किसान आत्महत्या की दर 36गढ में सबसे अधिक: पर आंकडे झूठे हैं !
आज शर्मा जी और वर्मा जी की कहानी से शुरु करता हूं । शर्मा जी और वर्मा जी की कहानी है तो काल्पनिक पर दोनों के साथ बहुत बुरा हुआ ।
एकदिन शर्मा जी के जवान बेटे ने आत्महत्या कर ली । उस पर खूब बवाल मचा कि आखिर एक जवान लडके ने खुदकुशी क्यों की । पत्रकारों ने इस पर खूब लिखा । प्रधानमंत्री भी शर्मा जी को मुआवज़ा देने आए । इंक्वायरी कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार शर्मा जी के बेटे की खुदकुशी के पीछे उसके को-एड स्कूल में पढना ही कारण था । को-एड स्कूल यानि जहां लडके और लडकियां साथ पढते हैं । जांच रिपोर्ट में बताया गया कि लगता है किसी बात पर शर्मा जी के बेटे को लडकियों ने चिढाया था और उसका युवा मन उसे सह नहीं सका ।
इस बात पर संसद में काफी बहस हुई कि आगे से ऐसे युवाओं की खुदकुशी को कैसे रोका जाए । पर को-एड स्कूलों को एकाएक बंद भी तो नहीं किया जा सकता ।
इसके कुछ साल बाद एकदिन अचानक शर्मा जी के मित्र वर्मा जी के बेटे ने भी खुदकुशी कर ली ।
काफी दुखद दृश्य था । लोग सांत्वना देने पहुंचे थे पर वर्मा जी लगातार कह रहे थे मैंने शर्मा जी के बेटे की खुदकुशी के बाद की सारी रिपोर्टें ध्यान से पढी हैं । मेरा बेटा को-एड स्कूल में तो पढता ही नहीं था तो वह कैसे खुदकुशी कर सकता है, ये डोक्टर झूठ बोल रहा है !
बेटे की लाश सामने पडी है पर वर्मा जी मौत की रपट लिखवाने को तैयार नहीं थे । इसलिए प्रधानमंत्री भी इस बार मुआवज़ा देने नहीं आए ।
शर्मा जी विदर्भ में रहते हैं और वर्मा जी छत्तीसगढ में । मुझे मालूम है आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है । पर आज छत्तीसगढ में स्थितियाँ कुछ वर्मा जी जैसी है ।
आज से दो हफ्ते पहले 8 फरवरी को मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो में उपलब्ध आंकडों के अनुसार छत्तीसगढ में हर साल लगभग 1400 खातेदार किसान खुदकुशी करते हैं यानि प्रतिदिन 4 किसान ।
यदि यह पता करने की कोशिश की जाए कि ऐसे कितने किसान आत्महत्या करते हैं जिनके नाम पर कोई खाता नहीं है तो इस बारे में कोई आंकडा उपलब्ध नहीं है ।
छत्तीसगढ में प्रतिक्रिया कुछ वर्मा जी जैसे हुई ।
कहा गया विदर्भ और आंध्र में किसान कैश क्रॉप बोते हैं, कर्ज़ लेते हैं इसलिए आत्महत्या करते हैं पर छत्तीसगढ में किसान धान बोते हैं जिसमें मेहनत तो लगती है पर अधिक कर्ज़ लेने की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए ये आंकडे झूठे हैं ।
अब यह अलग बात है कि कृषि मंत्री शरद पवार ने संसद में यह माना है कि किसान आत्महत्या के राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकडे सही हैं । ( 30 नवंबर 2007 तारांकित प्रश्न क्रमांक 238, राम जेठमलानी को कृषि मंत्री का जवाब)
इन सरकारी आंकडों में कहीं यह नहीं कहा गया है कि इन किसानों ने किसानी से जुडे कारणों से आत्महत्या की है और न ही किसी ने ऐसा दावा भी किया है ।
कुछ लोगों ने कहा हम अंधे हैं क्या? रोज़ चार किसान आत्महत्या करेंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा ? मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि इन आंकडों की जांच होनी चाहिए ।
7 सालों से ये आंकडे राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो में पडे हैं किसी छत्तीसगढिया ने इन पर झांकने की ज़रूरत महसूस नहीं की । पर मैंने खोजना शुरु किया है क्या छत्तीसगढ में आत्महत्या के बारे में पहले भी कोई अध्ययन हुआ है ?
मुझे 1943 के वैरियर एल्विन की पुस्तक माडिया मर्डर एंड सुइसाइड के बारे में तो पता था जिसमें उन्होंने बस्तर के आदिवासियों में आत्महत्या का अध्ययन किया था और पाया था कि माडिया आदिवासियों में मुरिया की तुलना में अधिक आत्महत्या पाई जाती है और यह सवाल पूछा था कि ऐसा क्यों है ?
