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कोरोना वायरस रोग महामारी पर अंकुश के लिए क्यों है ज़रूरी तम्बाकू उन्मूलन?

[English] भारत समेत जो देश इस समय कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) महामारी से जूझ रहे हैं, उनके वैज्ञानिक शोध आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि जो लोग अधिक आयु के हैं और जिन्हें गैर-संक्रामक रोग हैं, उन्हें कोविड-19 के गंभीर लक्षण हो सकते हैं और मृत्यु होने की सम्भावना भी अधिक है. विश्व में गैर-संक्रामक रोग के कारण 70% मृत्यु होती है. हृदय रोग, पक्षाघात, कैंसर, मधुमेह, दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि प्रमुख गैर-संक्रामक रोग हैं. इन सभी गैर-संक्रामक रोगों का खतरा अत्याधिक बढ़ाता है - तम्बाकू सेवन. किसी भी प्रकार के तम्बाकू सेवन करने से, जानलेवा गैर संक्रामक रोग का खतरा मंडराने लगता है और कोविड-19 होने पर भी परिणाम घातक हो सकते हैं.

क्या है सम्बन्ध? मधुमेह और लेटेंट टीबी, टीबी रोग, दवा प्रतिरोधक टीबी

[English] वैज्ञानिक शोध से यह तो प्रमाणित था कि मधुमेह होने से टीबी-रोग होने का ख़तरा 2-3 गुना बढ़ता है और मधुमेह नियंत्रण भी जटिल हो जाता है, पर "लेटेंट" (latent) टीबी और मधुमेह के बीच सम्बंध पर आबादी-आधारित शोध अभी तक नहीं हुआ था। 11-14 अक्टूबर 2017 को हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, लेटेंट-टीबी और मधुमेह सम्बंधित सर्वप्रथम आबादी-आधारित शोध के नतीजे प्रस्तुत किये गए.

कमज़ोर संक्रमण नियंत्रण के कारण बढ़ी बच्चों में दवाप्रतिरोधक टीबी

अधिकांश बच्चों में, विशेषकर छोटे बच्चों में, टीबी उनके निकटजनों से ही संक्रमित होती है। अविश्वसनीय तो लगेगा ही कि सरकार ने अनेक साल तक बच्चों में टीबी के आँकड़े ही एकाक्रित नहीं किए पर 2010 के बाद के दशक में अब बच्चों में टीबी नियंत्रण पर सराहनीय काम हुआ है - देश में और विश्व में भी। पर यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि संक्रमण नियंत्रण कुशलतापूर्वक किए बैग़ैर हम टीबी उन्मूलन का सपना पूरा नहीं कर सकते।

विश्व मधुमेह दिवस पर भारत टीबी-मधुमेह सम्बंधित बाली-घोषणापत्र को समर्थन दे: अपील

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि आगामी विश्व मधुमेह दिवस १४ नवम्बर को बाली-घोषणापत्र को अपना समर्थन दे कर, टीबी और मधुमेह के सह-महामारी को रोकने के प्रयासों में तेज़ी लाये. इंडोनेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाली-घोषणापत्र को समर्थन दे कर दोनों महामारियों के नियंत्रण के प्रति अपना मत दिया है. सीएनएस स्वास्थ्य को वोट अभियान की वरिष्ठ सलाहकार शोभा शुक्ला ने कहा कि "भारत समेत सभी देश जहां टीबी और मधुमेह दोनों एक महामारी का प्रकोप लिए हुए हैं, उनको चाहिए कि बाली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करें और टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों में सक्रीय तालमेल बिठाएं. भारत में विश्व में सबसे अधिक टीबी के रोगी हैं और मधुमेह भी महामारी के रूप में स्थापित है, इसीलिए दोनों कार्यक्रमों में भी समन्वय होना आवश्यक है."

सरकार द्वारा टीबी दवाओं के विक्रय को विधिवत नियंत्रित करना जन-हितैषी कदम

1 मार्च 2014 से भारत सरकार ने ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 में संशोधन करके 46 ऐन्टीबाइओटिक दवाओं को, बिना चिकित्सकीय परामर्श के बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन 46 ऐन्टीबाइओटिक दवाओं में टीबी की दवाएं भी शामिल हैं। टीबी नियंत्रण के लिए उत्तर प्रदेश राज्य टास्क फोर्स के अध्यक्ष एवं इंडियन चेस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सूर्य कान्त का कहना है कि “सरकार इस जन हितैषी और जन-स्वास्थ्य हितैषी कदम के लिए बधाई का पात्र है। टीबी दवाओं की बे-रोकटोक बिक्री पर बहुत पहले ही प्रतिबंध लगना चाहिए था। अनियमित टीबी दवाएं लेने से दवा-प्रतिरोधक टीबी उत्पन्न हो सकती है इसलिए टीबी दवाओं के साथ-साथ 45 अन्य ऐन्टीबाइओटिक दवाओं को “शैड्यूल एच1” में शामिल करके, उनको बिना चिकित्सकीय परामर्श के बेचने पर रोक लगाने का यह कदम सराहनीय है”।

75% मधुमेही-पाँव अंगच्छेदन को रोकना मुमकिन

[English] 25% ‘डाइबिटीस’ या मधुमेह के साथ जीवित लोग, ‘मधुमेही-पाँव’ से संबन्धित समस्याओं का सामना अपने जीवनकाल में करते हैं। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्रेस्ट एवं एंडोकराइन सर्जरी विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ ज्ञान चंद का कहना है कि मधुमेही लोग अक्सर पाँव में मधुमेह-संबन्धित समस्याओं से जूझते हैं। सामान्य समस्या भी अति-गंभीर रूप के लेती है जिसका स्वास्थ्य और जीवन पर अत्यंत अवांछनीय असर पड़ता है। अक्सर नस को नुकसान पहुंचता है जिसकी वजह से पाँव में महसूस करने की क्षमता नगण्य हो जाती है। पाँव में रक्त संचार का बिगड़ना या पाँव या पैर-उंगली का विकृत होना आदि समस्याएँ आती हैं।

