भूमि अधिग्रहण कानून और जनहित

अंग्रेजों ने यह कानून अपनी अंग्रेजी हुकुमत को फायदा पहुँचाने के लिए बनाया था। दुर्भाग्यवश आजादी के वक्त हमने अंग्रेजों द्वारा बनाए गये इस किस्म के दमनकारी कानूनों को रद्द नहीं किया। आजादी के पहले इस तरह के कानून अंग्रेजी हुकुमत को दमनकारी शक्तियाँ प्रदान कर फायदा पहुँचाते थे, आजादी के बाद ये कानून सत्ताधारी नेताओं और अफसरों को फायदा पहुँचाते हैं। जनता आजादी के पहले भी पिसती थी, जनता आजादी के बाद भी पिस रही है !

इसीलिए हमारी केन्द्रीय सरकार से माँग है कि आप भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करके गाँव के लोगों की खुली बैठक यानि ग्रामसभा को यह अधिकार दें कि ग्राम सभा तय करे कि किसी भी परियोजना के लिए जमीन देनी है या नही देनी और अगर देनी है तो किन शर्तों पर देनी है। ग्राम सभा का निर्णय अंतिम होना चाहिए।

इस विचार को लागू करने के लिए हमारे विस्तृत सुझाव निम्न है :-

१- भूमि अधिग्रहण कानून से कलेक्टर कि भूमि अधिग्रहण करने कि शक्तियाँ रद्द की जाएँ।

२. यदि कोई कम्पनी या केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी गाँव की जमीन अधिग्रहण करना चाहती है, तो वह उस गाँव की पंचायतों में इस बावत के लिए आवेदन दे।

स्वराज
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