तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ६६
सोमवार, ३० जून २००८
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भारत सरकार ने ग्यारवें पाँच वर्षीय योजना में ४५ करोड़ रुपया दवा कंपनियों को मलेरिया और टीबी या तपेदिक जैसी बीमारियों के शोध के लिये देने का फ़ैसला किया है. यह चिंताजनक इसलिए है क्योंकि दवा कंपनी मात्र मुनाफे के लिये, न कि जन स्वस्थ्य के लिये, समर्पित रहती हैं, और सरकारी अनुदान आखिर क्यों निजी कंपनी को शोध के लिये दिया जाए? यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण बात है क्योंकि जब भारत सरकार की अपनी शोध संस्थान इस शोध को करने में समर्थ हैं, तब क्यों यह धन राशि दवा कंपनियों को दी जा रही है? दवा के इजात होने के बाद क्या यह दवा कंपनी नि:शुल्क या बिना मुनाफे के जन-हित में दवा वितरण करेंगी?
दक्षिण अफ्रीका के जोसे पारसों अस्पताल से पहले भी कई ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक के रोगी भाग चुके हैं - दो हफ्ते पहले इस अस्पताल से २० ड्रग रेसिस्तंत टीबी के रोगी सुरक्षा कर्मियों से लड़-झगड़ कर भागने में सफल हुए थे, दिसम्बर २००७ में लगभग ६० ड्रग रेसिस्तंत टीबी के रोगी इस अस्पताल की दीवाल को तोड़ कर भाग खड़े हुए थे।
पिछले हफ्ते बुधवार को इस अस्पताल में कैद टीबी या तपेदिक के रोगियों ने अस्पताल में जेल से बदतर मौहौल के विरोध में आवाज़ उठाई - जब अस्पताल प्रसाशन ने जोर-जबरदस्ती की, तो मरीजों ने पथराव किया और तोड़-फोड़ भी हुई. यह सभी रोगी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये गए और कोर्ट में जज ने कहा कि ऐसा कोई जेल है ही नही जहाँ संक्रामक या ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक के रोगी भेजे जा सकें इसलिए इन सबको पुन: उसी अस्पताल में कैद कर के रखना बेहतर होगा.
यह सोचने का विषय है कि क्यों ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक के रोगी इस अस्पताल में कैद किए जाते हैं और क्यों वोह इलाज के बजाय भागने पर विवश हैं? अस्पताल में व्याप्त जेल से बदतर मौहौल को सुधारने के बजाय अस्पताल प्रसाशन ने सुरक्षा व्यवस्था और अधिक बढ़ा दी है.
एच.आई.वी से ग्रसित लोगों में एक टीबी दवा के बजाय अनेकों टीबी दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता पायी गई है, यानी कि टीबी या तपेदिक के रोगी इसोनिअजिद (isoniazid) और रिफम्पिसिं (rifampicin) दोनों के प्रति रेसिस्तंत पाये गए. गौर करें कि इसोनिअजिद और रिफम्पिसिं, दोनों ही सबसे प्रभावकारी टीबी या तपेदिक के इलाज के लिये दवाएं हैं, और जब एच.आई.वी से ग्रसित लोग इन दोनों से ही रेसिस्तंत हो जायेंगे, तो इलाज के विकल्प नि:संदेह ही बहुत सीमित हैं.
अधिक उम्र के लोगों में या वरिष्ठ नागरिकों में यदि मधुमेह या डायबिटीज़ नियंत्रित न की जाए तो टीबी या तपेदिक होने का खतरा तीन गुणा बढ़ जाता है.