टीबी-डायबिटीज का बढ़ता प्रकोप

शोध से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि डायबिटीज का सम्बंध टीबी रोग से है। शोध के अनुसार डायबिटीज होने पर टीबी रोग के होने का खतरा 3 गुना बढ़ जाता है, और यदि व्यक्ति तंबाकू सेवन या धूम्रपान करता हो, तो टीबी रोग होने का खतरा 5 गुना तक बढ़ जाता है। डायबिटीज एक ऐसी भयंकर रोग है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि या तो शरीर में रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण बंद हो जाता है या इंसुलिन हार्मोन अपने कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है। सम्पूर्ण विश्व में लगभग 3660 लाख लोग डायबिटीज के साथ जीवन यापन कर रहे हैं, जिसमें से 90% वयस्क द्वितीय प्रकार की डायबिटीज से ग्रस्त है। वर्ष 2011 में पूरे  विश्व में लगभग 46 लाख लोग डाइबेटीज़ जनित रोगों के कारण मृत्यु का शिकार हुए, जिनमे से 80% लोग निम्न व मध्यम आय वाले देशों से थे, और 2030 तक यह संख्या दुगुनी हो सकती है।

प्रो० (डॉ) रमा कान्त को झारखण्ड अध्यक्षीय ओरेशन अवार्ड २०१०

हजारीबाग, झारखण्ड में प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त को २४ अक्टूबर को झारखण्ड ओरेशन अवार्ड २०१० से नवाज़ा गया. प्रो०(डॉ) रमा कान्त ने 'पैरों के मधुमेह/ डाईबीटीस' पर अपना अध्यक्षीय व्याख्यान दिया. प्रो०(डॉ) रमा कान्त, वर्तमान में इंदिरा नगर सी-ब्लाक चौराहे स्थित 'पाइल्स टू स्माइल्स' क्लिनिक के महानिदेशक एवं शाहमीना रोड स्थित 'सिप्स' अस्पताल के प्रोफेसर-निदेशक हैं, और छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के से०नि० अध्यक्ष हैं.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त के अनुसार “मधुमेह के रोगी के शरीर के स्नायुओं के क्षतिग्रस्त होने की भी सम्भावना होती है। कुछ रोगियों मे इस क्षति के कोई बाह्य लक्षण नहीं दिखाई देते, परन्तु कुछ रोगियों को हाथ-पैरों में दर्द, झंझनाहट या संज्ञा शून्यता महसूस होती है। मधुमेही के गुर्दों पर भी इस रोग का बुरा प्रभाव पड़ सकता है। गुर्दे शरीर को साफ़ रखने मे असमर्थ होते जाते हैं और अंतत: कार्य करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति को ‘क्रोनिक किडनी फेलियर' कहते हैं।”

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त का कहना है कि मधुमेह का एक सबसे भयानक प्रभाव है ‘डायबेटिक फुट’ अथवा ‘मधुमेही पाँव'। अधिक समय तक मधुमेह रोग होने से पांवों की धमनियों और स्नायुओं मे विकार हो जाता है, जिसके चलते न केवल रोगी के पैर को, वरन उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है। ‘ मधुमेही पाँव’ से पीड़ित होने पर रोगी को लंबे समय तक अस्पताल मे रहना पड़ सकता है तथा उसके परिचार मे भी बहुत सजगता बरतनी पड़ती है।

मधुमेही के पाँव काटने की स्थिति आने के दो मुख्य कारण हैं---लंबे समय तक चलने वाले अनियंत्रित मधुमेह की वजह से पैर के स्नायुओं का संज्ञाशून्य हो जाना अथवा पाँव के तलवों मे ‘हाई प्रेशर पॉइंट' बन जाने से वहां घाव हो जाना। और यदि रोगी धूम्रपान भी करता हो तो स्नायु क्षतिग्रस्त होने से पैरों मे रक्त संचार कम हो जाता है। बढ़ती उम्र के साथ साथ रोगी के पैरों मे रक्तसंचार बाधित होने से और संज्ञाहीनता बढ़ने से पाँव मे संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त जिनको विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने २००५ के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से नवाजा, उनके अनुसार मधुमेह के रोगियों को अपने पाँव की रक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये —
(१) पैरों को नियमित रूप से धो कर साफ़ रखें।
(२) केवल गुनगुने पानी का प्रयोग करें---गर्म पानी,आयोडीन, अल्कहौल या गर्म पानी की बोतल का प्रयोग न करें।
(३) पैरों को सूखा रखें---विशेषकर उँगलियों के बीच के स्थान को. सुगंधहीन क्रीम /लोशन के प्रयोग से त्वचा को मुलायम रखें।
(4) पैरों के नाखून उचित प्रकार से काटें---किनारों पर गहरा न काटें।
(५) गुख्रू को हटाने के लिए ब्लेड, चाकू , ‘कॉर्न कैप' का प्रयोग न करें।
(६) नंगे पाँव कभी न चलें, घर के अन्दर भी नहीं. हमेशा जूता/चप्पल पहन कर ही चलें।
(७) कसे हुए या फटे पुराने जूते/चप्पल न पहनें. आरामदेह जूते/चप्पल ही पहनें।
(८) स्वयं ही अपने पाँव की जांच नियमित रूप से करें और कोई भी परेशानी होने पर तुंरत अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
(९) केवल चिकित्सक द्वारा बताई गयी औषधि का ही प्रयोग करें —घरेलू इलाज न करें।
‘मधुमेह का रोग केवल धन ही नहीं, और भी बहुत कुछ गंवाता है।’ 

अपने नौनिहालों को अच्छा खाना खिलाइए और बढ़िया खेल खिलाइए

 अपने नौनिहालों को अच्छा खाना खिलाइए और बढ़िया खेल खिलाइए

बढ़ती हुई आर्थिक सम्पन्नता तथा सामाजिक उथल पुथल के इस दौर में, अन्य देशों की भाँति, भारतीय बच्चों और तरुणों में भी मोटापा एक महामारी के रूप में फैल रहा है. एक अध्ययन के अनुसार केवल दिल्ली शहर में २००२ से २००६ के बीच स्थूलकाय बच्चों की संख्या में ८% की वृद्धि हुई है.  अब तक तो यह प्रतिशत और भी बढ़ चुका होगा. देश के अन्य शहरों में भी कुछ ऎसी ही स्थिति है.

इस बढ़ती हुई स्थूलता के चलते उच्च रक्तचाप , ह्रदय रोग एवं मधुमेह जैसी अधिक आयु में होने वाली बीमारियाँ अब किशोरावस्था में ही आक्रमण करने लगी हैं. एक अनुमान के अनुसार, यदि इस विस्फोटक स्थिति  पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो अगले ५ वर्षों में भारत को २३७ अरब डॉलर की आर्थिक हानि का भार वहन करना पड़ेगा.

