(तम्बाकू) से आजादी की ओर
‘ तम्बाकू अथवा स्वास्थ्य ' का चौदहवाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन ८ मार्च को मुंबई के ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स ’ में प्रारंभ हुआ। इस ६ दिवसीय सम्मलेन का उदघाटन करते हुए, मुंबई के राज्यपाल, श्री जामीर ने बच्चों को तम्बाकू के जानलेवा खतरों से बचाने का आहवाहन किया। उन्होंने बताया कि दक्षिण पूर्व एशिया में ९०% मुंह के कैंसर तम्बाकू के सेवन के कारण ही होते हैं।
भारत में तम्बाकू प्रकोप की समस्या और भी जटिल है। हमारे देश में तम्बाकू का प्रयोग केवल सिगरेट के रूप में ही नहीं वरन गुटखा, पान मसाला, खैनी आदि के रूप में भी प्रचलित है। कुछ लोगों की भ्रामक धारणा है कि तम्बाकू उद्दोग हजारों लोगों को रोज़गार देता है, अत: इसको समाप्त नहीं होना चाहिए। परन्तु सच तो यह है कि तम्बाकू उद्दोग में काम करने वाले पुरूष, महिलायें एवं बच्चे, सदैव गरीब ही रहते हैं तथा तम्बाकू जनित अनेक बीमारियों के शिकार भी होते हैं। पनपते हैं तो केवल तम्बाकू उद्योगपति । तम्बाकू कंपनियाँ नित नए, लुभावने तरीकों से विशेषकर युवा वर्ग को धूम्रपान की ओर आकर्षित करतीं हैं ताकि वो अधिक से अधिक सिगरेट पी कर जल्द से जल्द मृत्यु को प्राप्त हों, या फिर असाध्य रोगों से ग्रसित हों। राज्यपाल महोदय ने खेलकूद संस्थाओं से अपील करी की वे तम्बाकू कंपनियों से खेल स्पर्धाएं प्रायोजित न कराएँ।
अपने युवा दिनों के तम्बाकू विरोधी अभियानों को याद करते हुए, श्री जामीर ने स्कूल कॉलेज में ‘टेम्पेरेंस कमेटी ’ बनाने का सुझाव दिया। ये संगठन, युवाओं में, न केवल धूम्रपान के विरुद्ध प्रचार करें, वरन अन्य विवेकहीन व्यसनों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाएं। सिगरेट पीना, शराब पीना, अपशब्द बोलना, आवश्यकता से अधिक खाना अथवा सोना--- ये सभी बुराइयाँ हमें शारीरिक और मानसिक रूप से निर्बल बनाती हैं। उन्होंने कहा कि युवाओंको ‘ यह मत करो’ के स्थान पर ‘ इस प्रलोभन से बचो’ की शिक्षा देनी चाहिए। निषेध आज्ञा का उल्लंघन करना युवा स्वभाव होता है। अत: उन्हें प्रेम से समझाना होगा।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर अंबुमणी रामादोस ने इस अवसर पर yyyबोलते हुए बताया कि भारत उनगिने चुने देशों में से एक हैं जिन्होनें सर्वप्रथम विमान यात्रा में धूम्रपान पर निषेध लगाया था। उन्होंने कहा कि भारत ‘तम्बाकू रहित समाज’ की स्थापना के लिए कटिबद्ध है। यहाँ सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध है एवं तम्बाकू पदार्थों के बेचने पर भी कुछ प्रतिबन्ध हैं। परन्तु उनके अनुसार लोगों को केवल क़ानून के भय से नहीं वरन जनहित में स्वेच्छापूर्वक तम्बाकू सेवन का त्याग करना चाहिए. तम्बाकू उद्दोग की भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा कि एक ओर तो यह उद्दोग युवा वर्ग को आकर्षक विज्ञापनो द्बारा तम्बाकू की और आकर्षित कर रहा है, और दूसरी ओर अन्य तम्बाकू निषेध क़ानून पारित करने में अड़चनें पैदा कर रहा है ।
यह अत्यन्त खेद का विषय है कि ४०% स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का कारण तम्बाकू सेवन होने के बावजूद हमारा युवा वर्ग तेज़ी से धूम्रपान एवं गुटखा/पान मसाला की ओर आकर्षित हो रहा है। अत: साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर युवाओं को तम्बाकू एवं शराब के चंगुल से छुडाना ही होगा।
डॉक्टर रामदौस ने भारतीय फ़िल्म उद्दोग को भी आड़े हाथों लिया। फिल्मों में धूम्रपान
