आतंकवाद के मूल में हिन्दुत्ववादी संगठन

आतंकवाद के मूल में हिन्दुत्ववादी संगठन
डॉ संदीप पाण्डेय

अब तो आतंकवादी घटनाओं ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। चारों तरफ असुरक्षा का माहौल है। कब कहाँ अगला विस्फोट हो जाए किसी को मालूम नहीं। बम विस्फोट वाली घटनाएँ पहले से ज्यादा होने लगी हैं। पहले पाकिस्तानी, फिर बंगलादेशी आतंकवादी संगठनों की और अब 'सिमी' की लिप्तता इनमें बताई जाती रही है। लेकिन ठीक से किसी को नहीं मालूम। संचार माध्यम पुलिस की ही बताई बातों को परोसते हैं। जो मुस्लिम युवक आरोपी के रूप में पकड़े जाते है उनके खिलाफ सिवाए पुलिस हिरासत में लिए गए उनके इकबालिया बयान के कोई ठोस सबूत नहीं होता। जिसकी वजह से कुछ बरी भी हो गए। किन्तु ज्यादातर सौभाग्यशाली नहीं होते और उन्हें वर्षों कारावास में बिताना पड़ता है।

भारत में बम विस्फोट किस्म की आतंकवादी घटनाओं की शुरुआत हुई है अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद से। और इनमें तेजी आई है सन् २००१ में हुए अमरीका में आतंकवादी हमले के बाद से। बाबरी मस्जिद का गिराया जाना भारत की सबसे बडी आतंकवादी घटना थी जिसमें दिन दहाड़े हजारों लोगों ने कानून और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा दीं। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार, जिसने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की रक्षा का वचन दिया हुआ था, इस आपराधिक कार्यवाही में भागीदार बन गयी। उस दिन हिन्दुत्ववादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने लोकतंत्र का माखौल उड़ाते हुए नंगा नाच किया। इस घटना से इन संगठनों को हिंदू मत के ध्रुवीकरण में मदद मिली तथा केन्द्र में भाजपा सरकार के गठन से एक प्रकार से सांप्रदायिक राजनीति को वैधता मिल गई। कायदे से तो लोकतंत्र में सांप्रदायिक विचार, जिसका आधार दोसरे के प्रति नफरत होता है, की कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए। किन्तु दुर्भाग्य से हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का लाभ उठाते हुए यह विचार भारत की संसदीय राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश कर गया है तथा अब घुन की तरह उससे चिपक कर अन्दर से उसे खोखला करना में लगा हुआ है।

सांप्रदायिक राजनीति ने अपने को स्थापित कराने व बनाए रखने के लिए हमेशा हिंसा का सहारा लिया है। महात्मा गाँधी की हत्या, बाबरी मस्जिद का ध्वंस व परमाणु हथियारों का परीक्षण इस राजनीति का चरण बद्ध अभियान है। समय-समय पर हुए सांप्रदायिक दंगों ने भी इसे आगे बढ़ाया है। निश्चित रूप से इसकी प्रतिक्रिया भी हुई है तथा कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों को भी अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने का मौका मिला है। जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पहले दंगों से होता था वह अब बम विस्फोट की घटनाओं से हो रहा है। हरेक बम विस्फोट की धटना के बाद बिना किसी सबूत या जाँच पड़ताल के तुंरत कुछ देशी-विदेशी मुस्लिम संगठनों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। जिस तरह से पहले सांप्रदायिक दंगों को लेकर राजनीति होती थी ठीक उसी तरह की राजनीति बम विस्फोट की घटनाओं को लेकर हो रही है। यह परिवर्तन जब से हम एक तरफा घोषणा करके अमरीका के 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध’ में सहयोगी बने हैं तब से आया है। इस्लाम को आतंकवाद का पर्याय बताने वाली राजनीति में हम शामिल हो गए हैं। जैसे-जैसे इन घटनाओं से निबटने के लिए और कठोर उपाए अपनाये जा रहे हैं, इनमें इजाफा ही हो रहा है।

ज्यादातर आतंकवादी घटनाओं में पुलिस मुख्य अपराधियों को पकड़ने में नाकाम रही है। उदाहरण के लिए संसद पर हुए हमले में यह अभी तक मालूम नहीं कि हमला किसने करवाया था। इस मामले में मोहम्मद अफजल गुरू को फांसी की सजा जरूर हुई है लेकिन उसका सीधे-सीधे हमले की कार्यवाही में या उसकी तैयारी में शामिल होना साबित नहीं हो पाया है। इसी तरह अन्य आतंकवादी घटनाओं में जो लोग पकड़े जा रहे हैं उनके खिलाफ भी पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं है। गिरफ्तार किए जाने वाले सारे मुस्लिम युवक हैं। इसके विपरीत कुछ ऐसी बम विस्फोट की घटनाएँ हुई हैं, जैसे अप्रैल २००६ में नांदेड़, महाराष्ट्र में, जनवरी २००८ में तमिल नाडू के तिरुनेलवेल्ली जिले स्थित तेनकाशी में, जून २००८ में गड़करी रंगायतन, महाराष्ट्र में तथा अगस्त २००८ में कानपुर में, जिनमें हिन्दुत्ववादी संगठनों की लिप्तता सिद्ध हुई है। हाल ही में अयोध्या के एक साधू को दो बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने 'सिमी' व 'अल-कायदा' के नाम से धमकियां दीं और वे पकड़े भी गए। नांदेड़ में तो पुलिस विभाग के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने जहाँ बम बनाते समय दो बजरंग दल के कार्यकर्ता विस्फोट में मारे गए थे वहां से नकली दाढ़ी-मूछ, कुर्ता-पजामा व मुसलमानी टोपी भी बरामद किए जो किसी काले कृत्य को करते समय मुसलमानी पहनावा दिखाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते थे। इसके बावजूद उपर्युक्त किसी भी घटना की विवेचना गम्भीरता से नहीं की गयी, न ही हिन्दुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को उस तरह से गिरफ्तार किया गया जिस सनसनीखेज तरीके से मुस्लिम युवाओं को पकड़ा जाता है और न ही इन घटनाओं को देश में हो रहे अन्य आतंकी कार्यवाइयों से जोड़ा गया जिस तरह पुलिस मुस्लिम युवकों के मामले में आसानी से एक घटना के तार दूसरी घटना से जुड़े बता देती है।

जब से दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश गीता मित्तल की 'सिमी' पर सात वर्षों से लगे प्रतिबन्ध को, चूँकि उसके ख़िलाफ़ देश-विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के कोई ठोस सबूत नहीं थे, जारी न रखने की संस्तुति आई है तब से तो जैसे देश में भूचाल ही आ गया है। पुलिस द्वारा धड़ाधड़ कई मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं। इनमें से हरेक को सम्बन्ध 'सिमी' से जोड़ा जा रहा है ताकि 'सिमी' पर प्रतिबन्ध लगा रहे। लेकिन ये सभी युवा निर्दोष हैं तथा न्यायालय में इनके खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश करना पुलिस के लिए मुश्किल होने वाला है। लेकिन इन घटनाओं से पूरे देश के माहौल में सांप्रदायिक ज़हर मिलाया जा रहा है।

जो भी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहा हो इस बात में तो कोई संदेह नहीं है कि सांप्रदायिक आधार पर मतों का जो ध्रुवीकरण हो रहा है उसका लाभ तो आगामी लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को ही मिलेगा। वैसे यह सोचने का विषय है कि संसद में अमरीका परमाणु समझौते के मुद्दे पर विश्वास मत में भारतीय जनता पार्टी की करारी शिकस्त तथा आगामी चुनावों के मद्देनजर मायावती का प्रधान मंत्री पद की दावेदारी में प्रबल उम्मीदवार बनकर लाल कृष्ण आडवानी के लिए एक चुनौती बनकर उभरने के बाद अचानक अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जमीन का मुद्दा व अब आतंकवाद का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय महत्व रखने वाले परमाणु समझौते के मुद्दे के ऊपर कैसे हावी हो गए? ये दोनों मुद्दे ऐसे है जिनसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है तथा भाजपा ने घोषणा की है कि वह उन्हें चुनावी मुद्दे बनाएगी। यह देश के, भौतिक नहीं तो मानसिक, विभाजन की साजिश है तथा भारत में इजराइल जैसी परिस्थितियां निर्मित करने की कोशिशें है। पिछली भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के कार्यकाल से हम इजराइल से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का प्रशीक्षण ले ही रहे हैं।

आतंकवादी घटनाओं में अभियुक्तों के पक्ष में खड़े होने वाले वकीलों की हिन्दुत्ववादी वकील मिलकर न्यायालय परिसर में ही पिटाई कर दे रहे हैं। ऐसी घटनाएँ मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के फैजाबाद और लखनऊ में हुईं । लखनऊ में तो समाजवादी पृष्ठभूमि के वरिष्ठ वकील मोहम्मद शोएब की न सिर्फ़ पिटाई हुई बल्कि उनके कपड़े फाड़ कर उन्हें पूरे न्यायालय परिसर में घुमाते हुए अपमानित किया गया। बिना मुकदमा चले एवं फैसला आए अभियुक्त को अपराधी घोषित कर देना, न्यायिक प्रक्रिया की खुलेआम अवमानना करना तथा साथी वकील के साथ गुंडागर्दी करना आख़िर आतंकवाद नहीं तो क्या है?


बम विस्फोट वाली अधिकांश घटनाओं में भले ही यह बता पाना कठिन हो कि उन्हें किसने करवाया किन्तु उड़ीसा व कर्नाटक में तो बजरंग दल द्वारा ईसाईयों की जान व माल पर हो रहे हमले सर्वविदित हैं। एक तरफ हिंदू धर्म को सबसे सहिष्णु बताने वाले बदले की भावना से प्रेरित हिंसा पर उतारू हिन्दुत्ववादी संगठन के कार्यकर्त्ता हैं तो दूसरी तरफ वह ईसाई समुदाय जिसके ग्राहम स्टेन्स को उसके दो बच्चों के साथ जीप में बंद कर जलाकर मार देने वाले बजरंग दल के कार्यकर्त्ता दारा सिंह को ग्राहम स्टेन्स की पत्नी ने माफ़ कर दिया था । हिंदू धर्म पर कालिख पोतने वाले बजरंग दल को रोकने के लिए राज्य व केन्द्र सरकार कुछ भी नहीं कर रही, बम विस्फोट की घटनाओं की जिम्मेदारी लेने वाली जो ईमेल आई है उनमें बाबरी मस्जिद ढहे जाने तथा २००२ के गुजरात नरसंहार का बदला लेने की बातें कही गई हैं। बम विस्फोट के लिए चाहे जो भी जिम्मेदार हो यह तय है कि यदि बाबरी मस्जिद न गिरी होती तथा गुजरात में मुसलमानों के साथ अत्याचार न हुआ होता तो आज देश के सामने आतंकवाद का दैत्य इतने भयावह तरीके से मुँह बाए न खड़ा होता। अतः देश में आतंकवाद को खड़ा करना के लिए हिन्दुत्ववादी संगठन ही जिम्मेदार हैं।


डॉ संदीप पाण्डेय

(लेखक, मग्सय्सय पुरुस्कार प्राप्त वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं और जान-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के समन्वयक भी। इनका ईमेल है: ashaashram@yahoo.com)

(नोट: इस लेख को युवा कार्यकर्ता रितेश आर्य ने टाइप किया है, जिसके हम सब शुक्रगुजार हैं)