हाल ही में,डायबिटीज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया तथा ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के तत्वाधान में, दिल्ली के दो स्कूलों में किये गए एक अध्ययन में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने  आये हैं. इस अध्ययन में स्कूली छात्र एवं छात्राओं की शारीरिक नाप और जैव रासायनिक मापदंडों का  ५ वर्षों (२००३-२००८) की अवधि में तुलनात्मक अध्ययन किया गया. लड़कियों में मोटापे के लक्षणों में काफी वृद्धि पाई गई -- बी.एम.आई. में ५% और कमर की नाप में ११% की बढ़ोतरी थी, जो लड़कों के मुकाबले कुछ अधिक थी. इसके विपरीत, लड़कों के हाई डेंसिटी कोलेस्ट्रोल (जो लाभकारी माना जाता है) में ९.१% की कमी पायी गयी जो लड़कियों में हुई १.२% कमी से कहीं अधिक थी.

ये आंकड़े चिंता का विषय हैं, तथा इस दिशा में अविलम्ब एवं  उचित कदम उठाने का संकेत देते हैं. किशोर-किशोरिओं में इस बढ़ते हुए मोटापे एवं घटती हुई शारीरिक क्षमता का मुख्य कारण है चर्बी/वसा युक्त खाद्य पदार्थों का बढ़ता हुआ सेवन तथा शारीरिक क्रियाकलापों/व्यायाम का हास. बढ़ते हुए शहरीकरण और औद्योगीकरण ने हमारे दैनिक आहार में भयानक परिवर्तन किये हैं. अधिक वसा युक्त भोजन तथा अधिक शर्करा युक्त पेय पदार्थों का अनुचित मात्रा में सेवन करने के कारण हमारे शरीर में पोषक तत्वों की मात्रा असंतुलित हो गयी है. तिस पर ट्रांस फैटी एसिड ( जो फास्ट फ़ूड, बेकरी पदार्थ, तथा बाज़ार में बिकने वाली तली हुई खाद्य सामग्री में  प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं) का विनाशकारी प्रभाव तो करेले को नीम पर चढ़ाने जैसा है. हमारे युवा वर्ग की अक्रियाशील जीवनशैली उनके स्वास्थ्य को कमज़ोर और रोग प्रदत्त बनाने में और भी सहायक होती है. जब तक बच्चों को पोषक आहार और शारीरिक व्यायाम का महत्त्व समझ में नहीं आएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी, तथा वे वयस्क होने पर असमय ही अनेकों असंक्रामक रोगों के शिकार बन जायेगें.

अभी हाल ही में समाचार पत्रों में छपी एक खबर के अनुसार, खेल मंत्री श्री गिल ने इस बात को स्वीकार किया है कि खेल कूद हमारे स्कूलों के पाठ्यक्रम में उपेक्षित ही रहे हैं. उनका मानना है कि हर कक्षा में शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद के लिए रोजाना कम से कम एक पीरियड नियत होना ही चाहिए. उन्हें इस बात का खेद है कि १०० करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोई बिरला ही उत्कृष्ट खिलाडी बन पाता है. इसका मुख्य कारण है, स्कूली स्तर पर खेलकूद और खेल स्पर्धाओं को बढ़ावा न मिलना. हम ओलम्पिक मेडल जीते या न जीतें, परन्तु स्कूलों में खेल के मैदानों का प्रावधान करने से छात्रों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव अवश्य पड़ेगा. दुर्भाग्यवश, अधिकतर स्कूलों में खेल कूद के साधनों एवं प्रशिक्षित खेल शिक्षकों का नितांत अभाव है. अभिभावक एवं शिक्षक, दोनों ही स्कूल के शैक्षिक पाठ्यक्रम में अधिक दिलचस्पी लेते हैं. उनके लिए खेल के मैदान के बजाय कम्प्यूटर लैब होना अधिक आवश्यक है. इस सोच को बदलना ही होगा.  हमारे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, डा.रामादौस ने भी इस बात पर जोर दिया है कि बच्चों में बढ़ते हुए मोटापे और टाइप २ डायबिटीज़ के विस्तार को रोकने के लिए, स्कूलों में योग शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए.

इसके अलावा, बचपन से ही हमें अपनी संतानों में पौष्टिक आहार के प्रति रूचि उत्पन्न करनी आवश्यक है. प्राय: देखा गया है कि अधिक लाड़ प्यार के चक्कर में, अभिभावक अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही दिल खोल कर पिज्जा, बर्गर, कोका/पेप्सी कोला का रसास्वादन कराने में गर्व का अनुभव करते हैं. बाद में जब यही बच्चे घर के सुपाच्य एवं पोषक आहार से मुंह चुराने लगते हैं तब माता पिता पाश्चात्य संस्कृति को कोसने लगते हैं. अधिक तले भुने, वसा एवं शर्करा युक्त पदार्थों का सेवन बच्चों में अनेक प्रकार की अनियमितताओं को उत्पन्न करता है, जो आगे चल कर अनेक प्रकार के असंक्रामक रोगों को निमंत्रित करती हैं. आज की आराम देह और अति व्यस्त जीवन शैली के चलते संतुलित आहार का महत्त्व और भी बढ़ जाता है. हम सभी के लिए अधिक शाक सब्जी, फल एवं मोटा अनाज खाना लाभप्रद है. आजकल चाइनीज़ और थाई फ़ूड बहुत प्रचलित है. इन दोनों पाक शैलियों में उबली हुई सब्जिओं और उबले चावल/नूडल्स की बहुतायत होती है. घी-तेल का प्रयोग बहुत कम होता है. ये व्यंजन सुपाच्य होने के साथ साथ अत्यधिक स्वास्थ्य वर्धक हैं. छोले भठूरे, चाट पकौड़ी, केक पेस्ट्री, फ्रेंच फ्राइज़ और फास्ट फ़ूड आदि का सेवन कम से कम करना चाहिए. कोकाकोला के स्थान पर घर का बना नींबू पानी या मट्ठा कहीं अधिक शीतलता प्रदान करेगा.

