भारत और ऊर्जा सुरक्षा
डॉ राहुल पाण्डेय
किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्त्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग - सभी लोग - ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन.
इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध आदि, गोबर गैस इत्यादि.
चूँकि इन वैकल्पिक ऊर्जा के संसाधनों की कीमत दुनिया भर में तेज़ी से कम हो रही है, और क्योंकि भारत में इसके लिए संसाधन उपलब्ध हैं, और यह वैकल्पिक ऊर्जा के तरीके 'ग्राम स्वराज्य' या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं, इनको भारत को अपनाने के लिए पुन: विचार करना चाहिए.
जो पारम्परिक ऊर्जा के संसाधन हैं जैसे कि परमाणु या बड़े बाँध के जरिये ऊर्जा बनाना, यह दुनिया भर में हर जगह असफल हो रहे हैं, क्योंकि इन पारम्परिक तरीकों से ऊर्जा बनाने में काफी खर्च आता है और लंबे समय तक के लिए स्थानीय लोगों पर और पर्यावरण पर भीषण कु-प्रभाव पड़ता है.
जब तक वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम नही बन जाता तब तक के लिए कोयले और नैचुरल गैस आदि से ऊर्जा बनाने का काम चलाया जाना श्रेयस्कर रहेगा.
न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरुरत पूरी हो सके.
जब से लोगों को विश्व-स्तर पर यह समझ में आ रहा है कि तेल तीव्रता से समाप्त हो रहा है, ऊर्जा का मुद्दा नीति-चर्चाओं में प्रमुख जगह लिए हुए है.
डॉ राहुल पाण्डेय
(लेखक भारतीय तकनीकि संस्थान (आई.आई.टी) मुंबई और भारतीय प्रबंधन संस्थान के भूतपूर्व आचार्य हैं. ईमेल: rahulanjula@gmail.com)