटियार उस क्षेत्र के एक दबंग व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, इसलिए मजदूरों ने डर से इस बात की कहीं शिकायत नहीं की । जुलाई महीने में सामाजिक कार्यकर्ता शंकर सिंह के सम्पर्क में ये मजदूर आये और उन्होंने नरेगा के तहत हुए काम की मजदूरी भुगतान न होने की बात बताई । बैठक के बाद सभी मजदूरों ने संगठित होकर इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इसी संघर्ष के दौरान मजदूरों को पता चला कि जो कार्य उन्होंने किया है वो नरेगा के तहत न कराके ग्राम प्रधान ने अपना व्यक्तिगत काम कराया है। इस बात को लेकर मजदूरों ने प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास, आयुक्त ग्राम्य विकास, जिलाधिकारी कानपुर को शिकायती पत्र लिखा साथ ही कानपुर की मीडिया ने इस बात को अपने अखबार में प्रमुखता से उठाया। कार्यवाही होने के डर से कल 20 अगस्त से ग्राम प्रधान पति अशोक कुमार कटियार ने मजदूरों के घर जाकर उनके द्वारा किये 22 दिन के काम का नकद भुगतान किया और उनसे मिन्नत की कि आगे अब कोई कार्यवाही न करें । आखिरकार संगठित संघर्ष के कारण उनकी मेहनत का पैसा आज उन्हें मिल गया। इस जीत से मजदूरों को आगे संघर्ष करने की प्रेरणा के साथ-साथ लोकतंत्र में विश्वास मजबूत हुआ है।

रिपोर्टर : महेश एवं शंकर सिंह
"आशा परिवार एवं "अपना घर"
कानपुर

जिला पंचायत राज अधिकारी मऊ, को नहीं मालूम सूचना का अधिकार अधिनियम

जिला पंचायत राज अधिकारी मऊ, को नहीं मालूम सूचना का अधिकार अधिनियम

पढ़े फारसी बेंचें तेल, वाली कहावत सूचना अधिकार अधिनियम के साथ जन सूचना अधिकारी चरितार्थ कर रहे हैं | यों तो सब अपनी काबिलियत के गुमान में रहते हैं और उसका बखान करते अघाते नहीं हैं लेकिन जिला पंचायत राज अधिकारी मऊ, जन सूचना अधिकारी ने आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना को शुल्क के रूप में दस रूपये का पोस्टलआर्डर संलग्न किये जाने को लेकर वापस कर दिया है | आवेदक अरबिंद मूर्ति ने पंचायत राज अधिनियम से जुडी सूचना जिला पंचायत राज अधिकारी मऊ, से मांगी थी | जिसके लिखित में डी.पी.आर.ओ. ने लिखा है कि उक्त अधिनियम में प्राविधान है कि सूचना प्राप्त करने के लिए लेखा शीर्षक में १० रु. का ट्रेजरी चालान, ड्राफ्ट,अथवा बैंकर चेक जमा कर सूचना की मांग की जाए | चूँकि आपने पोस्टल आर्डर संलग्न किया है, इसलिए आप का मूल आवेदन अस्वीकार करते हुए मूल रूप में वापस किया जा रहा है | जबकि उ.प्र. शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस आशय का शासनादेश संख्या-१९००/४३-२-०६-१५/२(२)/०३ टी.सी.२७ नवम्बर ०६ को ही विधिवत जारी करते हुए सूचना मांगने हेतु पोस्टल आर्डर स्वीकार किये जाने का स्पष्ट आदेश है और शासनादेश में ही उल्लेखित है कि यह शासनादेश सभी मंडलाआयुक्त, जिलाधिकारी व विभागाध्यक्षों को भेज दिया गया है | लेकिन इस आवेदन की वापसी से प्रशासनिक सुधार विभाग के दावों की पोल खुलती नजर आ रही है |

जिला पंचायत राज अधिकारी मऊ, की इस अज्ञानता का फायदा उठाते हुए खण्ड विकास अधिकारी रतनपुरा, ने भी आवेदक का एक सूचना मांगने का आवेदन पत्र वापस करते हुए जिला पंचायत राज अधिकारी के पत्र को संलग्न कर दिया है |

सूचना अधिकारी अधिनियम में यह स्पष्ट प्राविधान है कि अगर जन सूचना अधिकारी किसी सूचना के आवेदन को नामंजूर करता है तो भी उसका विधिक दायित्व है कि वह आवेदक को अधिनियम की धारा ७(८) के अंतर्गत यह जानकारी दें कि आवेदन किस कारण से अस्वीकृत किया गया, वह अवधि बताएं जिसमें अस्वीकृत के विरुद्ध अपील दायर की जा सके और उस अपीलीय प्राधिकारी का पता बताएगा जहाँ अपील की जा सकेगी परन्तु यह कुछ भी डी.पी.आर.ओ. को मालूम नहीं है और न ही इस आशय के जारी शासनादेश संख्या १११६/४३-२-०८-१५/२(७)/०७ भी १६ अक्टूबर २००८ को जारी किया जा चुका है |

क्या यह अज्ञानता वास्तविक है, या नौकरशाही की एक सोची समझी साजिश है | जिससे इस अधिकार के प्रति आम भारतीयों में जगी उम्मीद की किरण को धुँधुला करते हुए इसे भी अन्य कानूनों और अधिकारों की तरह किताबों की शोभा बढाने और आदर्श के रूप में बखान करने के लिए बताया जायेगा कि हमारे यहाँ पारदर्शी स्वच्छ, व्यवस्था के संचालन के लिए सूचना अधिकार कानून भी लागू है | अब सवाल सिर्फ यह बचता है कि देश की शासक पार्टियों और उनके नेताओं में क्या यह इच्छाशक्ति है कि इस अधिकार को सख्ती से लागू करा सकें वर्ना दिनकर की यह पंक्ति "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" न दुहराई जाए !


अरविन्द मूर्ति
(लेखक: जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, सूचना अधिकार अभियान से जुड़े हैं, सद्भाव और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जमीनी संघर्षों में हिस्से दरी के साथ "सच्चीमुच्ची" मासिक पत्रिका के संपादक हैं )
arvind@citizen-news.org

मिड डे मील, प्रधान की झोली में !

मिड डे मील , प्रधान की झोली में !

प्राथमिक विद्यालय तथा पूर्व.मा.वि. ककौली, डिगुरिया, ब्लाक चिनहट, लखनऊ में जुलाई २००९ पूरी निकलती चली गई है लेकिन मध्याहन भोजन अभी प्रधान की झोली में से निकल कर स्कूल में बच्चों तक नहीं पहुंचा है | अधिकारियों से इसकी शिकायत करो तो वो आप को इतना दौडायेंगे कि जितना खून बचा है वह सब चूस लेंगे | भला बताइए कि ऐसे में कौन कहेगा कि मध्याहन भोजन नहीं बन रहा है | बने चाहे न बने मेरी बला से, बात आई तो कह दिया, यह मेरा कानूनी अधिकार है, जनता का जो पैसा लगा है | हाँ बात कर रहा हूँ प्राथमिक विद्यालय, और पूर्व माध्यमिक विद्यालय, ककौली, डिगुरिया, लखनऊ की जहाँ दिनांक ३०-०७-२००९ को इस विद्यालय में गया और हेड मास्टर तथा चार सहायक अध्यापक, जिनमें दो शिक्षामित्र हैं, तथा रसोइयों से बात हुयी तो उन्होंने रजिस्टर उठा के दिखा दिया कि जुलाई माह में केवल २०,२१,२२,२४,२५ तारीख को मध्याहन भोजन बच्चों को मिला वो भी ऐसा कि बच्चों कि क्या बात करें लोग गाय, भैंस को देने से पहले उसे कूड़ा करकट और साफ़ करके तथा बिना सडा देते हैं | अब बात आती है रसोइया की, कि वो साफ़ करके नहीं देता है तो भाई आप ही बताइए कि जो चावल काला,सडा, मटमैला, पुराना ( कुत्ते की पूँछ जैसा जो कभी न सीधा होने वाला चाहे जितना कोशिश करो) होगा वो कैसा, और कितना साफ़ किया जाय साफ़ हो ही नहीं सकता है | यहाँ एक सवाल और भी है कि गरीब लोगों की शिक्षा से लगाकर भोजन तक एक तो मिलती नहीं हैं अगर मिली भी तो सब बची-खुची चीजें ही क्यों मिलती हैं, कभी तो शुद्ध मिल जाया करें | सबसे बड़ी बात यह है कि प्रा.वि. ककौली में खाना बनाने वाली कामिनी देवी को पिछले अगस्त २००८ से अभी तक और पूर्व मा.वि. डिगुरिया (ककौली) में खाना बनाने वाला जसकरण यादव को ८ फरवरी २००८ से अबतक की मजदूरी प्रधान ने नहीं दी, यह जानकारी हमें स्कूल और रसोइयों से मिली | जब यह शिकायत और साथ में खराब चावल का नमूना लेकर मैं बेसिक शिक्षा अधिकारी, शिक्षा भवन, लखनऊ गया तो पता चला कि बी.एस.ए. साहब जी नहीं हैं, लेकिन उनके सहायक बाबू सुबोध जी,चौधरी जी जो मध्याहन भोजन देखते हैं | सुबोध जी और चौधरी जी से बात हुयी तो उन्होंने तो अपना हाथ झाड़ते हुए कहा कि यह काम जिला पंचायत राज अधिकारी का है, हम लोग केवल पैसा भेज देते हैं | फिर उन्होंने प्रधान के खाते में पड़ा शेष पैसा जुलाई २००९ से २७,२८०/- प्रा.वि. और ४८,३५९/- पूर्व मा.वि. का, कुल शेष ७५,६३९/- रु. अभी है | यह सूचना पाकर मैं बाहर चला आया | अब आप ही बताइए कि जो काम उन्हें करना था वो मेरे सिर पर डाल दिया | खैर इस गडबडी को मैं ऊपर अधिकारियों तक लेकर जाऊंगा | देखना यह है कि इन बच्चों को उनका भोजन का अधिकार कौन दिलाता है जो सबसे बड़ा अधिकार है, और इस पैसे की गडबडी किस तरह बंद होगी तथा रसोइयों को उनकी मजदूरी कैसे मिलेगी | मध्याहन भोजन बच्चों के पेट में जाना चाहिए न की प्रधान की की झोली में | मिड-डे-मील विभाग अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट रहा है | अब यह राम भरोसे, जब मन हुआ तब बन गया अन्यथा नहीं | कार्यवाई जारी है हिम्मत नहीं हारना है |