स्कूल/कॉलेज का प्रशासन भी बच्चों को स्वास्थ्यवर्धक जीवन अपनाने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है. अभिभावक, अध्यापक एवं विद्यार्थियों के सामूहिक प्रयासों से हम मोटापे, डायबिटीज़, और एक सुस्त, बीमार जीवन शैली के प्रकोप से भावी पीढ़ी को बचा सकते हैं. वर्ल्ड डायबिटीज फौन्डेशन के सौजन्य से दिल्ली और कुछ अन्य शहरों के स्कूलों में कुछ इसी प्रकार के कार्यक्रम ('मार्ग' और 'चेतना') चलाये जा रहे हैं. इनमें समूह संवाद, प्रदर्शनी, खान- पान प्रतियोगिता, तथा अन्य कार्यक्रमों के द्वारा, छात्रों में पौष्टिक आहार और व्यायाम के महत्त्व को उजागर किया जाता है, तथा विशेषज्ञों द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी का हेल्थ कार्ड भी बनाया जाता है.

समझदार अभिभावक और शिक्षक के रूप में हमें स्वास्थ्यवर्धक एवं क्रियाशील रहन-सहन का प्रचार करना ही होगा. बच्चों में स्वादिष्ट, पौष्टिक खाने की आदत डाल कर उन्हें जंक फ़ूड का न्यूनतम इस्तेमाल करना सिखाना होगा. यह बहुत मुश्किल नहीं है. हम स्वयं ही अपने बच्चों के खान पान की आदत बिगाड़ने के ज़िम्मेदार हैं. कम्प्यूटर गेम्स खेलने, मोबाइल पर घंटों बात करने और टेलिविज़न सीरियल देखने के बजाय उन्हें दौड़ने, खेलने, साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. इस प्रकार हम उनके उग्र और आक्रामक व्यवहार को भी बदल पायेंगे, क्योंकि वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि  जंक फ़ूड एवं इंटरनेट का अति उपयोग, हिंसात्मक प्रवृत्तियों को जन्म देता है. तभी हम एक सभ्य, सुसंस्कृत समाज की ओर अग्रसर हो पायेंगे.

शोभा शुक्ला
एडिटर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस

अफ्रीका में डायबिटीज़

अफ्रीका में डायबिटीज़

(ज़िम्बाबवे निवासी चीफ के मसिम्बा बिरिवासा के लेख का हिन्दी अनुवाद)

अफ्रीका में मधुमेह की बीमारी एक मौन हन्ता के समान हैएड्स ओर मलेरिया के समान इस रोग पर तो मीडिया का ही ध्यान जाता है, ही इससे जूझने के लिए कोई भी एजेंसी इस पर धन व्यय करने को प्रस्तुत होती हैपरन्तु अफ्रीका में मधुमेह के रोगियों के आंकड़े यह बताते हैं कि स्थिति वास्तव में शोचनीय है, तथा जन स्वास्थ्य नीति निर्धारण में डायबिटीज़ पर उचित ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अफ्रीका में लगभग करोड़ व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हैंविकास शील देशों में यह रोग मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण माना जाता है, तथा २०२५ तक, मधुमेहियों की संख्या करोड़ तक पहुँचने की संभावना है

इंटर नैशनल डायबिटीज़ फेडरेशन (आई.डी.ऍफ़.) का मानना है कि अफ्रीका में यह रोग एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है, और यदि समय रहते इसके निवारण हेतु ठोस कदम नहीं उठाये गए तो इसके कुप्रभावों से जूझना और भी कठिन हो जाएगा
आई.डी.ऍफ़. का यह भी कहना है कि यदि वर्त्तमान स्थिति बनी रही तो २०१० के अंत तक इसकी प्रबलता में ९५% की बढ़ोतरी होने की संभावना है

इस महादेश में अनेको वयस्क एवम् बच्चे, इंस्युलिन की कमी के कारण मर रहे हैं, और ऐसा लगता है कि बहुत से रोगी तो इस रोग का निदान होने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उपचार होना तो दूर की बात हैजो बच भी जाते हैं, वे इस रोग से जनित अंधेपन अथवा विकलांगता का शिकार हो जाते हैं

इस महादेश के अधिकाँश नागरिकों को इस रोग के बारे में समुचित जानकारी नहीं हैअत: वे इसकी भयावहता को समझ नहीं पातेफलस्वरूप, इस रोग का समय रहते उपचार नहीं हो पाता, जिसके कारण रोगी को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैतिस पर, अधिकाँश क्षेत्रों में, मधुमेह संबंधी औषधियों की आपूर्ति भी अपर्याप्त है

वर्त्तमान परिपेक्ष्य में, डायबिटीज़ के बढ़ते हुए आतंक को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार, जन स्वास्थ्य उपक्रम, नीति निर्धारक, निधिकरण अधिकरण एवम् स्थानीय समुदाय डायबिटीज़ की समस्या पर अपना ध्यान शीघ्रता शीघ्र केन्द्रित करें

सरकार को अल्प लागत वाली नीतियों को लागू करके इस रोग के आक्रमण को रोकना होगा. आई.डी.ऍफ़. के अनुसार, आहार में परिवर्तन लाकर, शारीरिक क्रिया कलाप बढ़ा कर, एवम् जीवन शैली में उचित परिवर्तन लाकर, केवल डायबिटीज़ के संघात को कम किया जा सकता है, वरन अन्य रोगों पर भी काबू पाया जा सकता है

वर्त्तमान समय में, सरकारों द्वारा इस दिशा में संतोषजनक कार्य नहीं किया जा रहा है, जिसका दीर्घ कालिक प्रभाव घातक होगाजन स्वास्थ्य इकाइयों में, डायबिटीज़ शुरू होने के पूर्व निदान, निरंतर देखभाल से लेकर उसकी जटिलताओं से जूझने की क्षमता होना आवश्यक हैइसके अलावा, जन साधारण को, इस रोग से सम्बंधित सभी उपचार एवम् औषधियाँ, कम दामों पर सुगमता से उपलब्ध होने चाहिए

इस दिशा में राजनैतिक सूझ बूझ एवम् मीडिया की भूमिका अहम् हैविशेषकर, रेडियो के माध्यम से डायबिटीज़ की रोकथाम, निदान एवम् उपचार से सम्बंधित सन्देश, दूर दराज़ के इलाकों में भी घर घर तक पहुंचाए जा सकते हैं

