सूचना के अधिकार अधिनियम, २००५, को कमजोर करने के विरोध में प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम, २००५, को कमजोर करने के विरोध में आज प्रदेश के लगभग २० जिलों में प्रदर्शन हो रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे से पाँच विषयों को बाहर किया है जो इस प्रकार हैं: राज्यपाल की नियुक्ति, उच्च न्यायालय के न्यायाधीषों की नियुक्ति, मंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों की आचरण संहिता तथा राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखे पत्र। पिछले वर्ष नागरिक उड्डयन विभाग को भी सूचना के अधिकार अधिनियम, २००५, से प्रदेश सरकार ने बाहर किया था। उ.प्र.सरकार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम को कमजोर करने का हम विरोध करते हैं, कहना है जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के कार्यकर्ताओं का।
मग्सय्सय पुरुस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, की धारा 24 की उप-धारा 4 के तहत राज्य सरकार सिर्फ सुरक्षा एवं अभिसूचना से सम्बन्धित विभागों को ही इस कानून के दायरे बाहर कर सकती है। हमारा मानना है कि उपर्युक्त विषयों में से कोई भी या नागरिक उड्डयन विभाग सुरक्षा एवं अभिसूचना की श्रेणी में नहीं आते"।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ.प्र के उपाध्यक्ष एस.आर.दारापुरी ने कहा कि "संविधान के अनुच्छेद 256 के अंतर्गत राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुपालन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी है। वह किसी कानून को कमजोर नहीं कर सकती"।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को ज्ञापन देते हुआ कहा कि "राज्य सरकार का कदम कानून विरोधी तथा संविधान विरोधी भी है। कृपया राज्य सरकार को सूचना के अधिकार अधिनियम में लाए गए परिवर्तनों को वापस लेने हेतु निर्देष दें। हम चाहते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, अपने मौलिक स्वरूप में बना रहे।"