तपेदिक की रोकथाम में निजी क्षेत्र के चिकित्सकों का योगदान आवश्यक
भारतीय चिकित्सक संघ (आई.एम.ए.) के अनुसार ‘भारत में तपेदिक उन्मूलन के लिए चलायी जा रही 'डॉट्स' योजना केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में उपलब्ध है। परन्तु तपेदिक के ७०% रोगी इस बीमारी के इलाज के लिए पहली बार किसी प्राइवेट डॉक्टर के पास ही जाते हैं। अत: डॉट्स प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए इसमें निजी स्वास्थ्य सेवाओं को भी शामिल करना आवश्यक है। विशेषकर भारत जैसे देश में, जहाँ तपेदिक कि दवाओं की भारी मात्रा (लगभग ७५%), रोगियों को निजी क्षेत्र से ही मिल रहीं हैं।’
ब्राज़ील में ,हाल ही में समाप्त हुए तीसरे 'विश्व तपेदिक रोको' सम्मलेन ( स्टाप टी.बी. पार्टनर्स फॉरम) में, भारत के डॉक्टर बालासुब्रमनिअम मुथैया ने बताया कि सम्पूर्ण भारत में आई.एम.ए. की १६७६ शाखाएँ हैं तथा १८०,००० से अधिक चिकित्सक इसके सदस्य हैं। तपेदिक की रोकथाम के अलावा, यह संस्था जन स्वास्थ्य संबन्धी अनेक मुद्दों पर कार्य कर रही है, जैसे पोलियो एवं अन्य प्रतिरक्षण कार्यक्रम, एच .आई.वी./ऐड्स, परिवार नियोजन, कन्या भ्रूण हत्या, नेत्रहीनता इत्यादि।
सन् २००७ में आई.एम.ए. को ‘ग्लोबल फंड टू फाइट ऐड्स, टी.बी.,मलेरिया’ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई, जिसके सहयोग से ‘तपेदिक रोकथाम का संशोधित राष्ट्रीय कार्यक्रम’ देश के १६७ जिलों में आरम्भ किया गया। अब तक इस कार्यक्रम में १५ प्रदेशों के ४०६ जिले शामिल किए जा चुके हैं।
आई.एम.ए. के द्बारा निजी क्षेत्र के चिकित्सकों को तपेदिक रोकथाम कार्यक्रम के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, तथा उन्हें अपने प्राइवेट क्लीनिक में ‘डॉट्स’ केन्द्र स्थापित करने को प्रेरित किया जा रहा है। फरवरी २००९ तक २१,७८८ निजी चिकित्सकों को इस योजना में शामिल किया जा चुका है। १२० जिलों में ‘डिस्ट्रिक्ट टी बी प्रोग्राम’ शुरू किए गए हैं, ५५७ प्राइवेट क्लीनिकों में ‘डॉट्स’ केन्द्र खोले गए हैं, तथा निजी क्षेत्र के २५३२ चिकित्सक इसके तहत प्रशिक्षण पा चुके हैं।
तपेदिक उन्मूलन के लिए अपनी अमूल्य सेवाएँ प्रदान करना प्रत्येक डॉक्टर का कर्तव्य है, और इसके लिए उन्हें कोई आर्थिक प्रलोभन नहीं दिया जाना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय एवं जिला स्तर पर निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी के द्बारा आम जनता में इस रोग के प्रति जागरूकता फैलाई जाय ताकी समय रहते सही इलाज हो सके। चिकित्सकों के लिए भी शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम निरंतर रूप से चलाये जाने होंगें, ताकि वे तपेदिक से बचाव एवं उसकी रोकथाम में अपना योगदान देने को प्रोत्साहित हों। तभी हम ‘तपेदिक मुक्त’ राष्ट्र की कल्पना को साकार कर पायेंगें।