[English] सोशलिस्ट पार्टी और लोक राजनीति मंच के डॉ संदीप पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री उमेश सिन्हा को १२ जनवरी २०१२ को पांच स्पष्ट सुझाव दिए जिससे कि आगामी फरवरी २०१२ में विधान सभा चुनाव अधिक लोकतान्त्रिक और इमानदारी से कराये जा सकें.
मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय द्वारा लिखे गए पत्र का हिंदी अनुवाद नीचे दिया जा रहा है (अंग्रेजी का मौलिक पत्र पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये):
सेवा में
श्री उमेश सिन्हा
मुख्य चुनाव आयुक्त
उत्तर प्रदेश
तिथि: १२ जनवरी २०१२
विषय: अधिक लोकतान्त्रिक और इमानदारी से चुनाव कराने के लिये सुझाव
प्रिय उमेश जी,
आज आप के कार्यालय में हुई बात को आगे बढ़ाते हुए मैं कुछ सुझाव देना चाहूँगा:
१) कृपया 'शैडो रजिस्टर' (या परछाई रजिस्टर) को नियमित रूप से सार्वजनिक करें जिससे कि मतदाता और जनता यह निगरानी रख सकें कि ७५० 'माइक्रो-ऑब्जर्वर' और अन्य अधिकारी चुनाव सम्बंधित खर्चे को सहे से रपट कर रहे हैं और यदि कोई खर्चा छूट गया हो तो उसको रपट कर सकें जो आप पुष्टिकरण के बाद जोड़ सकते हैं. इससे चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी और चुनाव उम्मीदवारों की जवाबदेही भी बढ़ेगी और जनता यह देख सकेगी कि उम्मीदवार कितनी इमानदारी से अपने चुनाव खर्चे को रपट कर रहे हैं.
२) राजनीतिक पार्टी द्वारा किये गए खर्चे, जैसे कि चुनाव प्रचार में इस्तेमाल होने वाले हवाईजहाज और 'हेलीकोप्टर' के खर्चे, को, उस पार्टी के सभी उम्मीदवारों के खर्चे में भाग कर के जोड़ देना चाहिए वर्ना छोटी पार्टियों के और निर्दलीय उम्मीदवारों के प्रति यह जायज नहीं होगा.
३) मायावती जी और हाथियों की मूर्तियों को ढकने के खर्चे को बहुजन समाज पार्टी को वहन करना चाहिए. हालाँकि यह मूर्तियाँ सरकारी खर्चे पर लगायी गयी थीं, पर क्योंकि इनको एक राजनीतिक दल से जोड़ा जाता है इसलिए इनको ढकने का खर्चा भी उसी पार्टी को उठाना चाहिए. यह इसलिए भी जरुरी है क्योंकि यह मूर्तियाँ पिछली सरकार के कार्यकाल में ही लगायी गयीं थीं. जनता पर दोहरा दबाव आ रहा है, पहले तो मूर्तियाँ जनता के पैसे से लगायी गयी और उनको ढकने का खर्च भी जनता के पैसे से हो यह वाजिब नहीं है.
४) निर्दलीय उम्मीदवारों को जबतक चुनाव चिन्ह: न मिल जाए, तब तक स्थापित राजनीतिक दलों द्वरा चुनाव चिन्ह: के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए. मूल बात यह है कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह: प्रयोग कर के प्रचार करने की एक समान्य अवधी ही मिलनी चाहिए.
५) चुनाव आयोग का एक अधिकारी सचिवालय भवन से बाहर बैठे - क्योंकि सचिवालय भवन में दाखिल होने के लिये 'पास' की जरुरत होती है जो आसानी से नहीं मिल पता है और चुनाव आयोग के अधिकारियों को 'पास' जरी करने के लिये राज़ी करने में छोटी पार्टियों के प्रतिनिधियों या निर्दलीय उम्मीदवारों को अक्सर असफलता होती है.
सधन्यवाद
डॉ संदीप पाण्डेय
लोक राजनीति मंच और सोशलिस्ट पार्टी
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