कैसे प्रभावी हो पी० एन० डी० टी0 अधिनियम
संसार के ज्यादातर देशों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। भारत ऐसा तीसरा देश है जहाँ महिलाएं पुरुषों से कम हैं। पिछले ८० सालों में मानव जीवन के लगभग हर छेत्र में विकास हुआ है वहीँ दूसरी ओर महिला पुरूष का अनुपात घटता जा रहा है। वर्ष १९०१ में प्रदेश में १००० पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या ९४२ थी जबकी वर्ष २००१ में ये संख्या घटकर ८९८ रह गयी। देश में विभिन्न राज्यों की स्थितियां अलग-अलग हैं। प्रति १००० पुरूष पर महिलाओं की संख्या दिल्ली में ८२१, हरियाणा में ८६१, पंजाब में ८७४ तथा चंडीगढ़ में ७७३ है. देश में केरल तथा पाँडीचेरी दो ऐसे प्रदेश हैं जहाँ १००० पुरुषों पर महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक १०५८ तथा १००० है। छः वर्ष तक के बच्चे में लिंग अनुपात की स्थिति और भी सोचनीय है। भारत में यह अनुपात वर्ष १९९१ में ९४५ से घटकर वर्ष २००१ में ९२७ तथा उत्तर प्रदेश में ९२७ से घटकर ९१६ हो गया है। इस प्रकार लड़कियों की संख्या में उत्तरोतर कमी एक गंभीर सामाजिक विषय बन गया है।
भारत में ही नहीं वरन अन्य देशों में भी पित्रसत्तात्मक व्यवस्था पारंपरिक रूप से चली आ रही है। ऐसे समाज में मादा शिशु की हत्या होना कोई नई बात नहीं है। गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग की जाँच की नई-नई वैज्ञानिक तकनीकों के अविष्कार ने मादा भ्रूण हत्या की समस्या को और भी गंभीर बना दिया है। यही नहीं अब तो गर्भ धारण के पूर्व ही लिंग चयन करना सम्भव हो गया है।
वर्तमान में जो आनुवांशिक तकनीकी जांचे की जा रहीं हैं उनमें ८ से लेकर १६ सप्ताह तक के गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है दूसरी ओर वर्ष १९७१ से लागू “चिकित्सीय गर्भ समापन अधिनियम ” के अर्न्तगत कुछ विशेष परिस्थीतियों में गर्भपात को क़ानून बना दिया गया है। अतः लोग भ्रूण की लिंग जांच करने वाली मशीनों के जरिय गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग का पता लगाकर मादा भ्रूण पाये जाने पर, चिकित्सीय गर्भ समापन अधिनियम की आड़ में उसे अवैध रूप से गर्भपात द्वारा नष्ट करवा देते हैं। इस पूरे अमानवीय कार्य में सबसे ज्यादा योगदान चिकित्सकों का है क्योंकि उन्ही के द्वारा आनुवांशिक रोगों की पहचान के लिए तकनीकी जांचे की जाती हैं तथा गर्भपात भी डाक्टरों द्वारा किया जाता है।
गर्भ में मादा भ्रूण हत्या के चलते समाज में पुरूष व महिला लिंगानुपात में भयंकर गिरावट आ सकती है जिससे आगे चलकर महिला अपहरण, बलात्कार तथा बहुपति प्रथा जैसी सामाजिक समस्याएँ जन्म ले सकती हैं। यह भी देखने वाली बात है की देश में साधन संपन्न प्रदेशों हरियाणा, पंजाब, दिल्ली तथा चंडीगढ़ में असमान लिंग अनुपात की समस्या सबसे गंभीर है।
उत्तर प्रदेश के ६ पश्चिमी जिलों जहाँ ० से ६ वर्ष के बच्चों में लिंग अनुपात की स्थिती सबसे ख़राब है वे बागपत, आगरा, गाजियाबाद, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर , मुजफ्फरनगर उल्लेखनीय है कि यह जनपद हरियाणा और राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं, इन दोनों राज्यों में लिंग अनुपात की दशा उत्तर प्रदेश से भी ख़राब है।
मादा भ्रूण हत्या की समस्या के निराकरण में मीडिया तथा स्वैच्छिक संगठनो की अहम् भूमिका है। मीडिया के माध्यम से इस विषय से सम्बंधित सूचनाओं का प्रचार- प्रसार कर जन सामान्य को जानकारी दी जा सकती है। मादा भ्रूण हत्या को रोंकने के लिए हमे समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता लानी होगी तथा इस बात को याद रखना होगा की महिलाओं के बगैर यह समाज नहीं चल सकता।
पूनम द्विवेदी