नाम गरीब का, काम अमीर का
वाह रे! सरकार, वाह रे! सरकारी तंत्र | सब के सब खून चूसने में लगे हैं | चूसते रहो | क्योंकि गरीब ही वह भगवान है जिसका खून उसके घर में खटमल से लेकर इन्सान की शक्ल में छुपे बड़े खटमल तक चूसते हैं | अब आगे देखो किस तरह ये खटमल गरीबों का खून चूसते हैं | चुन्नीलाल
कोई किसी का नाम ले या न ले लेकिन, सरकार और सरकारी तंत्र इन गरीबों का जरुर ध्यान रखते हैं और इन्हें गरीब बनाने में पूरी मदद करते हैं | कोई भी योजना देख लीजिये, सारी योजनाओं में इन गरीबों, आवासहीनों, बेरोजगारों, बेसहारों, विकलांगों, वृद्धों, विधवाओं का नाम जरुर बड़ी सिद्दत के साथ लिखा होगा और मंत्री जी भी बड़े आदर से इनका नाम लेते नहीं थकते हैं क्योंकि उनके मुंह में राम, बगल में छूरी रहती हैं | अब आप "अपना घर" योजना जो लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ की है | जिसमें दुर्बल आय वर्ग, जिसकी आय ३९,००० रु० वार्षिक है, के लिए ३० वर्ग मीटर का मकान जिसकी लागत २.५० लाख रूपये है और अल्प आय वर्ग जिसकी आय ७२,००० रु० वार्षिक है, के लिए ५० वर्ग मीटर का मकान जिसकी लागत ५.५० लाख रु० है |
अब आप सोंच सकते हैं कि यह मकान कोई गरीब खरीद सकता है जिसकी आय उसका परिवार चलाने भर के लिए पर्याप्त नहीं हैं | गरीब को एक रोटी तो ठीक से मिल नहीं पाती जिससे उसको जीवन मिलेगा तो, मकान क्या आत्महत्या करने के लिए लेगा ? क्योंकि वह इसका पैसा चुका नहीं सकता और आखिर में कर्ज से तंग आकार उसे आत्महत्या ही करनी पड़ेगी | इसके बाद ही सरकार उसका ब्याज माफ़ करेगी, उसके पहले नहीं ! जिस मकान की उसे जरूरत है वह तो अभी बने नहीं हैं या अर्धनिर्मित हैं | उन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है | यह सब सोंची समझी चाल है | जिन लोगों को खुले असमान के नीचे अपनी जिंदगी, अपने परिवार के साथ, जिसमें छोटे-छोटे बच्चे, बूढे हैं, काट रहे हैं | जहाँ पानी तक मिलना मुस्किल है जिसके बिना जीवन चलन मुस्किल है | उनके लिए कोई ध्यान नहीं है ध्यान है तो बस, गरीबों का नाम लेकर अमीरों का काम करना |
यह ऐसा जाल है जिसे समझ पाना बहुत ही मुस्किल काम है | गरीब को और गरीब बनाये रखना चाहते हैं ताकि अपना काला धंधा इन्ही लोगों के नाम पर चलाते रहें | उनको मालूम है कि यह मकान गरीब नहीं खरीद सकता है तो ला-मुहाला अमीर ही इसका प्रयोग करेगा क्योंकि वही इसका भुगतान और गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड लगाकर हक़दार बनेगा | इसके बाद घोषणा होगी कि सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय | यानी सबको मकान मिल गए हैं कोई दुखी नहीं है सब पक्के और मंजिल दार शहरी आवासों में ए.सी. में विश्राम कर रहे हैं, लेकिन दिल से आवाज यह आवाज हमेशा आती होगी कि केवल गरीब को छोड़ कर | क्योंकि गरीब का बना रहना बड़ा जरुरी है क्योंकि अपनी रोटी तो उसी की पीठ पर सेंकना है | इसीलिए सच कहा गया है कि नाम गरीब का, काम अमीर का !
लेखक - चुन्नीलाल ( आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं)
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