फिरकापरस्ती बनाम युवा कारवाँ

अब इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि भारत एक नाजुक दौर से गुजर रहा है, फिरकापरस्त ताकतें हमारी एकता और अखण्डता को क्षीण-क्षीण करना चाहती हैं। वो एक ऐसे मौके की तलाश में घूम रही हैं जिससे वह देश में फिर से एक नई सांप्रदायिक हिंसा का अध्याय जोड़ सकें। यहाँ हर कदम पर सांप्रदायिक सोच के लोग मांस ढूंढ़ते गिद्ध की भांति अपना खेल खेलने को उत्सुक हैं। इन सब के बाद भी हमारे युवाओं ने ‘न हिन्दू न मुसलमान, मेरा भारत महान’ का नारा बुलन्द करके एक सकारात्मक संकेत दिया हैं।

इस मुल्क ने फिरकापरस्ती ताकतों के बहुत से रूप देखें हैं। हमने गुजरात को गोधरा बनते देखा है। हमने उ0 प्र0 का अयोध्या बनते देखा है। हमने महाराष्ट्र को बंबई बनते देखा है। लेकिन इन सभी शहरों के सांप्रदायिक दंगों में एक बात गौर करने वाली यह थी कि युवाओं ने हमेशा इनसे दूरी बनाये रखी है। दंगों के असली गुनाहगार वही लोग यही रहे हैं जो अपने आप को बुद्धजीवी होने का प्रचार-प्रसार हर मंच पर करते रहे हैं। अब तक हुए सांप्रदायिक दंगो का नेतृत्व वरिष्ठ नागरिकों ने किया जबकि युवाओं के जज्बातों को गर्म करके उनकी इच्छा विरूद्ध इसमें जबरदस्ती घसीटा गया है।

हमारे मुल्क के सामने आतंकवाद, उग्रवाद नक्सलवाद, उल्फा व बोडो उग्रवाद आदि की हिंसक गतिविधियाँ मुँह फैलाये हुए खड़ी है। देश का कोई भी राज्य यहाँ तक के राजधानी दिल्ली भी इनकी पहुँच से दूर नहीं है। फिर भी इन सबसे खतरनाक हमारे देश के भीतर सांप्रदायिक सोच के लोगों का मौजूद होना है। आतंकवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के खिलाफ तो सारा देश एकजुट दिखाई देता है, किन्तु जब सांप्रदायिकता की हवा चलती है तो फिर धीरे-धीरे उसे आंधी और आंधी से तूफान बनने में बहुत कम समय लगता है। सांप्रदायिकता की आग खोखले पेड़ की तरह चन्द लम्हों में तबाही का मंजर दिखाई देती है। हमारे देश के युवाओं का संगठित प्रयास उन सांप्रदायिक हवाओं के खिलाफ उठ खड़े होना है, जो हमारे आपसी भाईचारे के मिजाज को नफरत के फिजाओं में बदलना चाहती है।

सांप्रदायिकता जैसे अति संवेदनशील मुद्दें पर युवाओं ने जो खामोशी अपनाई है। नि:सन्देह समाज और राष्ट्र के लिये एक प्ररेक संदेश है। लेकिन मुझे लगता है कि फिरकापरस्ती के मुद्दें पर युवाओं की खामोशी से ज्यादा इसके विरूद्ध आवाज उठाने आवश्यकता अधिक है। अब समय आ गया है कि अपने देश से सांप्रदायिकता और फिरकापरस्ती को युवाओं द्वारा जड़ से उखाड़ फेंक दिया जाये।

-आदिल खान ‘सरफरो
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