पंचायती राज सम्मेलन के प्रथम सत्र में व्याख्यानमाला का आरंभ दिल्ली विश्वविद्यालय एवं लोक राजनीति मंच से सम्बंधित डॉ० अजीत झा से हुआ। पंचायतें अपने आप में मजबूत हों, इसके अलावा लोकतंत्र स्थापित करने का कोई और विकल्प नहीं है। डॉ झा ने कहा कि पंचायत की चर्चा हमारे लोकतंत्र के केंद्र में होनी चाहिए।
अजित झा लखनऊ में हो रहे पंचायती राज सम्मेलन में व्याख्यान दे रहे थे। पंचायती राज सम्मेलन को लोक राजनीति मंच ने आयोजित किया था जिसमें दो दर्जन से अधिक जन-प्रतिनिधि एवं सौ से अधिक राजनीतिक कार्यकर्ता आये थे।
राजनीति में लोक का महत्व हमेशा से नहीं रहा है। राजनीति हथियार से रही है, जो हथियार पर कब्ज़ा कर सकते थे, वो राजनीति पर कब्ज़ा करते रहे। राष्ट्रीय आज़ादी की लड़ाई और देश में लोकतंत्र स्थापित करने की लड़ाई दोनों भारत में आज़ादी से पूर्व एक साथ हुईं। डॉ झा ने कहा कि सारे दुनिया में ये नहीं हुआ, भारत में जनता की आजादी और लोकतंत्र दोनों साथ आये हैं।
डॉ झा ने कहा कि आजादी के पश्चात् कांग्रेस का सत्ता का पक्ष हावी होने लगा और जन आन्दोलन का पक्ष कमजोर होता चला गया। सन १९८० के बाद यदि देखा जाए, तो सभी मुख्य धरा की राजनीति पार्टियाँ या तो प्रदेश में या फिर राष्ट्रीय-स्तर पर सत्ता में रही हैं। इसका अनुभव अच्छा नहीं रहा है, और वो जमात जिनके बल पर वो सत्ता में आई थीं, उनके लिये भी निराशाजनक ही रहा है।
डॉ झा ने कहा कि जो आज राजनीति कर रहे हैं, वो सिर्फ सत्ता पर काबिज हो कर अपने फायदे के लिये जो कर सकते हैं, वो कर रहे हैं। आजादी से पहले महात्मा गाँधी एवं डॉ० बी०आर० आंबेडकर के नेतृत्व में जन-आन्दोलन एवं राजनीति एक हो गयी थी। आजादी के पश्चात् राजनीति की असफलता की वजह से ही जन-आन्दोलन बढ़ने लगे हैं। राजनीति और जन-आन्दोलन का भेद अच्छा नहीं है। जन-आन्दोलन की राजनीति करने के बिना ये अपेक्षित बदलाव संभव नहीं है।
अक्सर लोग प्रश्न करते हैं कि हमारे पास इतनी शक्ति नहीं है कि हम राजनीतिक मैदान में कूदे। डॉ झा का कहना है कि यह प्रश्न नकली है। संघर्ष बनाम राजनीति का मसला नहीं है हमारे सामने, कहना है डॉ झा का। आजादी के पहले भी जब महात्मा गाँधी एवं डॉ० बी०र० आंबेडकर का नेतृत्व आया था तब सामाजिक कार्य एवं राजनीतिक कार्य में फर्क नहीं रहा था, और लोगों को एहसास हो गया था कि ऐसा सवाल कि 'राजनीति बनाम संघर्ष' नकली हैं।
डॉ झा का कहना है कि जनता खुद को संगठित कर रही है, जनता की ही राजनीति है, और जनता ही संघर्षरत है। पंचायती राज वास्तविक में लोकतंत्र हैं - लोकतंत्र का मतलब होता है लोगों की राजनीति पर नियंत्रण।
डॉ झा ने कहा कि २०-२५ देश छोड़ दिए जाए तो संभवत: हर देश की आबादी भारत के एक जिलों जैसी है - तो फिर इन देश-जैसी भारत के जिलों में एक लोकतान्त्रिक प्रणाली क्यों नहीं है?
बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.