प्लाचीमाडा से कोका-कोला पूरी तरह से बाहर निकली जाए

प्लाचीमाडा से कोका-कोला पूरी तरह से बाहर निकली जाए

केरल, भारत

२२ अप्रैल २००८



२२
अप्रैल २००८ को बहुराष्ट्रीय कंपनी कोका-कोला के ख़िलाफ़ भारत के केरल प्रदेश में चल रहे संघर्ष को साल पूरे हो जायेंगे.

ये संघर्ष एक संगीन चुनौती का सामना कर रहा है क्योकि लेफ्ट प्रदेश सरकार, अपेक्षा के विपरीत, तमाम सबूत होने के बावजूद कोका-कोला के विरुद्ध कोई भी करवाई नही हो रही है. भू-जल को प्रदूषित करने के लिए, खतरनाक नुकसानदायक फैक्ट्री का कचरा खेतों में निकलने के लिए, अत्यधिक मात्र में भू-जल निकलने के लिए और अन्य गंभीर रूप से कानूनों का उलंघन करने के लिए केरल सरकार कोका-कोला के विरोध में कोई भी करवाई नही कर रही है.

केरल भू-जल विभाग की एक विशेषज्ञ टीम ने सर्वे करने के बाद एक रिपोर्ट केरल सरकार को पेश की थी जिसमे ये साफ निकल के आया की कोका-कोला द्वारा भू-जल को प्रदूषित करने के कारन, काडमियम और लैड जैसे जहरीले पदार्थ अब भीतर ही भीतर फैल रहे हैं. कोका-कोला के ख़िलाफ़ कानूनन करवाई करने के बजाये प्रदेश सरकार ने एक भू-जल अथॉरिटी कायम की जिसने इस रिपोर्ट को निष्फल करने का पूरा प्रयास किया और अधिक शोध की बात रखी. ये 'अधिक शोध' मात्र एक घंटे में प्लाचीमाडा में किया गया और इस - सदस्यों की अथॉरिटी ने ऐसे सुझाव सरकार को दिए जो 'मदे फॉर कोका-कोला' लगते थे! ये बड़े दुःख की बात है की ये सुझाव कोका-कोला कंपनी के हितों की संग्रक्षा करते थे की प्रदेश के लोगों की.

केरल प्रदुषण नियांतरण बोर्ड ने कोका-कोला को नोटिक जारी की थी जिसपर कोका-कोला ने बिना विलम्ब जवाब दे दिया था. परन्तु अब केरल प्रदुषण नियांतरण बोर्ड भी सो रहा है.

एन सब बातों से साफ जाहिर है की प्लाचीमाडा के लोगों को न्याय मिलने में अभी बहुत वक्त लगेगा. ये हालत टैब है जब प्रदेश में लेफ्ट सरकार है.

अब प्लाचीमाडा के लोगों के पास कोई भी और विकल्प नही है सिवाय अपने संघर्ष को तीव्र करने के.

प्लाचीमाडा कोका-कोला के विरोध में संघर्ष समिति ने निर्णय लिया है की देश-भर में चल रहे अन्य जन-आन्दोलनों के सहयोग और समर्थन से अभियान को सक्रिए और तेज़ करेगी.

२२ अप्रैल २००८ को प्लाचीमाडा, केरल में, एक राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया जर आहा है जहाँ संघर्ष की भावी योजना पर विचार किया जाएगा.

हमारा निवेदन है की आप कृपया कर के इस अभियान में शामिल हों.

