तो आखिरकार तम्बाकू कंपनियों को हार माननी ही पड़ी
सार्वजनिक स्थानों पर स्मोकिंग पर पूरी तरह बैन लगाने की केंद्र सरकार की अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सिगरेट बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अधिसूचना के कुछ हिस्सों पर स्टे लगाने के आग्रह को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया। सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद 2 अक्टूबर से देशभर में सार्वजनिक स्थलों पर स्मोकिंग करते पकड़े जाने पर 200 रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा।
जस्टिस बी. एन. अग्रवाल और जस्टिस जी. एस. सिंघवी की बेंच ने कहा कि कोई भी अदालत सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत फैसला नहीं देगी। देशभर के विभिन्न हाई कोर्टों में स्मोकिंग बैन के खिलाफ दायर याचिकाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया। सिगरेट बनाने वाली कंपनी आईटीसी और अन्य तीन कंपनियों द्वारा प्रतिबंध के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में दायर चार याचिकाओं को भी बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
इसमें कोई दो राए नहीं है की सरकार ने तम्बाकू नियंत्रण को प्रभावकारी बनाने में विभिन्न प्रकार के प्रयास किए हैं। जिसके तहत सरकार ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर बनी तम्बाकू नियंत्रण संधि को प्रभावकारी बनाने की दिशा में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किंतु वैश्विक स्तर पर इतने प्रयासों के बावजूद भी तम्बाकू उत्पादों के प्रयोग में पिछले ५ सालों में वृद्धि देखि गई है। आख़िर इतने सारे प्रयासों के बावजूद तम्बाकू का प्रयोग इतना क्यो बढ़ता जा रहा है? इस सम्बन्ध में जिला तम्बाकू नियंत्रण सेल, लखनऊ के नोडल अधिकारी तथा बलरामपुर चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी श्री आर0 बी० अगरवाल का कहना है की "जबरदस्ती किसी को भी तम्बाकू का प्रयोग करने से नहीं रोका जा सकता, इसके लिए व्यक्ति को तम्बाकू के कुप्रभावों के बारे में संवेदनशील करना जरूरी है। उनका आगे कहना है की यद्यपी की सरकार ने प्रदेश और जिले स्तर पर तम्बाकू नियंत्रण सेल का गठन कर दिया है किंतु इस सेल को जिम्मेदारी और जबाबदेही के साथ काम करने की जरूरत है"।
तम्बाकू नियंत्रण सेल से हो सकता है की तम्बाकू उत्पाद अधिनियम को प्रभावी बनाने में मदद मिले किंतु वह लोग जो तम्बाकू से छुटकारा पाना चाहते हैं क्या उनके पहुँच में आसानी से कोई तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र की सुविधा उपलब्ध है। इस सम्बन्ध में पूछने पर तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र के प्रमुख प्रोफ़ेसर, डाक्टर रमाकांत का कहना है की "तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र ऐसे लोगों के लिए जो तम्बाकू प्रयोग से निजात पाना चाहतें हैं काफी लाभकारी होगी इसके लिए सरकार को प्रत्येक जिले के जिला चिकित्सालय और प्राथमिक स्वास्थय केन्द्रों पर कार्यरत चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है, जिसको बिना किसी अधिक अतिरिक्त आर्थिक सहायता से भी प्रभावकारी बनाया जा सकता है"। भारत में तम्बाकू उपभोग को रोकना एक गंभीर चुनौती है।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे ज्यादा जनसँख्या वाला प्रदेश होने के वजह से यहाँ तम्बाकू द्वारा प्रभावित लोगों की संख्या काफी अधिक हो सकती हैं"। वैश्विक स्तर पर धुम्रपान को रोकने की लिए हमें न केवल तम्बाकू कंपनियों पर प्रतिबन्ध लगाने की जरूरत है बल्कि तम्बाकू नियंत्रण के लिए बनी वश्विक संधि और रास्ट्रीय स्तर पर बने अधिनियमों को भी प्रभावकारी करने की जरूरत है।
कई सारे शोधों के मुताबिक तम्बाकू उत्पादों पर लिखी वैधानिक चेतावनियाँ लोगों में तम्बाकू प्रयोग के अनुपात को कम कर सकती हैं। इसलिए तम्बाकू कम्पनियाँ ख़ुद तम्बाकू नियंत्रण की एक प्रभावकारी माध्यम हैं यदि वह अपने तम्बाकू उत्पाद के पैकेटों पर फोटो वाली चेतावनी और वैधानिक चेतावनी को सही तरीके से लगाते हैं।भारत में प्रतिदिन करीब ५,५०० नये युवा तम्बाकू का प्रयोग करते हैं और १५ साल से कम उम्र के करीब ४० लाख युवा तम्बाकू के उपभोगता हैं।
युवावों में तम्बाकू के बढ़ते चलन को लेकर भारत के स्वास्थय मंत्री श्री अम्बुमणि रामदोस ने भी अपनी चिंता जताई है। एक शोध के मुताबिक भारत में हर साल करीब १० लाख लोगों की मौत तम्बाकू द्वारा होने वाले रोगों से होती है, जिसमें से ७० प्रतिशत लोगों की मौत ३० से ६९ साल तक के उम्र की होती है। किसी भी देश के लिए इस उम्र के लोग सबसे ज्यादा उत्पादक माने जाते हैं।
अतः व्यापक स्तर पर तम्बाकू के प्रयोग और इसके कुप्रभावों को रोकने के लिए हमें सामूहिक तौर पर न केवल जिम्मेदारी लेन होगी बल्कि जिम्मेदार भी बनाना होगा। यदि तम्बाकू कम्पनियाँ जन- स्वास्थय की इतनी बड़ी हितैषी हैं तो इस प्रतिबन्ध में उनको सरकार को सहयोग प्रदान करना चाहिए। आख़िर कब तक मुनाफे के पीछे यह कम्पनियाँ लोगों की जान लेती रहेंगी।
अमित द्विवेदी
(लेखक, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के विशेष संवाददाता हैं)* यह लेख, १ अक्टूबर २००८ को मेरी ख़बर में प्रकाशित हुआ है)