उसके बाद मुझे 2003 में लंदन स्कूल ऑफ इक़ोनॉमिक्स के प्रोफेसर जोनाथन पैरी के भिलाई क्षेत्र में आत्महत्या के एक अध्ययन के बारे में पता चला । मैंने प्रोफेसर पैरी से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया “कुछ साल पहले अपने अध्ययन के सिलसिले में मैं जब भिलाई में था तो मैंने पाया कि भिलाई की उन बस्तियों में जहां मैं अपना शोध कर रहा था आत्महत्याओं की संख्या सामान्य से अत्यंत अधिक थी । वे आत्महत्याएं इतनी ज़्यादा थी कि मैंने इस विषय पर भिलाई के अस्पतालों और पुलिस थानों से आंकडे इकट्ठा करना शुरु किया यद्यपि यह मेरे अध्ययन का विषय नहीं था”।
प्रोफेसर पैरी ने आगे कहा “यह वही समय है जब आंध्र से किसान आत्महत्याओं की खबरें आनी शुरु हुई थी । मुझे हमेशा लगा कि यह कहना कि ये आत्महत्याएं सिर्फ कर्ज़ के कारण हो रही थीं बहुत ही चल्ताऊ किस्म के अध्ययन का परिणाम था । पर मेरे भिलाई के अनुभव के बाद आप आज जो आंकडा बता रहे हैं उससे मुझे कोई अचरज नहीं हो रहा” ।
इस बीच कनाडा में पीएचडी कर रहे मेरे मित्र युवराज गजपाल ने राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकडों का थोडा और अध्ययन किया और पाया कि 2006 में छत्तीसगढ की हर एक लाख की आबादी में 7.11 किसानों ने आत्महत्या की । उसके बाद का आंकडा महाराष्ट्र 4.59 और आंध्रप्रदेश 3.42 और कर्नाटक का 3.25 का है । उसने पूछा महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक की आत्महत्याओं के बारे में तो खूब लिखा गया पर छत्तीसगढ के बारे में कभी कुछ पढने को क्यों नहीं मिला?
युवराज ने आगे लिखा छत्तीसगढ में खातेदार किसानों की संख्या प्रदेश की आबादी का 17% है पर कुल आत्महत्या में खातेदार किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत 33% है अर्थात किसी और पेशे की तुलना में छत्तीसगढ में किसान दो गुना आत्महत्या करते हैं । ऐसा क्यों है ?
मुझे लगा इन आंकडों को मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट स्टडीज़ के प्रोफेसर के नागराज़ को दिखा लेना चाहिए जो इस विषय पर वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं। प्रोफेसर नागराज़ ने कहा मुझे 2003 के बाद के आंकडे कुछ दिन पहले ही मिले हैं मेरा विश्लेषण भी कुछ हफ्ते तक पूरा हो जाएगा पर आपके ये आंकडे मुझे ठीक ही दिख रहे हैं ।
मैंने पूछा प्रोफेसर नागराज छत्तीसगढ में लोग कह रहे हैं कि यहां तो धान की खेती होती है कैश क्रॉप नहीं तो यहां किसान आत्महत्या कैसे कर सकते हैं ? “आप तमिलनाडु के तंजावुर जिले में जाइए वहां भी सिर्फ धान की ही खेती होती है पर वहां काफी किसान आत्महत्या कर रहे हैं । उसके विपरीत पूरे तमिलनाडु में कैश क़्रोप बहुत होता है पर यहां किसानों की आत्महत्या नगण्य है वह इसलिये कि यहां सडक काफी अच्छी है और फसल बरबाद होने के बाद किसान और काम तलाश सकते हैं । अर्थात हर जगह की कहानी अलग अलग है” ।
मैंने पूछा छत्तीसगढ की तरह बिहार और उत्तरप्रदेश में भी तो धान की खेती होती है पर वहां के किसान आत्महत्या क्यों नहीं करते ? देखिए छत्तीसगढ का अध्ययन करने की ज़रूरत है पर आप छत्तीसगढ या मध्यप्रदेश की तुलना गंगा-जमुना के तटीय क्षेत्रों से नहीं कर सकते और किसान सिर्फ कर्ज़ के कारण आत्महत्या नहीं करता, कर्ज़ एक बहुत बडा कारण ज़रूर हो सकता है । अगर आप 1991 के बाद के भारत को देखें तो आम आदमी के लिए राज्य की मदद धीरे धीरे कम ही होती गई है चाहे वह स्वास्थ्य हो या शिक्षा या सिंचाई । आत्महत्या इन सब कारणों का मिलाजुला असर होता है” ।
अंत में मैंने हिंदू अखबार के पी साईनाथ को फोन किया जो इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर काफी दिनों से लिख रहे हैं । मैंने कहा छत्तीसगढ में पत्रकार इन आंकडों की खिल्ली उडा रहे हैं । श्री साइनाथ ने कहा “यह तो ऐसा हुआ कि यदि चुनाव परिणाम हमारी इच्छानुरूप नहीं आए तो चुनाव गलत है । आप मेरे नाम से लिखिए कि यदि लोग कह रहे हैं कि उन्होंने अध्ययन करके यह पाया है कि छत्तीसगढ में साल में एक ही किसान आत्महत्या करता है तब छत्तीसगढ तो धरती पर स्वर्ग है । मैं अब यूरोप और अमेरिका के किसानों को सलाह दूंगा कि वे छत्तीसगढ शिफ्ट हो जाएं क्योंकि यूरोप और अमेरिका में भी इससे अधिक किसान आत्महत्या करते हैं” !
लगता है छत्तीसगढ के पत्रकार कुछ कुछ वर्मा जी की तरह व्यवहार कर रहे हैं जिस वर्मा जी की कहानी से मैंने लिखना शुरु किया था । पर क्या छत्तीसगढ के राजनेता इस विषय की सुध लेंगे ? विधानसभा का सत्र इन दिनों चल रहा है क्या कोई इस विषय को वहां उठाएगा ?