सा-धन्यवाद,

विलायोदी वेनुगोपालन
अध्यक्ष
प्लाचीमाडा कोका-कोला के विरोध में संघर्ष समिति
(
प्लाचीमाडा एंटी कोका-कोला स्ट्रगल कमिटी)
कन्निमारी पोस्ट ऑफिस
पलाक्कादाकिल, केरल (भारत)
फोन: (+९१) ९९४६३७३४७४
ईमेल: plachimad2002@reddiphphmail.kom


नाप
जॉन्सन
अध्यक्ष

प्लाचीमाडा
संघर्ष समर्थन समिति
(
प्लाचीमाडा स्त्रूगले सोलिदारिटी कमिटी)
फोन
: (+९१) ९४४७०१९५४६
ईमेल
: harithaamythrii@gmail.com

फिल्मों में तम्बाकू, शराब और जंक फ़ूड को फ़िल्म-कलाकार बढावा न दें, डॉ रामादोस की अपील

फिल्मों में तम्बाकू, शराब और जंक फ़ूड को फ़िल्म-कलाकार बढावा न दें, डॉ रामादोस की अपील

फिल्मों में तम्बाकू सेवन को दिखाने से बच्चों और युवाओं का तम्बाकू सेवन आरंभ करने की सबसे अधिक सम्भावना होती है. ये अनेकों देसी-विदेसी शोधों से प्रमाणित हो चुका है.

The Cigarette and other tobacco products Act (2003) या सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पादन अधिनियम (२००३) के तहत और अनेकों जन-स्वास्थ्य नियमों के बाद भी फिल्मों में तम्बाकू सेवन का प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है. यहा तक कि भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने कई बार फिल्मी कलाकारों से निवेदन किया है, मगर फिल्मी कलाकार केवल डॉ रामादोस के निवेदन को नज़रंदाज़ कर रहे हैं बल्कि भारत के सिगरेट और अन्य तम्बाकू अधिनियम (२००३) का खुला उलंघन कर रहे हैं.

यहा तक कि कोर्ट ने अमिताभ बच्चन के ख़िलाफ़ करवाई को निरस्त कर दिया. अमिताभ बच्चन ने फमिली फिल्म में सिगार पिया था और उसके बैनर पोस्टर देश भर में लगे हुए थे. गोया की नोट इंडिया संस्थान ने और लखनु की इंडियन सोसिएटी अगेंस्ट स्मोकिंग ने अमिताभ बच्चन के तम्बाकू अधिनियम का उलंघन करने के लिए कानूनी नोटिस भी जारी की थी और नोट इंडिया ने कोर्ट में अपील भी दाखिल की परन्तु उसको खारिज कर दिया गया.

डॉ रामादोस ने एक बार फिर फिल्मी कलाकारों से निवेदन किया है कि वो सिनेमा परदे पर तम्बाकू, शराब और जंक फ़ूड आदि का सेवन करे क्योकि बच्चों युवाओं पर बुरा असर पड़ता है और ये प्रमाणित हो चुका है कि फिल्मी कलाकारों को देख के बच्चे युवा अक्सर इन नशीले पदार्थों का सेवन आरंभ कर देते हैं.

भारत में ८० प्रतिशत फिल्मों में तम्बाकू सेवन दिखाया जाता है, डॉ रामादोस ने कहा.

डॉ रामादोस ने कहा की यदपि भारत में दुनिया का एक बढ़िया तम्बाकू नियांतरण अधिनियम है परन्तु इसको लागु नही किया जा रहा है.

डॉ रामादोस के अनुसार अब स्कूली अध्यापकों को, अन.सी.सी. कादेतों को और सामाजिक संस्थाओं को भी तम्बाकू नियंतरण में सक्रिए किया जाएगा. तम्बाकू नियंतरण को स्कूली पढाई में भी शामिल करने की योजना है.

क्या उड़ीसा में आर्थिक घोटाला होने को है?

क्या उड़ीसा में आर्थिक घोटाला होने को है?

लेखक: संदीप दासवर्मा और सनत मोहंती

ये लेख मौलिक रूप से अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जो यह पढ़ा जा सकता है (क्लिक्क कीजिये). ये इसका हिन्दी अनुवाद है, त्रुटियों के लिए छमा करें.

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स्टील के पोस्को (POSCO) प्रोजेक्ट के विरोध में मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के सब प्रयासों का उड़ीसा सरकार खंडन करती आ रही है, और ये सवाल उठता है की क्या प्रदेश में एक बहुत बड़ा आर्थिक घोटाला पनप रहा है?