हम सभी को एकजुट हो कर इस रोग से लड़ना ही होगा, क्योंकि यह हम सभी के स्वास्थ्य का मामला है

ज़िम्बाबवे में डायबिटीज़ : यह केवल शक्कर का मामला नहीं है

ज़िम्बाबवे में डायबिटीज़ : यह केवल शक्कर का मामला नहीं है

(मसिम्बा बिरिवाषा द्वारा लिखे गए लेख का हिन्दी अनुवाद)


मैं ज़िम्बाबवे में ही पला, बढ़ा हूँ। बचपन से ही मैं बड़े बूढों को हमेशा ही डायबिटीज़ के बारे में बात करते सुनता आया। यहाँ तक कि इस रोग का डर मेरे ऊपर एक विष बेल की तरह फैलता चला गया।

मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को स्थानीय भाषा मेंआने शुगाकहा जाता था, जिसका अर्थ है: “उस को शक्कर हैवास्तव में इसका मतलब था कि उस व्यक्ति को शक्कर से सम्बंधित बीमारी है।

अपने बाल मन की कल्पना से मैं यह सोचता था कि जिन लोगों को डायबिटीज़ की बीमारी होती है वे बहुत शक्कर खाते हैं। बाद में मैंने जाना कि यह केवल मेरा ही बचपना था, वरन जन मानस में भी यही
धारणा प्रचलित थी।

अधिकतर ज़िम्बाबवे वासी मधुमेह का सीधा सम्बन्ध अधिक शक्कर खाने से जोड़ते हैं, विशेषकर चाय में अधिक शक्कर। बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि अधिक वसा, कार्बो हाईड्रेट और प्रोटीन खाने से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है।

बड़े होने पर मैंने जाना कि डायबिटीज़ मेलिटस नामक रोग तब होता है जब या तो हमारी पाचक ग्रंथी उचित मात्रा में इंस्युलिन नहीं बना पाती, या फिर जो इंस्युलिन बनता है वह ठीक से काम नहीं करता। इसलिए, रक्त में ग्लूकोस की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।

जानकारों के अनुसार, ज़िम्बाबवे में मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। २००३ में, यहाँ इस बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या ९०,००० थी, जो १९९७ की संख्या से ३००० अधिक थी।

ज़िम्बाबवे के डायबिटीज़ असोसिअशन का अनुमान है कि देश में करीब ४००,००० लोग इस बीमारी का शिकार हैं, परन्तु ५०% लोग अपनी इस दशा से अनभिज्ञ हैं। उन्हें डायबिटीज़ के बारे में कोई जानकारी नहीं है। असोसिअशन के एक अधिकारी का कहना है कि यह वास्तव में बड़े दु: की बात है। कई लोग अनजाने में ही इस बीमारी काशिकार होकर, मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। केवल उनके सम्बन्धियों को ही पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट के बाद मृत्यु का असली कारण पता चल पाता है।

सारा ध्यान एड्स एवं टी.बी. जैसी बीमारियों पर केंद्रित होने के कारण, डायबिटीज़ के विषय में कोई बात नहीं करी जाती है, जबकि इसकी रोकथाम से सम्बंधित जानकारी का प्रसार करने हेतु पूंजी निवेश करके अनेकों जीवन बचाए जा सकते हैं।

आवश्यकता है उचित खान पान की आदतों का समर्थन करने की। सम्बंधित जानकारी को स्कूलों, अस्पतालों एवं सामुदायिक केन्द्रों के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है। पारंपरिक लोक नेताओं को इस कार्य में शामिल करने से यह संदेश और अधिक ग्राह्य हो सकेगा।

इसके अलावा, माता पिता को अपने बच्चों के खान पान का ध्यान रखने योग्य समुचित जानकारी होना आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना है कि ज़िम्बाबवे के पारंपरिक भोजन को बढ़ावा देकर, इस रोग से लड़ा जा सकता है।जनता को व्यायाम के महत्त्व को भी समझना होगा

उचित जानकारी देकर, जन मानस में व्याप्त इस ग़लत धारणा को भी तोड़ना होगा कि यह बीमारी चाय में अधिक शक्कर लेने के कारण होती है। इस रोग के बारे में सही, वैज्ञानिक, एवं विश्वसनीय जानकारी, जन साधारण को बताना बहुत आवश्यक है।

डायबिटीज़ के निवारण हेतु प्रयासों को बढ़ावा देकर हम सरकारी, सामुदायिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर डायबिटीज़ उपचार पर किए जा रहे खर्चों को काफी कम कर सकते हैं।
ज़िम्बाबवे के निवासियों को यह पता होना अति आवश्यक है कि डायबिटीज़ केवल शक्कर से सम्बंधित बीमारी नहीं है, तथा इसकी रोकथाम करी जा सकती है।


चीफ के. मसिम्बा बिरिवाषा

(बिरिवाषा, ज़िम्बाबवे के एक ख्याति प्राप्त कथाकार, कवि, नाटककार, जन सेवक एवं पत्रकार हैं। वे स्वास्थ्य संबंधी अनेक लेख लिख चुके हैं। इस समय वे फ्रांस में रहते हैं।)

थाईलैंड में मधुमेह नियंत्रण अभियान

थाईलैंड में मधुमेह नियंत्रण अभियान

(जित्तिमा जन्तानामालाका द्वारा लिखे गए लेख का हिन्दी अनुवाद)

थाईलैंड में ३० लाख व्यक्ति डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। अत: इस रोग की रोकथाम के लिए उचित उपाय करना नितांत आवश्यक है। ऐसा मानना है इस देश के जन स्वास्थ्य मंत्री श्री वित्ताया कैवपरादै का.

अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के अनुसार, २००९-२०१३ के लिए विश्व डायबिटीज़ दिवस का विषय है ‘डायबिटीज़ के बारे में जानकारी और इसकी रोकथाम’। यह अभियान, इस रोग की देखभाल से जुड़े हुए सभी लोगों का आह्वान करता है कि वो इसे समझ कर, इस पर नियंत्रण करें।

स्वास्थ्य मंत्री जी ने बताया कि थाई जनता को इस बारे में शिक्षित होना है कि वे अपने खान पान और जीवन शैली में बदलाव लाकर, इस रोग की रोकथाम कर सकते हैं। इसके लिए थाईलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नियुक्त ९८०,००० से अधिक स्वास्थ्य स्वयं सेवक, डायबिटीज़ संबंधी सर्वेक्षण करते हैं; तथा जनता को समुचित जानकारी देते हुए, उन्हें शक्कर आदि हानिकारक खाद्य पदार्थों का त्याग करने को प्रेरित करते हैं। इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए विशेष सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। ऐसे व्यक्तियों की नियमित जांच की जाती है, विशेषकर उनकी जिन्हें 'डायबिटीज़ रेटिनोपैथी’ का खतरा है , ताकी समय रहते उन्हें अंधेपन से बचाया जा सके।

इस कार्य के लिए थाईलैंड को, नवम्बर २००८ से, डेनमार्क से वित्तीय सहायता मिल रही है – जब डेनमार्क के राजकुमार फ्रेडेरिक एवं राजकुमारी मेरी ने, थाई – डेनमार्क संबंधों के १५० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बैंकाक का दौरा किया था। इसके अलावा, ‘वर्ल्ड डायबिटीज़ फौन्डेशन ’ की वित्तीय सहायता से दो मोबाइल कार यूनिट चलाई जा रही हैं। इनके द्वारा ‘डायबिटीज़ स्कैनिंग’ एवं ‘डायबिटीज़ रेटिनोपैथी’ का इलाज जनता को उपलब्ध हो रहा है।

मधुमेह के कारण प्रति वर्ष ४० लाख मौतें होती हैं। यह रोग, अंधेपन, दिल का दौरा, अंगछेदन, स्ट्रोक, एवं गुर्दे की बीमारी का भी प्रमुख कारण है। अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के अनुसार, यदि इस रोग की रोकथाम समय रहते नहीं करी गयी, तो अगले २० वर्षों में इसके रोगियों की संख्या ४३५ मिलियन तक पहुँच जायेगी।

आई.डी.ऍफ़. के नव निर्वाचित अध्यक्ष, श्री म्बन्या के शब्दों में, “विश्व को ऎसी एकीकृत स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश करने होगा, जिनके द्वारा डायबिटीज़ का निदान, उपचार, प्रबंधन और निराकरण सम्भव हो। सरकारों को औपचारिक स्वास्थ्य क्षेत्र से हट कर भी ऐसे कदम उठाने होंगे, जो स्वास्थ्यवर्धक आहार एवं शारीरिक क्रिया कलापों को बढ़ावा दे कर, मोटापे और टाइप 2 डायबिटीज़ के खतरे को कम कर सकें। यदी इस रोग की प्रभावी रोक थाम नहीं की गयी तो इसका सीधा असर विश्व के आर्थिक विकास पर पड़ेगा.”

थाईलैंड की पब्लिक हेल्थ मिनिस्ट्री की डा.श्रीवान्ना के अनुसार, “थाईलैंड में मधुमेह से पीड़ित ५०,०००-६०,००० व्यक्तियों का दृष्टि बाधित अथवा दृष्टिहीन होना संभावित है। उनकी समय से अस्पताल आने की प्रतीक्षा करने से बेहतर है कि हम ही उन तक शीघ्रता से पहुँच कर उनका उचित उपचार करें। हमारे पास सभी आधुनिक चिकित्सीय सुविधाओं से लैस ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो दूर दराज़ के गाँवों में जाकर रोगियों को नि:शुल्क उपचार प्रदान कर सकें। हमें आशा है कि २०१० के डायबिटीज़ दिवस तक, हम ४००० ऐसे रोगियों को दृष्टिहीन होने से बचा लेंगें।”

डायबिटीज़ के भारी बोझ से दबे हुए भारत, चीन, अमेरिका जैसे अनेक देशों में इस बात के सतत प्रयत्न किए जा रहे हैं कि लोग जंक फ़ूड खाना कम कर दें। भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के भी क़ानून बने हैं। श्री वित्ताया ने बताया की अभी तक थाईलैंड में ऐसा कोई क़ानून नहीं बना है जिसके तहत टेलीविजन के भ्रामक विज्ञापनों और बाज़ार में बिकने वाले अल्पाहार में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सके। परन्तु कंपनियों एवं उद्योगपतियों से निवेदन किया जा रहा है कि वे निर्मित खाद्य पदार्थों में शर्करा की मात्रा कम करके उन्हें स्वास्थ्यवर्धक बनाएं। जनमानस को भी स्वास्थ्यप्रद एवं हानिकारक खाने-पीने वाली वस्तुओं के बारे में समुचित जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। जो स्कूल अपनी कैंटीन मेन जंक-ई फ़ूड नहीं बेचते, उन्हें पुरस्कार दे कर प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।

श्री वित्ताया ने बताया कि वज़न कम करने और शारीरिक कार्य शीलता बढ़ाने के लिए, थाई जनता के बीच अनेक जागरूकता अभियान चलाये जा रहे हैं, जिनका उत्साहवर्धक परिणाम मिल रहा है। मध्य आय वर्ग के बहुत से लोग अब गुणकारी खाद्य पदार्थ, कीटनाशक रहित सब्जियां, ब्राउन राईस, इत्यादि खरीद रहे हैं। ‘ फ़ूड & ड्रग ऐड्मिनिसट्रेटर’ के सहयोग से कीटनाशक रहित सामान बेचने वाले मार्केट खोले जा रहे हैं, जैसे ‘सेम यान मार्केट’। इसके अलावा, इस वर्ष, देश भर में लगभग २,१०० ऐसे चिकित्सा केन्द्रों की स्थापना की गयी है, जहाँ मधुमेह के उपचार के अलावा, स्वास्थ्य वर्धन सेवाएँ भी प्रदान की जा रही हैं।

थाईलैंड का डायबिटीज़ असोसिअशन, वहाँ की राजकुमारी महा चक्री सिरिन्धोम के संरक्षण में कार्य करता है। इस संस्था के वाइस प्रेसिदेन्त, प्रोफ़ेसर नितियानंत के अनुसार, अब सभी इस बात को मानने लगे हैं कि डायबिटीज़, इस देश में एक जन स्वास्थ्य चुनौती के रूप मेन पनप रही है. अत: इस समस्या के निवारण हेतु, मधुमेह के निदान, रोकथाम एवं इससे जुड़ी हुई अन्य समस्याओं के निवारण हेतु नि:शुल्क कैम्प लगाए जायेंगे।

