मिड डे मील , प्रधान की झोली में !
प्राथमिक विद्यालय तथा पूर्व.मा.वि. ककौली, डिगुरिया, ब्लाक चिनहट, लखनऊ में जुलाई २००९ पूरी निकलती चली गई है लेकिन मध्याहन भोजन अभी प्रधान की झोली में से निकल कर स्कूल में बच्चों तक नहीं पहुंचा है | अधिकारियों से इसकी शिकायत करो तो वो आप को इतना दौडायेंगे कि जितना खून बचा है वह सब चूस लेंगे | भला बताइए कि ऐसे में कौन कहेगा कि मध्याहन भोजन नहीं बन रहा है | बने चाहे न बने मेरी बला से, बात आई तो कह दिया, यह मेरा कानूनी अधिकार है, जनता का जो पैसा लगा है | हाँ बात कर रहा हूँ प्राथमिक विद्यालय, और पूर्व माध्यमिक विद्यालय, ककौली, डिगुरिया, लखनऊ की जहाँ दिनांक ३०-०७-२००९ को इस विद्यालय में गया और हेड मास्टर तथा चार सहायक अध्यापक, जिनमें दो शिक्षामित्र हैं, तथा रसोइयों से बात हुयी तो उन्होंने रजिस्टर उठा के दिखा दिया कि जुलाई माह में केवल २०,२१,२२,२४,२५ तारीख को मध्याहन भोजन बच्चों को मिला वो भी ऐसा कि बच्चों कि क्या बात करें लोग गाय, भैंस को देने से पहले उसे कूड़ा करकट और साफ़ करके तथा बिना सडा देते हैं | अब बात आती है रसोइया की, कि वो साफ़ करके नहीं देता है तो भाई आप ही बताइए कि जो चावल काला,सडा, मटमैला, पुराना ( कुत्ते की पूँछ जैसा जो कभी न सीधा होने वाला चाहे जितना कोशिश करो) होगा वो कैसा, और कितना साफ़ किया जाय साफ़ हो ही नहीं सकता है | यहाँ एक सवाल और भी है कि गरीब लोगों की शिक्षा से लगाकर भोजन तक एक तो मिलती नहीं हैं अगर मिली भी तो सब बची-खुची चीजें ही क्यों मिलती हैं, कभी तो शुद्ध मिल जाया करें | सबसे बड़ी बात यह है कि प्रा.वि. ककौली में खाना बनाने वाली कामिनी देवी को पिछले अगस्त २००८ से अभी तक और पूर्व मा.वि. डिगुरिया (ककौली) में खाना बनाने वाला जसकरण यादव को ८ फरवरी २००८ से अबतक की मजदूरी प्रधान ने नहीं दी, यह जानकारी हमें स्कूल और रसोइयों से मिली | जब यह शिकायत और साथ में खराब चावल का नमूना लेकर मैं बेसिक शिक्षा अधिकारी, शिक्षा भवन, लखनऊ गया तो पता चला कि बी.एस.ए. साहब जी नहीं हैं, लेकिन उनके सहायक बाबू सुबोध जी,चौधरी जी जो मध्याहन भोजन देखते हैं | सुबोध जी और चौधरी जी से बात हुयी तो उन्होंने तो अपना हाथ झाड़ते हुए कहा कि यह काम जिला पंचायत राज अधिकारी का है, हम लोग केवल पैसा भेज देते हैं | फिर उन्होंने प्रधान के खाते में पड़ा शेष पैसा जुलाई २००९ से २७,२८०/- प्रा.वि. और ४८,३५९/- पूर्व मा.वि. का, कुल शेष ७५,६३९/- रु. अभी है | यह सूचना पाकर मैं बाहर चला आया | अब आप ही बताइए कि जो काम उन्हें करना था वो मेरे सिर पर डाल दिया | खैर इस गडबडी को मैं ऊपर अधिकारियों तक लेकर जाऊंगा | देखना यह है कि इन बच्चों को उनका भोजन का अधिकार कौन दिलाता है जो सबसे बड़ा अधिकार है, और इस पैसे की गडबडी किस तरह बंद होगी तथा रसोइयों को उनकी मजदूरी कैसे मिलेगी | मध्याहन भोजन बच्चों के पेट में जाना चाहिए न की प्रधान की की झोली में | मिड-डे-मील विभाग अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट रहा है | अब यह राम भरोसे, जब मन हुआ तब बन गया अन्यथा नहीं | कार्यवाई जारी है हिम्मत नहीं हारना है |
लेखक - चुन्नीलाल ( आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं)
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