मेमोरंदुम ऑफ़ उन्देर्स्तान्डिंग (ऍम.ओ.यू) या पोस्को और उड़ीसा सरकार के बीच जो समझौता हुआ है उसमें दूसरा वाक्य ये है:

"उड़ीसा सरकार प्रदेश में जो प्राकृतिक संसाधन हैं उनके जरिये प्रदेश में उद्योग को बढावा देना चाहती है, जिससे प्रदेश के लोग फले-फूले और संपन्न रहें. प्रदेश सरकार ठोस प्रयास करती रही है जिससे प्रदेश की विभिन्न छेत्रों में उद्योग स्थापित हो सके. इसी परिपेक्ष्य में, प्रदेश सरकार ऐसे उद्योगों की तलाश में है जो एक स्टील प्लांट की स्थापना कर सके जिससे प्रदेश के ऐरोन या लोहे की खदानों का उपयोग हो सके"

हालांकि उड़ीसा सरकार के इन प्रयासों का सामाजिक और पर्यावरण पहलू पर विचार होना आवश्यक है, पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ये है कि इसके आर्थिक पहलू पर विचार हो सके.

ऍम.ओ.यू. में पोस्को कंपनी ने १२ बिलियुं डालर या रुपया ४८,००० करोर के निवेश का प्रस्ताव रखा है. ये संख्या भव्य है. ४८,००० करोर रूपये से प्रदेश में काफी विकास कार्य हो सकते है विशेषकर कि जब ये प्रदेश भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर व्यवस्था वाला प्रदेश माना जाता है. इस पैसे से अनेकों शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, वकाल्पिक आय के स्रोत, आदि के कार्यक्रम चल सकते हैं. पोस्को कंपनी प्रथम फेस में २०१२ तक रूपये२१,९०० करोर के निवेश करने का प्रस्ताव रखती है और २०१६ तक रूपये २१,५०० करोर के निवेश की.

पोस्को उड़ीसा प्रदेश के शहर भुभ्नेश्वर में २०-२५ एकड़ जमीन पर अपने भारतीय सुब्सिदिअरी कंपनी के कार्यालय को खोलेगी. इसके अलावा पोस्को कंपनी को ६००० एकड़ जमीन की भी आवश्यकता है जिसपर स्टील प्रोजेक्ट बनेगा और लोगों के रहने आदि की टाउनशिप भी प्लान की गई है. यही नही, अन्य व्यवस्थाओं के लिए जैसे कि स्टील प्लांट्स के बीच समान के आने जाने के लिए, पोर्ट तक माल के आने जाने के लिए और पानी में तरेअत्मेंट के लिए भी जमीन आदि चाहिए होगी. उड़ीसा सरकार ने पोस्को को ये जमीन प्रदान करने का वायदा किया है.

नेक इरादों को दिखाने के लिए, ऍम.ओ.यू. में ये भी स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि:

"उड़ीसा सरकार इस बात की प्रशंसा करती है कि कंपनी एक जिम्मेदार उद्योग है और कंपनी में कार्यरत लोगों के हित, लाभ और सामाजिक विकास का भी ध्यान रखती है"

उड़ीसा प्रदेश में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा सबसे बड़े स्टील प्रोजेक्ट के निर्माण की घोषणा सुनके ओरिया समुदाय नि:संदेह खुश है. इस प्रोजेक्ट से न केवल प्रदेश में कभी न होने वाला निवेश होगा बल्कि लोगों को रोज़गार और नए शहर व्यवस्था आदि भी मिलेगी. उड़ीसा सरकार को गौरव होना चाहिए कि वो इस डील को अंजाम दे पायी है.

परन्तु इसके बावजूद भी इस पोस्को प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है.

पर्यावरण की संग्रक्षा करने वाले कह रहे है कि पानी का झरना खत्म हो जाएगा - परन्तु जब लोग भुखमरी से मर रहे हों, तो झरने की परवाह किसको है! पहाडों की प्राकृतिक सौदार्यता खत्म हो जायेगी - ये परवाह किसको है यदि इस पोस्को प्रोजेक्ट से उड़ीसा के अनेकों लोगों को स्थाई रोज़गार मिल रहा हो! जो रिडले कच्छुओं के बारे में मुद्दा बना रहे है, वो हस्ययास्पद लगता है यदि लोगों के हित की सोची जाए.

उड़ीसा के लोगों का कहना है कि भारत के अन्य प्रदेशों में जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि या अन्य विकसित राष्ट्रों में भी विकास और व्यवस्था के विकास के लिए इस प्रकार की कीमत चुकाई गई है. तब फिर जब उड़ीसा में ऐसा हो रहा हो तो शिकायत क्यो? ये बहस समझ आती है.

ये भी अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि जो आर्थिक लाभ की बात उड़ीसा सरकार कर रही है, वो कितनी वाजिब है.

पहले जब डील हुई थी तो पोस्को ने रूपये २७ प्रति टन ऐरोन या लोहे ओर का दाम उड़ीसा सरकार को देने का वायदा किया था यदि इस ऐरोन या लोहे में कम से कम ६२ प्रतिशत इरों या लोहा हो. इससे उड़ीसा सरकार को रुपया १,६२० करोर एक लंबे समय में मिलता जब ६०० मिलिओं टन का सौदा हो चुका होता.

इस समय अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार में ऐरोन या लोहे ओर का रेट अमरीकी डालर १०० प्रति टन है. दिसम्बर २००७ में बाज़ार में ऐरोन या लोहे ओर का मूल्य अमरीकी डालर १२० प्रति टन था.

अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के मूल्य के हिसाब से ६०० मिलिओं टन ऐरोन या लोहे ओर की खुदाई से रुपया २४०,००० करोर होता है न कि रुपया १,६२० करोर). ये समझ में अब आ रहा है कि पोस्को प्रोजेक्ट को ऐरोन या लोहे ओर लगभग मुफ्त में मिल रह है (२४०,००० करोर रूपये का माल मात्र १६२० करोर में!).

कुछ ऐसी ही डील अन्य उद्योगों के साथ हुई है जिसमे टाटा, वेदंता, जिंदल आदि शामिल हैं.

ऐसी डील उड़ीसा सरकार और केंद्रीय सरकार आख़िर क्यो कर रही है? जो लोग उद्योग में कार्यरत हैं उनके अनुसार सारी राजनितिक पार्टियों को अपना हिस्सा मिल रहा है. ऐरोन या लोहे की खुदाई के बाद हर ट्रक पर रूपये ५०० स्थानिये ऍम.अल.ऐ. को और इतनी ही रकम राजनीती पार्टी को प्राप्त हो रही है.

कुछ लोग उड़ीसा में ऐसे है जो ये सवाल उठा रहे हैं कि उड़ीसा सरकार क्यो पोस्को को अन्तर-राष्ट्रीयबाज़ार के मुल्ये से १ प्रतिशत से भी कम में ऐरोन या लोहे का ओर बेच रही है?

गहन शोध के बाद कुछ लोग इस नतीजे पर पहुचे हैं कि अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के रेट से ५० प्रतिशत पर उड़ीसा सरकार ये ऐरोन या लोहे ओर पोस्को को दे यदि स्टील प्रदेश के भीतर ही बन रही हो, यदि खुदाई के बाद ये ऐरोन या लोहे ओर प्रदेश से बाहर ले जाया जा रहा हो तो ८० प्रतिशत कीमत पोस्को को देनी चाहिए. ये कीमत देने के बाद भी पोस्को फायदे में रहेगी. उड़ीसा सरकार ने बहस की कि ऐसा करने पर डर है की पोस्को अन्य प्रदेश में न चली जाए. इसका जवाब ये है कि सब प्रदेशों को एकजुट हो कर एक संगठन बनाना चाहिए जिससे उद्योग उनके विभाजित होने का फायदा न उठा सके, जैसा कि Organization of the Petroleum Exporting Countries (OPEC) ने बनाया है.