आई.डी.ऍफ़. के अनुसार, डायबिटीज़ जागरूकता अभियान के मुख्य संदेश हैं:
*डायबिटीज़ के लक्षणों और खतरों को पहचानिए
*डायबिटीज़ का सामना करने के लिए तैयार रहिये
*डायबिटीज़ पर नियंत्रण करके इसकी उचित व्यवस्था के उपाय जानिये

थाईलैंड में इस रोग को गंभीरता से लिया जा रहा है। जहाँ एक ओर इस रोग, एवं इससे उत्पन्न समस्याओं के निवारण हेतु प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं, वहीं डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्तियों की देखभाल के लिए उत्तम सुविधाएं प्रदान करने की चेष्टा भी करी जा रही है।



जित्तिमा जन्तानामालाका

कचरा खाना छोड़िए और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाइये

कचरा खाना छोड़िए और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाइये


मधुमेह एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती है, विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश के लिए। फिर भी, हम इस मूक हत्यारे की ओर से आँखें मूँदें हुए हैं। युवाओं ओर बच्चों की बढ़ती हुई संख्या मधुमेह का शिकार हो रही है। इस बीमारी में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्यायें उत्पन्न करने की क्षमता है, जिसके चलते अनेकों जीवन अपनी पटरी से उतर सकते हैं तथा हमारे स्वास्थ्य संबंधी व्यय में बहुत अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।


हमारे देश के बच्चे/किशोर इस समय मोटापे, इंसुलिन प्रतिरोधक संलक्षण और टाइप डायबिटीज़ से उत्पन्न होने वाली विस्फोटक स्थिति के कगार पर खड़े हैं। अत: यह अत्यन्त आवश्यक है कि मोटापे के प्राथमिक निवारण हेतु तत्काल ही ठोस कदम उठाये जाएँ, तथा बचपन से ही उनमे स्वस्थ पोषण /जीवन शैली हेतु अच्छी आदतें डाली जाएँ। भारतीय बच्चों एवं किशोरों (विशेषकर शहरों में रहने वाले) में टाइप डायबिटीज़ ओर ह्रदय रोग का खतरा बहुत बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण है उनके दैनिक आहार का पाश्चात्यीकरण तथा एक आराम तलब, शारीरिक श्रम रहित जीवन शैली।


इंटरनेशनल
डायबिटीज़ फेडरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के प्रेसिडेंट, डाक्टर मार्टिन सिलिंक को इस बात का दु: है कि स्कूलों में खेलकूद को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है तथा खेल के मैदानों का स्थान कम्प्यूटरों ने ले लिया है। उनके अनुसार, बच्चों कोजंक फूडनहीं खाना चाहिए तथा नियमित व्यायाम करना चाहिए। घंटों कम्प्यूटर और टेलीविजन के सामने बैठने के बजाय, उन्हें साइकिल चलाने, खेलने और दौड़ने की आवश्यकता है। वरना हम डायबिटीज़ एवं अन्य असंक्रामक रोगों को फैलने से नहीं रोक पायेंगेतथा इसका विपरीत असर हमारी आर्थिक उन्नति पर पड़ेगावे स्कूल के स्तर पर बच्चों केस्वास्थ्य परीक्षणके पक्ष में हैं। सिंगापुर और जापान में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जापान भी बच्चों में टाइप डायबिटीज़ के बढ़ते हुए प्रकोप से आतंकित है।


आई.डी.ऍफ़. का मुख्य उद्देश्य है डायबिटीज़ संबंधी मानवीय कष्टों को कम करने हेतु, गर्भावास्ता से वयस्कता तक, इस रोग के निवारण एवं देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना; तथा सरकारों, नीति निर्धारकों, निधिकरण संस्थाओं को भी इस कार्य को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करना। क्योंकि, यदि समय रहते उचित जन स्वास्थ्य कार्यवाही नहीं करी गयी तो अगले १० वर्षों में, दक्षिण पूर्व एशिया में ह्रदय रोग, कैंसर ओर डायबिटीज़ से हुई विकलांगता ओर असामयिक मौतों में २१% की बढ़ोतरी होने की आशंका है।


विश्व मधुमेह दिवस २००९-२०१३ का विषय है डायबिटीज़ की जानकारी एवं निराकरण’ विश्व मधुमेह दिवस के अभियान के मुख्य सूत्रधार हैं आई.डी.ऍफ़. एवं उसके सदस्य संघ। यह अभियान उन सभी लोगों का (जो मधुमेह की देखभाल के लिए जिम्मेदार हैं) आह्वान करता है कि वे इस रोग को समझ कर उस पर नियंत्रण रखें। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह संदेश है उचित शिक्षा के द्बारा क्षमतावान बनने का; सरकारों के लिए यह आह्वान है डायबिटीज़ के निवारण एवं प्रबंधन हेतु प्रभाव कारी नीतियों को प्रतिपादित करके अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने का ; स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए यह आह्वान है अपने समुचित ज्ञान से प्रमाण- आधारित संस्तुतियों को कार्यान्वित करने का । जन मानस के लिए यह संदेश है कि वे डायबिटीज़ के गंभीर प्रभाव को समझ कर यह जानकारी हासिल करने का प्रयत्न करें कि इस रोग और इसकी जटिलताओं से कैसे बचा जा सकता है, या उन्हें विलंबित किया जा सकता है।


विश्व मधुमेह दिवस २००९ का नारा हैडायबिटीज़ को समझें और नियंत्रण रखें’ डायबिटीज़ एक कठिन रोग है। विश्व भरके २५०० लाख मधुमेह पीड़ितों एवं उनके परिवारों के लिए यह एक जीवन पर्यंत समस्या है, जिसका निराकरण होना ही चाहिए। डायबिटीज़ के साथ रह रहे व्यक्तियों को अपनी ९५% देखभाल स्वयं ही करनी पड़ती है। इसलिए यह परम आवश्यक है कि उन्हें, कुशल स्वास्थ्य विज्ञों द्बारा, लगातार उच्च गुणवत्ता शील डायबिटीज़ शिक्षा प्राप्त होती रहे। आई.डी.ऍफ़. का अनुमान है कि विश्व भर में ३० करोड़ व्यक्तियों को टाइप डायबिटीज़ होने का खतरा है। अधिकांशत:, इस प्रकार की डायबिटीज़ को मोटापा कम कर के तथा नियमित व्यायाम कर के रोका जा सकता है


