बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का बिगड़ता ढांचा

बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का बिगड़ता ढांचा

हमारे देश में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का एक बहुत बड़ा त्रिस्तरीय ढांचा विद्यमान है फिर भी हमारे यहाँ समुदाय को आवश्यकता पड़ने पर उचित मूल्य पर तकनिकी रूप से सही एवं सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। यही कारण है कि ऐसे में कोई समस्या आने पर तुरंत उसका समाधान न मिल पाने के कारण माताएं एवम शिशु भी आकस्मिक मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। इस स्थिती में लोग स्थानीय स्वास्थ्य कर्मी से सहयोग की आशा करते हैं किंतु उचित प्रशिक्षण तथा जानकारी न मिलने के कारण वे इस कठिन परिस्थितियों में चाहते हुए भी उचित सहयोग नहीं कर पाते।

देश में सरकार ने समुदाय के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का ग्रामीण इलाकों में एक जाल सा बिछा दिया है। इसके बावजूद भी उत्तरी भारत के राज्यों में अधिकतर ग्रामीण छेत्र का समुदाय जरूरत और संकट के समय इन सुविधाओं से वंचित रह जाता है। जिसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। जैसे; समुदाय के लोगों की इन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक केन्द्र अस्पतालों तक दूरी के कारण पहुँच नहीं है। अस्पतालों का ख़राब रख-रखाव, महत्त्वपूर्ण तकनीकी पदों पर कुशल लोगों की कमी, जरूरी दवाओं के लिए धन की कमी, सेवाएं मात्र उपचार के लिए न की आवश्यक परामर्श के लिए इत्यादी ।

इन सब कारणों की वजह से गैर सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रदानकर्ता एक महत्वपूर्ण भूमिका में परिलक्षित हुए हैं। इन स्थितियों में इनकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि स्वास्थ्य सेवा प्रदानकर्ता समुदाय के बीच से ही आए हुए व्यक्ती होते हैं। इसलिए समुदाय पर इनकी समझ और पकड़ काफ़ी मजबूत होती है। समुदाय अपने संकट के काल में इन्ही स्वास्थ्य सेवा प्रदानकर्ता के सामने अपनी समस्याओं के साथ आते हैं।

परन्तु तकनिकी ज्ञान की कमी और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चाहते हुए भी उचित ज्ञान न मिल पाना एक विडम्बना है। मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि उसका जन्म है, परन्तु हमारे देश में यह एक जटिल समस्या है। इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश में देखने को मिलता है जहाँ शिशु मृत्युदर ७७ प्रति १००० जीवित जन्म है, जिसका मुख्य कारण है स्वास्थ्य सेवाओ की इन विषम परिस्थितियों में समुदाय तक पंहुच और स्वास्थ्य सेवा प्रदानकर्ता का तकनीकी ज्ञान।

परम्परा अनुसार ग्रामीण छेत्रों में प्रसव अधिकतर दाईयों द्वारा ही कराये जाते हैं जिन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी तकनिकी ज्ञान न के बराबर होता है और इनका यह कार्य पीढियों से चला आ रहा है जो की इनके जीवन यापन का एक मात्र साधन है। अब ऐसे में अगर इन सेवा प्रदानकर्ता को तकनिकी ज्ञान और उनकी सीमाओं से अवगत कराने का प्रयास किया जाए तो प्रसव सम्बन्धी विषम परिस्थितियाँ होने पर व्यर्थ समय बेकार किए बगैर सम्बंधित डाक्टर के पास भेज सकते हैं जिससे माँ और शिशु मृत्यु दर दोनों में ही कमी लाने का प्रयास किया जा सकता है।

अतः यह अत्यन्त आवश्यक है की हम अपने देश में बुनियादी स्वास्थ्य व्यवस्था को और भी मजबूत बनायें।

अमित द्विवेदी

लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस से जुड़े हैं।