इस तरह के प्रदेशों के संगठन बनने का प्रयास चल रहा है जिसमे छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, कर्नाटक और राजस्थान प्रदेशों के शामिल होने की सम्भावना है.

इन प्रदेशों के मुख्य मंत्री भारत के प्रधान मंत्री से १९ दिसम्बर को मिले थे और लोगों की मांग के अनुसार ५० प्रतिशत कीमत मांगने की बजाये इन मंत्रियों ने २० प्रतिशत कीमत की मांग की. केंद्रीय सरकार मोल-भाव कर रही है और सम्भावना है की अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार के दाम से ७.५ - १० प्रतिशत कीमत पर राज़ी हो. उड़ीसा सरकार ईस दाम से संतुष्ट है.

यदि ऐसा हुआ तो अब उड़ीसा सरकार को रुपया १,६२० करोर के बजाये रुपया १८,००० - २४,००० करोर मिलेगा.

ऐसे कौन से कारण है जो सरकारों को मिनेरल बाज़ार की कीमत से ९० प्रतिशत से भी कम दाम में बेचनेपर मजबूर कर देते हैं?

प्रदेश सरकार इस पोस्को प्रोजेक्ट से संबंधित कोई जानकारी देने को तैयार नही है. लोकतंत्र में सब निजी कंपनियों के साथ सौदों की जानकारी जनता को मिलती है, यदि कोई सुरक्षा पर खतरा न बन रहा हो.

उड़ीसा सरकार, जिसका सालाना बजट रूपये ४,५०० करोर है, उसने १०८,००० करोर का माल या रूपये३,६०० करोर प्रति वर्ष आने वाले ३० साल तक के मूल्य को नही माँगा और वो क्यो मात्र ६०० करोर प्रतिवर्ष के मूल्य पर राज़ी हो गई?

संदीप दासवर्मा और सनत मोहंती

कोर्ट ने तम्बाकू नियंतरण अधिनियम के उलंघन के लिए अमिताभ बच्चन के खिलाफ करवाई को रद्द किया

कोर्ट ने तम्बाकू नियंतरण अधिनियम के उलंघन के लिए अमिताभ बच्चन के खिलाफ करवाई को रद्द किया


The Cigarette and other tobacco products Act (2003) या सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पादन अधिनियम (२००३) के अनुसार फिल्मों में तम्बाकू सेवन के प्रदर्शन पर रोक लगाई जानी चाहिऐ. भारत के केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अंबुमणि रामादोस ने अनेकों बार फिल्मों में तम्बाकू के प्रदर्शन पर रोक लगाने का आह्वान किया है.

अंतर-राष्ट्रीय तम्बाकू नियन्तरण अधिवेशन (२००६) में डॉ रामादोस ने ये तक कहा था कि पुरानी फिल्मों में जो फिल्म कलाकार परदे पर तम्बाकू सेवन करते थे, अब उन फिल्मों को कानूनन चेतावनी दिखानी पड़ेगी जब तम्बाकू सेवन प्रदर्शित हो रहा हो.

गोया में तम्बाकू नियांतरण के लिए समर्पित संस्थान note ने और भारतीय तम्बाकू उन्मूलन संस्थान (इंडियन सोसिएटी अगेंस्ट स्मोकिंग) ने भी अमिताभ बच्चन के खिलाफ कानूनन नोटिस जारी किया था जिसमे अमिताभ बच्चन द्वारा फमिली सिनेमा में सिगार पीने के खिलाफ और भारतीय तम्बाकू नियंतरण अधिनियम के उलंघन की बात रखी गयी थी.

अमिताभ बच्चन ने लिखित रूप से ये वादा किया था कि फमिली फिल्म के बोर्ड हटा लिए जायेंगे.

