भारत में तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाओं को बढ़ाना होगा
भारत में २ अक्टूबर २००८ से सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान प्रतिबंधित हो गया है, और विभिन्न प्रदेश इस कानून को अलग-अलग स्तर पर लागू कर रहे हैं।
'दी इकॉनोमिस्ट' (७-१३ मार्च २००९ अंक) में छपे एक मुख्य लेख के अनुसार: "अवैध नशीली दवाओं से भी अधिक नशीली है तम्बाकू"।
यह साफ़ ज़ाहिर है कि जब तक तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ नहीं उपलब्ध करायी जाएँगी, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध को लागू करने में अड़चनें आती रहेंगी।
जो लोग तम्बाकू को त्यागना चाहते हैं और इसके लिए विशेषज्ञों से मदद चाहते हैं, उनको यह सेवा मिलनी ही चाहिए।
"केंद्रीय और उत्तरी-पूरब भारत के प्रदेशों में ६५ प्रतिशत से अधिक लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं" कहना है डॉ प्रतिमा मूर्ति का, जो नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ एंड न्यूरो-साइंसेस, बंगलूर, के साईंकिअट्री विभाग में आचार्य हैं और नशा उन्मूलन केन्द्र की अध्यक्ष भी। डॉ मूर्ति चौदहवें अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण अधिवेशन के प्रतिभागियों को संबोधित कर रही थीं।
ग्रामीण छेत्रों में ५७ प्रतिशत पुरूष और १९ प्रतिशत महिलाएं तम्बाकू का सेवन करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तम्बाकू सेवन का अनुपात शहरी क्षेत्रों से कहीं अधिक है, परन्तु तम्बाकू नशा उन्मूलन की अधिकाँश सेवाएँ शहरों में ही उपलब्ध हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं। लाज़मी है कि ग्रामीण छेत्रों में भी तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाओं को उपलब्ध करना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से सन २००२ में भारत में १३ तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र खोले गए । ये मुख्यत: कैंसर, सैकिअट्री, सर्जिकल, कार्डियोलोजी के अस्पतालों में और कुछ संस्थाओं में खोले गए । इनमें छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय (लखनऊ) और टाटा स्मारक अस्पताल शामिल हैं। सन २००५ में भारत के पाँच क्षेत्रीय कैंसर केन्द्रों में भी तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक खोली गयीं और कुल क्लीनिकों की संख्या १३ + ५ = १८ हो गई।
इन १८ तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिकों में अधिक गुणात्मकता के साथ तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ उपलब्ध करायीं गयीं और यह भी जिम्मेदारी दी गई कि इस विधि को मॉडल के रूप में तैयार किया जाए जिससे कि अन्य केन्द्रों में ये सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए इन पुरानी क्लीनिकों को प्रशिक्षण केन्द्रों की तरह कार्य करना चाहिए।
भारत की इन १८ तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिकों में सन २००२ से अब तक ३४,७४१ लोगों ने पंजीकरण करवाया है, इनमें ९२ प्रतिशत लोग पुरूष हैं और ८ प्रतिशत महिलाएं। इन पंजीकृत लोगों की औसतन उम्र ३७ साल है और इनमें से लगभग ५० प्रतिशत की औसतन मासिक आए ३००० रुपया प्रति माह है।
गौर करने की बात है कि इन पंजीकृत लोगों में से अधिकाँश ने बिना किसी भी दवा के ही तम्बाकू से सफलतापूर्वक निजात पायी है (६९ प्रतिशत)।
३१.१० प्रतिशत लोगों ने सफलतापूर्वक तम्बाकू छोड़ दी, और ४९.५ प्रतिशत लोगों ने काफी प्रभावकारी तरीके से तम्बाकू नशे को ५० प्रतिशत से भी अधिक कम किया। सिर्फ़ ८.७ प्रतिशत लोग तम्बाकू नशा छोड़ने में असफल रहे।
यह ज़ाहिर सी बात है कि तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ भारत में मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं का भाग होनी चाहिए। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तम्बाकू नशा उन्मूलन का प्रशिक्षण मिलना चाहिए। मेडिकल की पढाई में तम्बाकू नशा उन्मूलन को शामिल करना चाहिए, कहना है डॉ मूर्ति का।
तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाओं को क्लीनिक-केंद्रित के बजाय समुदाय-केंद्रित बनाना होगा।
बाबी रमाकांत