भारत के भूतपूर्व स्वास्थ्य मंत्री, डाक्टर अंबुमणि रामादौस भी इस विषय को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि स्वास्थ्य संवर्धन संबंधी नीतियों का उद्देश्य होना चाहिए स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाना तथा सकारात्मक जीवन शैली को प्रोत्साहित करना। उनके अनुसार खाद्य पदार्थों के पैकटों पर उस पदार्थ में इस्तेमाल करी गयी प्रत्येक सामग्री का भार एवम् कैलोरिक वैल्यू (पोषक मूल्य) को लिखना अनिवार्य होना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि प्रत्येक स्कूल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल कैंटीन में कोई भी 'जंक फूड' बिके, फिर चाहे वह समोसा हो अथवा पिज़्ज़ा , ताकि विद्यार्थियों में उचित खान पान के प्रति सजगता बढ़ सके। स्कूलों में 'योग शिक्षा' अनिवार्य होनी चाहिए, क्योंकि 'योगिक व्यायाम ' हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभप्रद हैं।


परिवार ओर समाज के स्तर पर उठाये गए स्वास्थ्य संबंधी निर्णय, एक वृहत् जन स्वास्थ्य आन्दोलन का रूप ले सकते हैं। और यही इस युग की पुकार है। एक स्वस्थ राष्ट्र को बनाने में अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूलों ओर समुदायों की भूमिका अहम् है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्बारा पुरस्कृत (एवं छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डायबेटिक-फुट-केयर क्लीनिक के अध्यक्ष) डाक्टर रमा कान्त का मानना है कि अब परिवार और समाज को ही यह तय करना होगा कि हम किस दिशा में बढ़ना चाहते हैंमीठे ज़हर कि तरफ़ या फिर एक उत्तम जीवन शैली की ओर?

उनके अनुसार, टाइप डायबिटीज़ में (जिसमें शरीर में उचित मात्र में इंसुलिन नही बन पाता) ग्लूकोज़ अनुश्रवण के लिए पारिवारिक सहयोग की निरंतर आवश्यकता होती है। टाइप डायबिटीज़ का सीधा सम्बन्ध, खान पान की गड़बडी से होने वाले, मोटापे से है। अपने अपने व्यवसायों में उलझे हुए, एवं काम की अधिकता से परेशान माता पिता, बच्चों को अनायास ही फास्ट फूड खाने की आदत बचपन से ही डाल देते हैं। तिस पर स्कूल कार्य का भार, इंटरनेट में दिलचस्पी, खेल कूद के स्थानों का अभावये सभी मिल कर बच्चों को निष्क्रीय बनाते जा रहे हैं। बच्चों में खान पान की अच्छी आदतें डालने हेतु एवं मोटापे की समस्या को कम करने हेतु, प्रोफेसर रमाकान्त लखनऊ के कुछ स्कूलों में मार्ग नामक एक शैक्षिक कार्यक्रम चला रहे हैं। यह कार्यक्रम देश के कुछ अन्य शहरों में भी चल रहा है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया कार्यालय के क्षेत्रीय निदेशक डाक्टर सामली का कहना है कि, "हमें खाने के लिए जीवित नहीं रहना चाहिए, वरन जीवित रहने के लिए खाना चाहिए।" मधुमेह से बचने के लिए उनका साधारण, परन्तु सटीक मन्त्र है –‘ उचित आहार, नियमित व्यायाम उन्होंने स्वयं का उदाहरण देते हुए बताया कि एक अनुशासित जीवन प्रणाली को अपना कर ही उन्होंने अपनी डायबिटीज़ को नियंत्रित कर लिया है। उनका यह भी मानना है कि इस सन्दर्भ में मीडिया की भूमिका बहुत ही अहम् है। संतुलित आहार हमारे स्वस्थ जीवन के लिए कितना आवश्यक है, इस बात का जन मानस में समुचित प्रचार, संचार माध्यमों के द्बारा ही सम्भव है।


मधुमेह एवं अन्य असंक्रामक रोगों से बचने का संदेश एकदम स्पष्ट है --- इसकेनिवारण कार्यक्रमका शुभारम्भ शिशु की गर्भावस्था से ही आरम्भ होकर जीवन पर्यंत चलते रहना चाहिए। गर्भवती महिला को अपने आहार प्रबंधन द्बारा एवं उचित व्यायाम के द्बारा गर्भकालिक डायबिटीज़ से बचना चाहिए। शिशु के पैदा होने के बाद, उसमें बचपन से ही सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार के प्रति स्वाद एवं अभिरुचि को विकसित करना प्रत्येक माता=पिता का परम कर्तव्य है। बचपन में जो आदतें पड़ जाती हैं उनका प्रभाव जीवन पर्यंत रहता है। अभिभावकों के लिए यह समझना आवश्यक है कि फैशन की दौड़ में, बच्चों को कोकाकोला ओर बर्गर/पिज़्ज़ा खिलाना कोई शान की बात नहीं, वरन उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक है।

टेलीविजन ओर इंटरनेट के इस्तेमाल पर भी कड़े नियंत्रण की आवश्यकता है। इससे जहाँ एक ओर बच्चों की शारीरिक सक्रियता बाधित होकर उन्हें स्थूलकाय ओर सुस्त बनाती है, वहीं दूसरी ओर वेजंक फूडतथा अन्य भड़कीले विज्ञापनों के मायाजाल में भी फंसने लगते हैं।


हम सभी के लिए प्रतिदिन सात या आठ घंटे सोना भी ज़रूरी है। हाल ही में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि अपर्याप्त निद्रा के कारण शरीर की इंसुलिन प्रतिरोधकता बढ़ जाती है तथा ग्लूकोज़ सहनशीलता घट जाती है। अत: आधुनिक जीवनशैली के अस्वस्थ पहलू तथा अपर्याप्त नींददोनों मिल कर अनेक स्थूलकाय ओर अनुद्योगशील व्यक्तियों में डायबिटीज़ विकसित करने में सहायक हो सकते हैं।

जब हम मन एवं शरीर, दोनों से ही स्वस्थ होंगे, तभी हम एक प्रगतिशील राष्ट्र कहलाने के पात्र बनेगें.


शोभा शुक्ला

एडिटर

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस