क्या उड़ीसा में आर्थिक घोटाला होने को है?

क्या उड़ीसा में आर्थिक घोटाला होने को है?

लेखक: संदीप दासवर्मा और सनत मोहंती

ये लेख मौलिक रूप से अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जो यह पढ़ा जा सकता है (क्लिक्क कीजिये). ये इसका हिन्दी अनुवाद है, त्रुटियों के लिए छमा करें.

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स्टील के पोस्को (POSCO) प्रोजेक्ट के विरोध में मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के सब प्रयासों का उड़ीसा सरकार खंडन करती आ रही है, और ये सवाल उठता है की क्या प्रदेश में एक बहुत बड़ा आर्थिक घोटाला पनप रहा है?

मेमोरंदुम ऑफ़ उन्देर्स्तान्डिंग (ऍम.ओ.यू) या पोस्को और उड़ीसा सरकार के बीच जो समझौता हुआ है उसमें दूसरा वाक्य ये है:

"उड़ीसा सरकार प्रदेश में जो प्राकृतिक संसाधन हैं उनके जरिये प्रदेश में उद्योग को बढावा देना चाहती है, जिससे प्रदेश के लोग फले-फूले और संपन्न रहें. प्रदेश सरकार ठोस प्रयास करती रही है जिससे प्रदेश की विभिन्न छेत्रों में उद्योग स्थापित हो सके. इसी परिपेक्ष्य में, प्रदेश सरकार ऐसे उद्योगों की तलाश में है जो एक स्टील प्लांट की स्थापना कर सके जिससे प्रदेश के ऐरोन या लोहे की खदानों का उपयोग हो सके"

हालांकि उड़ीसा सरकार के इन प्रयासों का सामाजिक और पर्यावरण पहलू पर विचार होना आवश्यक है, पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ये है कि इसके आर्थिक पहलू पर विचार हो सके.

ऍम.ओ.यू. में पोस्को कंपनी ने १२ बिलियुं डालर या रुपया ४८,००० करोर के निवेश का प्रस्ताव रखा है. ये संख्या भव्य है. ४८,००० करोर रूपये से प्रदेश में काफी विकास कार्य हो सकते है विशेषकर कि जब ये प्रदेश भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर व्यवस्था वाला प्रदेश माना जाता है. इस पैसे से अनेकों शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, वकाल्पिक आय के स्रोत, आदि के कार्यक्रम चल सकते हैं. पोस्को कंपनी प्रथम फेस में २०१२ तक रूपये२१,९०० करोर के निवेश करने का प्रस्ताव रखती है और २०१६ तक रूपये २१,५०० करोर के निवेश की.

पोस्को उड़ीसा प्रदेश के शहर भुभ्नेश्वर में २०-२५ एकड़ जमीन पर अपने भारतीय सुब्सिदिअरी कंपनी के कार्यालय को खोलेगी. इसके अलावा पोस्को कंपनी को ६००० एकड़ जमीन की भी आवश्यकता है जिसपर स्टील प्रोजेक्ट बनेगा और लोगों के रहने आदि की टाउनशिप भी प्लान की गई है. यही नही, अन्य व्यवस्थाओं के लिए जैसे कि स्टील प्लांट्स के बीच समान के आने जाने के लिए, पोर्ट तक माल के आने जाने के लिए और पानी में तरेअत्मेंट के लिए भी जमीन आदि चाहिए होगी. उड़ीसा सरकार ने पोस्को को ये जमीन प्रदान करने का वायदा किया है.

नेक इरादों को दिखाने के लिए, ऍम.ओ.यू. में ये भी स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि:

"उड़ीसा सरकार इस बात की प्रशंसा करती है कि कंपनी एक जिम्मेदार उद्योग है और कंपनी में कार्यरत लोगों के हित, लाभ और सामाजिक विकास का भी ध्यान रखती है"

उड़ीसा प्रदेश में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा सबसे बड़े स्टील प्रोजेक्ट के निर्माण की घोषणा सुनके ओरिया समुदाय नि:संदेह खुश है. इस प्रोजेक्ट से न केवल प्रदेश में कभी न होने वाला निवेश होगा बल्कि लोगों को रोज़गार और नए शहर व्यवस्था आदि भी मिलेगी. उड़ीसा सरकार को गौरव होना चाहिए कि वो इस डील को अंजाम दे पायी है.

परन्तु इसके बावजूद भी इस पोस्को प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है.

पर्यावरण की संग्रक्षा करने वाले कह रहे है कि पानी का झरना खत्म हो जाएगा - परन्तु जब लोग भुखमरी से मर रहे हों, तो झरने की परवाह किसको है! पहाडों की प्राकृतिक सौदार्यता खत्म हो जायेगी - ये परवाह किसको है यदि इस पोस्को प्रोजेक्ट से उड़ीसा के अनेकों लोगों को स्थाई रोज़गार मिल रहा हो! जो रिडले कच्छुओं के बारे में मुद्दा बना रहे है, वो हस्ययास्पद लगता है यदि लोगों के हित की सोची जाए.

उड़ीसा के लोगों का कहना है कि भारत के अन्य प्रदेशों में जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि या अन्य विकसित राष्ट्रों में भी विकास और व्यवस्था के विकास के लिए इस प्रकार की कीमत चुकाई गई है. तब फिर जब उड़ीसा में ऐसा हो रहा हो तो शिकायत क्यो? ये बहस समझ आती है.

ये भी अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि जो आर्थिक लाभ की बात उड़ीसा सरकार कर रही है, वो कितनी वाजिब है.

पहले जब डील हुई थी तो पोस्को ने रूपये २७ प्रति टन ऐरोन या लोहे ओर का दाम उड़ीसा सरकार को देने का वायदा किया था यदि इस ऐरोन या लोहे में कम से कम ६२ प्रतिशत इरों या लोहा हो. इससे उड़ीसा सरकार को रुपया १,६२० करोर एक लंबे समय में मिलता जब ६०० मिलिओं टन का सौदा हो चुका होता.

इस समय अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार में ऐरोन या लोहे ओर का रेट अमरीकी डालर १०० प्रति टन है. दिसम्बर २००७ में बाज़ार में ऐरोन या लोहे ओर का मूल्य अमरीकी डालर १२० प्रति टन था.

अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के मूल्य के हिसाब से ६०० मिलिओं टन ऐरोन या लोहे ओर की खुदाई से रुपया २४०,००० करोर होता है न कि रुपया १,६२० करोर). ये समझ में अब आ रहा है कि पोस्को प्रोजेक्ट को ऐरोन या लोहे ओर लगभग मुफ्त में मिल रह है (२४०,००० करोर रूपये का माल मात्र १६२० करोर में!).

कुछ ऐसी ही डील अन्य उद्योगों के साथ हुई है जिसमे टाटा, वेदंता, जिंदल आदि शामिल हैं.

ऐसी डील उड़ीसा सरकार और केंद्रीय सरकार आख़िर क्यो कर रही है? जो लोग उद्योग में कार्यरत हैं उनके अनुसार सारी राजनितिक पार्टियों को अपना हिस्सा मिल रहा है. ऐरोन या लोहे की खुदाई के बाद हर ट्रक पर रूपये ५०० स्थानिये ऍम.अल.ऐ. को और इतनी ही रकम राजनीती पार्टी को प्राप्त हो रही है.

कुछ लोग उड़ीसा में ऐसे है जो ये सवाल उठा रहे हैं कि उड़ीसा सरकार क्यो पोस्को को अन्तर-राष्ट्रीयबाज़ार के मुल्ये से १ प्रतिशत से भी कम में ऐरोन या लोहे का ओर बेच रही है?

गहन शोध के बाद कुछ लोग इस नतीजे पर पहुचे हैं कि अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के रेट से ५० प्रतिशत पर उड़ीसा सरकार ये ऐरोन या लोहे ओर पोस्को को दे यदि स्टील प्रदेश के भीतर ही बन रही हो, यदि खुदाई के बाद ये ऐरोन या लोहे ओर प्रदेश से बाहर ले जाया जा रहा हो तो ८० प्रतिशत कीमत पोस्को को देनी चाहिए. ये कीमत देने के बाद भी पोस्को फायदे में रहेगी. उड़ीसा सरकार ने बहस की कि ऐसा करने पर डर है की पोस्को अन्य प्रदेश में न चली जाए. इसका जवाब ये है कि सब प्रदेशों को एकजुट हो कर एक संगठन बनाना चाहिए जिससे उद्योग उनके विभाजित होने का फायदा न उठा सके, जैसा कि Organization of the Petroleum Exporting Countries (OPEC) ने बनाया है.

इस तरह के प्रदेशों के संगठन बनने का प्रयास चल रहा है जिसमे छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, कर्नाटक और राजस्थान प्रदेशों के शामिल होने की सम्भावना है.

इन प्रदेशों के मुख्य मंत्री भारत के प्रधान मंत्री से १९ दिसम्बर को मिले थे और लोगों की मांग के अनुसार ५० प्रतिशत कीमत मांगने की बजाये इन मंत्रियों ने २० प्रतिशत कीमत की मांग की. केंद्रीय सरकार मोल-भाव कर रही है और सम्भावना है की अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के दाम से ७.५ - १० प्रतिशत कीमत पर राज़ी हो. उड़ीसा सरकार ईस दाम से संतुष्ट है.

यदि ऐसा हुआ तो अब उड़ीसा सरकार को रुपया १,६२० करोर के बजाये रुपया १८,००० - २४,००० करोर मिलेगा.

ऐसे कौन से कारण है जो सरकारों को मिनेरल बाज़ार की कीमत से ९० प्रतिशत से भी कम दाम में बेचनेपर मजबूर कर देते हैं?

प्रदेश सरकार इस पोस्को प्रोजेक्ट से संबंधित कोई जानकारी देने को तैयार नही है. लोकतंत्र में सब निजी कंपनियों के साथ सौदों की जानकारी जनता को मिलती है, यदि कोई सुरक्षा पर खतरा न बन रहा हो.

उड़ीसा सरकार, जिसका सालाना बजट रूपये ४,५०० करोर है, उसने १०८,००० करोर का माल या रूपये३,६०० करोर प्रति वर्ष आने वाले ३० साल तक के मूल्य को नही माँगा और वो क्यो मात्र ६०० करोर प्रतिवर्ष के मूल्य पर राज़ी हो गई?

संदीप दासवर्मा और सनत मोहंती