आतंक एवं सम्प्रदायक मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच आवश्यक

"आतंक एवं सम्प्रदायक मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच आवश्यक है" कहना है सुरेश खैरनार का, जो कि वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ६० से अधिक आतंक एवं सांप्रदायिक मामलों में तथ्यान्वेषण समिति के सदस्य रहे हैं. भागलपुर दंगे १९८९ के बाद से सुरेश खैरनार सांप्रदायिक सद्भावना के लिये कार्यरत हैं. मालेगांव २००६, नांदेड २००६, नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय २००६, मालेगांव २००८, खैरलांजी २००८ (दलित उत्पीड़न), मक्का मस्जिद २००६, बटला हाउस २००८ और ६० से अधिक अन्य सांप्रदायिक मामलों में सुरेश खैरनार तथ्यान्वेषण समिति के सदस्य रहे हैं.

बाबरी मस्जिद विध्वंस १९९२ के पहले सांप्रदायिक दंगों को इस्तेमाल किया जाता था जिससे कि हिन्दू-मुस्लिम समुदाय का ध्रुवीकरण हो सके. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में आतंकी हमलें बढ़ गए हैं जिनसे समुदाओं के बीच ध्रुवीकरण होता रहा है. नान्देद २००६ देश में पहला तथाकथित 'आतंकी हमला' था जो हिंदुत्व कट्टरपंथी दलों ने अंजाम दिया और सामने आया था. यदि भारत सरकार ने पर्याप्त कदम उठाये होते तो मालेगांव, अजमेर शरीफ, समझौता एक्सप्रेस, और मक्का मस्जिद जैसे हादसे नहीं होते और हिन्दू मुस्लिम समुदाओं के बीच जो ध्रुवीकरण हुआ, वो न होता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के असीमानंद जी के अपराध आत्म-स्वीकार करने के बाद तो ये साफ हो गया है कि किस हद तक हिंदुत्व कट्टरपंथी, आतंकी हमलों में शामिल हैं.

भारत सरकार की जो जांच संस्थाएं है जैसे कि सेंट्रल ब्यूरो आँफ इन्वेस्टीगेशन (सी.बी.आई.) आदि, उन्होंने हमारी सभी रपट को नज़रंदाज़ कर दिया है. यदि उन्होंने इन रपट को जरा भी तवज्जो दी होती तो संभवत: जो नुक्सान हुआ है वो न होता!

हमारा मानना है कि सबसे बड़ा आतंकवाद है किसी भी समुदाय को शक की नज़र से देखना कि वो राष्ट्रद्रोही है. किसी भी समुदाय को असुरक्षित महसूस कराना देश की सुरक्षा को खतरा पैदा करना है. इसीलिए ऐसे कृतियों वाले हिंदुत्व संस्थाओं और व्यक्तियों को राष्ट्र-द्रोही मानना चाहिए और संस्थाओं पर रोक लगनी चाहिए जैसे कि भारत सरकार ने 'सिमी' और कुछ अन्य इस्लामवादी संस्थाओं पर लगायी है. ये इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि आतंकी हमलों के बाद गिरफ्तार हुए मुसलमानों को भारत सरकार ने अधिकाँश महज़ शक की बुनियाद पर पकड़ा है जबकि कुछ ऐसे हादसों में ठोस सबूत सामने आ रहे हैं कि इनमें हिंदुत्व ताकतों का हाथ था.

हमारा मानना है कि ऐसे आतंक और सांप्रदायिक मामलों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच होनी चाहिए जिससे कि सत्य सार्वजनिक हो सके कि इन हादसों को कौन अंजाम दे रहा है.

सुरेश खैरनार