राष्ट्रीय पोषण सप्ताह १-७ सितम्बर पर विशेष
कुपोषण से ग्रसित देश का भविष्य
विकास के हम लाख दावे कर लें किंतु इसके बावजूद भी विश्व में भारत एक अकेला ऐसा देश है जहाँ हर साल नवजात शिशुओं के जन्म दर और मृत्यु दर का अनुपात सबसे अधिक है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण सर्वेक्षण २००५-२००६ के अनुसार देश के करीब ४६% बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा लगभग ४७% है. भारत में सबसे ज्यादा कुपोषण से ग्रसित बच्चे मध्य प्रदेश में हैं. उत्तर प्रदेश में लगभग ४०% बच्चे औसत दर्जे से कम भार के पैदा होते हैं. प्रत्येक साल ० से ५ वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों में होने वाली मृत्यु के अंतर्निहित कारणों में लगभग ६०% मृत्यु कुपोषण के कारण होती है. कुपोषण की समस्या ग्रामीण छेत्रों में पिछड़ी जाति के लोगों, तथा अशिक्षित वर्ग के लोगों में अधिक व्याप्त है. गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्या व्यापक होने के कारण पैदा होने वाले बच्चे कम भर के होते हैं.
कुपोषण द्वारा होने वाली इन समस्त मौतों पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है. यदि हम प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की तरफ़ ध्यान दें और लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा करें. अक्सर हम लोग जानकारी के अभाव में अपने घर में ही उपलब्ध खान-पान और उनके उचित उपयोग के प्रति ध्यान नही दे पाते. जैसे घर में उपलब्ध हरी सब्जी, दूध, दही, अंडा, चना, दलिया, केला, पपीता, आँगनबाडी कार्यक्रम के तहत प्राप्त पूरक पोषाहार तथा 'आयरन' की गोलियाँ आदि. यदि हम इन समस्त खाद्य पदार्थों को सही तरीके से लें तो माँ और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य सही व संतुलित रह सकता है.
कुपोषण की समस्या का एक प्रमुख कारण शिशु को सही समय और पर्याप्त मात्र में माँ का दूध न मिल पाना भी है. इस सम्बन्ध में वात्सल्य संस्था की संस्थापिका तथा प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह का कहना है कि शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत, शिशु और ५ साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के अनुपात को कम कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. जिसके द्वारा उच्च नवजात मृत्यु दर को जबरदस्त ढंग से घटाया जा सकता है और भारत में हर साल करीब दस लाख शिशुओं की जान बचाई जा सकती है . आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल २३% माताएँ ही शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करा पाती है . वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सिर्फ़ ७.२% है . जो कि भारतीय राज्यों में शिशु स्तन पान के अनुपात में २८ वें स्थान पर आता है. जो महिलायें शिशु को जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान शुरू करा देती हैं उनके पास शिशुओं को पहले ६ महीने तक सफलतापूर्वक और पूर्णतः स्तनपान कराने के व्यापक अवसर बढ़ जाते है. पहले ६ महीनों तक पूर्णतः स्तनपान कराने से शिशु स्वस्थ रहता है और पूर्ण छमता के साथ उसके विकास को भी सुनिश्चित करता है ।
पोषण में सुधार लाने के लिया समुदाय स्तर पर पोषण से सम्बंधित व्यवहारों में परिवर्तन लाकर पोषण स्तर में सुधार लाया जा सकता है . उचित पोषण के कुछ प्रमुख व्यवहार को हमें ध्यान रखना चाहिए जैसे – शिशु को गरम रखना एवं किसी भी बाह्य संक्रमण से बचाना , ६ माह के ऊपर के बच्चों को घर में बना हुआ भोजन जैसे गली दाल , घुटा चावल, खिचड़ी, मसला आलू , केला इत्यादि आवश्यक रूप से देना चाहिए . गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दिन में दो घंटे आराम तथा एक अतिरिक्त खुराक अवश्य लेना चाहिए .उम्र के अनुसार निर्धारित टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए .माँ को पोष्टिक आहार लेते रहना चाहिए .खाने में ऐसे खाध्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें लोहे की मात्र ज्यादा से ज्यादा हो , इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि माँ और बच्चा दोनों ही हमेशा 'आयोडीन' युक्त नमक का ही प्रयोग करें ।
मातृत्व एवं शिशु विकास तथा उनके उचित पोषण को लेकर ग्रामीण स्तर पर लोगों को जागरूक करना होगा। जिसके लिया हमें डॉक्टर , नर्स , व्यक्तिगत महिला स्वास्थय कर्मी ,आंगनबाडी कार्यकर्तियों, आशा कार्यकर्ताओं,दाइयों इत्यादि को पर्याप्त प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देना होगा। कुपोषण की समस्या पर नियंत्रण प्रभावकारी रूप से तभी पाया जा सकता है जब लोगो में इसके प्रति जागरूकता हो. इस सम्बन्ध में केरल का उदाहरण हमारे सामने है जिसने कुपोषण की समस्या पर प्रभावकारी नियंत्रण पाया है। प्रदेश में जहाँ कहीं पर भी सरकारी और गैरसरकारी संगठनों द्वारा जो भी कार्यक्रम कुपोषण की समस्या को दूर कराने के लिया चलाया जा रहा है उन कार्यक्रमो को वहां के स्थानीय लोगो के द्वारा ही मूल्यांकन करवाना चाहिए. लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा किसी भी कार्यक्रम का मूल्यांकन तभी किया जा सकता है जब उन लोगों को चलाये जा रहे कार्यक्रमो के बारे में पर्याप्त जानकारी हो . इसके लिए स्थानीय लोगो को, जिनके लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, इसके प्रति जागरूकता पैदा करना अति आवश्यक है तभी वे अपने अधिकारों के लिए आगे आयेंगे .
आज हम विकास के बड़े बड़े दावे करते हैं तथा वैश्वीकरण की बात करते है . बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हमारे देश में तेजी से अपना पाँव फैला रही हैं लेकिन इन सारे दावों के बाद जब हम पीछे मुड़कर ग्रामीण छेत्रों में रहने वाले लोगो की तरफ़ देखते है तो पाते हैं कि आज भी वहाँ लोग भूख से मर रहे हैं . हम विकास की मुख्य धारा में पूरी तरह से तबतक शामिल नही हो सकते जबतक हम प्राथमिक अनिवार्यताओं, जैसे प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य आदि के विकास के लिए प्रयाप्त नहीं करते हैं
अमित द्विवेदी
लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस में विशेष संवाददाता हैं. संपर्क ईमेल: amit@citizen-news.org