गोया की संस्थान के अनुसार बोर्ड हटाना तो कानूनन जरूरी है परन्तु अधिनियम के उलंघन के लिए अमिताभ बच्चन के ऊपर कानूनन करवाई होनी चाहिऐ.

नॉर्थ गोया के कोर्ट में २६ मार्च को सेसिओन जज श्री बकरे ने अमिताभ बच्चन के खिलाफ करवाई की अपील को रद्द कर दिया।

मेडिकल छात्रों में बढ़ता हुआ तम्बाकू सेवन

मेडिकल छात्रों में बढ़ता हुआ तम्बाकू सेवन

तम्बाकू सेवन मत करोकह देने से ही तम्बाकू नही छूट जाती है. अनेकों स्वास्थ्यकर्ता जिनमे डाक्टर एवं मेडिकल छात्र शामिल हैं, तम्बाकू का सेवन करते हैं. चौकाने वाली बात ये है कि तम्बाकू-जनित कुप्रभावों के रोगी को तम्बाकू छोड़ने का परामर्श देते हुए ये डाक्टर स्वयं तम्बाकू का धड़ल्ले से सेवन करते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत के केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय विश्व-जन-स्वास्थ्य प्रोफेशनल छात्रों के सर्वे से इस बात की पुष्टि होती है.

इस सर्वे में भारत के १५ मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने भाग लिया था. बाकि समाज से अधिक तम्बाकू सेवन का दर मेडिकल छात्रों में निकल के आया है.

इस रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट होता है कि अस्पताल परिसर में तम्बाकू-धूम्रपान पर रोक लगाने वाले अधिनियमों का सख्ती से अनुपालन नही होता है. इस रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट है कि तम्बाकू नशा उन्मूलन के कार्यक्रम निष्फल से हो रहे हैं और तम्बाकू छुड़वाने में कारगर नही है.

लगभग आधे मेडिकल छात्रों ने ये कहा कि सुबह उठने के ३० मिनट के अन्दर ही तम्बाकू सेवन करने की तलब होती है.

४२ प्रतिशत छात्रों ने ये कहा कि वो घर पर परोक्ष धूम्रपान झेलते हैं और ७३ प्रतिशत छात्रों ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू सेवन को परोक्ष रूप से झेलना पड़ता है.

विश्व पानी दिवस २००८ पर विशेष - दुनिया में जिन लोगों को साफ पानी नही नसीब होता है, उनकी संख्या आधी करने के लिए अमरीकी डालर ८० बिलयुन कहा से आएगा?

विश्व पानी दिवस २००८ पर विशेष

दुनिया में जिन लोगों को साफ पानी नही नसीब होता है, उनकी संख्या आधी करने के लिए अमरीकी डालर ८० बिलयुन कहा से आएगा?


मिल्लेन्नियम देवेलोप्मेंट गोल (MDG) के अनुसार २०१५ तक जिन लोगों को साफ पानी और स्वच्छ रहन सहननसीब नही है उनकी संख्या आधी हो जानी चाहिए.

२६० करोड़ लोगों को साफ पानी और स्वच्छ रहन सहन नसीब नही है. ये संख्या आधी करने के लिए विश्व स्तर पर८० बिलिओन अमरीकी डालर कहा से आयेंगे?

और ८० बिलिओन अमरीकी दल्लर अगर मिल भी जायेंगे तो २०१५ तक सिर्फ़ २६० करोड़ में से १३० करोड़ लोगों कोसाफ पानी और स्वच्छ रहन सहन नसीब होगा और बाकि के आधे १३० करोड़ लोग बिना साफ पानी और स्वच्छता के साथ जी रहे होंगे.

ये जो ८० बिलिओन अमरीकी डालर की रकम है ये विश्व में सैन्य व्यवस्था पर खर्च होने वाली रकम कीमात्र १ प्रतिशत है.

ये जो ८० बिलिओन अमरीकी डालर की रकम है ये बोतल बंद पानी की निजी कंपनियों के मुनाफे का सिर्फ़ १/३हिस्सा है.