के दृश्य, युवा वर्ग को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। पिछले दशक तक बनी भारतीय फिल्मों में अधिकतर खलनायक को ही धूम्रपान करते हुए दिखाया जाता था। परन्तु अब तो ७६% फिल्मी हीरो ही सिनेमा के परदे पर सिगरेट पीते हुए दिखाए जाते हैं। इसका सीधा प्रभाव बाल मन पर पड़ता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, ५२% बच्चे सिगरेट का पहला कश अपने मनपसंद हीरो के फिल्मी परदे पर धूम्रपान से प्रेरित होकर लेते हैं, १८% माता पिता को देख कर , और १५% अपने साथियों से प्रभावित होकर। भारतीय फिल्मों में धूम्रपान दिखाने के विरुद्ध, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा चुकी है। आशा है की परिणाम जन स्वास्थ्य के हित में ही होगा।
प्रसिद्द रचनाकार मार्क ट्वैन ने कहा था कि , ‘भारत ऐसा देश है जिसे सभी देखने की इच्छा रखते हैं।’ इसी भारत देश में, विश्व के १८ वर्ष से कम आयु वाले बच्चे सबसे अधिक संख्या में रहते हैं। इनमें से अधिकतर निम्न वर्ग के हैं तथा तम्बाकू खरीदने और बेचने के व्यापार में लगे हैं। इन्हें अक्सर शुरू में पान मसाला और गुटखा के मुफ्त पैकेट देकर इस बुरी लत के जाल में फंसाया जाता है। पद्मिमी सोमानी के कुशल निर्देशन में, ‘सलाम बॉम्बे ' नामक संस्था ऐसे ही बच्चों के सुधार के लिए कार्य कर रही है तथा समाज के निर्धन वर्ग के लगभग १८० लाख बच्चों के जीवन को खुशहाल बना चुकी है।
इस सम्मलेन में १३० देशों से आए हुए २००० से अधिक भाग ले रहे डेलीगेटों का मुख्य उद्देश्य है तम्बाकू यानी मौत के सौदागरों के चंगुल से हमारे समाज को छुडाना। तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देने वाली बहु राष्ट्रीय कंपनियों के नापाक इरादों को रोकना ही होगा। सभी समझदार व्यक्तियों को एकजुट होकर ऐसे निर्णय लेने होंगें एवं ऐसे सार्थक कदम उठाने होंगें जिससे हमारे बच्चों के भविष्य को सिगरेट का स्याह धुंआ निगल न सके।
शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस
‘ तम्बाकू अथवा स्वास्थ्य ' का चौदहवाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन ८ मार्च को मुंबई के ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स ’ में प्रारंभ हुआ। इस ६ दिवसीय सम्मलेन का उदघाटन करते हुए, मुंबई के राज्यपाल, श्री जामीर ने बच्चों को तम्बाकू के जानलेवा खतरों से बचाने का आहवाहन किया। उन्होंने बताया कि दक्षिण पूर्व एशिया में ९०% मुंह के कैंसर तम्बाकू के सेवन के कारण ही होते हैं।
भारत में तम्बाकू प्रकोप की समस्या और भी जटिल है। हमारे देश में तम्बाकू का प्रयोग केवल सिगरेट के रूप में ही नहीं वरन गुटखा, पान मसाला, खैनी आदि के रूप में भी प्रचलित है। कुछ लोगों की भ्रामक धारणा है कि तम्बाकू उद्दोग हजारों लोगों को रोज़गार देता है, अत: इसको समाप्त नहीं होना चाहिए। परन्तु सच तो यह है कि तम्बाकू उद्दोग में काम करने वाले पुरूष, महिलायें एवं बच्चे, सदैव गरीब ही रहते हैं तथा तम्बाकू जनित अनेक बीमारियों के शिकार भी होते हैं। पनपते हैं तो केवल तम्बाकू उद्योगपति । तम्बाकू कंपनियाँ नित नए, लुभावने तरीकों से विशेषकर युवा वर्ग को धूम्रपान की ओर आकर्षित करतीं हैं ताकि वो अधिक से अधिक सिगरेट पी कर जल्द से जल्द मृत्यु को प्राप्त हों, या फिर असाध्य रोगों से ग्रसित हों। राज्यपाल महोदय ने खेलकूद संस्थाओं से अपील करी की वे तम्बाकू कंपनियों से खेल स्पर्धाएं प्रायोजित न कराएँ।
