गर्भपात कितना सुरक्षित, कितना असुरक्षित


गर्भपात कितना सुरक्षित, कितना असुरक्षित

विज्ञान की तरक्की ने जहाँ एक ओर हमारे जीवन को नए आयाम दिए हैं, वहीँ दूसरी ओर हमारा दखल कुछ अगम्य छेत्रों में बढाया भी है। हम बिना अपने नुकसान का आंकलन किए ही नई विकसित होती तकनीकों का इस्तेमाल करते जा रहे हैं ऐसी ही एक तकनीक का परिणाम है गर्भपात। शहरी व ग्रामीण छेत्रों में गर्भपात ज्यादातर इन कारणों से कराये जाते हैं, जैसे; गर्भ निरोधक साधनों के विफल होने पर, गर्भ निरोधक साधनों की अनुपलब्धता, बलात्कार के कारण ठहरा गर्भ, परिवार नियोजन के सम्बन्ध में, लिंग जांच के बाद लड़की का पता लगने पर आदि।

उपरोक्त लिखी सभी समस्याओं के हल के रूप में गर्भपात का उपयोग किया जाता है। आज कल रोज हर अखबार में कम से कम एक विज्ञापन गर्भ समापन की दवाईयों या तथाकथित सुरक्षित गर्भपात क्लीनिक का होता है, जिनका दावा होता है “ बिना किसी परेशानी के गर्भपात से छुटकारा।”

गर्भपात के ऐसे असुरक्षित साधन आज इतनी आसानी से उपलब्ध हैं की कोई भी इनका उपयोग कर सकता है। जैसे सुईयों द्वारा, दवाईयों के प्रयोग से, पारंपरिक साधन आदि से। यदि आप सुरक्षित गर्भपात करवाना चाहतें हैं तो कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। जैसे ; जब गर्भ की अवधि १२ हफ्ते से कम हो, शारीरिक रूप से महिला स्वस्थ्य हो, महिला में खून की कमी न हो, महिला की सहमती और नाबालिग़ लड़की के अभिभावकों की सहमती हो आदि।

मात्रत्व मृत्यु के पीछे असुरक्षित गर्भपात एक महत्वपूर्ण कारण है। भारत में प्रतिवर्ष ६४ लाख गर्भपात होते हैं। भारत में प्रति एक लाख की जनसँख्या पर चार गर्भपात सेवा प्रदाता उपलब्ध हैं। १६ लाख से ज्यादा गर्भपात अनौपचारिक संसाधनों में प्रत्येक वर्ष होते हैं जहाँ असुरक्षित गर्भपात एवं मृत्यु का भय भी बना रहता है।

गर्भपात वर्तमान में एक ऐसी विकट समस्या के रूप में हमारे समाज में निकलकर आ रही है जो महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने का एक माध्यम है। महिलाओं की दशा में सुधार तथा शिशुओं की जीवन रक्षा के लिए आवश्यक है और इसके लिए योजना एवं अनचाहे गर्भ हेतु परिवार नियोजन के साधनों का सही उपयोग हो सके।

महिलाओं को अपने शरीर पर अधिकार को मान्यता देते हुए भारत में कई सारे गर्भपात अधिनियम बनाये गए परन्तु आज भी गाँव और शहरों में कितने ही गर्भपात क्लीनिक बिना पंजीकरण के कार्यरत हैं। पंजीकरण की अनुपस्थिती में न तो सुरक्षा के मानकों का ध्यान रखा जाता है और न ही होने वाले गर्भपात की मृत्यु का। जिसके कारण जिला व राज्य स्तर पर सही आंकडे उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। असुरक्षित गर्भपात को रोंकने के लिए हमे समुदाय को जागरूक करना होगा ओर इसके लिए हमे सामाजिक संवेदनशीलता भी लानी होगी।

अमित द्विवेदी
लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस से जुड़े हुए हैं।