ये जो ८० बिलिओन अमरीकी डालर की रकम है ये यूरोप में आइस-क्रीम पर हर साल खर्च हो जाती है.

"जिन निजी कंपनियों ने विशेषकर कि बोतलबंद पानी की निजी कंपनियों ने पर्यावरण को नुकसानपहुचाया है और स्थानिये लोगों के प्राकृतिक संसाधन पर अधिकार को मारा है, उनसे ही इस रकम कोउसूलना चाहिए, कि गरीब देशों की सरकारों से या अन्य जन-संसाधनों से" कहना है डॉ संदीप पाण्डेय का जो जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समंवाए (NAPM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

जो बोतलबंद पानी की निजी कम्पनियाँ स्थानिये लोगों की जमीन के नीचे से पानी निकाल कर बाज़ार में बेच के मुनाफा कमा रही हैं, इस मुनाफे का १/३ हिस्से से १३० करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी और रहन सहन नसीब हो पायेगा. पानी कोई बजारू वस्तु नही है जो बाज़ार में बेची जा सके. पानी के ऊपर निजी कंपनियों के नियंतरण या कंट्रोल पर अंकुश लगना चाहिए.

"एन कंपनियों की वजह से ही विश्व में पानी की त्राहि त्राहि मची है और ये कम्पनियाँ इससे मुनाफा भी कमाती है" कहना है कथ्य मुल्वेय का जो कार्पोरेट अच्कोउन्ताबिलिटी इंटरनेशनल की अध्यक्ष हैं.

रामादोस ने पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री के धूम्रपान करने पर आपत्ति जाहिर की


रामादोस ने पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री के धूम्रपान करने पर आपत्ति जाहिर की


सिने-अभिनेता अमिताभ बच्चन और शाह रुख खान के तम्बाकू सेवन करने पर, खासकर कि फिल्म परदे पर तम्बाकू के सेवन को करने पर भारत के केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस पहले से ही टिपण्णी कर चुके हैं क्योकि फिल्मों में तम्बाकू सेवन को दिखाने से बच्चों और युवाओं पर सबसे अधिक बुरा असर पड़ता है. फिल्मों में तम्बाकू सेवन को दिखाना बच्चों और युवाओं के तम्बाकू सेवन शुरू करने का सबसे बडा कारण है.

डॉ रामादोस ने पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री श्री बुद्धदेब भट्टाचार्जी के सार्वजनिक रूप से धूम्रपान करने पर आपत्ति जाहिर की.

भारत के सिगारेत्ते एवं अन्य तम्बाकू उत्पादन अधिनियम के तहत (२००३) सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना वर्जित है.

पश्चिम बंगाल में ७०.२ प्रतिशत आदमी धूम्रपान करते हैं. प्रदेश के मुख्य मंत्री होने के नाते श्री भट्टाचार्जी का दायित्व है कि वो तम्बाकू के सेवन को त्याग दे और बाकि तम्बाकू सेवन करने वाले लोगों के लिए प्रेरणा बने.

पश्चिम बंगाल के सचिवालय परिसर में तम्बाकू सेवन और धूम्रपान वर्जित है. पर प्रदेश के मुख्य मंत्री महोदय इसका खुला उलंघन करते हैं और अपने ही कार्यालय में खुले रूप से धूम्रपान करते हैं.

भारत के कानून के मुताबिक अब यदि कार्यस्थल पर कोई भी करमचारी धूम्रपान करते पाया गया तो संस्थान पर रुपया ५००० जुर्माना होगा. यदि दो करमचारी धूम्रपान करते पकडे गए तो जुर्माना १०,००० रुपया होगा.

भारत सरकार ये भी योजना बना रही है की यदि सार्वजनिक स्थान पर कोई व्यक्ति धूम्रपान करते पकडा गया टू उसपर रुपया ,००० जुर्माना होना चाहिऐ. फिलहाल ये रकम रुपया २०० है, जो बाधा के ,००० करने का प्रस्ताव है.