लेखक - चुन्नीलाल ( आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं)
chunnilal@gmail.com

आल्हा हिरोशिमा दिवस- ६ अगस्त


आल्हा
हिरोशिमा दिवस- ६ अगस्त

(एटम बम की शिकार बालिका सडाको की दास्तान)

प्रथम सडाको की बंदना, दूजे प्रकृति प्रणाम |
तीजे शांति संदेश को, आजु रहियो शीश झुकाय |
भूल चूक जो हमसे होवै, भैया गलती लिह्यो छिपाय|
छोटे मुंह से बड़ी-बड़ी बातें,अब तो हमसे कहीं न जाय |
सुनो हकीकत बमबारी कै, सी.एल. आल्हा रहे सुनाय |
समझ में आवै जो संदेशो, एक चिड़िया तुम देहेऊ बनाय |
हियाँ की बातें हियन्हि छाड़ऊ, अब आगे कै सुनौ हवाल|
जापान देश में शहर हिरोशिमा, लीन्हो जनम सडाको जाय |
पिता ससाकी बहनी मित्सुई, भैया मासा हीरो इजी |
खिली पंखुडी, बिटिया सडाको, घर में रही उजियाली छाय |
सुनो कहानी सर्वनाश की, हाथ से बैठो दिल को थाम |
६ अगस्त, सन् ४५ को, भैया दिल में लेऊ समाय |
सवा आठ थे बजे सुबह के, जनता रही थी ख़ुशी मनाय |
काह पता था ओ मोरे भैया, जलबे आजु अग्नि में जाय |
घर-घर किलके मुन्नी-मुन्ना, मैया प्यार से रहीं खिलाय |
अत्याचारी बनो अमरीका, दिल में तनिको रहम न खाय |
सांप सूंघी जाय ऐसे देश को, बादल फटे हुवन पर जाय |
बम पटकि हिरोशिमा पर दीन्हो, मन रह्यो है ख़ुशी मनाय |
विमान एनोला लिटिल बॉय बम, जाको नाम रहेन बतलाय |
उडे चीथड़े प्यारी जनता के, पशु-पक्षी थे रहे चिल्लाय |
धरती कांपी बादल हिलगए, लालरी आसमान में छाय |
कोई तड़पे, कोई भागे, मरने वालों का नहीं सुमार |
नदिया का पानी ऐसे उबले, कडाही उबले कड़ुवा तेल |
लाश देखि कै धरती रोवै, केहिका-केहिका लेई छुपाय |
मांस, चीथड़े, पंक्षी न खावें, लाशों का नहीं कोई सुमार |
हाहाकार मचो दुनिया में, टी.बी. चैनल रहे बताय |
थर-थर कांपे पत्रकार जी, डॉक्टर भागि घरन को जायं |
सारे शहर के अस्पताल मा, लाशों के लगि गए अंबार |
सुई-दवाई और डॉक्टर, सबके उडी गए होश हवाश |
ऊँची-ऊँची बिल्डिंग गिर गयी, धरती को खायीं दीन बनाय |
नगर हिरोशिमा मरघट बनि गयो, जामें लाशों केर निवास |
केहिकी लाशें कहना बहिगयीं, जाको नहीं है कोई हिसाब |
तेहिमा बचि गयो घर बिटिया का, जेहिकी गाथा रहेन सुनाय |
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दुई बरस की बिटिया सडाको, जो बमबारी के भई शिकार |
खेल कूद में सबसे अव्वल, जहिसे कोई न पाए पार |
पैग-पैग पर बिटिया सडाको, अपनी कीरति रहीं बढाय |
काह पता था माय-बाप को, बिटिया गयीं है काल समाय |
समय बीति गयो खेल कूद में, लिखे पढ़े में गम बिसराय |
ग्यारह बरस की बिटिया सडाको, खेल कूद में भई होशियार |
चाह रही थी मन बिटिया के, दौड़ में बाजी लेबे मारि |
दौड़ शुरू भई कालेज मईहाँ , बिटिया पंख दीन फैलाय |
लगा टक-टकी जनता देखे, बिटिया बाजी लीन्ही मारि |
चक्कर खाई के बिटिया गिर गयी, लागी चोट माथ में जाय |
देख के जनता ऐसे तड़पे, पानी बाहर मछली आय |
अस्पताल पहुंची बिटिया सडाको, डॉक्टर आला दीन लगाय |
खून का कैंसर इसको भैया, डॉक्टर बानी दीन सुनाय |
एटम बम के शीशे भैया, बिटिया को कैंसर दीन बनाय |
कोई दवा नहीं भैया इसकी, डॉक्टर जोड़ी हाथ को दीन |
जबतक जीवै बिटिया भैया, तब तक खुशियाँ लेउ मनाय |
ख़ुशी रखो तुम इसको भैया, यही है बिटिया केर इलाज |
एक सहेली बिटिया केरी, जहिका नाम चुजूको होय |
हजार साल तक पंक्षी जीवै, बहिनी चिडिया लेउ बनाय |
सुनिकै बानी प्यारी चुजूको की, बिटिया फूली नहीं समाय |
मदद के खातिर जनता जुट गयी, कागज के लगि गए अम्बार |
देखि के चिड़िया रंग बिरंगी, बीमारी तुरतै दी बिसराय |
ख़ुशी छाय गयी सारे शहर मा, मची लोगों में हाहाकार |
धीरे-धीरे बिटिया सडाको, जीवन अपना रहीं बढाय |
छः सौ बीस, छः सौ एकतीस, बिटिया गिनती रहीं लगाय |
छः सौ चवालीस की आई बारी, बिटिया रोंकि हाथ को दीन |
सिर चकरायो, चक्कर आयो, आँखिन रह्यो अंधेरो छाय |
२५ अक्टूबर सन् पचपन को, बिटिया गई हैं स्वर्ग सिधार |
छोड़ी के दुनिया बिटिया चल दीं, सूना कर गयीं देश दुवार |
फूल गुलाब सी बिटिया मरि गई, दिल में मच गई हाहाकार |
फटो कलेजो माय-बाप का, बिटिया निकल हाथ से जाय |
पकड़ी कलेजा मैया रोवै, बापौ गिरो धरनी पर जाय |
सुनिके जनता छाती कूटे, नैनन रही है नीर बहाय |
साथी सलाही सारे मिलिकै, बाकी चिडिया लीन बनाय |
दीन समाय धरती में भैया, एक हजार पंक्षिन के साथ |
पूरी कामना भी सडाको की, दिल में रही शांति छाय |
बनो स्मारक है बिटिया को, सन् १९५८ में जाय |
दे गई सन्देश जो हमको भैया, सुन लीजै तुम ध्यान लगाय |
यही हमारे आंसू भैया, प्रार्थना करब यही हम जाय |
शांति सन्देश दुनिया को दे गयी, जहिका आजु रहेन मनाय |
भूलि न जाना सन्देश मोरे भैया, दुनिया देश में करो प्रचार |
शत-शत नमन करूँ उस बिटिया को, जिसने दीन्हो प्राण गंवाय |

( यह आल्हा, ६ अगस्त १९४५ को जापान देश के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु बम के हमले में लाखों लोगों की जान जाने और वहां बचे लोगों को खून का कैंसर होने, की याद दिलाता है | ताकि जापान की एक बालिका की तरह लोग खून के कैंसर का शिकार न हों और परमाणु बम, मिसाइल, बारूद जैसी चीजें जो मानव,पर्यावरण,पशु-पक्षी,जीव-जंतु सभी के लिए प्राण घातक हैं, लोग इनका विरोध करें |

चुन्नीलाल
(लेखक: झोपड़ पट्टी में निवास करने वाले गरीबों की स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और उनके बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष व उनके बच्चों की शिक्षा के लिए काम करते हैं |आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं तथा सिटिज़न न्यूज के घुमंतू लेखक हैं )
chunnilallko@gmail.com









वे डरते हैं......कि लोग डरना न बंद कर दें....

वे डरते हैं......कि लोग डरना न बंद कर दें....
अरविन्द मूर्ति

"मऊनाथभंजन" जो अब जिला बनने के बाद "मऊ" के नाम से जाना जाता है | घनी आबादी वाला ताने बाने का शहर है | जिसके बाशिंदों में मजहबी लिहाज से इस्लाम को मानने वालों की तादात थोड़ी ज्यादा है | इसी वजह से सरकारी और फिरकापरस्ती की सोंच और जुबान में इस शहर को संवेदनशील कहा जाता है | जबकि संवेदनशीलता का वास्तविक अर्थ है जिन्दादिली, इसी जिन्दादिली का जीता जागता सबूत है २९ जुलाई,०९ की घटना, रोज मर्रा की जिंदगी में आम आदमी को, जिसे कदम-कदम पर पुलिस की भ्रष्टाचारी व दमनकारी कार्यवाईयों के आगे झुकना पड़ता है | उससे ऊब कर जब जनता उठ खड़ी हुई तो हंगामा क्यों बरपा ? २९ जुलाई,०९ की सुबह भी करघे की खटपट, घंटे-घड़ियाल, अजान की आवाजों के साथ हुई और शहर के बाशिंदें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े | वक्त की सुई चलती रही और समय बढ़ने के साथ-साथ शहर का ही जिला मुख्यालय होने से जिले के हर हिस्से से लोगों के आने का सिलसिला भी बढ़ा, और दिन के सबसे व्यस्ततम समय ११.३० बजे भीड़-भाड़ वाले आज़मगढ़ तिराहे पर खड़ी भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की शान पुलिस जो तथा कथित आजादी के ६२ वर्षों बाद भी अंग्रेजों के अट्ठारह सौ एकसठ (१,८६१) के बनाये कानून से चलयी जा रही है | जिसने अपनी कर्तब्य निष्ठां (बेईमानी) का पूरी ईमानदारी से पालन करते हुए "नो एंट्री" समय में चौदह टायरोंवाली ट्रक को शहर में जाने की इजाजत देते हुए पुलिस का एक जवान ट्रक पर चढ़ चढ़कर ट्रक ड्राईवर से पैसों की मांग करने लगा मात्र २० रुपया न देने की जिद पर अड़े ट्रक ड्राईवर ने पुलिस जवान को धक्का मारा जिससे वह नीचे गिर पड़ा, ड्राईवर ट्रक लेकर बेतहासा भाग चला | हलीमा अस्पताल के सामने एक ऑटो-रिक्शा व मारुतीकार को धक्का मारते हुए आज़मगढ़ जाने वाली सड़क से मिर्जाहादीपुरा जा पहुंचा वहां से वह शहर के बाहर आज़मगढ़ की तरफ न जाकर मिर्जाहादीपुरा चौक से शहर में घुस गया |

