धूम्रपान-रहित चंडीगढ़ अभियान को लागू करने में ढिलाई
पिछले साल १५ जुलाई २००७ को चंडीगढ़ शहर ने भारत के पहला धूम्रपान शहर होने की घोषणा कर के नि:संदेह जन स्वस्थ्य की ओर एक मिसाल पेश की थी. अब एक साल के बाद मीडिया रपट के अनुसार धूम्रपान रहित अभियान को लागू करने में ढिलाई आ रही है.
तम्बाकू विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि तम्बाकू उद्योग संभवत: तम्बाकू-विरोधी नीतियों को लागू करने में हस्तछेप कर रहा है.
भारत के स्वस्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामदोस ने भी चंडीगढ़ शहर की इस अनोखी और जन-हितैषी पहल की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी.
परन्तु चंडीगढ़ शहर का प्रशासन इस नीति को कडाई से लागु नहीं कर रहा है, विशेषकर पुलिस, स्वास्थ्य अधिकारी और अन्य प्रशासनिक अधिकारीगण.
उदाहरण के तौर पर पिछले साल धूम्रपान प्रतिबन्ध के उलंघन करने वाले मात्रा १,८६० केस पंजीकृत हुए जिनमें से अधिकाँश १५ जुलाई २००७ को धूम्रपान रहित शहर की घोषणा के बाद के महीनों में ही पंजीकृत हुए थे.
"तम्बाकू उद्योग भारत में धूम्रपान रहित शहर के उदाहरानीय प्रयास को विफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है - जिससे कि अन्य शहर भी कहीं धूम्रपान रहित बनने का स्वप्न न देखने लगें" कहना है हेमंत गोस्वामी का, जिनके प्रयासों की वजह से चंडीगढ़ 'धूम्रपान रहित शहर बना था.
"यह साफ़ ज़ाहिर है कि तम्बाकू कंपनियों के कारोबार पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है" कहना है हेमंत गोस्वामी का.