उच्च न्यायालय की रोक के बाद भी कुछ जगह गंगा एक्सप्रेसवे का काम जारी
राज्य सरकार ने गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना को जिस जल्दीबाजी में पर्यवर्णीय अनुमति प्रदान की, उसकी वजह से उच्च न्यायालय ने २९ मई २००९ को इस अनुमति पर रोक लगायी है।
अगस्त २००७ में हुई जन-सुनवाइयों में बिना परियोजना रपट और ‘ई.आई.ए रपट’ [environment impact assessment report] उपलब्ध कराये जिस तरह से परियोजना को अनुमति प्रदान की गयी तथा ‘state environment impact assessment authority’ और ‘state level expert appraisal committee’ ने जिस तरह से एक दिन के अन्दर इस परियोजना को अनुमति देने के निर्णय लिए उससे सारी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा हुआ है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर यू.के. चौधुरी ने यह भी सवाल खड़ा किया है कि परियोजना का उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण पूरा होने की बजाय बाढ़ की सम्भावना को और बढायेगा।
१२,००० हेक्टेयर की भूमि पर ओद्योगिक, व्यावसायिक, आवासीय और उद्योग आदि का जो काम होगा, उससे भी प्रदूषण बढ़ेगा।
इसके अलावा हाईवे पर जो वाहन चलेंगे उसके प्रदूषण से गंगा का जल प्रभावित होगा (उसमें ‘दिसोल्व्ड आक्सीजन’ की कमी हो जायेगी और बायो-आक्सीजन डिमांड बढ़ेगी)। जल स्तर भी प्रभावित होगा।
२७,००० हेक्टेयर भूमि का जो अधिग्रहण होगा उससे खेती और किसानों की आजीविका प्रभावित होगी और विस्थापन की गम्भीर समस्या खड़ी होगी।
जल्दीबाजी में तय की गयी परियोजना पर उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद भूअधिग्रहण का काम रुका नहीं है। हाल ही में राजेंद्र सिंह के रायबरेली और प्रतापगढ़ के दौरे से यह बात सिद्ध हुई है।
हम मांग करते हैं कि जबतक राज्य सरकार विभिन्न पर्यावरण सम्बन्धी अनुमतियाँ व केन्द्र सरकार की अनुमति न प्राप्त कर ले, इस परियोजना के सभी कार्यों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगायी जाए।
राजेंद्र सिंह डॉ संदीप पाण्डेय अरुंधती धुरु
जल बिरादरी आशा परिवार नर्मदा बचाओ आन्दोलन
संपर्क: संदीप भाई २३४७३६५