सवाल दर सवाल--मिर्जाहादीपुरा चौक पर २४ घंटे ड्यूटी पर तैनात रहने वाली पुलिस ने "नो एंट्री" जोन में जाने वाली इतनी बड़ी ट्रक को जो एंट्री के समय भी शायद ही अन्दर जा सकती हो कैसे जाने दिया ? अगर ट्रक अन्दर घुस गया तो पुलिस वालों ने आगे के पुलिसबूथ पर तैनात पुलिस सहकर्मियों को आगाह क्यों नहीं किया ? साथ ही अपने पुलिस के आला-अफसरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी ? मिर्जाहादीपुरा से बंधे तक ३ किलोमीटर की दूरी तय करने वाले ट्रक को जो शहर को रौंदता हुआ गया बीच में न रोक पाने वाली नाकाम पुलिस यहाँ तक कि इस बीच जिला प्रशासन की नाक और पुलिस का अंतिम किला (कोतवाली) जिसको बचाने के लिए ही पुलिस ने आम लोगों पर गोली चलाई उसके सामने पर भी ट्रक गुजरी, आखिर पुलिस क्या करती रही ? यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है |

वर्निंग ट्रेन बनकर.......गुजरे ट्रक ने शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाले सड़क पर पैदल रिक्शा, ऑटो, साइकिल, मोटर साइकिल, ठेला, फुटपाथों को लहू लुहान कर दिया और इस दरम्यान ट्रक से कुचल कर १. वैद्य नन्हकू राम २. संदीप पाटिल ३. मसीहुत जमां ४. आयशा खातून इन चार लोगों की मौत और लगभग ३० लोग जख्मी हो चुके थे | इस संवेदनशील शहर के बाशिंदे मजहब और जाति का भेदभुला कर एक दूसरे की मदद में तल्लीन हो चुके थे | पूरा शहर मायूशी में डूब गया था पर हंगामें की शुरुआत किसने की और कहाँ हुयी यह बहुत ही संदेहास्पद बना हुआ है और अन्य घटनाओं की तरह अफवाहों का दौर चलता रहा | सच जिन्दा रहे का उदघोष करने वाले दैनिक अख़बार अमर उजाला, ३० जुलाई 09 वाराणसी संस्करण की माने तो,"बवाल तब शुरू हुआ जब ट्रक पुलिस भर्ती का फॉर्म लेने के लिए डाकघर पर लाइन लगाये अभ्यर्थियों को धक्का मारते हुए निकल गया | नाराज अभ्यर्थियों ने कोतवाली पर पथराव कर दिया | पीछे से बाजार के लोग भी वहां पहुँच गए " और आम लोगों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ़ फ़ुट पड़ा और यह आक्रोश पूरी तरह से पुलिस की सम्पत्ति पर रहा, और शहर के अन्दर बने पुलिस बूथों को लोगों ने तोड़ डाला मुख्य डाकघर की आगजनी भी संदेहास्पद है | इसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध है | प्रत्यक्षदर्शी लोग पुलिस के आतंक से कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं | डाकघर का हमेश बंद रहने वाला गेट अवश्य तोड़ा गया है | वह भी कोतवाली से हुए फायरिंग और गोली लगने से हुयी मौतों के बाद | क्योंकि शहर के अन्दर सभी बैंक और डाकघर पूरी तरह सुरक्षित रहे हैं |

पुलिस की घिनौनी साम्प्रदयिक चाल नहीं चली-पुलिस प्रशासन ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए लोगों के गुस्से को साम्प्रदायिक रंग में रंगने की भरपूर कोशिश की यहाँ तक कि तत्कालीन एसपी ने बयान दे डाला कि मैंने दंगा रोंका है | जबकि हिन्दू-मुस्लिम एक जुट होकर सिर्फ पुलिस के खिलाफ़ सड़क पर उतरे कहीं भी किसी ने किसी की दुकान पर एक नजर नहीं देखा न ही किसी का कुर्सी टेबल, बोर्ड छुआ | आम लोगों के वाहन भी शहर में सही सलामत रहे | यह गुस्सा हिन्दू-मुस्लिम की एकता और मजबूती की मिशाल बन गया | लोगों का एक दूसरे पर भरोसा, विश्वाश का एहसास बहुत गहरा हुआ |

पुलिस के खिलाफ़ इस तरह का आक्रोश 26 मई, २००५ को भीटी में युवाव्यापारी सहित ३ लोगों की हुई हत्या के बाद भी दिखा था | जब लोगों ने भीटी पुलिस चौकी को ध्वस्त कर दिया | पुलिस के उच्च अधिकारियों के वाहन फूंक डाला था |

कानून दिशा-निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए पुलिस ने गोली चलाई | प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुलिस ने न तो आंसू गैस के गोले छोड़े न रबर की गोलियां चलाई, पानी की बौछार नहीं करने की बात तो खुद पुलिस ने केंद्र को भेजी रिपोर्ट में कहा | लेकिन २५ रबर की गोली, ३० आंसू गैस के गोले, १४ राउंड फायर रायफल से, १ गोली रिवाल्वर से चलना बताया गया है | लेकिन लोगों को न तो आंसू गैस के खाली गोले मिले न रबर की गोलियां मिलीं | मिलीं तो सिर्फ लोगों के शरीर में गोलियां या उनके निशान जो दीवालों पे, मस्जिद की दीवालों में, दुकानों के शटर में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं | कोतवाली से लेकर हट्ठी मदारी चौकी मिर्ज़हादीपुरा के दक्षिण टोला थाने तक गोलिया चली पुलिस ने सारे दिशा निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए लोगों पर गोलियां चलाई | पुलिस की गोली से मरने वाले ४ लोगों को गोलियां क्रमशः गले में, सीने में, पेट में, और कमर से ऊपर ही लगीं जो कानूनन गलत है |

कानून का पालन करने वाले खुद कानून का उलंघन करें तो इन्हें दोहरी सजा मिलनी चाहिए | इन गोली चलाने वालों को चिन्हित कर उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाना ही न्याय संगत होगा और लोकतंत्र की मजबूती का आधार बनेगा, तथा पूरे देश में होने वाले धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन, जन अक्रोशों पर चलने वाली गोली मर्यादित होगी | पुलिस की गोली से मरने वालों की एक झलक यु तों देश भर में पुलिस की गोली का शिकार, निरपराध, गरीब मजदूर ही होता है | वही यहाँ भी हुआ |

मो. अज़मल उम्र २५ साल रिक्शा चलाकर पूरे परिवार का पेट पालने वाला एक मात्र कमाऊ सदस्य जो रिक्शा लेकर इस शहर में रहा | अनवर जमाल उम्र ३० साल, पॉवर-लूम चलाते थे, हंगामें में घर भाग रहे थे, गोली लगी | शमशाद, दिहाडी मजदूर, मजदूरी करके लौट रहे थे, गोली लगी | मो. जाहिद उम्र १८ वर्ष, पढाई करके घर लौट रहे थे, गोली लगी और इन चारों की मौत हो हुई | इसी तरह के २० लोग गोली लगने से घायल हुए इनमें कई लोगों की हालत अभी भी गम्भीर बनी हुई है | कुछ लोग तो ऐसे घायल हैं जो जिन्दा रहकर भी मरे हुए रहेंगे | यह लोग आजीवन विकलांगता के शिकार होकर रह जायेंगे | ऐसे निरपराध लोगों को देख कर राजेश जोशी की ये पक्तियां बरबस याद आती हैं-
"इस समय /सबसे बड़ा अपराध है /निहत्थे और निरपराध होना /जो अपराधी नहीं होंगे /मारे जायेंगे |"

पुलिस उत्पीड़न का सिलसिला जारी ----------२९ जुलाई,२००९ को मऊ गोली कांड के बाद से ही कानून व्यवस्था की कमजोरी को सरकार अपनी तरफ से छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही है | पुलिस सहित पूरे प्रशासनिक अमले को बचाने में लगी है | मात्र प्रतीकात्मक तौर पर तत्कालीन एसपी व गोली चलाने का आदेश देने वाले एसडीएम का तबादला कर दिया गया और ऊपर से एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल ने धौंस दी कि उपद्रियों पर गैंगस्टर और रासुका लगाया जाय जिससे तमाम लोग जो पुलिस की गोलियों से घायल हुए है अपना इलाज चोरी चुपके आसपास के निजी चिकित्सालयों में अपनी तंग हाली के बाद भी जीवन बचाने के लिए करा रहे हैं | क्योंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस ने यह हौवा खडा कर दिया कि इन्ही घायल उपद्रियों पर बाद में मुकदमा चलेगा | जिससे लोग डर गए और अपने को घायलों की सूची में दर्ज कराना छोड़ दिया | फिर भी ३२ लोगों पर नामजद और १००० अज्ञात लोगों पर तोड़ फोड़ आगजनी और सरकारी सम्पत्ति लुटने का मामला दर्ज किया गया | इसको लेकर आम लोगों में बेहद गुस्सा है | जो कभी भी फ़ुट सकता है |

इस पूरे पुलसिया आतंक के खिलाफ़ तमाम जनसंगठन पीयूसीएल, पीयूएचआर जैसे मानवाधिकार संगठन विरोध कर रहे हैं | जनकवि गोरख पाण्डेय की ये पंक्तियाँ--"वे डरते हैं / तमाम गोला बारूद से / नहीं / वे डरते हैं / तमाम पुलिस फौज से / नहीं / वे डरते हैं कि जिस दिन / निहत्थे, निरपराध, बे जुबान जानता, डरना बंद कर देगी / उस दिन हमें भागना पड़ेगा |"

अरविन्द मूर्ति
(लेखक: जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, सूचना अधिकार अभियान से जुड़े हैं, सद्भाव और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जमीनी संघर्षों में हिस्से दरी के साथ "सच्चीमुच्ची" मासिक पत्रिका के संपादक हैं )
arvind@citizen-news.org

