बिना शोषण और भेदभाव समाप्त किए 2027 तक कुष्ठ रोग उन्मूलन कैसे होगा?

[English] जो बैक्टीरिया कुष्ठ रोग (लेप्रोसी या हैंसेंस रोग) उत्पन्न करता है उसका तो पक्का इलाज है परंतु जो समाज में कुष्ठ रोग संबंधित शोषण और भेदभाव व्याप्त है, वह तो मानव-जनित है - उसका निवारण कैसे होगा? कुष्ठ रोग का सफलतापूर्वक इलाज करवा चुकीं माया रनवाड़े बताती हैं कि यदि कुष्ठ रोग की जल्दी जाँच हो, सही इलाज बिना-विलंब मिले, तो शारीरिक विकृति भी नहीं होती और सही इलाज शुरू होने के 72 घंटे बाद से रोग फैलना भी बंद हो जाता है। फिर शोषण और भेदभाव क्यों?

सह-संक्रमण और रोग के खतरे पलट सकते हैं एड्स नियंत्रण अभियान की प्रगति

विश्व में 86% एचआईवी के साथ जीवित लोगों को अपने एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी थी, उनमें से 89%लोग जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं ले रहे थे और इनमें से 93% लोगों का वायरल लोड नगण्य था (यानी कि वह स्वस्थ थे और उनसे वायरस फैलने का खतरा भी शून्य था)। पर यदि हम एचआईवी से संबंधित संक्रमण और रोग (या अन्य रोग जो समाज में हैं) पर ध्यान नहीं देंगे तो एड्स नियंत्रण अभियान में प्रगति पलट सकती है, यह कहना है डॉ ईश्वर गिलाडा का, जो एचआईवी चिकित्सकीय और आयुर्विज्ञान से जुड़े भारतीय विशेषज्ञों के सबसे देश व्यापी संगठन, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई), के एमेरिटस अध्यक्ष हैं।

गुजरात में पहली बार हो रहा है एचआईवी चिकित्सकीय विशेषज्ञों का राष्ट्रीय अधिवेशन ASICON 2025

ASICON 2025 का उद्घाटन गुजरात के मुख्य मंत्री ने किया


गुजरात के मुख्य मंत्री भूपेंद्रभाई पटेल ने आज, देश के एचआईवी चिकित्सकीय विशेषज्ञों के 16वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन (ASICON 2025) का उद्घाटन किया। ASICON 2025 अधिवेशन इस साल अहमदाबाद, गुजरात, में 21-23 फ़रवरी के दौरान आयोजित हो रहा है। यह पहली बार है कि यह प्रतिष्ठित अधिवेशन गुजरात में आयोजित हो रहा है। एचआईवी चिकित्सकीय और आयुर्विज्ञान से जुड़े भारतीय विशेषज्ञों का सबसे प्रमुख चिकित्सकीय संगठन, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई) इस अधिवेशन को आयोजित कर रहा है।

2030 तक एड्स उन्मूलन के लिए सभी लोगों तक एचआईवी सेवाओं का पहुंचना है ज़रूरी


[English] एचआईवी संक्रमण से बचाव के अनेक प्रमाणित साधन उपलब्ध हैं और एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाएं सरकारी सेवाओं में उपलब्ध हैं। यदि सभी एचआईवी के साथ जीवित लोगों को यह दवाएं मिलें, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे, तो न केवल वह पूर्णत: स्वस्थ रहेंगे बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एचआईवी संक्रमण फैलना का खतरा भी शून्य रहेगा ("जीरो रिस्क")। तो फिर क्यों विश्व में 2023 में 6.3 लाख नए लोग एचआईवी से संक्रमित पाये गए और 13 लाख लोग एड्स-संबंधित कारणों से मृत हुए?

विकास वित्तपोषण का गहराता संकट

[English] अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो निर्णय लिए हैं उनका सीधा असर विकासशील देशों में विकास वित्तपोषण (डेवलपमेंट फ़ाइनेंसिंग) पर पड़ा है। उदाहरण के लिए, अमरीकी सरकार की दाता एजेंसी (यूएसएआईडी) के फ़िलहाल बंद हो जाने से अनेक अफ्रीकी देशों में एचआईवी के साथ जीवित लोग जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएँ लेने में असमर्थ हो सकते हैं। दक्षिण एशिया के देशों में 16 लाख परिवार मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य सेवा से वंचित हो सकते हैं। अमरीका ने जिस तरह से विकास वित्तपोषण को एक झटके में खंडित किया है, उसकी निंदा तो होनी चाहिए, परंतु जो देश अमरीकी अनुदान से विकास वित्तपोषण कर रहे थे, उनको भी विवेचना करनी होगी कि विकास का वित्तपोषण किसकी मूल जिम्मेदारी है और लोगों की प्राथमिकता क्या है? और वे 'विकास' की आड़ में किन शर्तों पर अनुदान और अमीर देशों के बैंक से क़र्ज़ ले रहे थे?

जब कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं तो शोषण और भेदभाव क्यों?


विश्व कुष्ठ दिवस 2025 के उपलक्ष्य में, कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति भेदभाव को समाप्त करने के लिए भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर से एक वैश्विक अपील जारी की गई। ज्ञात हो कि विश्व कुष्ठ दिवस हर साल जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है परंतु भारत में इसे महात्मा गांधी (जिन्होंने कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत मदद करी) की पुण्य तिथि 30 जनवरी को मनाया जाता है।

जेंडर समानता और स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडराता ट्रम्प की नीतियों का खतरा

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शपथ लेते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च आयुर्विज्ञान और स्वास्थ्य संस्था) से हाथ खींच लिया, अमरीकी सरकार द्वारा पोषित विश्व के अनेक देशों के स्वास्थ्य कार्यकमों पर आर्थिक रोक लगा दी, रोग नियंत्रण और रोग बचाव के लिए अमरीकी वैश्विक संस्था सीडीसी को विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ कार्य करने से प्रतिबंधित किया, और अनेक ऐसे कदम उठाये जिनका नकारात्मक प्रभाव वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और जेंडर समानता पर पड़ा।

टीबी मुक्त भारत के लिए जांच-इलाज और संक्रमण रोकथाम दोनों अहम

[English] 100 दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान अत्यंत अहम है क्योंकि पहली बार, देश के आधे से अधिक जिलों में, उन लोगों तक टीबी सेवाएं पहुँचाने का प्रयास हो रहा है जो प्रायः स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रहते हैं और जिन्हें टीबी की सही जाँच और उचित इलाज नहीं मिल पाता। इनमें से जिन लोगों को टीबी नहीं है उनको टीबी बचाव हेतु सहायता दी जा रही है कि वह टीबी मुक्त रहें।

100 दिवसीय टीबी अभियान को टीबी उन्मूलन होने तक सक्रिय रखना होगा

[English] भारत सरकार का 100 दिवसीय टीबी अभियान (7 दिसंबर 2024 से 24 मार्च 2025 तक) टीबी उन्मूलन की दिशा में एक सराहनीय कदम है। यह सरकार की ओर से एक देश व्यापी पहल है कि जिन लोगों को टीबी का खतरा सर्वाधिक है या जो लोग अक्सर टीबी या स्वास्थ्य सेवा से वंचित रह जाते हैं, उन तक टीबी की सर्वश्रेष्ठ सेवाएं पहुँचें।