तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ५८
शुक्रवार, ६ जून २००८
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भारत में प्रति वर्ष ३ लाख ७० हज़ार से अधिक लोग टीबी या तपेदिक से मरते हैं. सदियों से टीबी या तपेदिक नियंतरण कार्यक्रम भारत में सक्रिय रूप से चल रहे हैं, परन्तु इसके बावजूद भी टीबी या तपेदिक का मृत्युदर बढ़ता ही जा रहा है.
अब ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक, यानि कि ऐसी टीबी जिस पर अधिकांश दवाएं कारगर न रहे, अत्यन्त घातक है.
दिल्ली में गृहणियों ने टीबी या तपेदिक नियंतरण कार्यक्रम को और जागरूकता को बढ़ाने के लिये सक्रिय भूमिका निभानी आरंभ की है. मुहल्लों में नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से टीबी या तपेदिक के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में, टीबी या तपेदिक के संक्रमण से बचाव के बारे में, इलाज के बारे में और टीबी या तपेदिक से जुड़े हुए शोषण युक्त रवैये के विरोध में अनेकों कार्यक्रम हो रहे हैं.
टीबी अलर्ट नामक संस्थान की भारत की प्रतिनिधि सपना नवीन का कहना है कि टीबी या तपेदिक का परीक्षण और पूरा इलाज करने के लिये लोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. टीबी की दवाएं सख्त होती हैं, और इनके प्रभाव अक्सर लोगों को भयभीत कर देते हैं, जैसे कि जौंदिस, बुखार, उलटी, पेशाब में खून का आना, या आंखों की दृष्टि का कमजोर होना आदि इन दवाओं को लेने पर आम लक्षण हैं.
अफ्रीका पर वर्ल्ड इकोनोमिक फॉरम का अधिवेशन ४ जून २००८ को दक्षिण अफ्रीका के केप तोउन शहर में आरंभ हुआ है. यह अधिवेशन टीबी या तपेदिक, खासकर कि ड्रग रेसिस्तंत टीबी के मुद्दे पर केंद्रित है. इस अधिवेशन में एक टूलकिट भी जारी की गई है कि उद्योग किस तरह से प्रभावकारी टीबी या तपेदिक के नियंतरण में भूमिका निभा सकते हैं. एक रपट के अनुसार दक्षिण अफ्रीका के ८६% उद्योग किसी-न-किसी तरह से टीबी या तपेदिक से कु-प्रभावित थे.
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टीबी या तपेदिक का उद्योगों पर कु-प्रभाव रपट पढ़ने या डाउनलोड करने के लिये यहाँ पर क्लिक्क कीजिये