भारतीय पुलिस खंडित व्यवस्था

भारतीय पुलिस खंडित व्यवस्था
एस.आर.दारापुरी



" इस हफ्ते मुझे एक मुठभेड़ करने के लिए कहा गया," एक पुलिस अधिकारी ने जनवरी,२००९ में हयूमन राइट्स वाच को बताया | वह किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने और न्यायेत्तर ढंग से जान लेने के बारे में बता रहा था | जहाँ यह दावा कर दिया जाता है कि पीड़ित की पुलिस से मुठभेड़ में मृत्यु हुई | उसने कहा, मैं शिकर की तलाश में हूँ, मैं उसे ख़त्म कर दूंगा |" यह स्वीकारोक्ति उत्तर प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी की थी परन्तु यह भारत के किसी भी राज्य के पुलिस अधिकारी की हो सकती है | इस कथन से हयूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट जिसका शीर्षं " खंडित व्यवस्था दुष्क्रियावादी, दुर्व्यवहार, और अदंडित, भारतीय पुलिस" (ब्रोकेन सिस्टम डेसफंक्शनल, एव्यूज एंड इमप्युनिटी इन दा इंडियन पुलिस) है, आरंभ होती है | यह रिपोर्ट एच.आर.डब्ल्यू. द्वारा लखनऊ में ७ अगस्त को विमोचित की गई | इस रिपोर्ट का पहले विमोचन ४ अगस्त,२००९ को बंगलौर में हुआ था |

इस ११८ पृष्ठ की रिपोर्ट में पुलिस द्वारा मानवाधिकार के हनन की घटनाओं, जिसमें स्वेच्छाचारी गिरफ्तारियां और हिरासत, यातना और न्यायेत्तर हत्याएं हैं का प्रलेखन है | यह रिपोर्ट विभिन्न रैंक के ८० पुलिस अधिकारियों पुलिस दुर्व्यवहार के शिकार हुए ६० व्यक्तियों तथा बहुत सारे विशेषज्ञों और नागरिक समाज के कार्यकर्त्ताओं से विचार विमर्श और साक्षात्कार पर आधारित है | इसमें राज्य पुलिस बलों, जो कि कानून के दायरे के बाहर कार्य करतें हैं, जिनमें पर्याप्त नैतिक और व्यवसायिक दक्षता के मापदंडों का आभाव है, अधिक कार्यभार और अपराधियों के मुकाबलें में पिछड़े हुए और बढती हुई मांग एवं जनता की अपेक्षाएं पूरी करने में असमर्थ, का ब्योरा दिया गया है | इस हेतु उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश और राजधानी दिल्ली के १९ पुलिस थानों में क्षेत्र अध्ययन किया गया |


इस अवसर पर एच.आर.डब्ल्यू. की एशिया डिवीजन की नौरीन शाह ने कहा " भारत का तेजी से आधुनिकीकरण हो रहा है परन्तु पुलिस दुर्व्यवहार और धमकियों के पुराने तरीकों से काम कर रही है | अब सरकार को सुधारों की बात करना छोड़ कर व्यवस्था को ठीक करना चाहिए |" रिपोर्ट में बनारस के एक फल विक्रेता की कहानी है जिसमें वह बताता है कि पुलिस ने उससे कई तथा असम्बद्ध आरोपों की स्वीकृति करने हेतु कैसे प्रताड़ित किया |

"मेरे हाथ और पैर बांध दिए गए और मेरी टांगो के बीच एक लकड़ी डाल दी गई | उन्होंने मेरी टांगों पर लाठियों से पीटा और ठुड्डे मारे | वे कह रहे थे, तुम १३ सदस्यों वाली गैंग के लोगों के नाम बताओ | उन्होंने मुझे तब तक पीटा जब तक कि मैं मदद के लिए चिल्लाने नहीं लगा | एक सिपाही बोला," इस तरह की पिटाई से तो भूत भी भाग जायेगा | मैं जो जानना चाहता हूँ तुम मुझे वह क्यों नहीं बताते ? तब उन्होंने मुझे उल्टा लटका दिया ----------| उन्होंने प्लास्टिक के जग से मेरे मुंह और नाक में पानी डाला और मैं बेहोश हो गया |"

एच.आर.डब्ल्यू. द्वारा साक्षात्कार किया गया हरेक अधिकारी कानून के दायरे को जनता था परन्तु बहुतों का यह विश्वास था कि गैर कानूनी तरीके जिनमें अवैध हिरासत और यातनाएं हैं अपराध की विवेचना और कानून लागू करने के लिए जरुरी हथकंडे हैं |

एच.आर.डब्ल्यू. ने यह भी कहा कि यदि दुर्व्यवहार को नजर अंदाज न भी किया जाय | पुलिस अधिकारियों की दयनीय स्थितियों का भी इसमें योगदान है | निम्न स्तर के अधिकारी कठिन कार्य स्थितियों में काम करते हैं | उन्हें हर रोज २४ घंटे ड्यूटी हेतु उपलब्ध रहना पड़ता है | शिफ्ट के स्थान पर उन्हें बहुत सारे लम्बे घटों तक कई बार टेंटों या थाने की गन्दी बैरकों में रह कर काम करना पड़ता है | वे बहुत सारे लम्बे समय तक अपने परिवार से दूर रहते हैं | उनके पास जरुरी उपकरण जिसमें गाडियां, मोबाइल फ़ोन, विवेचना के औजार और प्रथम सूचना लिखने तथा नोट बनाने हेतु कागज शामिल हैं, का आभाव होता है |

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि वे अधिक कार्यभार और संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए शार्ट कट्स को प्रयोग करते हैं | उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि कैसे कार्यभार को कम रखने के लिए अपराध की रिपोर्ट नहीं लिखते | बहुत से अधिकारियों ने बयान किया कि उन्हें कैसे उच्च अधिकारियों के मामलों को जल्दी खोलने के लिए गैर यथार्थवादी दबाव का सामना करना पड़ता है | उन्हें फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने और गवाहों के बयान आदि लेने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता | क्योंकि इसे लेबी प्रक्रिया माना जाता है | अतः वे इसके स्थान पर संदिग्ध व्यक्तियों को हिरासत में लेने और उनसे जबरदस्ती कबूल कराने के लिए अक्सर यातना और दुर्व्यवहार का तरीका अपनाते हैं |

मिनाक्षी गांगुली जो कि एच.आर.डब्ल्यू. की वरिष्ठ शोध कर्ता हैं, ने कहा," अधिकारियों की परिस्थितियां और प्रोत्साहन को बदलने की जरुरत है |" अधिकारियों को ऐसी स्थिति में न पहुँचाया जाय जहाँ वे सोचते हैं कि उन्हें वरिष्ठ अधिकारियों की मांगों को पूरा करने और आदेशों का अनुपालन करने के लिए दुर्व्यवहार करना पड़े | इसके स्थान पर उन्हें संसाधन, प्रशिक्षण और व्यावसायिक और नैतिक तौर पर कार्य करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए |

"ब्रोकन सिस्टम" में पुलिस द्वारा परम्परागत रूप से हाशिये पर रहे लोगों से दुर्व्यवहार का भी विवरण है | इनमें गरीब, महिलाएं, दलित और धार्मिक एवं लैंगिक रूप से अल्प संख्यक हैं | पुलिस प्रायः उन पर हुए अपराधों की विवेचना भेदभाव,पीड़ित द्वारा रिश्वत न दे पाना, या उनके सामाजिक दर्द एवं राजनीतिक संबंधों का आभाव होने के कारण नहीं करती | इन समूहों के सदस्य अवैध गिरफ्तारी एवं यातना का शिकार पुलिस द्वारा आरोपित अपराधों की सजा के तौर पर भी झेलते हैं |

पुलिस के उपनिवेश काल के पुलिस कानून राज्य और स्थानीय राजनेताओं को रोजमर्रा कार्यों में दखल देने का मौका देते हैं | कई बार पुलिस अधिकारियों को राजनीतिक सम्बन्ध रखने वाले लोगों के विरुद्ध विवेचनाएँ बंद करने जिनमें ज्ञात अपराधी होते हैं तथा अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करना भी होता है | इन तौर तरीकों से जनता का विश्वाश कम हो जाता है |

२००६ में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों सम्बन्धी एक ऐतिहासिक निर्णय में दिशा-निर्देश दिए थे | परन्तु दुर्भाग्यवश केंद्र सरकार और अधिकतर राज्य सरकारें मुख्य या पूरे तौर पर न्यायालय के आदेश का पालन करने में विफल रही हैं | इससे यह पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों ने अब भी विधि सम्मत कानून को स्वीकार नहीं किया और न ही पुलिस व्यवस्था में व्यापक सुधार, जिसमें व्यापक मानवाधिकार उलंघन के लिए पुलिस को जवाबदेह ठहराना शामिल है, की जरुरत को समझा है |

नौरीन शाह ने कहा,"भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के दर्जे को अपने आप को कानून से ऊपर समझने वाली पुलिस द्वारा क्षति पहुचाई जाती है | यह एक दुष्चक्र है | भारतीय डर के कारण पुलिस से संपर्क नहीं करते | अतः अपराध असूचित एवं अदंडित रह जाते हैं और पुलिस को जनता का सहयोग नहीं मिलता जो कि अपराधों को रोकने और हल करने के लिए जरुरी है |

ब्रोकेन सिस्टम," पुलिस सुधार के लिए विस्तृत संस्तुतियां भी देता है जो कि सरकारी आयोगों, पूर्व पुलिस अधिकारियों एवं भारतीय समूहों से ली गयी हैं | इनमें मुख्य संस्तुतियां निम्नवत हैं -:

1. संदिग्ध अपराधियों को किसी गिरफ्तारी या हिरासत होने पर उनके अधिकारों के बारे में बताना जिससे इन संरक्षणों की स्वीकृत बढेगी |
2. न्यायालय में ऐसे किसी साक्ष्य को न माना जाय जो संदिग्ध पूंछतांछ के दौरान यातना या निर्दयता, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार से प्राप्त किया गया हो |
3. पुलिस के गलत रवैये और दुर्व्यवहार के विरुद्ध राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोगों और पुलिस शिकायत अधिकारियों को स्वतंत्र जाँच करने हेतु सक्षम बनाए और इसे बढावा दें !
4. प्रशिक्षण और उपकरणों में सुधार हो जिसमें पुलिस महाविद्यालयों में अपराध-विवेचना पाठ्यक्रम को सुदृढ़ करना, कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों को विवेचना में सहायता करने का प्रशिक्षण देना और हर एक पुलिस अधिकारी को फोरेंसिक उपकरण उपलब्ध कराना !
5. ऐसे कानून को समाप्त करें जिससे दंड से मुक्ति को बढावा मिलता हो खासकरके दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ जो कि लगातार दुर्व्यहार करने वाले उनके विरुद्ध मुकदमा चलने से बचाती रही है | यदि यह समाप्त नहीं की जाती है तो "अधिकारिक ड्यूटी" को इस प्रकार परिभाषित करें जिसमें असंवैधानिक व्यवहार जैसे -मनमानी हिरासत, हिरासत के दौरान उत्पीड़न या दुर्व्यवहार और न्यायेत्तर हत्या को शामिल न किया गया हो |