अपने युवा दिनों के तम्बाकू विरोधी अभियानों को याद करते हुए, श्री जामीर ने स्कूल कॉलेज में ‘टेम्पेरेंस कमेटी ’ बनाने का सुझाव दिया। ये संगठन, युवाओं में, न केवल धूम्रपान के विरुद्ध प्रचार करें, वरन अन्य विवेकहीन व्यसनों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाएं। सिगरेट पीना, शराब पीना, अपशब्द बोलना, आवश्यकता से अधिक खाना अथवा सोना--- ये सभी बुराइयाँ हमें शारीरिक और मानसिक रूप से निर्बल बनाती हैं। उन्होंने कहा कि युवाओंको ‘ यह मत करो’ के स्थान पर ‘ इस प्रलोभन से बचो’ की शिक्षा देनी चाहिए। निषेध आज्ञा का उल्लंघन करना युवा स्वभाव होता है। अत: उन्हें प्रेम से समझाना होगा।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर अंबुमणी रामादोस ने इस अवसर पर yyyबोलते हुए बताया कि भारत उनगिने चुने देशों में से एक हैं जिन्होनें सर्वप्रथम विमान यात्रा में धूम्रपान पर निषेध लगाया था। उन्होंने कहा कि भारत ‘तम्बाकू रहित समाज’ की स्थापना के लिए कटिबद्ध है। यहाँ सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध है एवं तम्बाकू पदार्थों के बेचने पर भी कुछ प्रतिबन्ध हैं। परन्तु उनके अनुसार लोगों को केवल क़ानून के भय से नहीं वरन जनहित में स्वेच्छापूर्वक तम्बाकू सेवन का त्याग करना चाहिए. तम्बाकू उद्दोग की भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा कि एक ओर तो यह उद्दोग युवा वर्ग को आकर्षक विज्ञापनो द्बारा तम्बाकू की और आकर्षित कर रहा है, और दूसरी ओर अन्य तम्बाकू निषेध क़ानून पारित करने में अड़चनें पैदा कर रहा है ।
यह अत्यन्त खेद का विषय है कि ४०% स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का कारण तम्बाकू सेवन होने के बावजूद हमारा युवा वर्ग तेज़ी से धूम्रपान एवं गुटखा/पान मसाला की ओर आकर्षित हो रहा है। अत: साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर युवाओं को तम्बाकू एवं शराब के चंगुल से छुडाना ही होगा।
डॉक्टर रामदौस ने भारतीय फ़िल्म उद्दोग को भी आड़े हाथों लिया। फिल्मों में धूम्रपान
के दृश्य, युवा वर्ग को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। पिछले दशक तक बनी भारतीय फिल्मों में अधिकतर खलनायक को ही धूम्रपान करते हुए दिखाया जाता था। परन्तु अब तो ७६% फिल्मी हीरो ही सिनेमा के परदे पर सिगरेट पीते हुए दिखाए जाते हैं। इसका सीधा प्रभाव बाल मन पर पड़ता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, ५२% बच्चे सिगरेट का पहला कश अपने मनपसंद हीरो के फिल्मी परदे पर धूम्रपान से प्रेरित होकर लेते हैं, १८% माता पिता को देख कर , और १५% अपने साथियों से प्रभावित होकर। भारतीय फिल्मों में धूम्रपान दिखाने के विरुद्ध, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा चुकी है। आशा है की परिणाम जन स्वास्थ्य के हित में ही होगा।
प्रसिद्द रचनाकार मार्क ट्वैन ने कहा था कि , ‘भारत ऐसा देश है जिसे सभी देखने की इच्छा रखते हैं।’ इसी भारत देश में, विश्व के १८ वर्ष से कम आयु वाले बच्चे सबसे अधिक संख्या में रहते हैं। इनमें से अधिकतर निम्न वर्ग के हैं तथा तम्बाकू खरीदने और बेचने के व्यापार में लगे हैं। इन्हें अक्सर शुरू में पान मसाला और गुटखा के मुफ्त पैकेट देकर इस बुरी लत के जाल में फंसाया जाता है। पद्मिमी सोमानी के कुशल निर्देशन में, ‘सलाम बॉम्बे ' नामक संस्था ऐसे ही बच्चों के सुधार के लिए कार्य कर रही है तथा समाज के निर्धन वर्ग के लगभग १८० लाख बच्चों के जीवन को खुशहाल बना चुकी है।
इस सम्मलेन में १३० देशों से आए हुए २००० से अधिक भाग ले रहे डेलीगेटों का मुख्य उद्देश्य है तम्बाकू यानी मौत के सौदागरों के चंगुल से हमारे समाज को छुडाना। तम्बाकू सेवन को बढ़ावा देने वाली बहु राष्ट्रीय कंपनियों के नापाक इरादों को रोकना ही होगा। सभी समझदार व्यक्तियों को एकजुट होकर ऐसे निर्णय लेने होंगें एवं ऐसे सार्थक कदम उठाने होंगें जिससे हमारे बच्चों के भविष्य को सिगरेट का स्याह धुंआ निगल न सके।
शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस