२०१० तक संपूर्ण भारत में दवा-प्रतिरोधक तपेदिक (टीबी) का इलाज उपलब्ध होगा
अमित द्विवेदी
हाल ही में जारी हुई वैश्विक तपेदिक (टीबी) रिपोर्ट के मुताबिक, तपेदिक रोग विकासशील देशों के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। यदि इसको उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले समय में इस स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है।
भारत में हर साल १८ लाख नए तपेदिक के रोगी जुड़ जातें हैं वहीँ लगभग हर साल ४ लाख लोग इसकी वजह से मौत का शिकार हो जाते हैं। वर्ष २००६ में विश्व स्तर पर करीब ९२ लाख नए तपेदिक के रोगियों की संख्या बड़ी है जिसमे से करीब १० लाख बच्चे हैं जो १५ साल तक की उम्र के हैं।
पोषण की कमी, शरीर की प्रतिरोधक छमता का कमज़ोर पड़ना, निम्न जीवन स्तर आदि तपेदिक के रोग के फैलने में मदद करते हैं। दुनिया में एच० आई० वी०/ एड्स से ग्रसित लोगों में मौत का सबसे प्रमुख कारण तपेदिक रोग है। तपेदिक एक घातक संक्रामक रोग है जिसका इलाज सम्भव है, यदि सही समय पर इसका पता चल जाए और उपचार शुरू हो जाए। तपेदिक हमारे शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। तपेदिक के इलाज के दौरान यदि हम इसकी दवाओं का सही तरीके से सेवन नहीं कर रहे हैं और इसकी दवाईयों को समयानुसार लेने में नागा कर रहे हैं तो तपेदिक रोग गंभीर रूप धारण कर लेता है, जिसे दवा-प्रतिरोध टीबी या तपेदिक रोग कहते हैं जिसमें फिर तपेदिक की कोई भी दवा कारगर नहीं हो सकती है।
दवा-प्रतिरोधक टीबी या तपेदिक हमारे देश की एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। तपेदिक की बीमारी से निपटने की लिए सरकार ने प्रत्येक स्वास्थ्य केन्द्रों और नजदीक के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर निःशुल्क दवाईयाँ उपलब्ध करा रखी हैं। किंतु दवाईयों की उपलब्धताओं के बावजूद भी मरीज इन दवाईयों का सेवन नियमित तरीके से विभिन्न विभिन्न कारणों की वजह से नहीं कर पाते हैं और दवा-प्रतिरोधक टीबी या तपेदिक का शिकार हो जाते हैं। भारत में तपेदिक के दवाओं को मरीजों तक निःशुल्क रूप से पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने आशा प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ती कर रखी है। किंतु इसके बावजूद भी लोग दवा-प्रतिरोधक टीबी या तपेदिक का शिकार हो रहे हैं और दवाओं का समुचित सेवन नहीं कर रहे हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशिया छेत्र के संक्रामक रोगों के विभाग के निदेशक डॉ० जय पी नरेन का कहना है कि २०१० के अंत तक भारत में २४ विशेष प्रयोगशालाएं निर्मित की जा रही हैं जिससे टीबी या तपेदिक, विशेषकर कि दवा-प्रतिरोधक टीबी की जांच बिना विलंब समयानुसार हो सके और उपयुक्त इलाज भी मुहैया करवाया जा सके।
कई बार अक्सर ऐसा होता है कि सही समय पर जाँच के आभाव से तपेदिक की बीमारी व्यक्ति में गहराई से अपनी जड़ें जमा लेती है। भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'डॉट्स' कार्यक्रम काफी सराहनीय सफलता प्राप्त है परन्तु कुछ सामाजिक-आर्थिक और अन्य कारणों की वजह से कुछ टीबी से ग्रसित लोगों को टीबी की सबसे सशक्त दवाओं से प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है और यह दवाएं उनपर कारगर नहीं रहतीं।
अमित द्विवेदी
लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के विशेष संवाददाता हैं।