रिपोर्ट में उन लोगों का विवरण हो जिन्हें यातना दी गई थी और अवैध हिरासत में रखा गया था | कुछ कथन निम्नवत हैं-
" उसे रात भर थाने में रखा गया | प्रातः जब हम उसे मिलने गए, उन्होंने कहा कि उसने अपने आप को मार लिया है | उन्होंने हमें उसकी लाश दिखाई जहाँ वह थाने के अन्दर पेड़ से लटक रही थी | पेड़ की शाखा इतनी नीची थी कि उससे लटकना असंभव है | उसके पैर साफ थे जबकि चारों तरफ कीचड था और उसे उसमें चल कर ही वहां पहुँचना होता | यह साफ है कि पुलिस ने उसे मारा और आत्महत्या दिखाने के लिए उसे पेड़ से लटका दिया |" गीता पासी के देवर ने अगस्त २००६ में उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में उसकी मौत के बारे में बताया |

पुलिस अधिकारी अपना रोना इस प्रकार रोते हैं : "हमारे पास सोचने और सोने का कोई समय
नहीं है | मैं अपने आदमियों को बताता हूँ कि पीड़ित हमारे पास इसलिए आतें हैं कि हम उसे न्याय दे सकते हैं, अतः हमें उसे डंडे से नहीं मारना चाहिए | परन्तु वे अक्सर थके मांदे और चिडचिडे होते हैं और गलतियाँ हो जाती हैं |" यह गंगाराम आजाद उपनिरीक्षक, पुलिस थाना उत्तर प्रदेश का कथन है |

" वे कहते है कि २४ घंटे में विवेचना करो परन्तु वे कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं देते कि यह कैसे हो सकता है; संसाधन क्या हैं-----, सनसनी खेज मामलों में बल प्रयोग किया जाता है क्योंकि हमारे पास विज्ञानी तरीके नहीं हैं | हमारे पास क्या बचता है ? हमारे मन में हमेशा भय बना रहता है कि अगर हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेंगें तो हम निलंबित हो जायेंगे या दंडित हो जायेंगें | हमें इस मामले को खोलना ही है; हम तथ्यों की किसी भी तरह से पूर्ति जरुर करें |" उपनिरीक्षक उत्तर प्रदेश में वाराणसी के नजदीक थाने वाले ने कहा |
" प्रायः हमारे वरिष्ठ अधिकारी हमें गलत चीजें करने के लिए कहते हैं | हमारे लिए विरोध करना कठिन होता है | मुझे याद है एक बार मेरे अधिकारी ने मुझें किसी को पीटने के लिए कहा | मैंने कहा कि उस आदमी को जमानत नहीं मिलेगी और वह जेल में सड़ जायेगा तथा वह उसके लिए काफी सजा होगी | परन्तु इससे मेरा अधिकारी नाराज हो गया |" -उत्तर प्रदेश के एक सिपाही ने कहा |
बंगलौर के यौन कर्मियों ने पुलिस द्वारा पिटाई और यौन उत्पीड़न के बारे में बताया | एक महिला ने हयूमन राइट्स वाच से कहा; " मैं गली में खड़ी थी, वहां बहुत सन्नाटा था, एक पुलिस वाला आया उसने मुझे थप्पड़ मारा और फिर बुरी तरह से मेरी पिटाई की मैं जमीन पर गिर पड़ी | जब मैं पानी के लिए गिड़-गिडाई तो उसने अपनी पैंट की जिप खोलकर अपना लिंग पेश किया |"
" तमाम दिमागी उलझनों,२४ घंटें कानून व्यवस्था ड्यूटी, राजनीतिक दबाव से एक आदमी हिंसा पर उतारू हो जाता है | एक आदमी कितना झेल सकता है ? ------हमें एक आरोपी व्यक्ति की निगरानी और उसके मानवाधिकारों का ख्याल रखना होता है, परन्तु हमारे बारे में क्या है ? हमें २४ घंटे इसी प्रकार रहना पड़ता है | हम यह दावा नहीं करते कि हमारी पॉवर हमें सभी समय इसी प्रकार काम करने के लिए पैदा करती है | कई बार हम पीटते हैं या अवैध रूप से हिरासत में रखते हैं | क्योंकि हमारी काम करने की परिस्थितियां और हमारी सुविधाएँ ख़राब हैं | अतः हम अपराधी और आतंकवादी बनाते हैं |" हिमाचल प्रदेश के कांगडा पुलिस स्टेशन के निरीक्षण ने कहा |

मैं श्री एस.आर.दारापुरी जो कि सेवा निवृत भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी तथा उत्तर प्रदेश पीयूसीएल का उपाध्यक्ष हूँ तथा मैंने २००९ का सामान्य चुनाव लड़ा था, इस प्रकार के मामलों में " घनश्याम केवट वाली १७ जून, २००९ की मुठभेड़ जैसी गिनी चुनी ही सही मुठभेड़ होती हैं जिसमें पुलिस की दक्षता का परीक्षण हो गया था शेष ९९% मुठभेडें फर्जी होती हैं |" मैं ३२ साल पुलिस अधिकारी रहा हूँ | मैं जानता हूँ कि फर्जी मुठभेडें कैसे की जाती हैं "| "प्रदेश में आम आदमी सुरक्षित नहीं है |"

श्री लेनिन रघुवंशी, निदेशक पीपुल्स विजिलेंस कमेटी फॉर हयूमन राइट्स ने रिपोर्ट पेश करते हए कहा,' हमने १२५ मामलों का अध्ययन किया | अधिकतर मामलों में न्याय या तो देर से मिला या फिर मिला ही नहीं क्योंकि इन गरीब लोगों की प्रथम सूचना दर्ज कराने के लिए पहुँच नहीं थी या फिर वे विवेचना की उचित पैरवी नहीं कर सकते थे | ऐसे उदाहरण हैं यहाँ पुलिस वालों ने करवाया और फर्जी मुठभेड़ का शिकार हुए लोगों की उनके घर वालों को लाश देने से मना कर दिया "|

रिपोर्ट कहती है कि अब समय नष्ट करने की गुंजाईश नहीं है | भारत सरकार को वर्तमान पुलिस व्यवस्था जो कि मानवाधिकारों के उलंघन को प्रोत्साहित करती है, में व्यापक बदलाव लाया जाए | सदियों से विभिन्न सरकारें पुलिस को ज्यादतियों के लिए उत्तरदायी बनाने और अधिकारों का सम्मान करने वाला पुलिस बल बनाने में असफल रही हैं | यदि राज्य सरकारें पुलिस सुधार लागू करने से मना करती है तो नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठन और सभी सही सोंच वाले लोगों को राज्य सरकारों एवं राजनीतिक पार्टियों पर ऐसा करने के लिए दबाव डालना चाहिए | एक स्वतंत्र उत्तरदायी और लोकतांत्रिक पुलिस व्यवस्था के बिना लोकतंत्र को बनाये रखना कठिन होगा |



लेखक:एस.आर.दारापुरी आई.पी.एस. (से.नि.) उपाध्यक्ष पीयूसीएल उ०प्र० |
srdarapuri@yahoo.co.in

अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न की घटनाओं के पीड़ित पक्ष को तत्काल सहायता अनुदान राशि प्रदान की जाय

मुख्यालय पुलिस महानिदेशक
.प्र. लखनऊ
दिनांक:१९-०६-२००९
अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न की घटनाओं के पीड़ित पक्ष को तत्काल सहायता अनुदान राशि प्रदान की जाय
पुलिस महानिदेशक


श्री विक्रम सिंह पुलिस महानिदेशक, उ.प्र. ने कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध घटित उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु कानून के तहत तत्काल से प्रभावी वैधानिक कार्यवाही के जाय और पीड़ित पक्ष को तत्काल सहायता अनुदान राशिः प्रदान की जाय |

पुलिस महानिदेशक, उ.प्र. ने समस्त पुलिस उपमहानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रभारी जनपद/रेलवेज, समस्त परिक्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक/पुलिस उपमहानिरीक्षक, समस्त पुलिस महानिरीक्षक/ पुलिस उपमहानिरीक्षक रेलवे तथा विशेष जाँच को अपने परिपत्र संख्या ३१/०९ दिनांक १६.०८.०९ के माध्यम से निर्देशित किया है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध घटित उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु सुविचारित कानून बनाये गए हैं | सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल सहायता अनुदान राशिः भी दिए जाने के प्राविधान हैं, परन्तु कतिपय मामलों में पीड़ित व्यक्तियों को अनुमन्य आर्थिक सहायता अनुदान राशिः समय से नहीं मिल पा रही है | इस पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने जनपदीय अधिकारियों को ऐसे मामलों का अनुश्रवण करने व पीड़ित को अनुमन्य आर्थिक सहायता धनराशि समय से उपलब्ध कराने के निर्देश दिये हैं |

श्री विक्रम सिंह ने कहा की आर्थिक सहायता अनुदान राशिः प्राप्त करने वाले पीड़ित पक्ष कतिपय मामलों का आकस्मिक भौतिक सत्यापन भी करा लिया जाये कि पीड़ित व्यक्तियों को अनुमन्य आर्थिक सहायता राशिः समय से वास्तव में प्राप्त हो गयी है या नहीं | यदि किन्ही मामलों में तथ्यों के विपरीत स्थिति पाई जाये तो इस संबंध में नियमानुसार कार्यवाही के जाये और जिला मजिस्ट्रेट से विचार विमर्श कर जनपद स्तरीय समिति की बैठक शीघ्र आयोजित कराकर लंबित मामलों की समीक्षा कर पीड़ित पक्ष को अनुमन्य आर्थिक सहायता शीघ्र उपलब्ध करायी जाये |

पुलिस महानिदेशक ने कहा है कि जनपदीय विशेष जाँच प्रकोष्ठ में सहायता अनुदान वितरण रजिस्टर में निर्णीत मुकदमों के मामलों की प्रविष्टि कहीं कहीं नहीं होती है जिससे यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि मा० न्यायालय के निर्णय के उपरांत पीड़ित व्यक्ति को शेष सहायता अनुदान राशिः मिली अथवा नहीं | मा० न्यायालय में लंबित वाद काफी वर्षों बाद निर्णीत होते हैं, अतः ऐसे पीड़ित व्यक्तियों का पता लगाकर नियमानुसार आर्थिक सहायता अनुदान राशिः प्रदत्त करायी जाय | इस सम्बन्ध में आवश्यक है कि सम्बंधित न्यायालयों से अनु०जाति/जनजाति से सम्बंधित निर्णीत वादों का विवरण प्राप्त कर पीड़ित पक्ष को अनुमन्य आर्थिक सहायता राशि तत्काल उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक कार्यवाही की जाये | इस कार्य का पर्यवेक्षण जनपदीय पुलिस अधीक्षक अपने स्तर पर मासिक गोष्ठी के दौरान अवश्य करें तथा प्रकोष्ठ में उपलब्ध आर्थिक सहायता अनुदान रजिस्टर का जिला समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय से प्रति माह मिलान कर अद्यावधिक रखें जिससे वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाये |

पुलिस महानिदेशक ने बताया कि प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति, उसके आश्रित और सहयोगियों को उनके आवास अथवा उनके ठहरने के स्थान से अपराध के अन्वेषण या सुनवाई या विचारण के स्थान तक का परिवहन आदि अन्य सुविधाएँ देने की आवश्यक व्यवस्था जिला मजिस्ट्रेट स्तर से पूर्व में ही की गयी है | इन प्रावधानों का अध्ययन करके अनुमन्य सुविधाएँ पीड़ित पक्ष को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए है | पुलिस महानिदेशक महोदय ने बताया कि उनके जनपदों में भ्रमण करने के उपरांत यह अनुभव हुआ है कि जनपद स्तर पर तैनात अधिकारियों को अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण ) अधिनियम १९९५ के अनुबंधों की सम्यक जानकारी नहीं है | जिससे शासन स्तर पर अनुमन्य सहायता अनुदान राशि के मामलों की समयबद्ध समीक्षा नहीं हो पा रही है और पीड़ित पक्ष को समय से देय सहायता अनुदान राशि नहीं मिल पा रही है - अतएव अपने अ० शा० परिपत्र संख्या ३१/२००९ दिनांक १६.०६.०९ के माध्यम से जनपदीय अधिकारियों के मार्गदर्शन हेतु पीड़ित पक्ष को अनुमन्य सहायता राशि का विवरण, जो अनु० जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण ) अधिनियम १९९५ के नियम १२(४) में विस्तार से अंकित है, का उद्धरण संलग्न कर प्रेषित किया है, जिससे विभिन्न अपराधों के परिप्रेक्ष्य में शासन द्वारा अनुमन्य न्यूनतम राहत राशि प्रदान किये जाने का प्राविधान है |

पुलिस महानिदेशक श्री विक्रम सिंह ने अपेक्षा की है कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियमावली १९९५ के नियम १२(४) के उपबंधों को जनपद में सभी राजपत्रित अधिकारियों एवं थाना प्रभारियों की गोष्ठी कर भली-भांति अवगत करा दिया जाये जिससे पीड़ित पक्ष को अनुमन्य न्यूनतम सहायता राशि समय से प्राप्त हो सके | इसमें किसी भी प्रकार की शिथिलता न की जाये |

अनुसूचित जाति/जनजाति एवं निर्बल वर्ग के लोगों को आबंटित पट्टो पर कब्जा करने वाले दबंगों के विरुद्ध एन.एस.ए. व गैंगेस्टर एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही की

मुख्यालय पुलिस महानिदेशक,
.प्र. लखनऊ
दिनांक २८-०५-2009

अनुसूचित जाति/जनजाति एवं निर्बल वर्ग के लोगों को आबंटित पट्टो पर कब्जा करने वाले दबंगों के विरुद्धएन.एस.. गैंगेस्टर एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही की जाय |
पुलिस महानिदेशक, उ०प्र०

श्री विक्रम सिंह पुलिस महानिदेशक, .प्र. ने कहा है कि अनुसूचित जाति/जनजाति एवं निर्बल वर्ग के लोगों कोआबंटित पट्टो पर कब्जा करने वाले दबंगों के विरुद्ध एन.एस.. गैंगेस्टर एक्ट के अंतर्गत भी कार्यवाही की जाय

पुलिस महानिदेशक, .प्र. द्वारा समस्त पुलिस उपमहानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/
पुलिस अधीक्षक प्रभारी जनपद, परिक्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक/पुलिस उपमहानिरीक्षकों को निर्देशित किया गयाहै कि प्रायः पाया गया है कि अनुसूचित जाति/जनजाति एवं निर्बल वर्ग के लोगों को जिला प्रशासन द्वारा आबंटितपट्टों की भूमि पर दबंग प्रवृत्ति के लोगों द्वारा जबरदस्ती कब्जा कर लिया जाता है | तहसील दिवस थाना दिवसपर ऐसे अनेक प्रकरण संज्ञान में आते हैं जिन पर राजस्व विभाग के सहयोग से वास्तविक पट्टेदारों को पट्टे परकब्जा वापस दिलाया जाता है | कभी-कभी कब्जा हटाये जाने के बाद भी दबंगों द्वारा पुनः पट्टे की भूमि पर कब्जाकर लिया जाता है और वास्तविक पट्टेदार आबंटित भूमि से वंचित रह जाते हैं |

उन्होंने कहा कि शासन द्वारा प्रदेश की कानून व्यवस्था एवं अपराध की स्थिति में सुधार लाने हेतु प्राथमिकतायेंनिर्धारित करते हुए समय-समय पर विस्तृत निर्देश दिए गये जिसमें अपराध नियंत्रण एवं कानून व्यवस्था बनायेरखने के साथ-साथ प्रदेश के अनुसूचित जाति/जनजाति एवं निर्बल वर्ग को आबंटित किये गये पट्टों पर उन्हेंनियमानुसार कब्जा दिलाने की कार्यवाही किये जाने एवं अवैध कब्जा करने वालों के विरुद्ध कठोरतम वैधानिककार्यवाही किये जाने की भी अपेक्षा की गयी है | इस सम्बन्ध में शासन द्वारा जन समस्याओं के निस्तारण एवंसंवेदनशील पुलिस प्रशासन की समीक्षा हेतु प्रदेश को २६ सेक्टरों में विभाजित करते हुए पुलिस के वरिष्ठअधिकारियों को जनपदों का निरीक्षण कर जनपदों की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के निर्देश दिए गये हैं | यहभी अपेक्षा की गयी है कि अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के पट्टे की भूमि के विषय में कोई भी शिकायत की स्थितिमें तुंरत कार्यवाही की जाय | ऐसे लम्बित विवादों के निस्तारण के लिए अभियान चलाकर दिनांक १५-०७-०९ तककार्यवाही पूर्ण कर ली जाय और दिनांक- ०१-०६-०९ से १५-०७-०९ तक जनपदों में इस दिशा में की गयी कार्यवाहीकी समीक्षा कर आख्या भेजी जाये |

श्री सिंह ने अपेक्षा की है कि सभी पुलिस उपमहानिरीक्षक/वरिष्ठ अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक प्रभारी जनपद राजस्वविभाग द्वारा चिन्हित पट्टों पर अवैध कब्जे के प्रकरणों के नियमानुसार निस्तारण के लिये अपने अधीनस्थों कोपूर्ण सहयोग प्रदान करने के निर्देश दिए जाएँ | साथ ही राजस्व विभाग से समन्वय कर ऐसे प्रकरणों में, जिनमेंदबंगों द्वारा पट्टों पर पुनः अवैध कब्जा कर लिया गया है, को सूचीबद्ध कराकर ऐसे दबंगों के विरुद्ध भारतीय दण्डसंहिता एवं सुसंगत अधिनियमों के अंतर्गत विधिक कार्यवाही करायी जाये | ऐसे दबंगो के विरुद्ध एन।एस.एन. गैंगेस्टर एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही पर भी विचार किया जाये जिससे पट्टों पर अवैध कब्जा करने की प्रवृति परअंकुश लग सके |

-PRO-GNK-

जिला पंचायत मऊ, अध्यक्ष/व अधिकारियों द्वारा ७० लाख की लूट, एफ.आई.आर.दर्ज

जिला पंचायत मऊ, अध्यक्ष/व अधिकारियों द्वारा ७० लाख की लूट, एफ.आई.आर.दर्ज


मऊ: सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत लाखों के धन की बंदरबाट कर सरकारी धन के दुरूपयोग किये जाने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है | इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति के गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व्यक्तियों को व्यक्तिगत/सामूहिक लाभार्थ के लिए उपलब्ध करायी गयी २२.५% धनराशि आय लगभग ७५ लाख की फेरा-फेरी की गयी है | इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध धन के तहत अनुसूचित जाति/ जनजाति के गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व्यक्तियों को ठेला,रिक्शा,सिलाई मशीन, गुमटी, बैंडबाजा, ट्राई साइकिल, गैस, सिलेंडर, गैस चूल्हा, हैण्डपम्प, दुधारू गाय, आवास आदि में खर्च किये जाने थे, उसके स्थान पर टीन शेड लगवाकर उसमें भी भारी धांधली की गयी है | कुल ११३ स्थानों पर टीन शेड लगे हैं जिसमें ३२ जगहों पर नहीं हैं केवल कागज में अंकित हैं | जिसके सम्बन्ध में पूर्व में जानकारी सूचना विधेयक २००५ के तहत जिला विकास अधिकारी मऊ, द्वारा उपलब्ध करायी गयी थी | जिसका अवलोकन करने के साथ, सूचना अधिकार अभियान-मऊ के सदस्य व बोधिसत्व समाज सेवा संस्थान के अध्यक्ष/प्रबंधक श्री जीतेन्द्र कुमार गोयल द्वारा दिनांक ०४.०६.०८ को जिलाधिकारी मऊ, प्रमुख सचिव पंचायत, उ.प्र.शासन व पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार को शिकायती पत्र भेजा था | जिस पर कोई कार्यवाही न होने पर माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका संख्या-६०/२००९ दाखिल किया | जिसमें मा० उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें तो हम भी भयभीत हैं | इसमें प्रथम दृष्टया प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो क्योंकि यह गम्भीर घोटाला है |

उक्त के क्रम में संस्थान के प्रबंधक/ सदस्यों द्वारा तहसील दिवस में पत्र दिया गया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई | पुनः दिनांक ०२.०६.०९ को प्रमुख सचिव/ तहसील दिवसाधिकारी नगर निकाय के समक्ष मामले को रखा गया जिस अधिकारियों को एफ.आई.आर. दर्ज करने का निर्देश हुआ फिर भी अधिकारियों द्वारा आना-कानी करना पड़ा | पुनः संस्थान द्वारा दबाव बनाने के बाद दिनांक १७.०६.०९ को अंतर्गत धारा २१८,४०९ भारतीय दंड संहिता के तहत जिला पंचायत अध्यक्ष मऊ, श्रीमती अंशा यादव, पूर्व मुख्य विकास अधिकारी, पूर्व परियोजना निदेशक, पूर्व अपर मुख्य अधिकारी, जिला पंचायत मऊ श्री जगदीश त्रिपाठी एवं अधिशाषी अधिकारी जिला पंचायत मऊ मो.जमाल के विरुद्ध थाना कोतवाली जनपद मऊ, में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत की गयी |

इससे पूरे जिले के राजनीतिक एवं प्रशासनिक हलको में हड़कंप मचा हुआ है | दर्ज कराये गए मुकदमें में तहरीर के मुताबिक भारत सरकार द्वारा संचालित सम्पूर्ण राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के तहत वर्ष २००६-०७ में लगभग ७० लाख रूपये जिला पंचायत द्वारा खर्च किये गए | योजना के तहत गाइड लाइन के मुताबिक २२.५% धन अनुसूचित जाति/जनजाति के बीपीएल श्रेणी के व्यक्तियों पर खर्च करना था | इसके तहत गरीब व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करने की शासन की मंशा थी | श्री जतेन्द्र कुमार गोयल ने बताया कि गाइड लाइन के प्रस्तर ४.४(७) में स्पष्ट रूप से लिखित है कि योजनान्तर्गत बीपीएल श्रेणी के व्यक्तियों को ठेला, रिक्शा, सिलाई मशीन-----आदि व्यक्तिगत/लाभार्थ देने थे एवं प्रस्तर ६.७.१ के तहत उक्त धन को मंदिर, प्रतिमा, विद्यालय, देवस्थान---------इत्यादि जगहों पर नहीं लगाना है |

जिसके लिए भारत सरकार द्वारा पत्रांक ६१०/२४-०७-०६ एवं प्रमुख सचिव के.के.सिंह द्वारा पत्रांक संख्या २६३६/३८-४-२००८ दि० १७/१०/०६ के माध्यम से पूरे प्रदेश में स्पष्ट आदेश दिए गए थे कि गाइड लाइन के प्रस्तर ४.४(७) के अतिरिक्त धन खर्च नहीं किये जायेंगें और इसके अतिरिक्त खर्च करने पर दंड के भागी होंगें | जिसके क्रम में पूर्व मुख्य विकास अधिकारी मऊ के पत्रांक २८४४/एसजीआरवाई/२००६-०७ दि० १७-११-०६ के माध्यम से जिला पंचायत मऊ को लिखित आदेश दिया गया था | बावजूद गाइड लाइन से अलग हटकर कार्य कराया गया है और धन का बन्दरबाट करते हुए नाम मात्र के टीन शेड लगवाये गए हैं | प्राप्त सूचना विधेयक २००५ के तहत सूचना का अवलोकन करने के बाद कुल ११३ जगहों में ४६ जगह देवस्थान, मंदिर, स्कूल, कॉलेज, महाविद्यालय, प्रतिमा, पार्क, निजी प्रयोग एवं जिला पंचायत सदस्यों द्वारा अपना गेस्ट रूम/बैठक कक्ष वर्कशाप एवं गाड़ियों के रखने के प्रयोग हेतु बनाया गया है | जिलापंचायत सदस्यों द्वारा खुल्लम-खुल्ला उलंघन किया गया है | संस्था द्वारा सर्वे में पाया गया कि ४० देवस्थान इत्यादि एवं ३२ जगहों पर काम ही नहीं हुआ है | केवल कागज़ में दिखाया गया है और एक टीन शेड की लागत ८८,५०० रु० दिखाकर भुगतान किया गया |

उक्त प्रकरण सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना धन के बंदरबाट का मामला काफी दिनों से चर्चाओं में था लेकिन अभी तक इसके विरुद्ध किसी ने आवाज नहीं उठाई थी | संस्था के अध्यक्ष जीतेन्द्र कुमार गोयल ने वर्ष २००८ में जिलाधिकारी को इस सम्बन्ध में पत्र देकर जाँच की मांग की थी | लेट-लतीफ होने के बाद मामला हाई कोर्ट में चला गया और २१-०४-०९ को फिर जिलाधिकारी व अन्य को पत्रक सौंपा | २ जून को मामले को तहसील दिवस में आला अफसरों के सामने रखा और अंततः आला अफसरों के निर्देश पर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराने का निर्देश हुआ | इस प्रकार यह प्रकरण लगभग एक वर्ष से उठ रहा था लेकिन राजनीतिक कारणों के चलते अभी तक इस पर पर्दा डाला जा रहा था |

मुकदमा पंजीकृत होने के बाद मामलों में लीपा-पोती करने पर विवेचक से भरोसा उठते देख श्री गोयल ने दिनांक २०.०६.०९ के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री महोदया से स्वतंत्र जाँच सीबीसीआईडी से कराने की मांग करते रजिस्ट्री/फैक्स के माध्यम से पत्र भेजा है |


लेखक : अरविन्द मूर्ति , जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, सूचना अधिकार अभियान से जुड़े हैं , जमीनी संघर्षों में भागीदारी के साथ सच्ची मुच्ची मासिक पत्रिका के संपादक भी हैं | ईमेल: arvind@gmail.com

यह कैसी आजादी है?

यह कैसी आजादी है?
डॉ संदीप पाण्डेय

जाजूपुर उ.प्र. के हरदोई जिले के अतरौली थाना क्षेत्र व सण्डीला तहसील का एक गांव है। 1976 में 107 भूमिहीन दलित परिवारों को ग्राम सभा की ओर से जमीन के पट्टों का आवंटन हुआ था। बगल के गांव माझगांव का एक दबंग सामंती परिवार है जिसकी इलाके में तूती बोलती है। रामचन्द्र सिंह के भाई श्रीराम सिंह तोमर ब्लाक प्रमुख रह चुके हैं। तीसरे भाई रामेन्द्र सिंह हैं। चचरे भाई नागेश्वर सिंह जो वकील हैं की पत्नी जाजूपुर की ग्राम प्रधान भी हैं, हलांकि ये लोग रहते माझगांव में हैं। इस परिवार ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दलितों को आज तक अपनी भूमि पर कब्जा नहीं करने दिया है।

जैसे ही दलितों के नाम पट्टा हुआ, दबंग जमींदार परिवार ने इन जमीनों पर अपना कब्जा कायम रखने के लिए पेड़ लगा दिए। आज तक इन पेड़ों के बहाने वे इन जमीनों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। बहुत दलित परिवार ऐसे भी हैं जिनके पूवर्जों में से किसी ने जमींदार परिवार के पूर्वजों से कभी कर्ज लिया होगा। उस कर्ज के बहाने भी कई दलितों को उनकी वाजिब जमीन पर काबिज नहीं होने दिया जा रहा।

जब भी प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत की जाती है, नए सिरे से भूमि नपनी शुरू हो जाती है। भूमि नापने के बाद दलितों को सौंप दी जाती है। किन्तु या तो वे अपनी जमीन पर बो ही नहीं पाते अथवा बोने के बाद काट नहीं पाते। जमीन वापस दबंग लोगों के पास चली जाती है। राजस्व विभाग के अधिकारी यह हिम्मत दिखाते नहीं कि दबंग परिवार के खिलाफ जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के तहत मुकदमा लिखे जाने की सिफारिश करें और न ही पुलिस यह हिम्मत दिखाती है कि एक बार नाप कर दलितों की दी गई जमीन पर किसी और को कब्जा करने से रोके।

हाल ही में एक दलित युवा राजेश ने अपनी जमीन पर खड़े नीम के दो पेड़ काट लिए। घर में तीन वर्ष का बच्चा बीमार चल रहा था तथा इलाज के लिए पैसों की आवश्यकता थी। चार लोगों के खिलाफ पुलिस की अनुमति बिना हरे पेड़ काटने के जुर्म में मुकदमा दर्ज हो गया। जिस ट्रैक्टर से पेड़ कट के जाने थे उसके चालक व सहायक, जो दोनों दलित हैं, को रामचन्द्र सिंह, रामेन्द्र सिंह और सुखदेव सिंह ने घर ले जाकर उनके साथ मार-पीट कर उन्हें जेल भी भिजवा दिया। राजेश की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उसके घर पर दबिश भी दी। दरोगा एम.पी. सिंह ने राजेश के घर जाकर तोड़-फोड़ की। जब उप जिलाधिकारी, सण्डीला, से पूछा गया कि क्या पेड़ काटना इतना बड़ा जुर्म है कि पुलिस घर जाकर ताण्डव करें तो उनका कहना था कि यही पुलिस बाग के बाग कटने के बावजूद उन्ही के आदेश की अवहेलना कर प्राथमिक सूचना रपट तक नहीं दर्ज करती। अंततः राजेश को जमानत मिलने के बाद ही राहत मिली। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में राजेश का बीमार बच्चा चल बसा क्योंकि इसका कोई इलाज कराने वाला ही नहीं था।

थाने पर रामचन्द्र सिंह, रामेन्द्र स्रिह व सुखदेव सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति व जनजाति उत्पीड़न निरोधक अधिनियम तथा जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की गई। किन्तु जमींदार परिवार का इतना दबदबा है कि कानूनों का उल्लंघन करने के बावजूद उनके खिलाफ कोई रपट तक दर्ज नहीं की जाती और दलितों पर अपने ही खेतों में खड़े अपने ही पेड़ों को काटने पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। ऐसा तब है जब उ.प्र. में दलित हितैषी सरकार है तथा पुलिस महानिदेशक का स्पष्ट आदेश है कि किसी भी दलित की जमीन पर यदि किसी अन्य ने कब्जा किया हुआ है तो दोषी व्यक्ति के खिलाफ तुरंत मुकदमा दर्ज हो।

करीब दो वर्ष पहले राजस्व विभाग ने रामचन्द्र सिंह, चंद्रप्रकाश सिंह, नागेश्वर सिंह व अन्य कुछ लोगों पर ग्राम सभा की पट्टे की हुई जमीन पर कब्जा करने के जुर्म में रुपए 14 लाख से ऊपर का जुर्माना किया था। किन्तु इन प्रभावशाली लोगों ने न्यायालय से अपने पक्ष में स्थगनादेश प्राप्त कर अपने खिलाफ होने वाली कार्यवाही को रुकवा लिया।

जब दलितों ने देखा कि इस व्यवस्था से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती तो अंततः हार मान कर वे इस बात के लिए तैयार हुए हैं कि जमींदारों ने जो पेड़ उनकी जमीनों पर लगाए हैं वे काट कर ले जाएं भले ही पेड़ों पर कानून अधिकार दलितों का ही बनता है और जमींदार दलितों को उनकी जमीनों पर खेती करने दें। जमींनदारों ने इस बात की गारण्टी मांगी हैं कि पेड़ काटने में उनके खिलाफ कोई कार्यवाही न की जाए भले ही यह गैर कानूनी है कि हरे पेड़ों को काटा जाए।

सभी अधिकारियों-कर्मचारियों का कहना है कि इससे बेहतर व्यवहारिक फैसला फिलहाल कोई नहीं हो सकता। दलित भी यही मानने पर विवश हैं कि यही फैसला उनके हित में हैं क्योंकि पेड़ों के साथ उनको जमीनें मिल जाएं इसकी सम्भावना वर्तमान परिस्थितियों में तो दिखाई पड़ती नहीं। 35 वर्षों बाद वे जमीन के मालिक बनेंगे यही उनके लिए बहुत बड़ी बात है। किन्तु यह जमींनदारों की गुण्डागर्दी की जीत कही जाएगी और भारतीय संविधान व कानून व व्यवस्था की हार। पुलिस-प्रशासन ने सामंती ताकतों के आगे समर्पण कर दिया है तथा एक दलित हितैषी सरकार में दलितों के हित सुरक्षित नहीं हैं।
आजादी के 62 साल बाद यह कैसी आजादी है?


डॉ संदीप पाण्डेय

(लेखक, मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम्) के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं। संपर्क: ईमेल: asha@ashram@yahoo.com, website: www.citizen-news.org )


निमंत्रण: उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघनों पर बैठक

निमंत्रण: उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघनों पर बैठक

इस बैठक को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र० एवं पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है
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आप सबसे निवेदन है कि १४ अगस्त २००९ को लखनऊ में उत्तर प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन पर एक बैठक में सम्मलित हों। इस बैठक को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र० एवं पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है।

इस बैठक में एक जनता जांच रपट भी जारी की जायेगी जो उत्तर प्रदेश में हुए कुछ मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर है।

स्थान: शुक्रवार, १४ अगस्त २००९
स्थान: गाँधी भवन पुस्तकालय, शहीद स्मारक के सामने, लखनऊ
समय: १२-२ बजे दोपहर

आप सब से निवेदन है कि इस बैठक में शामिल होने का कष्ट करें।

सधन्यवाद

एस.आर दारापुरी
उपाध्यक्ष, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ०प्र०
फ़ोन: ९४१५१ ६४८६५

डॉ संदीप पाण्डेय
अध्यक्ष, पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स
फ़ोन: २३४७३६५

मैं देशद्रोही कैसे हो सकता हूं?

मैं देशद्रोही कैसे हो सकता हूं?
डॉ संदीप पाण्डेय

अयोध्या में 2003 मार्च में विवादित स्थल की खुदाई चल रही थी यह देखने के लिए कि क्या ऐसे कोई अवशेष प्राप्त हो सकते हैं जिससे मंदिर-मस्जिद विवाद का कुछ हल निकल सके। दुनिया के पैमाने पर अमरीका ईराक पर हमले की तैयारी कर रहा था।


मैं बादल आचारी व रंगेश आचारी, जिन दोनों के पिता दो मंदिरों के महंथ हैं, के साथ तीन मांगों को लेकर तुलसी चौरा मंदिर में सात दिवसीय उपवास पर बैठा था। हमारी मांगें थीं - अयोध्या या राम मंदिर मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल बंद किया जाए, भारत से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बाहर किया जाए व अमरीका ईराक पर हमले की मंशा छोड़ दे। देखने में ये तीनों मांगें अलग लगने के बावजूद एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं। हमारा मानना था कि साम्प्रदायिकता, नव-उदारवाद की आर्थिक नीति व साम्राज्यवादी सोच एक दूसरे की पोषक हैं।

तुलसी
चौरा वह मंदिर है जहां बताते हैं कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। उस समय तो आम लोगों की भाषा में लिखने के लिए तुलसीदास का ब्राह्मणों ने काफी विरोध किया था। उनका बहिष्कार इस हद तक था कि तुलसीदास खुद बताते हैं कि वे मांग कर खाते थे और मस्जिद, वही जो 6 दिसम्बर, 1992, को ढहा दी गई, में सोते थे। आज तुलसी चौरा मंदिर की जिम्मेदारी बादल आचारी के परिवार के पास है।

15 मार्च, 2003, की शाम को पुलिस ने उपवास पर बैठे हम तीन लोगों को तुलसी
चौरा मंदिर के अंदर से गिरफ्तार कर लिया। यह उपवास का पहला ही दिन था। इसके अलावा उन्होंने हमारे सहयोगियों गोपाल कृष्ण वर्मा व गौरव तिवारी को भी उनके घरों से गिरफ्तार कर लिया।

2002 में जब हिन्दुत्ववादी शक्तियों का गुजरात में ताण्डव चल रहा था और विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अषोक सिंघल ने ऐलान किया था कि गुजरात तो एक प्रयोगशाला है, वे पूरे देश को गुजरात बना देंगे तो हम लोगों ने तय किया कि हम उत्तर प्रदेश को गुजरात नहीं बनने देंगे। चित्रकूट से अयोध्या की एक 26 दिवसीय साम्प्रदायिक सदभावना पदयात्रा निकाली गई थी। उस पदयात्रा में हमारे साथ कुछ साहित्य भी था जिसमें एक स्टिकर था जिसपर लिखा था - लाशें जिसकी नींव में खूनी हर दीवार, वह मंदिर हे राम तुम मत करना स्वीकार, जिसमे बांटा देश को नफरत का पैगाम, उस मंदिर में भूलकर मत जाना हे राम। इन पंक्तियों के रचयिता हैं लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और मुझे ये निर्मला देशपांडे जी की एक पुस्तिका ईश्वर-अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान के पीछे आवरण पर पहली बार पढ़ने को मिली थीं। यह वह दौर था जब निर्मला दीदी भी साम्प्रदायिकता का डट कर मुकाबला कर रही थीं।

हमको गिरफ्तार कर इस एक वर्ष पहले हुई पदयात्रा के दौरान छपे स्टिकर को आधार बना कर हम पांचों के ऊपर देशद्रोह व साम्प्रदायिक सदभावना बिगाड़ने का आरोप लगाया गया। हम जेल चले गए। एक हफ्ते बाद जमानत मिली। यह बात है जब उ.प्र. में भाजपा के समर्थन से मायावती जी की सरकार चल रही थी। देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति इसके बाद बनने वाली मुलायम सिंह की सरकार ने दी।

मामला मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट, फैजाबाद, के यहां लम्बित है। हमने मुकदमा खत्म करने की अर्जी लगाई क्योंकि हमारा मानना है कि देशद्रोह व साम्प्रदायिक सदभावना बिगाड़ने का कोई मामला ही नहीं बनता है। पुलिस ने झूठा मामला दर्ज किया है कि हम घूम-घूम कर स्टिकर-पोस्टर लगा रहे थे और नारेबाजी कर रहे थे जिससे लोगों में आतंक फैल गया था। यह भी कहा गया कि हम मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़का रहे थे। स्टिकर को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

पुलिस की कहानी में बाकी बाते झूठी हैं। यदि स्टिकर की बात करें तो जो पंक्तियां हैं वह साम्प्रदायिक सदभावना का संदेश देती हैं। लोगों को साम्प्रदायिक राजनीति से आगाह कर रही हैं। हिन्दू समुदाय को सम्बोधित किया गया है। इसका मुसलमानों से तो कोई लेना-देना ही नहीं है। इन पंक्तियों के आधार पर देशद्रोह का मामला कैसे बनता है यह हमारी समझ से परे है?

असल में देशद्रोही तो वे लोग हैं जिन्होंने बाबरी मस्जिद ढहाई। बाबरी मस्जिद गिरने से पहले भारत में श्रन्ख्लाबद्ध बम धमाके नहीं हुआ करते थे। और आतंकवादी घटनाओं की शुरुआत तो तब हुई जब 2001 में हम बिना बुलाए अमरीका की आतंकवाद के खिलाफ जंग का हिस्सा बन गए। भारत की पहली आतंकवादी कही जाने वाली घटना उसी वर्ष संसद पर हमला थी। कुल मिलाकर हिन्दुत्ववादी संगठनों की कारगुजारियों का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। उनकी करतूतों ने आतंकवाद को आमंत्रित किया है। हमें यह सोचना पड़ेगा कि दुनिया के बहुत से देश हैं जहां आतंकवाद कोई खतरा नहीं है। इन देशों ने क्या नीतियां अपनाई हैं? हमारे यहां बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना, परमाणु परीक्षण, अमरीका से सम्मानजनक दूरी बनाए रखने की नीति को छोड़ कर उसका मित्र बनना, अमरीका व इजराइल की मदद से राज्य का सैन्यीकरण - ये आतंकवाद के लिए जिम्मेदार हैं। इस लिहाज से बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना इस देश की पहली आतंकवादी कार्यवाही मानी जाएगी। यदि अयोध्या में बाबरी मस्जिद न ढहती तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। हमारी ऊर्जा एवं संसाधन नकारात्मक को रोकने में नहीं बल्कि सृजनात्मक प्रयासों में लग रहे होते। देश ज्यादा खुशहाल होता। महौल शान्ति एवं सदभावना का होता।

जहां तक मेरी बात है तो मैं तो जाति, धर्म, राष्ट्र, जैसी संकीर्ण पहचानों से मुक्त हूं। ये सारी कृत्रिम पहचानें हैं जिन्होनें इंसानों को लड़ाने का काम ही ज्यादा किया है। इनका जो सकारात्मक योगदान है वह तो हम इंसान की सिर्फ एक इंसान के रूप में पहचान रख कर भी हासिल कर सकते थे। अब जब मैं राष्ट्र की अवधारणा को ही नहीं मानता तो मैं देशद्रोही कैसे हो सकता हूं? मैं दुनिया में कहीं भी किसी अन्याय का प्रतिकार करूंगा और सदभावना के काम का हितैषी होऊंगा। मैं साम्प्रदायिक सद्भावना बिगाड़ने का काम भी नहीं कर सकता क्योंकि मैं मनुष्यों को उनकी साम्प्रदायिक पहचानों में बांटकर देखने का आदी नहीं हूं।

डॉ संदीप पाण्डेय

(लेखक, मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं और आशा परिवार का भी नेतृत्व कर रहे हैं। ईमेल: ashaashram@yahoo.com )